There is an Alpin
Author:
RameshraajPublisher:
Rachnaye FulfilledLanguage:
HindiCategory:
Poetry1 Reviews
Price: ₹ 42.5
₹
50
Available
एक मज़ेदार दोहा सप्तक, जिसमे कुछ गुदगुदाने के साथ साथ कुछ गंभीर बातों पर भी ध्यानाकर्षण किया है रमेशराज ने। आशा है हिन्दी और English की मिली-जुली भाषा बोलने वालों को यह पसंद आयेगी।
ISBN: RF-RR-DS1
Pages: 9
Avg Reading Time: 0 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Mithilesh Kumar Rai
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- Description: यथार्थ के अनुभवमूलक अन्वेषण और संवेदना के नए धरातल के कारण युवा कवि मिथिलेश कुमार राय के इस संग्रह की कविताएँ अलग से आकर्षित करती हैं। ग्रामीण जीवन के यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए अब तक जो फ्रेम हिंदी कविता में बने या बनाए गए, ये कविताएँ उन ढाँचों या चौकठों से बाहर की कविताएँ हैं। हिंदी में ग्रामीण जीवन के चित्रण को लेकर बनी बद्धमूल धारणाओं को और नई अवधारणाओं को विकसित करने का उपक्रम 1990 के बाद से निरंतर होता रहा है। फिर भी, मिथिलेश की कविताओं को पढ़ते हुए एक सुखद आश्चर्य होता है कि लोक जीवन के बारे में अब भी इतना कुछ, इतना नया, इतना अनूठा और इतना मार्मिक भी; कहने को बचा रह गया था। संग्रह की पहली ही कविता 'लक्ष्मी देवी उपले बढिय़ा थोपती है' की शुरुआती पंक्तियाँ द्रष्टव्य है— लछमी देवी उपले बढिय़ा थोपती हैंसम्मान के पर्चे पर इनका भी नाम चढऩा चाहिए महोदयलछमी देवी सानी इतना अच्छा लगाती हैंकि नाद जब ख़ाली हो जाता हैभैंसें तभी गर्दन ऊपर करती हैंसंग्रह में एक कविता है—'चावल लेने पड़ोसी के घर दौड़ती हैं स्त्रियाँ।' इस तरह की कविता में प्राय: अभाव का चित्रण होता है, लेकिन मिथिलेश लिखते हैं कि चावल, चीनी, चायपत्ती आदि माँगने जाने वाली स्त्रियाँ पड़ोसियों के साथ नेह-छोह के रिश्तों को जुगाने के लिए भी जाती हैं। ज़ाहिर है, कहन का यह नया ढंग यथार्थ की नई समझ के चलते ही आया है। निस्संदेह लोक अस्मिता की नई पहचान के कारण युवा कवि का यह संग्रह अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज करने में सफल होगा। —मदन कश्यप
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