Seepiyaan
Author:
Javed AkhtarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry1 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
कबीर, तुलसी, वृंद, रहीम और बिहारी आदि कवियों ने सदियों पहले अपनी गहरी अन्तर्दृष्टि और मानव-स्वभाव की समझ की बुनियाद पर कुछ बातें कहीं, और इसके लिए उन्होंने कविता का जो रूप चुना, वह था—दोहा। दो पंक्तियों में गुँथी-गठी एक सम्पूर्ण कविता जो तीर की तरह जाकर हमारी चेतना में गड़ जाती है।
सैकड़ों सालों से ये दोहे हमारे साथ रहते आए हैं, कभी ये हमें हमारी ख़ामियाँ दिखाते हैं, कभी हमारे रहबर बन जाते हैं, और कभी कोई ऐसा सच बता जाते हैं जिसे हमारी दुनियावी निगाह देखकर भी नहीं देखती।
‘सीपियाँ’ में जावेद अख़्तर ने ऐसे ही कुछ दोहों को चुनकर उनके भीतर छिपे सत्य को आमफ़हम ज़बान में हर किसी के लिए सुलभ कर दिया है। जो बातें इनसे निकलकर आई हैं वे आज भी उतनी ही सच हैं, आज भी उतनी ही उपयोगी हैं, जितनी उस समय थीं, और आगे भी उतनी ही सार्थक रहेंगी।
जावेद अख़्तर हमारी आज की रोज़मर्रा ज़िन्दगी से उन्हें जोड़ते हैं और बताते हैं कि कैसे उन पर अमल करके, उनसे मिलनेवाली सीख को अपनाकर हम ख़ुद को बेहतर इनसान और अपनी दुनिया को एक बेहतर समाज बना सकते हैं।
ISBN: 9789360867867
Pages: 296
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Sukh Ko Bhi Dukh Hota Hai
- Author Name:
Shruti Kushwaha
- Book Type:

- Description: श्रुति की कविता का मानवीकरण किया जाए तो वह दिखेगी कच्ची लकड़ी के धुएँ से घिरी उस स्त्री की तरह जो जीवन का बुझता चूल्हा पूरे प्राणपण से फूँके जा रही है। कभी इधर से उचकुन लगाती, कभी उधर से यानी कभी इस ध्रुवान्त से, कभी उस ध्रुवान्त से और अन्त में उसकी धौंकनी देखती है कि आग तो दोनों ध्रुवान्तों के बीच से निकलती ऊर्ध्वमुखी हुई जा रही है। न इस अतिरेक में, न उसमें बल्कि उस सम्यक् दृष्टि में जो बुद्ध और गांधी की है : ‘जिन्होंने दुख दिया/उनके लिए अतिरिक्त उदार’, ‘जब भी मिलूँ ख़ुद से, आँखें नीची न हों’, ‘छोड़ना सबसे आसान हो जब, तब रोक लेना उसे’, ‘कड़वी बात निगल जाएँ बुख़ार की गोली की तरह’—इस तरह के कई आप्त वाक्य मिलेंगे इस संग्रह में जो यह सिद्ध करते हैं कि वैयक्तिक नैतिकता में इनकी आस्था है और ये बख़ूबी समझती हैं कि स्वयं में आचरणगत परिवर्तन घटित किए बिना कोई स्थायी परिवेशगत परिवर्तन असम्भव है। इस महीन प्रज्ञा पारमिता के बिना जीवन का गम्भीर सत्य अदेखा ही छूट जाता है—‘माँ की कोख’ और ‘पेड़ की जड़ों’ की तरह। जो भी ‘बत्तीस दिसम्बर’ को घटना है, यानी कि कभी नहीं घटना, उस बदलाव में और जो ‘रेगुलेटर’ से मौसम सँवारता है, उस परिवर्तन में कवि की आस्था नहीं है। वह हैरान है यह देखकर कि दुनिया ने चकित होना छोड़ दिया है, जबकि उसके लिए तो प्रकृति से निःशब्द ध्वनियाँ सीखने का सिलसिला ख़त्म ही नहीं होता। तभी तो उसके लिए पूरी पृथ्वी ही प्रेमपत्र है। वाक् संयम और कुछ प्रसिद्ध कविताओं से अन्तःपाठीय संवाद इस संग्रह को एक अलग खनक देते हैं। —अनामिका
Pratinidhi kavitayen : Arun Kamal
