Contemporary Indian Short Stories Series II
Author:
Bhabani BhattacharyaPublisher:
Sahitya AkademiLanguage:
EnglishCategory:
Short-story-collections5 Reviews
Price: ₹ 166
₹
200
Available
This sheaf of twenty-two short stories, written by different authors, mainly during the period 1930-50, represents a cross-section of contemporary Indian short fiction. Twenty stories are translations from fourteen modern languages of India and two are specimens of Indian creative writing in English.
Here is evidence, if such were needed that Indian literature is one though written in many languages - its oneness consusting not of a stale uniformity but of rich variety.
ISBN: 9788126046911
Pages: 229
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Contemporary Kashmiri Short Stories
- Author Name:
Hriday Kaul Bharati +1
- Book Type:

- Description: The Kashmiri short story was born with the progressive movement in Kashmir and its acceptted the standards and values dictated by the movement unquesioningly. Nationalism and the desire for reaching out to people inspired most of the writers to switch over to Kashmiri, even though they had strated writing in Urdu. Dinanath Nadim's Javabi Card (Reply-Card) and Somnath Zutshi's Yell Phol Gash (when there was light) are the first two short stories written in Kashmiri
Panchvan Dasta Aur Saat Kahaniyan
- Author Name:
Amritlal Nagar
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Pratinidhi Kahaniyan : Swayam Prakash
- Author Name:
Swayam Prakash
- Book Type:

- Description: स्वयं प्रकाश की कहानियाँ भारतीय, विशेष रूप से हिन्दी मध्यवर्ग के जीवन की एक तस्वीर पेश करती हैं—मनुष्यता से लबरेज़ पर दब्बू और डरपोक मध्यवर्ग, छोटी-छोटी आकांक्षाओं के लिए भी संघर्षरत, अन्ततः उन्हें स्थगित करता मध्यवर्ग, स्वार्थों की अन्धी दौड़ में भागता-गिरता-पड़ता मध्यवर्ग, निम्नवर्गीय जनों से विराग रखता मध्यवर्ग। यूँ तो स्वयं प्रकाश का कथाफ़लक गाँव से शहर तक फैला है, परन्तु उसका केन्द्र मध्यवर्ग ही है। यह मध्यवर्ग स्वतंत्रता आन्दोलन के दौर का मध्यवर्ग नहीं है जिसमें निम्नवर्ग के प्रति एक सदाशयता और सहभाव मौजूद था। इसमें निम्नवर्ग के प्रति वितृष्णा और घृणा निर्णायक हद तक मौजूद है। इस मध्यवर्ग में एक छोटी संख्या, उन लोगों की भी है, जिनमें समाज को बदलने की इच्छा मौजूद है। ऐसे चरित्र स्वयं प्रकाश के यहाँ प्रमुखता से मौजूद हैं। स्वयं प्रकाश की गहरी सहानुभूति इनके साथ है। इसीलिए इनके प्रति एक तरह का आलोचनात्मक भाव भी मौजूद है। परिवर्तनकामी चेतना जब मध्यवर्गीय स्वार्थपरता, पर्सनाल्टी कल्ट, या थोथे आदर्शवाद से घिर जाती है, स्वयं प्रकाश इन चरित्रों के प्रति तीखे हो जाते हैं। उनकी कहानियों में भारतीय स्त्री के जीवन की गहरी आलोचनात्मक पड़ताल भी मौजूद है। वे स्त्री-चरित्रों को प्रायः एक टाइप की तरह नहीं, एक व्यक्ति की तरह अंकित करते हैं। ये स्त्री-चरित्र पुरुष-चरित्रों की तरह ही निजी विशिष्टताओं के मालिक हैं। उन पर सामाजिक संरचना के दबाव हैं, परन्तु वे उनके विरुद्ध जीते हुए अपनी तरह का संसार रचने को आतुर हैं। स्वयं प्रकाश ने कहानीपन की रक्षा करते हुए, उसे रोचक बनाते हुए एक ज्ञानी की तरह नहीं एक क़िस्सागो की तरह अपनी कहानियाँ कही हैं।
Ajneya Ki Lokpriya Kahaniyan
- Author Name:
Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'
- Book Type:

