Mirtaatma Ka Geet
Author:
Aabe Kobo, Unita Sachchidanand, Hayashi Fumiko, Sata IncoPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
जापान में जब पूँजीवादी औद्योगीकरण की शुरुआत हुई तब समाज का सांस्कृतिक और राजनीतिक ढाँचा तेज़ी से बदलने लगा। पूँजीवादी समाज में विकास के नाम पर हाशिए पर धकेले गए प्रताड़ित लोगों के दु:ख–दर्द को मार्मिक स्पर्श दिया है जापान के तीन प्रगतिवादी लेखकों ने। इनकी सशक्त शैली और वैचारिक सघनता का प्रवाहपूर्ण हिन्दी अनुवाद मूल जापानी स्रोत से किया गया है।
ISBN: 9788126706143
Pages: 92
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
साहित्य के क्षितिज पर मोपासां मानो एक धूमकेतु के समान प्रकट हुआ था। महज़ तैंतालीस वर्षों की छोटी-सी ज़िन्दगी उसे जीने को मिली। सिर्फ़ बारह वर्षों का उसका साहित्यिक जीवन रहा। लेकिन इस छोटी-सी अवधि में उसने तीन सौ से अधिक कहानियाँ और छह उपन्यास लिख डाले। इसके अतिरिक्त इस दौरान उसके नाटकों, यात्रा-वृत्तान्तों और लेखों के कई संकलन प्रकाशित हुए। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में, न सिर्फ़ फ़्रांस में बल्कि पूरे यूरोप में तथा रूस और अमेरिका में साहित्य के सुधी पाठकों के बीच सबसे अधिक पढ़े जानेवाले फ़्रांसीसी लेखक बाल्ज़ाक और मोपासां थे। फ्लाबेअर, स्तान्धाल और मोपासां—इन तीन फ़्रांसीसी लेखकों की कृतियों को पढ़ने की सलाह लेव तोल्स्तोय युवा लेखकों को अकसर दिया करते थे।
मोपासां का कथा-संसार 1870 से 1890 के बीच के फ़्रांसीसी जीवन का एक विशद चित्र विराट कैनवस पर प्रस्तुत करता है जिसके अलग-अलग हिस्सों की सूक्ष्मताएँ अलग से ग़ौरतलब हैं। मोटे तौर पर मोपासां की कहानियों को विषय-वस्तु की दृष्टि से पाँच श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है : (i) फ़्रांस-जर्मनी युद्ध विषयक कहानियाँ, (ii) नॉर्मन किसानों के जीवन से जुड़ी कहानियाँ, (iii) नौकरशाही के बारे में कहानियाँ, (iv) सेन नदी के तटवर्ती जीवन की कहानियाँ और (v) विभिन्न सामाजिक वर्गों की भावनात्मक-संवेगात्मक समस्याओं से सम्बन्धित कहानियाँ। यूँ तो इन सभी प्रवर्गों में कुछ आम चलताऊ रचनाओं के साथ ही अनेक बेहद सशक्त-शानदार रचनाएँ मौजूद हैं, लेकिन अधिकांश आलोचकों की यह राय रही है कि नॉर्मंडी के किसानों के जीवन के बारे में मोपासां ने सर्वाधिक आधिकारिक एवं वस्तुपरक ढंग से लिखा है। इस संकलन की कहानियाँ मोपासां के कथाकार का एक समग्र चित्र बनाने में आपकी मददगार होंगी।
Mansarovar Vol. 8 : Guptdhan Aur Anya Kahaniyan
- Author Name:
Premchand
- Rating:
- Book Type:

- Description: प्रेमचन्द मनुष्य और मानवीय स्थितियों में दिलचस्पी रखते थे।... प्रेमचन्द के लिए मनुष्य की स्थिति ही समाज की स्थिति थी। उनकी कहानियों में मनुष्य को स्वयं में सम्पूर्ण इकाई के रूप में शायद ही कहीं प्रस्तुत किया गया हो। मनुष्य के अन्तर्मन की उथल-पुथल और दुविधाएँ हमेशा समाज और आस-पास के माहौल से जुड़ी होती हैं। यहाँ तक कि पारिवारिक सम्बन्धों को भी सामाजिक तर्कों से प्रभावित होता दिखाया गया है। उनका गहरा सामाजिक निरीक्षण उनकी कहानियों में झलकता है जिनमें उन्होंने हर 'प्रकार' के इनसानों को और लगभग हर व्यवसाय को शामिल किया है। विश्वनाथ एस. नरवणे
Muhavare Ki Maut
- Author Name:
Anurag Anant
- Book Type:

- Description: अनुराग अनन्त की कहानियों की विशिष्टता यह है कि वह कथा के लिए किसी ‘बाहरी अन्य’ पर निर्भर नहीं हैं। अपनी निर्मिति, अपनी गति, विवरण, अपनी आख्यानात्मकता के स्थापत्य और उसके ‘इंटीरियर’ (आन्तरिकता) को बनाने के लिए सारे जरूरी पदार्थ या सामग्री वह अपने ही भीतर से जुटाती और गढ़ती हैं। ‘मुहावरे की मौत’ की कई कहानियाँ ऐसी हैं, जो कहानी के कहानी होने का ही विध्वंस करती हैं और अपनी मौलिकता के जादुई सम्मोहन से वास्तविक जीवन का सच अर्जित करने का विरल और दुष्कर प्रयत्न एक सतत विरोधाभासी सहजता के साथ करती हैं। ये कहानियाँ आज की और सम्भवतः भविष्य की कहानी को, कहानी से मुक्ति की कहानियाँ होने का आसन्न संकेत देती हैं। इस संग्रह की कोई भी एक कहानी उठाइए, मसलन पहली ही कहानी, जिसका शीर्षक है ‘त्रासदी का सिद्धान्त’ और इसके पाठ (टेक्स्ट) के किसी भी वाक्य या पैराग्राफ के किसी भी एक बिन्दु पर कलम या कर्सर रख दीजिए, फिर देखिए। एक साथ कई-कई संस्तरों, कई परतों में एक अकेले व्यक्ति के जीवन के कई प्रारूप जन्म लेने लगते हैं। स्मृति, अनुभव, सिनेमा, विभ्रम, अवसन्नता, जागृति, मूर्च्छा, नींद, कविता, कैनवास, सैरा, परिवार, समय, समाज, वर्चुअल, रियल, सत्य, असत्य, सूचना, अफवाह आदि आदि...। सब के सब एक दूसरे में घुलते-पिघलते हुए। एक अजब काइनेटिक फर्मेंटेशन। कोई हतप्रभ करता, आँखें खोलता, पीड़ित और सुखद एक साथ करता हुआ निरन्तर बदलता गतिशील विन्यास। किसी भी शहर का नाम लो, हर शहर के एक अकेले जीवन की ऐसी कहानियाँ, जिनके दिल में एक सुराख है, एक गहरा कुआँ, ऐसी कहानियाँ जिन्हें नींद नहीं आती, जो सपनों को खाती हैं और आँसुओं को पीती हैं, जो अचानक अपने गद्य को त्याग कर कविता बन जाती हैं, फिर उसे भी तजते हुए किसी चित्र या फिल्म के गतिमय दृश्य रचने लगती हैं। और यह सारा कुछ किसी ऐसे ‘ग्रांड इवेंट’ की तरह है, जिसे म्युनिसिपेलिटी के सुनसान पार्क का एक गार्ड अचानक अपना डंडा घुमाकर डाँटते हुए, पलक झपकते गायब कर देता है। —उदय प्रकाश
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