Tulsi Ke Hanuman

Tulsi Ke Hanuman

Language:

Hindi

Category:

Religion-spirituality

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महाकवि गोस्वामी तुलसीदास काव्य-जगत् के निर्विवाद साहित्य सम्राट हैं, यह सत्य है किन्तु कवि होते हुए उनके अद्वितीय जुझारू समाजसेवी व्यक्तित्व का विस्तार से प्रकाशन हो तो उन्हें साहित्य-सम्राट जैसी ही एक और उपाधि देने में संकोच नहीं होगा। ‘रा’ और ‘म’ दो अक्षर मात्र पर ‘रामबोला’ ने बारह आर्ष ग्रन्थों की रचना देश की परम राजनीतिक-सामाजिक उथल-पुथल की विषमता में की। लेखन-कार्य सुरक्षित बन्द कोठरियों में किया किन्तु अपनों और ग़ैरों के धार्मिक मदान्धता के संकटों में खुले मैदानों में अखाड़ची ताल की ठोक में अकेले चलते हुए महाबीर जी के नगर-भर में एक-दो नहीं, बारह विग्रहों की स्थापना को कवि का असाधारण साहस कहना ग़लत नहीं होगा।</p>
<p>अपने महान् वैभव और अस्मिता को भूली वीर वसुन्धरा की ‘अमृतस्य पुत्र: जाति’ को फिर से जगाने के समाजकाज के लिए रामकाज करनेवाले बल, बुद्धि, विद्या, युक्ति, शक्ति के धनी हनुमान की मूर्ति-प्रतिष्ठा का तुलसीदास ने क्रान्तिकारी कार्य किया। आज इसका कोई स्पष्ट अभिलेख उपलब्ध नहीं है कि ये स्थापनाएँ कहाँ-कहाँ हैं। लेखक को मात्र दस मन्दिर मिले। काशी के एक कोने से दूसरे कोने तक आज इनकी वास्तविक स्थिति का पता लगानेवाला लेखा-जोखा श्री मेहरोत्रा का यह शोध-ग्रन्थ है।</p>
<p>इस ग्रन्थ में उन अखाड़ों, लीलाओं का भी विवेचन है जिन्हें तुलसीदास जी ने नगर के कोने-कोने में मन्दिरों के साथ स्थापित किया था। ये स्थापनाएँ साबित करती हैं कि तुलसीदास एक व्यक्ति या साहित्यकार मात्र ही नहीं, सम्पूर्ण संस्कृति थे। आज हम सब का पुनीत कर्त्तव्य है कि इन सांस्कृतिक धरोहरों की पूर्ण निष्ठा से संरक्षा करें। तुलसीदास जी द्वारा स्थापित बारह अखाड़ों में आज मात्र दो शेष हैं। सम्भवत: राजमन्दिर से उन्होंने पहला रामलीला मंचन आरम्भ किया था जो आज धनाभाव के कारण बन्द है। उस लीला मंचन के भवन अभी तीन वर्ष पूर्व तक जीवित अवशेष थे जिन पर अब किसी का क़ब्ज़ा है। ये पुरातात्त्विक अवशेष राष्ट्र की धरोहर हैं। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने समाज और सरकार दोनों को इन्हें संरक्षित रखने का आह्वान किया है।

ISBN: 9788180319358

Pages: 164

Avg Reading Time: 5 hrs

Age : 18+

Country of Origin: India

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