- Description: कुशीनगर (देवरिया) में सन् 1911 में जन्म। पहले बारह वर्ष की शिक्षा पिता (डॉ. हीरानंद शास्त्री) की देख-रेख में घर ही पर। आगे की पढ़ाई मद्रास और लाहौर में। एम.ए. अंग्रेजी में प्रवेश, किंतु तभी देश की आजादी के लिए एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन में शामिल होना। शिक्षा में बाधा तथा सन् ’30 में बम बनाने के आरोप में गिरफ्तारी। जेल में रहकर ‘चिंता’ और ‘शेखर : एक जीवनी’ की रचना। क्रमशः सन् ’36-37 में ‘सैनिक’, ‘विशाल भारत’ का संपादन। सन् ’43 से ’46 तक ब्रिटिश सेना में भर्ती। सन् ’47-50 तक ऑल इंडिया रेडियो में काम। सन् ’43 में ‘तार सप्तक’ का प्रवर्तन और संपादन। क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे सप्तक का संपादन। ‘प्रतीक’, ‘दिनमान’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘वाक्’, ‘एवरीमैन’ पत्र-पत्रिकाओं के संपादन से पत्रकारिता में नए प्रतिमानों की सृष्टि। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ, जिनसे भारतीय सभ्यता की सूक्ष्म पहचान और पकड़, विदेश में भारतीय साहित्य और संस्कृति का अध्यापन। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित, जिनमें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ सन् ’79, यूगोस्लाविया का अंतरराष्ट्रीय कविता सम्मान ‘गोल्डन रीथ’ सन् ’83 भी शामिल। सन् ’80 से वत्सल निधि के संस्थापन और संचालन के माध्यम से साहित्य और संस्कृति के बोध निर्माण में कई नए प्रयोग। अज्ञेय का संपूर्ण रचना-संसार डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल के संपादन में प्रकाशित है।
Aadminama
- Author Name:
Kashinath Singh
- Book Type:

- Description: ‘आदमीनामा’ इमरजेंसी के बाद प्रकाशित काशीनाथ सिंह का एक बहुचर्चित संग्रह है। इसमें समाज, राजनीति, भूख, बेरोज़गारी, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, अर्थ का अवमूल्यन, क्रान्तिकारिता के नाम पर छल, आपातकाल का तांडव, प्रतिबद्धता, प्रतिरोध आदि का जो जीवन्त यथार्थ है, वह अपने समय का बड़ा बयान है जिससे लोकतांत्रिक परिप्रेक्ष्य में बहुत कुछ समझा और सीखा जा सकता है। देखा जा सकता है कि इस संग्रह में अपनी क़िस्सागोई के लिए काशीनाथ सिंह के पास जो दृष्टि और भाषा की धार है, वह किस तरह ज़मीनी और सरोकारपूर्ण है। और इस बात का सशक्त उदाहरण हैं ये कहानियाँ—‘सूचना’, ‘निधन’, ‘‘माननिय’ होम मनिस्टर के नाम’, ‘आदमी का आदमी’, ‘मीसाजातकम्’, ‘लाल किले के बाज’, ‘मुसइ चा’, ‘सुधीर घोषाल’ आदि। इस संग्रह का एक बड़ा आकर्षण है ‘कहानी की वर्णमाला और मैं’। इसमें काशीनाथ सिंह ने अपने रचना-विकास को जिस ईमानदारी और आत्मीयता के साथ व्यक्त किया है, वह अनुकरणीय तो है ही, एक मिसाल भी कि जीवन और क़लम के बीच न फ़र्क़ ठीक, न फाँक। कोई दो राय नहीं कि अपने आस्वाद में ही नहीं, नई साज-सज्जा में भी ‘आदमीनामा’ संग्रह पाठकों के लिए एक बार पुन: उपलब्धि साबित होगा!
Khushkismat
- Author Name:
Mamta Kaliya
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत कहानी-संग्रह ‘ख़ुशक़िस्मत’ में सामाजिक विसंगतियों का बोध और उनसे उबरने की बेचैनी तथा मनोविज्ञान का समावेश किया गया है। इस कहानी-संग्रह में ‘एक अकेली तस्वीर ख़ुशक़िस्मत’, ‘कौवे और कोलकाता’, ‘चोरी’, ‘सूनी’, ‘बगिया’, ‘छोटे गुरु’, ‘परदेशी’, ‘पंडिताइन’, ‘लड़के’, ‘राएवाली’, ‘बसन्त-सिर्फ़ एक तारीख़’, ‘तस्कीं को हम न रोए’, ‘ख़ाली होता हुआ घर’, ‘एक अदद औरत’ आदि कहानियाँ संगृहीत हैं। नई साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत यह अनुपम कहानी-संग्रह निस्सन्देह पठनीय और संग्रहणीय है।
Sampoorna Kahaniyan : Suryakant Tripathi Nirala
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
‘सम्पूर्ण कहानियाँ’—प्रखर जनवादी चेतना के लेखक निराला की 25 कहानियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इन कहानियों को रचना-क्रम और प्रकाशन-क्रम से यहाँ प्रस्तुत किया गया है।
निराला ने अपनी इन कहानियों में विषयवस्तु के अनुरूप ही कहानी का नया रूप गढ़ा है। वे कई बार संस्मरणात्मक ढंग से अपनी बात करते हैं, लेकिन अन्त तक आते-आते मामूली-से बदलाव से संस्मरण को कहानी में बदल देते हैं।
निराला के पहले चरण के उपन्यासों में जिस तरह कल्पना और यथार्थ के बीच अन्तर्विरोध दिखाई देता है, वह अन्तर्विरोध उपन्यास की अपेक्षा इन कहानियों में ज़्यादा तीखा है।
इन कहानियों में उनका गद्य हास्य का पुट लिये नई दीप्ति के साथ सामने आया है। जितना उसमें कसाव है, पैनापन भी उतना ही।
सुरुचिपूर्ण साज-सज्जा में प्रकाशित निराला की ये सम्पूर्ण कहानियाँ पाठकों को पहले की तरह ही अपनी ओर आकर्षित करेंगी।
Katha Saptak - Akansha Pare Kashiv
- Author Name:
Akansha Pare Kashiv
- Book Type:

