Vaigyanik Bhautikvad
Author:
Rahul SankrityayanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 88
₹
110
Available
‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ आज के वैज्ञानिक युग के उस चरण की व्याख्या है जिसमें साइंस के नाम पर मृत विचारों की अपेक्षा नए वैज्ञानिक विचारों व आलोक में मानवीय नैतिकता, धर्म, समाज, दर्शन, मूल्यवत्ता और मानवीय सम्बन्धों की व्याख्या की गई है। जर्मन दार्शनिक हीगेल ने जिस द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त पर आध्यात्मिकता की व्याख्या की थी, मार्क्स ने उसी द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त के प्रयोग से भौतिकवाद की व्याख्या की। राहुल जी की पुस्तक वैज्ञानिक भौतिकवाद मूलतः द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को ही प्रतिपादित करने के लिए लिखी गई पुस्तक है। पुस्तक को विद्वान लेखक ने तीन मुख्य अध्यायों में बाँटकर, इतिहास, दर्शन, समाजशास्त्र और धर्म आदि की पूरी व्याख्या प्रस्तुत की है। यह पुस्तक राहुल जी ने सबसे पहले 1942 में लिखी थी जबकि देश में गांधी जी और गांधीवादी का बड़ा प्रबल समर्थन व्याप्त था। इसमें भारतीय सन्दर्भ को लेकर गांधीवाद की विवेचना है। भारतीय चिन्तन और दर्शन की दृष्टि से यह पुस्तक सर्वप्रथम भारतीय साहित्य में विशेषकर हिन्दी में एक बहुत बड़ी कमी की पूर्ति करती है।
दार्शनिक दृष्टि से ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ अपनी छोटी-सी काया में ही अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोपीय चिन्तन को सूत्र रूप में भारतीय सन्दर्भ के साथ प्रस्तुत करती है। वस्तुतः इस पुस्तक के अध्ययन से कोई भी भारतीय भाषा-भाषी पाश्चात्य चिन्तन-प्रणाली को भली-भाँति जान सकता है।
ISBN: 9788180318634
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
मुकुन्द लाठ भारत के उन बहुत थोड़े लेखकों में से एक हैं जिनके यहाँ साहित्य और कलाओं को लेकर ऐसी गहरी और सूक्ष्म दृष्टि है जो प्राचीन साहित्य और शास्त्र, दर्शन और चिन्तन, संगीत और नाट्य, कविता, परम्परा और आधुनिकता आदि सबको एक संग्रथित समावेश में शामिल कर रूपायित होती रही है। वह परम्परा से जैसे कि आधुनिकता से भी अनाक्रान्त रहकर एक प्रश्नवाचक दूरी रखती है। साहित्य और कलाओं के स्वरूप पर ऐसा मौलिक चिन्तन, कुछ कृतियों की सूक्ष्म समीक्षा, हिन्दी में बहुत कम देखने को मिलता है। हिन्दी में पहले ऐसे लोग थे, जैसे कि वासुदेवशरण अग्रवाल, मोतीचन्द्र, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि, जो ऐसी समावेशी और आधुनिकता के लिए भेदक दृष्टि रखते थे। मुकुन्द लाठ उस परम्परा में ही दशकों से सक्रिय रहे हैं और उनकी यह संचयिता हम बहुत उत्साह और उम्मीद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं कि अपने समय, समाज, साहित्य और कलाओं को समझने की यह दृष्टि हिन्दी के विचार-जगत में हस्तक्षेप की तरह पहचानी-गुनी जाएगी। यह निश्चय ही हिन्दी की विचार-सम्पदा का अपेक्षाकृत अब तक का जाना विस्तार है।
—अशोक वाजपेयी
Naksaliyon Ke Beech Mere Beete Dinon Ki Romanchak Gatha
- Author Name:
Alpa Shah