- Author Name:
Arun Kamal
- Book Type:

-
Description:
अरुण कमल की कविता का उर्वर प्रदेश लगभग पाँच दशकों में फैला हुआ है। अरुण कमल की कविता में उस अभिनव काव्य-सम्भावना का आद्यक्षर और उसका पूरा ककहरा दिखाई पड़ता है, जिससे हिन्दी कविता का नया चेहरा आकार लेता प्रतीत होता है। अरुण कमल की कविता की बहुत बड़ी विशेषज्ञता वह अपनत्व है जो बहुत हद तक उनके व्यक्तित्व का ही हिस्सा है। उनकी कविताओं से होकर गुज़रना एक अत्यन्त आत्मीय स्वजन
के साथ एक अविस्मरणीय यात्रा है। अरुण कमल की कविताएँ एक साथ अनुभवजन्य हैं और अनुभवसुलभ। अनछुए बिम्ब, अभिन्न पर कुछ अलग से, अरुण कमल के काव्य-जगत में सहज ही ध्यान खींचते हैं और अपने समकालीनों में उन्हें एक अलग पहचान देते हैं। अरुण कमल की सबसे सधी कविताओं में अनन्य अर्थगौरव और अनुगूँज है। यह अर्थगुरुता या अर्थगहनता जिससे कविता पन्ने पर जहाँ ख़त्म होती है, वहाँ ख़त्म नहीं होती बल्कि अपने अर्थ और असर की अनुगूँजों से पढ़ने, सुननेवालों के मन-मानस में अपने को फिर से सृजित करती है। कवि का सतत सृजन-कर्म उसकी इसी अप्रतिहत विकास-यात्रा के प्रति आश्वस्त करता है।
Padhiye To Aankh Paaiye
- Author Name:
Ramkumar Krishak
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी ग़ज़ल को उर्दू की पारम्परिक ग़ज़ल से अलग अपनी पहचान देनेवालों में रामकुमार कृषक का विशिष्ट स्थान है। वृहत्तर सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों और विचार के गद्यात्मक विस्तार को उन्होंने जिस हुनर से ग़ज़ल में बाँधा, वह उन्हें हिन्दी के अग्रणी ग़ज़लकारों की पक्ति में ला देता है।
तत्सम, तद्भव और आम बोलचाल की शब्दावली में कही गई उनकी ग़ज़लों में उनके विशिष्ट भाषा-व्यवहार के अलावा वह सघर्ष भी दिखाई देता है जिससे हर ईमानदार रचनाकार अपने अनुभव को शब्द देते समय गुज़रता है। अपनी बात को उसकी समग्र त्वरा के साथ पाठक तक सम्प्रेषित करने के लिए वे कई बार नए ढंग के अपने रदीफ़ व काफ़ियों से ग़ज़ल की विधागत सीमाओं को विस्तृत भी करते हैं; लेकिन कहीं भी ग़ज़ल के अनुशासन को भंग नहीं होने देते, न उसकी उस तरलता को जो ग़ज़ल की लोकप्रियता का आधार रही है।
इस संग्रह में उनकी 1978 से अब तक की चुनिन्दा ग़ज़लें संकलित हैं जो सिर्फ़ रचनाकार के रूप में उनके विकास-क्रम को ही नहीं दर्शातीं, बल्कि इस पूरे अन्तराल में फैले हमारे सामाजिक-राजनीतिक इतिहास का भावनात्मक रोज़नामचा भी पेश करती हैं। समाज में लगातार बढ़ती ग़ैरबराबरी, लोकतांत्रिक मूल्यों से विचलन, सत्ता और सत्ताधारियों का लगातार विकृत होता चरित्र, धार्मिक आस्थाओं के दुरुपयोग, बाज़ार का आतंकी विस्तार और उसके बरक्स रोज़ और असहाय, और अकेला होता मनुष्य; यानी ऐसा कुछ भी नहीं है जो पिछले चार दशक के दौरान देश के आम आदमी ने झेला हो और रामकुमार कृषक ने उसे अपनी ग़ज़ल में अंकित न किया हो।
हिन्दी ग़ज़ल को एक समर्थतर और स्वायत्त विधा मानने वालों के लिए इन ग़ज़लों से गुज़रना ज़रूरी है।
Pratinidhi Shairy : Akbar Allahabadi
- Author Name:
Akbar Allahabadi
- Book Type:

-
Description:
1851 की जंगे–आज़ादी में हिन्दुस्तानियों की हार के बाद उर्दू अदब में शुरू होनेवाले रेनासाँ में ‘अकबर’ इलाहाबादी का नाम सफ़े–अव्वल के शायरों में गिना जाता है। धर्म पर आधारित इस रेनासाँ की सारी विशेषताएँ ‘अकबर’ के यहाँ पूरी स्पष्टता के साथ देखी जा सकती हैं।
‘अकबर’ के कलाम की एक विशेषता और भी है। उन्होंने अपनी शायरी की शुरुआत संजीदा रवायती शायरी के साथ की थी। वही गुलो–बुलबुल, वही साग़ रो–मीना, वही शीरीं–फ़रहाद, वही शमा और परवाना रवायती शायरी के सारे प्रतीक ‘अकबर’ की शुरुआती शायरी में नज़र आते हैं। लेकिन अकबर इसी रवायत पर क़ायम रहे होते तो तय है कि वे मामूली दर्जे के सैकड़ों शायरों में बस एक होते।
लेकिन ख़ुशनसीबी कि ऐसा नहीं हुआ। जल्द ही अकबर ने अपनी एक अलग राह बना ली और वे हास्य–व्यंग्य के पहले प्रमुख शायर के रूप में जल्वागर हुए। यूँ तो जाफ़र, मीर, सौदा, ग़ालिब और दूसरे शायरों के यहाँ हास्य और व्यंग्य की सुन्दर छटाएँ देखने को मिलती हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी बाक़ायदा हास्य–व्यंग्य का शायर नहीं कहा जा सकता। ये ‘अकबर’ थे जिन्होंने उर्दू शायरी में अपनी बात कहने के लिए हास्य–व्यंग्य का सहारा लिया और एक ऐसी नई रवायत की बुनियाद डाली जो आज तक फल–फूल रही है।
विचारधारा के स्तर पर देखें तो पश्चिमी ज्ञान–विज्ञान और पश्चिमी सभ्यता का जितना भारी विरोध ‘अकबर’ के यहाँ दिखाई देता है, उतना किसी और शायर के यहाँ नहीं दिखाई देता। इसी तरह ‘अकबर’ धार्मिक और सामाजिक सुधार के भी विरोधी थे। बदलते हुए हालात में ‘अकबर’ की शिकस्त लाज़मी थी और कहीं हास्य के साथ और कहीं दु:ख के साथ उन्होंने अपनी इस शिकस्त का इज़हार भी किया है। लेकिन इस नकारात्मक पहलू के अन्दर जो सकारात्मक तत्त्व मौजूद हैं, सावधानी के साथ उनकी निशानदेही किए बिना ‘अकबर’ के साथ इंसाफ़ करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
Shahar Aur Shikayaten
- Author Name:
Prakriti Kargeti
- Book Type:

-
Description:
प्रकृति की कविताएँ अपने समकालीनों से कई मायनों में अलग प्रतीत होती हैं। सबसे ज़्यादा ध्यान खींचती है उनकी भाषा की सहजता। वह एक ऐसी भाषा की रचना करती हैं जो अपने कथ्य के साथ-साथ अपनी सम्भावना को खोलती है। यह किसी और के द्वारा पहले सिद्ध कर ली गई भाषा नहीं है जिसे उन्होंने अपनी बात कहने के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया। यह भाषा कविता के साथ-साथ बनती है।
कथ्य इन कविताओं को कहीं भी मिल जाता है, अनुभव के संसार का कोई भी ऐसा तिनका जो अपनी लय से उखड़ा नज़र आए, उनकी कविता का विषय हो जाता है। जो चीज़ अलग से दिखाई देती है, वह यह कि इन कविताओं में पढ़ी हुई कविताओं की छवियाँ दिखाई नहीं देतीं। अपनी भाषा की तरह ये कविताएँ ज़मीन भी अपनी ही चुनती हैं। वह स्वाभाविक गति से अपना रास्ता तय करती हैं, प्राकृतिक ढंग से अपने आसपास के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं को आने देती हैं। एकदम अनलोडेड।