- Description: Description Awaited
Dharmayudh
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

-
Description:
यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है। यह आधारभूत प्रस्थान बिन्दु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज़्यादा तरल रूप में, ज़्यादा गहराई के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर आते हैं। उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है। प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही वे कथा-यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचित् विलम्ब से आरम्भ हुआ। कहानीकार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने प्रेमचन्द के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी-कला का विकास किया। उनकी कहानियों में संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वन्द्व जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई, जो आज तक चली आ रही है। वैचारिक निष्ठा, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याय तथा तर्क की कसौटियों पर खरा जीवन—ये कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिन्दी कहानी यशपाल की ऋणी है।
‘धर्मयुद्ध’ कहानी-संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं : ‘धर्मयुद्ध’, ‘मनु की लगाम’, ‘विश्वास की बात’, ‘जनगणमन अधिनायक जय हे...’, ‘खतडुआ’, ‘मतिराम की बहादुरी’, ‘420’, ‘आत्मिक प्रेम’, ‘मंगला और डॉक्टर’।
Tufan
- Author Name:
Sarita Kumari
- Book Type:

- Description: सभ्यता की यात्रा पहियों से अधिक कहानियों के दम पर हुई है। यही बात मनुष्य के जीवन पर भी लागू है। जीवन कहानियों के सुनने, सुनाने और रचने की अटूट यात्रा है। खाली से खाली प्रतीत होता दिन भी एक कहानी होता है। हम कहानियों के बगैर जी नहीं सकते और जब मरते हैं तो एक नयी कहानी का श्रीगणेश कर जाते हैं। सरिता कुमारी की कहानियों से गुज़रते हुए इस निरंतरता और घटनाओं के पूर्वापर सम्बन्ध पर बारहां ध्यान जाता है। इन कहानियों में वही जीवन है जो हम अपने जीवन में देखते हैं। रचनाकार का कौशल घटनाओं और प्रसंगों के चयन में दिखता है। यहाँ वे हर कहानी में एक $खास बात कहती नज़र आती हैं, ऐसी बात जो या तो कुछ बताए या चेताए। यह एक नेक काम है जो किसी दर्शन या सैद्धान्तिकी या विमर्श के पचड़े में पड़े बगैर हो सकता है। सरिता कुमारी का यह संग्रह ऐसी ही नेकियों का गुलदस्ता है। उदाहरण के तौर पर मैं तीन कहानियों का जि़क्र करना चाहूँगा। पहली कहानी है—साइलेंट किलर। यह कहानी बड़ी सादगी से प्रसवोत्तर अवसाद की घातकता और उसके समाधान का मार्ग बताती है। चूँकि मैं एक मनोचिकित्सक भी हूँ इसलिए मुझे यह कहानी बड़ी उपयोगी लगी। दूसरी कहानी है—तूफान। यह तूफान के बहाने आकस्मिक क्षति और उससे होने वाले चिंता रोग की दास्तान है। मनोचिकित्सकीय भाषा में कहूँ तो यह पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर की कथा है जिसमें कथाकार ने तूफान की आशंका और उसके घटित होने के बाद की यातना को बखूबी चित्रित किया है, मगर एक संयोग-निर्मित समाधान की छतरी के नीचे। तीसरी कहानी है—पहचान। यह एक रोचक कहानी है जो बुजुर्गों के लिए काउन्सलिंग की तरह है। कुल मिलाकर 'तूफान एक परिवार के भीतर पढ़े जाने योग्य कहानी-संग्रह है। —विनय कुमार
Koi Takleef Nahin
- Author Name:
Rajendra Shrivastava
- Book Type:

