Tarapath

Tarapath

Language:

Hindi

Pages:

192

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

384 mins

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Book Description

‘तारापथ’ का यह परिवर्धित संस्करण पंत जी के समग्र काव्य-साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है। ‘वीणा’ से लेकर अधुनातन कृति ‘संक्रान्ति’ तक के काव्य-संग्रहों से उनकी रचनाओं का सुरुचिपूर्ण चयन इसमें प्रस्तुत किया गया है। इस संकलन की विशेषता यह है कि इसमें पंत जी की नवीनतम कृतियों का प्रतिनिधित्व पाठकों को मिलेगा।</p> <p>पंत जी ने इस युग को एक ‘महासंक्रान्ति युग’ कहा है। इस महासंक्रान्ति काल की कविता में आस्था और लोकमंगल को प्रतिष्ठित करना किसी भी साधारण प्रतिभा और जीवन-दृष्टि के कवि के बूते के बाहर की बात है। जबकि विघटन, विशृंखलता, नैतिक मूल्यों का ह्रास चारों ओर दिखाई पड़ रहा है, उसमें महाकवि पंत का यह स्वप्न (‘मुझे स्वप्न दो, मुझे स्वप्न दो’) एक महान जीवन और विराट आस्था की परिकल्पना करता है। यही वह सन्देश है, जो समस्त पंत-काव्य के अन्दर-ही-अन्दर प्रवाहित होता हुआ हमें मिलता है।</p> <p>उनका समस्त काव्य अन्तर्मुखता का काव्य न होकर आत्मोत्कर्ष का काव्य है। यह आत्मोत्कर्ष अपनी समग्र संरचना में एक सार्वभौमिक शुभेच्छा तक ले जाता है। इसीलिए उनका काव्य अतीतोन्मुख न होकर वर्तमान के फलक पर भविष्योन्मुखी काव्य है। यह सार्वभौमिक शुभेच्छा ही वह तत्त्व है, जिसके भीतर से कवि पंत ने विश्व-मानव और नव-मानव की परिकल्पना को अपनी कविता में सार्थक किया है। अपनी सम्पूर्ण काव्य-सम्पदा के भीतर से उन्होंने एक नए और निजी अध्यात्म की रचना की है। यह अध्यात्म अपनी मंगलकामना में निजी होते हुए भी ‘स्व’ भावना से पूर्णतया मुक्त है।

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