Dr. Kalam : Prerna Ki Udaan
Author:
Dr. Unnat PanditPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक, विचारक, दाशर्निक और शिक्षक के रूप में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने प्रत्येक भारतीय को सदैव प्रेरित किया है। उनके जीवन, कॅरियर और लेखन ने कोटि-कोटि भारतीयों का मार्गदर्शन किया है, उन्हें प्रोत्साहित किया है। वे हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन हर भारतीय के हृदय में हमेशा उनका स्थान रहेगा। वे समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर हमारे मन में सदैव ज्ञान की ज्योति जलाते रहेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक ‘डॉ. कलाम : प्रेरणा की उड़ान’ उनके सहज-सरल, अनुकरणीय जीवन का एक विशद् विवेचन करती है। इस पुस्तक का उद्देश्य भारत के सर्वांगीण विकास के डॉ. कलाम के स्वप्न को साकार करने की प्रबल इच्छाशक्ति जाग्रत् कराना है, ताकि भारत के छात्र-युवा-आमजन प्रेरणा ले सकें।
यह पुस्तक पढ़कर छात्रों को भारतीय रक्षा और अनुसंधान विकास में एरोनॉटिकल इंजीनियर, मिसाइल इंजीनियरिंग, उपग्रह प्रक्षेपण यान तकनीक के क्षेत्र में डॉ. कलाम के अनगिनत योगदानों के विषय में और ज्यादा जानने का अवसर मिलेगा। स्वप्न देखकर उन्हें साकार करने की क्षमता प्राप्त करने की उड़ान भरने में यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी।
ISBN: 9789390101917
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: चैतन्य महाप्रभु का बचपन का नाम विश्वंभर था। उनका जन्म चंद्रग्रहण के दिन हुआ था। लोग चंद्रग्रहण के शाप के निवारणार्थ धर्म-कर्म, मंत्र आह्वान, ओ३म् आदि जप-तप में जुटे हुए थे। शायद इस धार्मिक प्रभाव के कारण ही चैतन्य बचपन से ही कृष्ण-प्रेम और जप-तप में जुट गए। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक उच्च कोटि का संत बनेगा और अपने भक्तों को संसार-सागर से तार देगा। बचपन से ही चैतन्य कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने अपने अकाट्य तर्कों से स्थानीय पंडितों को दर्शन और अध्यात्म चर्चा में धराशायी कर दिया था। बाद में वैष्णव दीक्षा लेने के पश्चात् चैतन्य दार्शनिक चर्चा के प्रति उदासीन हो गए। उन्होंने कृष्ण नाम-कीर्तन आरंभ कर दिया। चैतन्य ने कलियुग में भक्तियोग को मुक्ति का श्रेष्ठ मार्ग बताया है। उनकी लोकप्रियता से खिन्न होकर एक बार एक पंडित ने उन्हें शाप देते हुए कहा, ‘तुम सारी भौतिक सुविधाओं से वंचित हो जाओ।’ यह सुनकर चैतन्य खुशी से नाचने लगे। माता-पिता ने उन्हें घर-गृहस्थी की ओर मोड़ने के लिए उनका विवाह भी कर दिया, लेकिन उन्होंने गृह त्याग दिया, अब सारी दुनिया ही उनका घर थी। भगवान् कृष्ण के अनन्य उपासक, आध्यात्मिक ज्ञान की चरम स्थिति को प्राप्त हुए चैतन्य प्रभु की ईश्वर-भक्ति की सरस जीवन-गाथा जो पाठक को भक्ति की पुण्यसलिला में सराबोर कर देगी।
Main Kaun Hoon? "मैं कौन हूँ" | Spiritual & Enlightenment Book | Swami Vivekananda Book in Hindi
- Author Name:
Swami Vivekanand
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- Description: "स्वामी विवेकानंद भारत में उस समय अवतार लिया, जब यहाँ हिंदू धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल मँडरा रहे थे। पंडित-पुरोहितों ने हिंदू धर्म को घोर आडंबरवादी और अंधविश्वासी बना दिया था ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म को पहचान दी । इसके पहले हिंदू धर्म विभिन्न छोटे-छोटे संप्रदायों में बँटा हुआ था। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमरीका) की विश्व धर्म-संसद् में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। उनतालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। प्रस्तुत पुस्तक ‘मैं कौन हूँ?’ में स्वामीजी ने सरल शब्दों में एक आम आदमी के उन सवालों के उत्तर दिए हैं, उन जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास किया है, जिनमें वह अकसर उलझकर रह जाता है कि आखिर वह है कौन ? ये आत्मा-परमात्मा कौन हैं ? स्वयं को कैसे जाना जा सकता है ? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ? धर्म का जीवन में क्या महत्त्व है ? जीवन की सार्थकता क्या है? ऐसे ही करनेवाली विख्यात आध्यात्मिक विभूति स्वामी विवेकानंद की एक प्रेरक और ज्ञानवर्धक पुस्तक |"
Lohe Ki Kamarpetiyan
- Author Name:
Tapi Dharma Rao
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Description:
स्वर्गीय तापी धर्माराव के लेखन का फ़ोकस मुख्यत: समाज सुधार रहा है। तेलगू में इनकी पुस्तकें लोकप्रियता के शिखर पर रही हैं। इस पुस्तक में विख्यात लेखक ने कमरपेटियों की परम्परा और इतिहास को अपना विषय बनाया है।
कमरपेटियाँ हमारी परम्परा में जड़ी यौन–वर्जनाओं, पुरुष–वर्चस्व और शुद्धतावादी नैतिक आग्रहों की चरम और सर्वाधिक नृशंस अभिव्यक्ति हैं। इस पुस्तक में कमरपेटियों के इतिहास, उनके समाज–नीतिशास्त्र और वर्तमान में उनके लोक–प्रचलित अवशेषों का सरल, जनसाधारण की भाषा में विवरण दिया गया है। लेखक बताते हैं कि मरुगुबिल्लाओं (लाज–रक्षक पदक) के रूप में आज आन्ध्र में जो आभूषण प्रचलित है, वह कमरपेटियों का ही इमिटेशन है। उसके अलावा पुरातात्त्विक सर्वेक्षणों और खुदाइयों में मिली कमरपेटियों, उनके प्रकारों और उनसे जुड़ी किंवदन्तियों के बारे में प्रामाणिक जानकारी इस पुस्तक में है।
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