-
Description:
राजेन्द्र श्रीवास्तव के कहानी-संग्रह 'कोई तकलीफ़ नहीं' की एक कहानी, जिसका शीर्षक 'कहानी' है, में आए कुछ वाक्य हैं—'...मछली का लुत्फ उठाते हुए मैं यही सोच रहा था कि सुख की भी कितनी अलग-अलग क़िस्में हैं। स्वादिष्ट भोजन का सुख अलग, सेक्स का सुख अलग, अच्छी रचना लिखने का सुख अलग। बड़ी ग़ज़ब की वैराइटी है, एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न।' जीवन में सुख और दु:ख की न जाने कितनी क़िस्में होती हैं। एक अच्छे रचनाकार को इनकी अचूक पहचान होती है। इन्हीं से मिलकर अनन्तरूपी जीवन की रचना होती है।
राजेन्द्र श्रीवास्तव की कहानियाँ सभ्यता के इस 'अन्तर्विरोधी चरण' में आ चुके समाज की दुखती रगों पर उँगली रखती हैं। यह समाज जो एक साथ सम्पन्न भी है और दरिद्र भी, जीवन्त भी है और मरणासन्न भी। ‘जन्मदिन की पार्टी' में जब विचित्र तरह से व्यंजनों की सूची आती है तब 'भूख' शब्द की उपस्थिति महसूस होती है। ‘तिरस्कार’ की सावित्री, 'साड़ी' की सास-बहू, ‘हार-जीत’ के माहेश्वरी प्रसाद और ‘सम्पन्नता’ के विनायक बाबू जैसे चरित्र जीवन के घात-प्रतिघात से उपजे हैं। मर्म से भरी भाषा ने कहानियों को गति दी है। संग्रह की एक कहानी ‘पूरी लिखी जा चुकी कविता’ का निहितार्थ समझ लें तो जीवन और शब्द का सहजीवी रिश्ता भी जगमगा उठता है।
Pachees Saal Ki Ladki
- Author Name:
Mamta Kaliya
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी कथाकारों में ममता कालिया अपनी पैनी दृष्टि, जीवन्तता और साफगोई के लिए, अलग से पहचानी जाती हैं। उनकी रचनाओं की विशेषता है कि वे अपने लेखन में रोजमर्रा के संघर्ष में युद्धरत स्त्री का व्यक्तित्व बड़ी संवेदना से उभारती हैं, साथ ही जीवन की जटिलताओं के बीच जी रही हाड़-मांस की स्त्री के जीवन के उन पहलुओं पर पाठकों की दृष्टि आकर्षित करती हैं, जिन्हें लोग प्रायः नजरअन्दाज करते रहे हैं।
यों तो लड़कियों के जीवन में उम्र का सोलहवाँ साल बहुत नाजुक होता है पर पचीस साल की उम्र भी खास मायने रखती है। आधुनिक युग की देन है- लड़कियों की उम्र का पचीसवाँ साल, जिसे ममता जी ने इस संग्रह की कहानियों में रेखांकित किया है। इन कहानियों में उस उम्र की युवतियों की मानसिकता, उनके जीवन-संघर्ष, राग-विराग को कहीं चटक तो कहीं उदास रंगों में प्रस्तुत किया गया है। अलग तेवर लिये इन कहानियों को पढ़ने का आनन्द ही कुछ और है।
Desh Vibhajan Ki Kahaniyan
- Author Name:
Salam Azad
- Book Type:

-
Description:
सीमा के उस पार अस्वस्थ पिता खड़े हुए और इस पार बेटी, बीच में लगभग आधे मील चौड़े पाट की एक नदी...धरती को बाँटने की कोशिशों का पीड़ाजनक नतीजा ऐसी ही सीमाओं में होता है। ‘देश विभाजन की कहानियाँ’ बांग्लादेश के लब्धप्रतिष्ठ लेखक सलाम आज़ाद ने इन्हीं सीमाओं और पीड़ाओं से आक्रान्त होकर क़लमबद्ध की हैं। इन कहानियों में उन्होंने अपने देश के विभाजन के कारणों, उसके परिणामों और निरीह मनुष्य की नियति पर पड़नेवाले उसके दूरगामी और विडम्बनापूर्ण प्रभावों को भावप्रवण कथात्मकता के साथ रेखांकित किया है।
सलाम आज़ाद बांग्लादेश के उन लेखकों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं जिनका सरोकार साम्प्रदायिक सौहार्द और देश का धर्मनिरपेक्ष विकास है। उनकी यह चिन्ता भी इन कहानियों में लक्षित की जा सकती है। बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ किए जानेवाले भेदभाव और उनके नागरिक अधिकारों का हनन सलाम आज़ाद के लेखक को गहरा दु:ख पहुँचाता है, जिसके चलते वे ‘जन्मभूमि’ जैसी कहानियाँ लिखने को बाध्य होते हैं। ‘देश विभाजन की कहानियाँ’ कहानियाँ भी हैं, और दस्तावेज़ भी।
Gopalram Gahmari ki Jasoosi Kahaniyan
- Author Name:
Gopalram Gahmari
- Book Type:

- Description: "मूर्धन्य साहित्यकार गोपालराम गहमरी हिंदी साहित्य में उपेक्षित हैं। कई विधाओं में उन्होंने प्रचुर साहित्य लिखा, लेकिन अपने देश के कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में वे कहीं नहीं हैं। न उनके संस्मरण, न कहानियाँ, न कविताएँ, न उपन्यास, न अनुवाद। उन पर एक जासूसी लेखक का ठप्पा लगाकर उनके पूरे रचनाकर्म से ही हमारे कथित आलोचकों ने किनारा कर लिया, जैसे ये जासूसी उपन्यास घोर पाप हों। फिर धीरे-धीरे उन्हें जान-बूझकर बिसरा दिया गया; लेकिन अब फिर उनके साहित्य की खोज होने लगी है। फिर से लोग अब गहमरीजी की रचनाओं से परिचित होने को बेताब दिख रहे हैं। यह अच्छी बात है। राख के भीतर छिपी आग अब बाहर आ रही है। साहित्य पाठकों के भरोसे जिंदा रहता है, आलोचकों के भरोसे नहीं। कबीर, तुलसी, रैदास अपनी रचनाओं के बूते जिंदा हैं, आलोचकों के भरोसे नहीं। गोपालराम गहमरी अब पुस्तकालयों से बाहर आ रहे हैं। उनकी जासूसी कहानियों में रहस्य और रोमांच है; गुत्थियाँ हैं, जिन्हें सुलझाने के रोचक प्रसंग भी हैं, जो पाठक को बाँध लेंगे। "
Dharamveer Bharti Ki Lokpriya Kahaniyan
- Author Name:
Dharmveer Bharti
- Book Type:

- Description: ‘‘कुबड़ी-कुबड़ी का हेराना?’’ ‘‘सुई हेरानी।’’ ‘‘सुई लैके का करबे?’’ ‘‘कंथा सीबै!’’ ‘‘कंथा सीके का करबे?’’ ‘‘लकड़ी लाबै!’’ ‘‘लकड़ी लाय के का करबे?’’ ‘‘भात पकइबे!’’ ‘‘भात पकाय के का करबे?’’ ‘‘भात खाबै!’’ ‘‘भात के बदले लात खाबे।’’ और इससे पहले कि कुबड़ी बनी हुई मटकी कुछ कह सके, वे उसे जोर से लात मारते और मटकी मुँह के बल गिर पड़ती। उसकी कुहनियाँ और घुटने छिल जाते, आँख में आँसू आ जाते और ओठ दबाकर वह रुलाई रोकती। बच्चे खुशी से चिल्लाते, ‘‘मार डाला कुबड़ी को! मार डाला कुबड़ी को!’’ —इसी पुस्तक से साहित्य एवं पत्रकारिता को नए प्रतिमान देनेवाले प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक श्री धर्मवीर भारती के लेखन ने सामान्य जन के हृदय को स्पर्श किया। उनकी कहानियाँ मर्मस्पर्शी, संवेदनशील तथा पठनीयता से भरपूर हैं। प्रस्तुत है उनकी ऐसी कहानियाँ, जिन्होंने पाठकों में अपार लोकप्रियता अर्जित की।
Shea Butter
- Author Name:
Kaifi Hashmi
- Book Type:

-
Description:
जब समय और वस्तुजगत को किसी भाषा में व्यक्त या उत्कीर्ण करने की तमाम प्रविधियाँ आजमाई जा चुकी हों और उनकी असफलताएँ हर जगह दर्ज हो रही हों, ऐसे समय में कैफ़ी हाशमी का हिन्दी कहानी के परिक्षेत्र में आना किसी महत्वपूर्ण घटना की तरह है। अवाक् और अचम्भित करनेवाली प्रामाणिक-विश्वसनीयता के साथ, भाषिक अवबोध और उसे विन्यस्त करने में सक्षम मौलिक संरचना के साथ ‘शिया बटर’, ‘कैफ़े कॉफ़ी डे’, ‘बंकर’ जैसी कहानियों का आना कहानियों की प्रचलित निरन्तरता में एक नए प्रस्थान की तरह है। जैसे किसी ट्रेन ने अपनी पटरी और यात्री ने अपना रास्ता बदल दिया हो।
पिछली सदी के एक विख्यात और हमारे भर्तृहरि जैसे भाषा-चिन्तक ने कहा था कि कोई भी भाषा असंख्य पगडंडियों की एक लम्बी और रहस्यपूर्ण सुरंग जैसी होती है। आप एक दरवाज़े से इसमें दाख़िल होते हैं, तो सब कुछ वहाँ जाना-पहचाना, स्मृतियों में पहले से ही मौजूद गली-मोहल्लों, पड़ोसियों-परिजनों, चौराहों-बाज़ारों और उनमें घूमते-टहलते पात्रों के साथ दृश्यमान होता है। सारे लैंडस्केप वही होते हैं, लेकिन अगर कहीं आप दूसरे दरवाज़े से दाख़िल हुए तो वही जगह एक ऐसे मायालोक या भूल-भुलैयाँ में तब्दील हो जाती है, जिससे बाहर निकल पाना न सिर्फ़ असम्भव-सा हो जाता है, बल्कि किसी एडिक्ट जैसे खुमार में आप वहीं रह जाना चाहते हैं, मुक्ति की किसी भी आशा और कामना को त्याग कर।
कैफ़ी हाशमी की कहानियाँ बहुत गहरी और एकाग्र संवेदना के साथ उस दुर्लभ संरचना को प्रत्यक्ष करती हैं, जहाँ बाह्य वस्तुजगत की समस्त सचल और अचल उपस्थितियाँ एक-दूसरे में पिघलती और विलीन होती हुई क़िस्से के उस जादू को पैदा करती हैं, जो पुरानी फ़ैंटसी और जादुई यथार्थवाद के बाद का जादू है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण यह तथ्य है कि ये कहानियाँ हमारे आज के ही जीवन की भयग्रस्त, मार्मिक लेकिन फिर भी ख़ुशियों, प्यार, उम्मीदों से भरी हुई टाइमलाइन की अनमोल कहानियाँ हैं।
—उदय प्रकाश
Bhagya-Rekha
- Author Name:
Bhisham Sahni
- Book Type:

-
Description:
'भाग्य-रेखा' भीष्म साहनी का पहला कहानी-संग्रह है, जिसके साथ उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में क़दम रखा था। वर्ष 1953 में प्रकाशित इस संग्रह ने उन्हें साहित्य-संसार में अपनी एक पहचान दी; जिसके माध्यम से हिन्दी समाज ने कथा में सहज प्रवाह की शक्ति को महसूस किया।
भीष्म जी की कहानियों का ‘मैं’ भी कभी लेखक के प्रतिनिधि होने का आभास नहीं देता, पात्रों और उनके यथार्थ के साथ उनकी इस एकात्मता को, जो शायद बहुत गहरी तटस्थता से ही सधती होगी, बहुत कम लेखकों में चिह्नित किया जा सकता है। इस संग्रह में कई ऐसी कहानियाँ हैं जो भीष्म जी के गहरे मानवीय बोध को चिह्नित करती हैं और कुछ ऐसी हैं जो समकालीन समाज की अमानवीयता के प्रति घृणा का भाव भी पाठक के मन में जगाती हैं। उदाहरण के लिए 'क्रिकेट मैच' जिसमें पति-पत्नी सम्बन्धों के बीच आया दुराव इतने कौशल के साथ उभारा गया है कि बहुत कुछ न कहते हुए भी कहानी हमें घर-परिवार को बचाए-बनाए रखनेवाली स्त्री-भूमिका के प्रति आलोचनात्मक हो जाने को प्रेरित करती है। 'नीली आँखें' हाशिये पर रहनेवाले तबके के प्यार और शहरी पृष्ठभूमि में उसके प्रति असहिष्णु मध्यवर्गीय नज़रिए को बेहद कारुणिक रूप में व्यक्त करती है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि भीष्म साहनी को चाहनेवाले पाठक इस संग्रह को अमूल्य पाएँगे ।
Criminal Race
- Author Name:
Hemant
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी पट्टी के टोन और टेंपरामेंट, अंडरटोंस एवं अंडरकरेंट्स को न तो दूर रहकर 'आह-वाह' के भाववादी नज़रिए से जाना जा सकता है, न ही नज़दीक रहकर आग्रही नज़र से। वर्ग, वर्ण, लिंग, जाति-उपजाति, परम्परा और परिवेश एवं धर्म और राजनीति के मकड़जाल में उलझे आदमी के मर्म तक पहुँचना आज के सही रचनाकार का दायित्व है। मनुष्य की प्रकृति-नियति, उसकी कमज़ोरियाँ और उसकी ताक़त, उसके ज़हर और उसके अमृत से जूझते-सीझते हेमन्त के कथाकार ने कितनी वयस्कता अर्जित कर ली है, इसका साक्ष्य हैं ‘क्रिमिनल रेस’ की कहानियाँ। यहाँ हेमन्त न सिर्फ़ अपने कई समकालीनों को अतिक्रमित करते हैं, बल्कि ख़ुद अपने ‘पिछले हेमन्त’ को भी...। विज्ञान का बीज शब्द है—‘क्यों?’ ‘ऐसा क्यों?’ ‘ऐसा ही क्यों?’ हेमन्त का बीज शब्द है’—फंशय।' इतने चिकने-चुपड़े चेहरे, संवाद और आचरण—‘आख़िर मंशा क्या है?’, ‘हासिल क्या होगा?’ यह संशय कभी सम्पूर्ण कथा में प्रच्छन्न भाव से व्याप्त है (क्रिमिनल रेस), कभी अन्दर से बाहर फैलता हुआ (धक्का)! कभी देश की आदिम शौर्य परम्परा बनकर ग़ुलाम बनानेवाली गलीज औपनिवेशिक शक्तियों से लेकर आज के मल्टीनेशनल्स के ऐटीट्यूड्स को सूँघता-झपटता है (ओवरकोट) तो कभी औरतों के तन-मन के साथ धन पर भी क़ाबिज़ होने की पुरुष-चाल पर सवाल उठाता है (लाश-तलाश) तो कभी सभ्यता के उषा-काल और मिथकीय कुहासों से लेकर वर्तमान के तपते द्विप्रहर तक को खँगालते हुए प्रश्नवाचक बन बैठता है कि जीवन के महाभारत में औरत के प्रति यदि कौरवों और पांडवों का रवैया एक-सा है तो ऐसा युद्ध से क्या बदल जाएगा और अगर युद्ध होता ही है तो स्त्रियाँ युद्ध में शामिल क्यों नहीं होंगी। अन्तत: ‘क्रिमिनल रेस’ के केन्द्र दिल्ली की आपराधिकी की भूल-भुलैया में भटककर मासूम देशवासी को रास्तों और गंतव्य तक पर संशय होने लगता है—मैं कहाँ हूँ? (सुबह का भूला)।
संघर्ष और जन आन्दोलनों की आग में जीकर रची हुई अपनी नफ़ीस भाषा-शैली की हेमन्त की कहानियाँ अपने पाठकों को किसी आनन्द वन या नक़ली उसाँसों के मरुस्थल में नहीं ले जातीं बल्कि धसकते धरातलों, गिरते आसमानों और हरहराते तूफ़ानों की क्राइसिस के सम्मुख ला खड़ा करती हैं—तुम यहाँ हो और तुम्हारी मंज़िल यहाँ।
—संजीव
Gyandan
- Author Name:
Yashpal
- Rating:
- Book Type:

