Atithi Devo Bhav
Author:
Abdul BismillahPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
बहुचर्चित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का रचना-कर्म आज के ज्वलंत सामाजिक सवालों से जुड़ा हुआ है और ‘अतिथि देवो भव’ में शामिल कहानियाँ उनकी इस रचनात्मक प्रतिबद्धता को और अधिक गहरा करती हैं । कहानियों की इस दुनिया में प्रवेश करते हुए हम भारतीय समाज के विभिन्न तबकों, संस्कारों और परंपराओं से जुड़े कुछ ऐसे चरित्रों से परिचित होते हैं, जिन्हें व्यक्तियों के बजाय सहज ही मानव-मूल्यों की संज्ञा दी जा सकती है। ऐसे चरित्रों में ‘अलिया धोबी और पाव-भर गोश्त’ का अलिया, ‘पुण्यभोज’ का खुदाबकस,‘खाल खींचनेवाले’ का भुनेसर, ‘नर-लीला’ की कमली, ‘सुलह’ का महादेव, ‘यह कोई अन्त नहीं’ का सरवर और ‘दूसरा सदमा’ के गुलामू चचा विशेष उल्लेखनीय हैं। इन कथा-चरित्रों की शक्लें और कार्य-व्यवहार भले ही अनेक हों, लेकिन अपने इर्द-गिर्द क्रियाशील अमानवीय तंत्र के विरुद्ध उनका गुस्सा और संघर्ष एक है। वर्तमान व्यवस्था के मानव-विरोधी स्वरूप को वे जिस प्रकार महसूस करते हैं और पहचानते हैं, वह न केवल उन्हें, बल्कि इन कहानियों को भी अविस्मरणीय बना देता है। इनके अलावा कुछ कहानियाँ ऐसे चरित्रों को भी सामने लाती हैं, जो पोर-पोर लंपटता से भरे हैं और आधुनिक जीवन स्थितियों से परिचालित मानव-स्वभाव के संदर्भ में कई स्तरों पर विद्रूप पैदा करते हैं। वस्तुत: अपने वर्तमान से सीधे साक्षात्कार के लिए भी इन कहानियों को उसी सहजता से ग्रहण किया जा सकता है, जिस सहजता से ये लिखी गई हैं।
ISBN: 9788126714407
Pages: 147
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हर कहानी या उपन्यास घटनाओं-पात्रों के जरिए सत्य से एक आशिक और कुतूहलभरा साक्षात्कार होता है। साहित्य हमें जीवन जीना सिखाने के बजाय टुकड़ा-टुकड़ा 'दिखाता' है, वे तमाम नर्क-स्वर्ग, वे राग-विराग, वे सारे उदारता और संकीर्णता-भरे मोड़, जिनका सम्मिलित नाम मानव-जीवन है। जो साहित्य उघाड़ता है, वह अन्तिम सत्य या सार्वभौम आदर्श नहीं, बहुस्तरीय यथार्थ होता है। हाँ, यदि जीवन में आदर्श या सत्य अनुपस्थित या अवहेलित हैं, तो उस विडंबना को भी यह जताता जाता है।
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