Suno Deepshalinee

Suno Deepshalinee

Language:

Hindi

Pages:

96

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

192 mins

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Book Description

रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीतों के वृहद् संकलन 'गीतवितान' से चुनकर इन गीतों का अनुवाद मूल बांग्ला से ही किया गया है। रवीन्द्रनाथ के गीतों में ग़ज़ब की संक्षिप्ति और प्रवहमानता है, और शब्दों से उत्पन्न होनेवाले संगीत की अनूठी उपलब्धि है। इस मामले में वे जयदेव और विद्यापति की परम्परा में ही आते हैं। इन अनुवादों में रवीन्द्रनाथ के गीतों के सुरों को, उनकी लयात्मक गति को, उनके संगीत-तत्त्व को सुरक्षित रखने का भरपूर प्रयत्न प्रयाग शुक्ल ने किया है। अचरज नहीं कि इन गीतों को अनुवाद में पढ़ते हुए भी हम उनके प्राण-तत्त्व से जितना अनुप्राणित होते हैं, उतना ही उनके गान-तत्त्व से भी होते हैं।</p> <p>रवीन्द्रनाथ ने अपने गीतों को कुछ प्रमुख शीर्षकों में बाँटा है। यथा—‘प्रेम’, ‘पूजा’, ‘प्रकृति’, ‘विचित्र’, ‘स्वदेश’ आदि में, पर हर गीत के शीर्षक नहीं दिए हैं। यहाँ हर गीत की परिस्थिति के लिए उसका एक शीर्षक दे दिया गया है। प्रस्तुत गीतों में प्रेम, पूजा और प्रकृति-सम्बन्धी गीत ही अधिक है। प्रेम ही उनके गीतों का प्राण-तत्त्व है।</p> <p>रवीन्द्रनाथ अपनी कविताओं और गीतों में भेद करते थे। उनका मानना था कि भले ही उनकी कविताएँ, नाटक, उपन्यास, कहानियाँ भुला दिए जाएँ, पर बंगाली समाज उनके गीतों को अवश्य गाएगा। वैसा ही हुआ भी है, और बंगाली समाज ही क्यों, उनके गीत दुनिया-भर में गूँजे हैं। हिन्दी में ‘गीतांजलि’ के अनुवादों को छोड़कर, उनके गीतों के अनुवाद कम ही उपलब्ध हैं। हमें भरोसा है कि इन चुने हुए गीतों का पाठक-समाज में स्वागत होगा।

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