- Description: यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है। यह आधारभूत प्रस्थान बिन्दु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज़्यादा तरल रूप में, ज़्यादा गहराई के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर आते हैं। उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है। प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही वे कथा-यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचित् विलम्ब से आरम्भ हुआ। कहानीकार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने प्रेमचन्द के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी-कला का विकास किया। उनकी कहानियों में संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वन्द्व जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई, जो आज तक चली आ रही है। वैचारिक निष्ठा, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याय तथा तर्क की कसौटियों पर खरा जीवन—ये कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिन्दी कहानी यशपाल की ऋणी है। ‘ज्ञानदान’ कहानी-संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं : ‘ज्ञानदानֺ’, ‘एक राज़’, ‘गण्डेरी’, ‘कुछ समझ न सका’, ‘दु:ख का अधिकार’, ‘पराया सुख’, ‘80/100’, या ‘सांई सच्चे!’, ‘ज़बरदस्ती’, ‘हलाल का टुकड़ा’, ‘मनुष्य’, ‘बदनाम’ और ‘अपनी चीज़’।
Dahan (lok)
- Author Name:
Manoj Rupada
- Book Type:

-
Description:
मनोज रूपड़ा की कहानियाँ बाजदफे आपके पढ़ने की गति को धीमा करती हैं। ऐसा गत्यावरोध संरचनात्मक स्तर पर किन्हीं भारी-भरकम, क्लिष्ट वाक्य-विन्यास से प्रसूत नहीं, न ही अर्थागम के स्तर पर ही। बात दरअसल कुछ और है। एक बार शुरू करने के बाद आप उन्हें जल्दी खत्म नहीं करना चाहते, खत्म करने से डरते हैं। मनोज के यहाँ आपके वे बिसराये पाप बसर करते हैं, आपके मानस तक जिनकी अवैध आमद बस सपनीले साँवले में ही सम्भव है। मनोज में उन गोपनीय पापों को उनकी नंगी संपूर्णता में रखने का माद्दा है। वस्तुतः मनोज की दो पंक्तियों की सन्ध में सरगोशी करते आपके अतीत के ऐसे पाप ही आपकी पढ़त को बारहाँ बाधित करते हैं।
मनुष्य का यही 'बेसिक इंस्टिंक्ट' मनोज की कहानियों का मूलाधार है। यही मनोज के नायकों को आहत करता है, उन्हें दर-ब-दर करता है, तोड़कर पुनर्नवा - 'रीकंस्ट्रक्ट' और 'रिन्यू' करता है। मनोज अपने नायकों के व्यक्तित्व व उनके अहं को बड़ी निर्ममता से विखंडित करते हैं। वे इसे प्रलय के स्तर तक ले जाते हैं, किन्तु वहाँ से लौटते हुए उनका अनाहत अहं सर्जना के उरूज पर प्रतिष्ठित होता है।
मनोज इस हारे हुए समय में मनुष्य की विजय के इकलौते स्मारक हैं। सँभालकर-सँजोकर रखे जाने वाले कथाकार। कयामत से पहले इनकी कहानियों को बचाकर रख लेना चाहिए, ये अगली दुनिया के निर्माण का ब्लूप्रिंट हैं।
Customer Reviews
5 out of 5
Book