Smriti Ki Rekhaye
Author:
Mahadevi VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
महादेवी मूलतः कवयित्री हैं, परन्तु उन्होंने गद्य में भी श्रेष्ठ लेखन किया। विशेष बात यह है कि हिन्दी साहित्य में उनके रेखाचित्र जिस शिखर पर खड़े हैं, उन्हें छूनेवाला आज तक कोई नहीं हुआ। एक महादेवी ही हैं, जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्यं कवितां निकषं वदन्ति’ को चरितार्थ किया।
स्मृति की रेखाएँ में निरन्तर जिज्ञासाशील महादेवी ने अपनी स्मृति के आधार पर अमिट रेखाओं द्वारा अत्यन्त सहृदयतापूर्वक जीवन के विविध रूपों को चित्रित कर पात्रों को अमर कर दिया है। उन्होंने अपने अधिकांश रेखाचित्रों में निम्नवर्गीय पात्रों की विशेषताओं, दुर्बलताओं और समस्याओं का चित्रण किया है। वृद्ध ‘भक्तिन’ की प्रगल्भता तथा स्वामिभक्त ‘चीनी युवक’ की करुण मार्मिक जीवनगाथा, पर्वत के कुली ‘जंगबहादुर’ की कर्मठता और फिर ‘मुन्नू’, ‘ठकुरी बाबा’, ‘बिबिया’ तथा ‘गुँगिया’ जैसे चरित्रों की मर्मस्पर्शी जीवन-झाँकियाँ पाठक को अभिभूत कर देने में सक्षम हैं।
ISBN: 9788180313011
Pages: 118
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Kashinath Singh
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- Description: साठोत्तरी पीढ़ी के जिन प्रगतिशील कथाकारों ने हिन्दी कहानी को नई ज़मीन सौंपने का काम किया, काशीनाथ सिंह का नाम उनमें विशेष महत्त्व रखता है। इस संग्रह में उनकी बहुचर्चित कहानियाँ शामिल की गई हैं। ध्वस्त होते पुराने समाज, व्यक्ति-मूल्यों तथा नई आकांक्षाओं के बीच जिस अर्थद्वन्द्व को जन-सामान्य झेल रहा है, उसकी टकराहटों से उपजी, भयावह अन्तःसंघर्ष को रेखांकित करती हुई ये कहानियाँ पाठक को सहज ही अपनी-सी लगने लगती हैं। इनमें हम वर्तमान राजनीतिक ढाँचे के तहत पनप रही मूल्य-भ्रंशता को भी देखते हैं और जीवन-मूल्यों की पतनशील त्रासदी को भी महसूस करते हैं। समकालीन यथार्थ की गहरी पकड़, भाषा-शैली की सहजता और एक ख़ास क़िस्म का व्यंग्य इस सन्दर्भ में पाठक की भरपूर मदद करता है। वह एक प्रगतिशील मूल्य-दृष्टि को अपने भीतर खुलते हुए पाता है, क्योंकि काशीनाथ सिंह के कथा-चरित्र विभिन्न विरोधी जीवन-स्थितियों में पड़कर स्वयं अपना-अपना अन्तःसंघर्ष उजागर करते चलते हैं और इस प्रक्रिया में लेखकीय सोच की दिशा सहज ही पाठकीय सोच से एकमेक हो उठती है।
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