Hatheli Bhar Kahaniyan
Author:
Kawabata YasunariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Unavailable
दिल्ली विश्वविद्यालय की जापानी साहित्य की छात्राओं द्वारा अनूदित और उनीता सच्चिदानन्द द्वारा सम्पादित पुस्तक है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जापान के अग्रणी साहित्यकार कावाबाता यासुनारी का कहानी-संग्रह ‘हथेली भर कहानियाँ’ कथा साहित्य के क्षेत्र में एक अनोखा प्रयोग है। इसे कथा-साहित्य का ‘हाइकू’ कहें तो गलत न होगा। ‘हथेली भर कहानियाँ’ का कोई प्लॉट नहीं, शुरू या अंत नहीं, बस जीवन की सामान्य अनुभूतियों की एक अविरल धारा है जो हर मुश्किलें लाँघती, चलती ही जाती है लेकिन मनुष्य इन अनुभूतियों से सदा अनभिज्ञ रहता है।
ISBN: 9788126706181
Pages: 80
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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वह मन्नू के पास है या नहीं—यह अभी कह पाना बहुत कठिन है। लेकिन मन्नू की कहानियों की दो विशेषताएँ उसे अपने समकालीनों से अलग करती हैं...व्यर्थ के भावोच्छ् वास में नारी के आँचल का दूध और आँखों का पानी दिखाकर उसने पाठकों की दया नहीं वसूली...वह एकदम यथार्थ के धरातल पर नारी का नारी की दृष्टि से अंकन करती है...लेकिन अन्य ‘यथार्थवादियों' की तरह शिल्पगत परिमार्जन या कहानी के आधारभूत कलात्मक संयम को भी हाथ से नहीं जाने देती...वे ‘परफ़ेक्ट’ कहानियाँ हैं...आधुनिक पाठक की कला-रुचि पर खरी उतर सकनेवाली कहानियाँ हैं, पुराने पाठक के लिए रोचक और सहज...
भ्रम और सेक्स के दुहरे जटिल-शोषण के संस्कारों के जाल से नारी के मौलिक और स्वतंत्र व्यक्तित्व को खोज निकालने के लिए जिस साहस और निर्भीकता की आवश्यकता है, वे ही मन्नू के सबसे सशक्त हथियार हैं...‘भारतीय नारी’ और ‘नारी की एकनिष्ठ गरिमा’ के नाम पर कुछ झूठे सन्तोष आख़िर उसे कब तक दबाए रहेंगे? क्या ‘यह भी सच’ नहीं है कि अपनी पूरी ईमानदारी से भावना के धरातल पर दो पुरुषों को भी नारी प्यार करती है! क्या यह आवश्यक ही है कि एक प्यार की स्वीकृति स्वयं को झूठा सिद्ध करके ही सम्भव हो? क्यों नारी एक की भोग्या बनकर दूसरे हर व्यक्ति के लिए जूठी हो जाती है, नीचे गिर जाती है? एक ऐसी ऊँचाई भी तो हो सकती है जहाँ शरीर का एक से अधिक सम्बन्ध बहुत नगण्य होकर दीखे...जहाँ नारी के शील को लेकर काठ की हाँडी की तरह एक बार शेष हो जाने की धारणाएँ प्रचलित हों, उस समाज में ये साहसिक प्रयोग कम ख़तरनाक नहीं हैं...और इन लांछनाओं का प्रारम्भ उसकी ‘गीत का चुम्बन’ कहानी से ही शुरू हो गया था...
लेकिन नारी-अस्तित्व के पारिवारिक और सामाजिक पक्ष के प्रति भी मन्नू पूर्ण सजग है... नागरिक सभ्यता की मशीनी ज़िन्दगी में ‘क्षय’ होती युवती, खुला आकाश खोजने वह भागे भले ही प्रकृति की गोद में, परन्तु शीघ्र ही यह भी महसूस करती है कि जिसे उसने उलझनों, घुटन से दूर खुला विस्तार समझा था, वह वास्तव में रुँधे पानी की मच्छर-पोषित काहिया सतह है... आकाश वहीं खोजना होगा जहाँ प्रवाह है...भँवर है तो क्या हुआ?
रूढ़िविद्रोही कथानकों, भावधरातलों का चयन, स्वानुभूति की प्रामाणिक सहजता मन्नू की शक्ति भी है, और सीमा भी...
