Andhere Se Bahar Nikalate Huye
Author:
Amar KushwahaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
‘अँधेरे से बाहर निकलते हुए’ अमर कुशवाहा की बहुत सहज और सीधी लेकिन अर्थवान कविताओं का पहला संग्रह है। अपनी जमीन, अपनी जिन्दगी, अपने संघर्षों की कथा कहती ये कविताएँ मानवीय संवेदनाओं को एक नई दृष्टि देती हैं, साथ ही कविता के माध्यम से समाज को एक नए रूप में संस्कारित करने का प्रयास भी करती हैं। समाज की यांत्रिकता, बाजारूपन एवं व्यक्ति के संवेदनहीन होते जाने की समस्या को उकेरती ये कविताएँ विकासशील भारत के एकपक्षीय विकास को रेखांकित करते हुए जीवन से साहित्य एवं संस्कृति के लुप्त हो जाने पर चिन्ता भी प्रकट करती हैं।
समकालीन जीवन को अपनी कविता का विषय बनाता कवि इन कविताओं में समय के दर्द को भी चित्रित करता है और आधुनिक जीवन की आकुलताओं-व्याकुलताओं को एक नया स्वर देता है। ये स्वर यथार्थ की तह तक जाने के स्वर हैं, जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद के स्वर हैं, दैनिक जीवन के गणित के स्वर हैं, व्यवस्था के स्वर हैं और समाज के मार्मिक प्रसंगों के स्वर हैं।
इन कविताओं का खासतौर पर देखने लायक पक्ष ये है कि आधुनिक जीवन-शैली के अनुसार कवि की कविताओं के छंद भी आधुनिक हैं। छंदों में उतार है, चढ़ाव है, लहर है, प्रवाह है, किन्तु इस सबके बावजूद कविताएँ बारम्बार गाँव के सुख-दुःख की ओर लौट आती हैं। गाँव के नदी-नालों, खेत-खलिहानों की ओर लौट आती हैं।
समाज और राजनीति में व्याप्त झूठ-फरेब, लूट-खसोट, अत्याचार-अनाचार से क्षुब्ध कवि अपनी स्पष्ट एवं बेबाक पंक्तियों से राजनेताओं को आगाह करते हुए किसी भी समाज की मुक्तिकामी चेतना को ऊर्जस्वित करने का प्रयास भी करता है.
ISBN: 9789348157911
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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खेत में अच्छा और काग़ज़ पर ख़राब लिखने की आत्म-स्वीकृति उसी कवि के यहाँ सम्भव है जो कविता करने के मुक़ाबले किसानी करने को बड़ा मूल्य मानता हो यानी जो कविता का किसान बनने के लिए तैयार हो। उसकी कविताओं में जहाँ-तहाँ बिखरी हुई तमाम घोषणाएँ, मसलन यह कि—मैं ऐसी कविताएँ लिखता हूँ/जो लौटकर कभी कवि के पास नहीं आतीं, कहीं से दम्भप्रेरित या अविश्वसनीय नहीं लगतीं। कवि और कविता के सम्बन्धों की छानबीन करने की ज़रूरत की तरफ़ इशारा करती हुई इन कविताओं में छिपी हुई चुनौती पर आज की आलोचना को ग़ौर करना चाहिए।
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