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- Description: 2010 में जब भारत सरकार देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सल विरोधी अभियानों में तेजी ला रही थी, तो उस समय अल्पा शाह गुरिल्ला प्लाटून केसाथ उन्हीं इलाकों की 250 किलोमीटर लंबे सात रातों के सफर पर निकलीं। एक मानव विज्ञानी केरूप में वह समझना चाहती थीं कि एक नए भारत के उदय की पृष्ठभूम में, क्यों देश के गरीबों ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र से मुँह मोड़कर क्रांतिकारी विचारधारा के साथ एकजुटता दिखाई? गहरे हरे रंग की छापामारा वर्दी पहने, पुरुष के वेश में अल्पा प्लाटून में एकमात्र महिला और एकमात्र ऐसी इनसान थीं जिसके पास बंदूक नहीं थी। कष्टों से भरी उनकी इस यात्रा ने यह खुलासा किया कि क्यों विभिन्न पृष्ठभूमियों केलोग, दुनिया को बदलने के लिए हथियार उठाकर एक साथ इकट्ठा हो गए थे; और साथ ही किन वजहों से फिर उनमें बिखराव हुआ? अल्पा शाह सालों के शोध के साथ ही नक्सलियों के गढ़ में आदिवासी समुदायों के साथ, उनके रोजमर्रा के जीवन में इतना घुलमिल गई थीं कि उनकी पुस्तक ‘नक्सलियों के बीच मेरे बीते दिनों की रोमांचक गाथा’ में वह गइराई और घनिष्ठता साफ नजर आती है और पुस्तक एक थ्रिलर की तरह हमारी आँखों के सामने से गुजरती है। इसी गहन अध्ययन और शोध से पुस्तक में आदिवासी जीवन और उसका संघर्ष जीवंत हो उठता है। यह कृति समकालीन भारत के बीचोबीच आर्थिक वृद्धि, बढ़ती असमानता, विस्थापन और संघर्ष का प्रतिबिंम्ब प्रस्तुत करती है।
Pahar
- Author Name:
Nilay Upadhayaya
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- Description: निश्छल प्रेम और दुर्निवार जीवन-तृष्णा की अपूर्व गाथा है—‘पहाड़’। राम ने अपनी प्रिया सीता के लिए समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था—प्रीत कारण सेतु बाँधल सिया उदेस सिरी राम हो। और दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी पिंजरी के लिए पहाड़ काटकर रास्ता बनाया। राम देवता थे, जबकि दशरथ मांझी बिहार के गया ज़िले के एक साधारण गाँव के अति साधारण निवासी; समाज के सर्वाधिक उपेक्षित, वंचित और अभावग्रस्त समुदाय के एक सदस्य। लेकिन उन्होंने मानवीय प्रेम की ऐसी मिसाल क़ायम की, जिसके बारे में अब तक सिर्फ़ पौराणिक कथाओं-किंवदन्तियों में सुना गया था। इस तरह ‘पहाड़’ में साधारण की असाधारणता मूर्त हुई है। दशरथ मांझी की यह गाथा उनके प्रेम की व्यक्तिगत परिधि तक सीमित नहीं है। इसमें उनके और उनके जैसे अनेक लोगों का जीवन-संघर्ष चित्रित है, जो समाज की सामन्ती शक्तियों के उत्पीड़न का शिकार बनते हैं। लेकिन तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद वे अपनी स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा की आकांक्षा से विमुख नहीं होते, बल्कि बार-बार संघर्ष करते हैं। उपन्यासकार ने काफ़ी बारीकी से सामाजिक-राजनीतिक जटिलताओं को प्रस्तुत किया है, जिससे यह कृति और व्यापक हो उठी है। ‘पहाड़’ का एक उल्लेखनीय पक्ष इसमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति प्रस्तुत दृष्टिकोण भी है। यह उपन्यास बतलाता है कि प्रकृति को अपनी लिप्सा-पूर्ति का साधन बनाकर मनुष्य अपने को ही नष्ट कर लेगा, जबकि उसके साहचर्य में उसका अस्तित्व बचा रह सकता है।
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