'Badchalan' Beevion Ka Dweep

'Badchalan' Beevion Ka Dweep

Language:

Hindi

Pages:

158

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

316 mins

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Book Description

यह कृष्ण बलदेव वैद सरीखे अलबेले और हठी कथाकार से ही मुमकिन था कि पुरानी, बहुत पुरानी, कहानी का भी नए-नवेले, अनूठे और समसामयिक अन्दाज़ में एक बार फिर बयान सम्भव हो सके, जैसा सोमदेव रचित ‘कथासरित्सागर’ की कुछ संस्कृत कहानियों के साथ उन्होंने इस संग्रह में सफलतापूर्वक कर दिखलाया है।</p> <p>यह उद्यम इस मायने में मौलिक और रचनाधर्मी है कि पारम्परिक कथाओं का रूप विन्यास करते हुए ‘पुनर्लेखक’ न जाने कितनी जगह कथा काया में एक सजग लेखक की तरह प्रवेश करता है : न सिर्फ़ प्रवेश ही, बल्कि अपनी चुटीली, चटपटी टिप्पणियों से कहानी की रसात्मकता को समसामयिक जीवन सज्जा में ढालने की सुविचारित चेष्टा भी। यही असल में परम्परा का नवीनीकरण है : एक सच्ची और सचमुच पुनर्रचना।</p> <p>कथा की क्लासिकल, पर भाषा और शैली अभी और आज की। पात्र वही पुराने, पर उन्हें देखने, आँकने, टाँकने का अन्दाज़ ‘कृष्णबलदेवी’। घटनाएँ वही पुरानी, पर उन्हें बयान करते हुए उन्हें समकालिक जीवन-छवियों से जोड़ने का सपना नया। अगर कहानीकार का सरोकार, कहानी के सन्देश, पाठ या शिक्षा से कम और ख़ुद कहानी से ज़्यादा है, तो यह वैद जी जैसे कहानीकार के लिए निहायत स्वाभाविक बात है, जिसकी बुनियादी दिलचस्पी का सबब कहानी ही है : कहानी का निहितार्थ नहीं।</p> <p>कृष्ण बलदेव वैद हमारे समय के ऐसे इने-गिने मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण लेखकों में अग्रगण्य हैं, कथा कहने और अपनी शर्तों पर कहने की जिनकी उमंग न थकी है, न चुकी। कथित आलोचकों के सामने झुकी तो वह ज़रा भी नहीं है। प्रयोग और नएपन के प्रति उनका स्वाभाविक उल्लास और अनुराग हिन्दी की याद रखने लायक़ घटना हैं, वह इसलिए भी कि हर दफ़ा अपने ही ढब-ढंग का कुछ अलग, कुछ नया रचना, उनकी लेखकीय फ़ितरत में कुछ उसी तरह शरीक है जैसे इधर कम से कमतर होते जा रहे ‘प्रयोगशील’ हिन्दी गल्प में ख़ुद कृष्ण बलदेव वैद।</p> <p>‘कथासरित्सागर’ की कुछ प्रसिद्ध कहानियों का यह रोचक ‘विचलन’ एक दफ़ा फिर वैद जी के नवाचारी मन-मस्तिष्क की रोमांचक उड़ान का असन्दिग्ध साक्ष्य है।

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