Sherpur 15 Meel

Sherpur 15 Meel

Language:

Hindi

Pages:

146

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

292 mins

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Book Description

हिन्दी कहानी और मुख्यत: साठोत्तरी कहानी के प्रमुख प्रवक्ता तथा उसके प्रवर्तकों में एक थे विजयमोहन सिंह। उनके पहले कहानी-संग्रह ‘टट्टू सवार’ से ‘शेरपुर 15 मील’ की कथायात्रा बहुत लम्बी है—वह महज़ 15 मील नहीं है। एक कहानीकार के रूप में विजयमोहन सिंह किसी मुख्य धारा में शामिल नहीं रहे—न नई कहानी की, न साठोत्तरी कहानी की। वे किसी विचारधारा विशेष के जयघोषों के अश्वारोही भी नहीं रहे और न आधुनिकता से आक्रान्त, प्राय: उसकी प्रतिकृतियाँ रचनेवाले कथाकारों से प्रभावित। उन्होंने प्रारम्भ से ही अपना निजी शिल्प तथा कथा-भाषा निर्मित की। लेकिन अपने विकासक्रम में वह कभी शिलीभूत या जड़ीभूत न होकर निरन्तर अपनी ऊर्जा के स्रोतों तथा शिल्प की छवियों का विविध दिशाओं में अन्वेषण करते रहे।</p> <p>संग्रह की अधिकांश कहानियाँ स्वतंत्रता के बाद के पतनशील सामन्त वर्ग की क्रमिक मृत्यु का प्राय: अनुक्षण साक्षी बनकर उसे अंकित करती गई हैं किन्तु यह ‘सामन्त वर्ग’ रूढ़ अर्थ में एक परिभाषित सामन्तवर्ग ही नहीं है : वह नवधनाढ्य सपनों का सामन्त वर्ग भी है और अपनी विरूपता में भी अपने को सहेजने में सचेष्ट, कभी हास्यास्पद परिणतियों में बिखरता हुआ और कभी त्रासदीय विडम्बनाओं में विलीन होता हुआ वर्ग विशेष भी।</p> <p>इन कहानियों में सामान्यीकृत तथा सरलीकृत स्थितियों तथा निष्कर्षों से भरसक बचा गया है, क्योंकि इधर की हिन्दी की अधिसंख्य कहानियाँ उसी का शिकार होती गई हैं। इसलिए यह? एक वर्ग ऐसा भी है जो उपनिवेशी अवशेषों को ढोता हुआ, अपनी सलवटों को सहेजता हुआ ‘डॉनस्कघेंटिक’ लीलाओं में लिप्त है। वह दूसरों की पू्रनिंग करता हुआ इस तथ्य से अनभिज्ञ रहता है कि वह इस क्रम में निरन्तर अपनी ही पू्रनिंग करता हुआ अस्तित्वहीन हुआ जा रहा है। इन कहानियों में मृत्यु एक केन्द्रीय विषय है, लेकिन हमेशा वह अभिधा में नहीं है, कभी वह रूपक, कभी प्रतीक और कभी केवल एक बुनियादी तथा अन्तिम सत्य का अहसास-भर है। ये कहानियाँ आधुनिकता से ग्रस्त नहीं हैं, न शीत-युद्धकालीन ‘रेटारिक’ आक्रमण-प्रत्याक्रमण से। ये महज़ आज के मानवीय परिदृश्य की रचनात्मक अंकितियाँ हैं।

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