Ramgita
Author:
Ashok Kumar SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Ratings
Price: ₹ 160
₹
200
Available
भगवान श्रीराम त्रेता युग में हुए थे, उनकी शिक्षाओं को हर युग में उपयोगी माना जाता रहा है। ये शिक्षाएँ संसार में रहते हुए ही जीतने, आगे बढ़ने तथा असम्भव को सम्भव बनाने का मार्ग दिखाती हैं। उनकी शिक्षाएँ आत्मज्ञान, नैतिकता, मानसिक सन्तुलन, ध्यान, साहस, मैत्री और प्रेम का महत्त्व समझाने के साथ-साथ निराशा से बचे रहने का मार्ग भी दिखाती हैं। जीवन में ठीक रास्ते पर चलने, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और समाज में सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की शिक्षाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे कर्म के साथ कर्तव्य पालन और आत्मविश्वास के महत्त्व पर बल देते हैं। उचित-अनुचित के बीच अन्तर करने एवं नैतिक मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देते हैं।
ISBN: 9789348157829
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: आरम्भिक काल में इस्लामी आन्दोलन समाज के कमज़ोर और पीड़ित व्यक्तियों की आकांक्षाओं को व्यक्त करता था। इसलिए यह जाँच–परख दिलचस्पी से ख़ाली नहीं होगी कि उसके आरम्भिक समर्थक कौन से लोग थे। अब्दुल–मुतअल–अस्सईदी नाम के एक मिस्री लेखक ने इस पर शोधकार्य किया है। वे कहते हैं कि नवस्थापित इस्लाम मूलत: युवकों का आन्दोलन था। जिन लोगों की उम्रें दर्ज मिलती हैं, उनमें एक बड़ा बहुमत हिजरत के समय 40 से कम उम्र का था। इन लोगों ने उससे कम–से–कम 8 या 10 साल पहले इस्लाम अपनाया था। पैग़म्बर मुहम्मद ने मक्का के अमीरों की जो तम्बीह की थी कि वे ज़ख़ीराबाज़ी न करें और अपनी दौलत पर न इठलाएँ, वह कुचले हुए लोगों, ग़ुलामों और यतीमों आदि को आकर्षक लगती थी। फिर भी उनके समर्थक सिर्फ़ इन्हीं वर्गों से नहीं आए। वे सभी ख़ाली हाथ लोग या ज़ोरदार क़बीलाई सम्बद्धताओं से वंचित तलछटिए लोग नहीं थे। वास्तव में उनमें से बहुत से लोग अग्रणी क़बीलों के थे। जिस तरह हमारे अपने वक़्त में सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं के प्रति जागरूक मगर वंचित होने के अहसास से भरे मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी सामाजिक रूपान्तरण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उसी तरह पैग़म्बर मुहम्मद के अनुयायियों ने भी निभाई। ये लोग भी मक्का के समाज के मध्यवर्ती स्तरों से ताल्लुक़ रखते थे जहाँ एक ख़ासी बड़ी सीमा तक शत्रुतापूर्ण वर्गीय सम्बन्ध पैदा हो चुके थे।
Islam Ka Saidhantik Parivesh
- Author Name:
Zafar Raza
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Description:
प्रोफ़ेसर सैयद जाफ़र रज़ा उन विद्वान अध्यापकों में हैं, जो किसी भी विश्वविद्यालय के लिए गौरवपात्रिक होते हैं। मेरा उनका साथ कश्मीर विश्वविद्यालय, श्रीनगर से है। मैंने उनकी प्रबुद्धता के जौहर अनेक संगोष्ठियों में देखे हैं। इस्लामी धर्म, इतिहास, दर्शन, साहित्य और संस्कृति पर उन जैसी पैनी दृष्टि किसी दूसरे उर्दू साहित्यकार में मुझे देखने को नहीं मिली।
प्रस्तुत पुस्तक में इस्लामी धर्म और समाज के बारे में सभी ज़रूरी जानकारी इस तरह पेश की गई है, कि कतरा में दजला की सैर करा दी है। उस पर सोहागा है, विद्वान लेखक की अपनी स्वस्थ, सन्तुलित एवं उदार दृष्टि, जिससे वे पहचाने जाते हैं। कोई बात बिना किसी ठोस आधार के नहीं लिखते हैं। यदि किसी विवादास्पद विषय पर उन्हें लिखना ही पड़ा, तो इस पर नज़र रखते हैं कि उनके क़लम से किसी के दिल को चोट न लगे। इस पुस्तक में भी इसका ख़याल रखा गया है।
यह अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है, जिससे इस्लामी धर्म और समाज का सही परिचय मिलता है। यक़ीन है कि पुस्तक का हिन्दी-जगत में स्वागत होगा।
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