
Patthar Gali
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
172
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
344 mins
Book Description
‘‘मुस्लिम समाज सिर्फ़ ‘ग़ज़ल’ नहीं है, बल्कि एक ऐसा ‘मर्सिया’ है जो वह अपनी रूढ़िवादिता की क़ब्र के सिरहाने पढ़ता है। पर उसके साज़ और आवाज़ को कितने लोग सुन पाते हैं, और उसका सही दर्द समझते हैं?’’ लेखिका द्वारा की गई यह टिप्पणी इन कहानियों की पृष्ठभूमि और लेखकीय सरोकार को जिस संजीदगी से संकेतित करती है, कहानियों से गुज़रने पर हम उसे और अधिक सघन होता हुआ पाते हैं।</p> <p>ग़ौर करने वाली बात है कि जिस अनुभव जगत को नासिरा शर्मा ने अपनी रचनात्मकता के केन्द्र में रखा है, वह उन्हें और उनकी संवेदना को पीढ़ियों और देश-काल के ओर-छोर तक फैला देता है। एक रूढ़िग्रस्त समाज में उसके बुनियादी अर्धांश—नारी जाति की घुटन, बेबसी और मुक्तिकामी छटपटाहट का जैसा चित्रण इन कहानियों में हुआ है, अन्यत्र दुर्लभ है। बल्कि ईमानदारी से स्वीकार किया जाए तो ये कहानियाँ नारी की जातीय त्रासदी का मर्मान्तक दस्तावेज़ हैं, फिर चाहे वह किसी भी सामन्ती समाज में क्यों न हो। दिन-रात टुकड़े-टुकड़े होकर बँटते रहना और दम तोड़ जाना ही जैसे उसकी नियति है। रचना-शिल्प की दृष्टि से भी ये कहानियाँ बेहद सधी हुई हैं। इनसे उद्घाटित होता हुआ यथार्थ अपने आनुभूतिक आवेग के कारण काव्यात्मकता से सराबोर है, यही कारण है कि लेखिका अपनी बात कहने के लिए न तो भाषायी आडम्बर का सहारा लेती है, न किसी अमूर्तन का और न किसी आरोपित प्रयोग और विचार का। उसमें अगर विस्तार भी है तो वह एक त्रासद स्थिति के काल-विस्तार को ही प्रतीकित करता है। कहना न होगा कि नासिरा शर्मा की ये कहानियाँ हमें अपने चरित्रों की तरह गहन अवसाद, छटपटाहट और बदलाव की चेतना से भर जाती हैं।