Sach Kahati Kahaniyan
Author:
Kusum KhemaniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
कुसुम खेमानी की कहानियों का यह पहला संग्रह हिन्दी कथा-संसार के लिए एक घटना से कम नहीं। सम्भवतः पहली बार इतनी मार्मिक कौटुम्बिक कहानियाँ हिन्दी पाठकों को उपलब्ध हो रही हैं। यह सच कहती कहानियाँ नहीं; बल्कि स्वयं सच हैं; सच का तना रूप। भिन्न-भिन्न सामाजिक स्तरों के प्रसंगों एवं अनुभवों से बुनी गई ये कहानियाँ समकालीन जीवन का एक अद्भुत कसीदा जड़ती हैं। चाहे ‘लावण्यदेवी’ हो या ‘रश्मिरथी माँ’ या ‘एक माँ धरती-सी’, इन सबमें सूक्ष्मता और अन्तरंगता से घर-परिवार के भीतर के जीवन को यथार्थ के साथ अंकित किया गया है।</p>
<p>कुसुम खेमानी भाव से कथा कहती हैं, लोक कथा की तरह। उनकी कहन शैली से पाठक इतना बँध जाता है कि हुंकारी भरे बिना नहीं रह पाता। इन कहानियों की सबसे बड़ी ख़ूबी है इनकी भाषा और शैली। हिन्दी में होते हुए भी ये कहानियाँ एक ही साथ बांग्ला, राजस्थानी और उर्दू का भी विपुल व्यवहार करती हैं जो इन्हें एक महानगरीय संस्कार प्रदान करता है। कुसुम खेमानी के पहले ऐसा प्रयोग शायद कभी नहीं हुआ। इन कहानियों की बुनावट और अन्त भी सहज, किन्तु अप्रत्याशित होता है। हर कहानी अपने आपमें एक स्वतंत्र लोक है।</p>
<p>इस संग्रह के साथ कुसुम खेमानी के रूप में हिन्दी को एक अत्यन्त सशक्त शैलीकार एवं संवेदनशील क़िस्सागो मिला है। निश्चय ही यह संग्रह सहृदय पाठकों एवं साहित्य के अध्येताओं द्वारा अंगीकार किया जाएगा।</p>
<p>—अरुण कमल
ISBN: 9788183615303
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सामान्य जीवन-स्थितियों में भी ऐसा बहुत कम होता है, जिसकी मूल्यवत्ता हमें दूर तक सोचने के लिए विवश करती है। लेकिन यह कार्य एक सक्षम और अनुभूतिशील रचनाकार ही कर सकता है और शेखर जोशी ने इन कहानियों के रूप में यही कार्य सम्पादित किया है।
शेखर जोशी की ये कहानियाँ हमारे समक्ष जिस यथार्थ का उद्घाटन करती हैं, उसके पीछे समकालीन जन-जीवन की बहुविध विडम्बनाओं को महसूस किया जा सकता है। सपनों की वास्तविकता से अपरिचित बच्चों की ख़ुशी हो, या बिरादरी की दलदल में फँसे व्यक्ति की मनोदशा—लेखकीय दृष्टि उन्हें एक नए अर्थ-गाम्भीर्य से भर देती है। उसके पास आदर्शवादी निर्णय हैं तो उनके सामने खड़ा कठोर और भयावह यथार्थ भी है। अकारण नहीं कि दफ़्तरी पुर्जे नौरंगी की बीमारी वर्तमान व्यवस्था की ही बीमारी पर एक तीखा व्यंग्य बनकर उभरती है।
कहना न होगा कि शेखर जोशी की ये कहानियाँ बिना किसी शोर-शराबे के हमारे सोच के विभिन्न स्तरों को स्पर्श और झंकृत करनेवाले रचनात्मक गुणों से परिपूर्ण हैं।
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