Pratinidhi Kahaniyan : Yaikam Mohmmad Bashir
- Author Name:
Yaikam Mohmmad Bashir
- Book Type:

- Description: केरल के निम्न-मध्यवर्गीय समाज और मुस्लिम आबादी को गझिन पृष्ठभूमि से कथानक लेकर उन्हें जादुई कलात्मकता से कहानियों में प्रस्तुत करनेवाले वाइकम मुहम्मद बशीर भारतीय तथा साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इस्लामिक सामाजिक परिवेश, इस्लाम के पौराणिक मिथकों और केरल के मुस्लिमों में प्रचलित भाषा रूपों का प्रयोग उनके कथा-जगत को एक अलग पहचान देता है। मलयाली ही नहीं, अन्य भाषाओं में भी इस कोटि का बहुत कुछ नहीं मिलता। इस संग्रह में उनकी पन्द्रह अद्भुत कहानियाँ संकलित हैं जो समाज के हाशिए पर रहनेवाले ग़रीब लेकिन जीवट और मनुष्यता से लवरेज लोगों का चित्रण करती हैं। पहली ही कहानी ‘जुआरी की बेटी’ कथाकार की मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय समझ का एक आकर्षक नमूना है। बशीर स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रहे थे। उस दौरान उनके कुछ अनुभव संग्रह में शामिल ‘माँ’, ‘हथकड़ी’ और ‘पुलिसवाले की बेटी’ आदि कहानियों में देखने को मिलते हैं। उनके कथासंसार में सिर्फ़ मनुष्य ही नहीं, बल्कि संसार की सभी चर-अचर वस्तुएँ जैसे चैतन्य होकर गति करती है।
Gulmarg Gulzar Hoga
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- Book Type:

- Description: यह किताब 34 कहानियों का संग्रह है। यह समर्पित है उन लोगों को जो गुलमर्ग के गुलज़ार होने का इंतज़ार कर रहे हैं, जो बिछड़ी हुई बच्ची की छोटी-छोटी चूड़ियों को देख ज़िंदगी का सफ़र तय करते हैं, वो औरत जो पति के इंतज़ार में बैठी है और उसकी दी हुई लालटेन से ज़िंदगी को रौशन करने की कोशिश कर रही है। एक साहित्य उत्सव में प्रिया उस पिता को मिलती है जिसकी बेटी ने कैन्सर से लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए और वो प्रिया में अपनी बेटी को देखता है। ये संग्रह है उन लोगों के बारे में है जो विदेशों में देश की मिट्टी की महक ढूँढ रहे हैं, वो लोग जो माँ का बुना हुआ स्वेटर पहन विदेश की ठिठुरती शीत को सहने की कोशिश करते हैं, वही लोग जो रोज़ घर की तलाश में घर से निकलते हैं, मंडी की पराशर झील को लंदन के हाइड पार्क में ढूँढते हैं। हाँ माता-पिता ने ही तो वो दिल दिया जो सतरंगी आसमान को देख सके, उस कलाकार की ज़िंदगी का चित्र खींच सके जो प्रेमिका का चित्र बनाते-बनाते प्रेमिका को प्रेम करना ही भूल गया है। वो लड़की जो हज़ारों पन्ने लिखती है और फिर इस दौड़ को रोकने के लिए सारे पन्ने जला देती है, किताबों को हासिल करने के लिए ठंड में शिमला से चंडीगढ़ का सफ़र और सनवारा में बस के रुकने पर एक कप चाय की ललक। बिखरे तिनकों को जोड़ने के लिए कल्पना और प्रेरणा भी उन्हीं की देन है। वो लड़की जो बूढ़े माँ बाप को छोड़ शहर चली जाती है और वापिस लौटती है पिता की ख़ाली कुर्सी देखने के लिए, वक़्त ने उसे वक़्त पर उनकी क़द्र न करने की सज़ा दी, अब वो गुलमोहर के पेड़ से लिपट कर रोती है, मानो पिता ने गले लगाया हो। उस लड़के की कहानी जो पिता के घर छोड़ने के बाद पश्चात्ताप से भर आँसू बहाता है। नानी के सूने घर में अमावस्या में फैले अँधियारे को कौन दूर करेगा?
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