इन कविताओं के पास अपनी बहुत स्वाभाविक शिकायतें हैं जिनके जवाब उन्हें अपने समय और अपने समाज से चाहिए। वह न ख़ुद कोई विमर्श गढ़ती हैं न चाहती लगती हैं कि उन्हें जो जवाब दिए जाएँ वे 'फासिलाइज्ड' विमर्शों के निष्कर्ष हों।
ये बेचैनियाँ, असहमतियाँ, और उनसे उपजी ये कविताएँ हमें शुरू से शुरू करने के लिए आमंत्रित करती हैं। जैसे कह रही हों कि चीज़ों के हल देखने में अगर बहुत सुगठित, सुन्दर और ललित नहीं हैं तो भी चलेगा, पर उनका जीवन की लय को बदलने में सक्षम होना ज़रूरी है।
Ek Din Lautegi Ladki
- Author Name:
Gagan Gill
- Book Type:

-
Description:
‘एक दिन लौटेगी लड़की’ गगन गिल का पहला कविता-संग्रह है। आज भी यह कविताएँ अपनी दृढ़ता और शब्द-संयम से आने वाले परिष्कार का बोध कराती हैं जो उनके बाद के काम में फलीभूत भी हुआ।
गगन की इन कविताओं में स्त्री-मन का एक अनुशासित लेकिन भव्य संशय और दुःखबोध है, जो अभी तक रूढ़ि नहीं बना। इन कविताओं के रचाव का रंग बड़ी सहजता से कहीं गहन और कहीं धीमा होता चलता है, ऊपर से चढ़ाया कोई रोग़न इनमें लगभग नहीं है। इसलिए इन कविताओं में भावों का गठन और विकास गगन का एकदम अपना भी है, और हमारे समय में एक स्त्री की अवस्थिति की खुरदुरी सचाइयों का आईना भी! उदासी का मतलब यहाँ पूरी चारित्रिक दृढ़ता से एक ऐतिहासिक सच से रू-ब-रू होना है—रूखी हृदयहीनता या पीड़ा का विलास नहीं।
इतिहास गगन की परवर्ती कविताओं में दुःख, निर्लिप्तता, राग और विराग के सन्दर्भों में बार-बार आया है। उत्कट मोह और उत्कट वीतरागिता से भरे ब्यौरे उनमें यत्र-तत्र ऐतिहासिक अवशेषों की मार्मिक और आतंकित करने वाली भव्यता के साथ बिखरे हुए हैं। इतिहास के या किन्हीं शब्दातीत अनुभवों को बड़ी कुशलता से उद्दीप्त कर पाने की गगन की क्षमता यहाँ पहले-पहल अपने अँखुए खोल रही है।
गगन के पास पंजाब की भाषा के, इतिहास के गहरे संस्कार हैं। कई मध्ययुगीन ऐतिहासिक अनुभवों-दुःस्वप्नों की टापें इसीलिए कई बार अचानक इन कविताओं में हमें सुनाई देती हैं। शब्दों की यह आह्वानात्मक ताक़त गगन के गद्य में भी है, और पद्य में भी।
सच्चे और सही मायनों में यह विवेक की कविताएँ हैं, काल को वामन-डगों से मापती हुईं।
—मृणाल पांडे
Pallav
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

-
Description:
‘पल्लव’ बिलकुल नए काव्य-गुणों को लेकर हिन्दी-साहित्य जगत में आया...पंत में कल्पना शब्दों के चुनाव से ही शुरू होती है। छन्दों के निर्वाचन और परिवर्तन में भी वह व्यक्त होती है। उसका प्रवाह अत्यन्त शक्तिशाली है। इसके साथ जब प्रकृति और मानव-सौन्दर्य के प्रति कवि के बालकोचित औत्सुक्य और कुतूहल के भावों का सम्मिलन होता है तो ऐसे सौन्दर्य की सृष्टि होती है जो पुराने काव्य के रसिकों के निकट परिचित नहीं होता। कम संवेदनशील पुराने सहृदय इस नई कविता से बिदक उठे थे और अधिक संवेदनशील सहृदय प्रसन्न हुए थे। पल्लव के भावों की अभिव्यक्ति में अद्भुत सरलता और ईमानदारी थी। कवि बँधी रूढ़ियों के प्रति कठोर नहीं है, उसने उनके प्रति व्यंग्य और उपहास का प्रहार नहीं किया, पर वह उनकी बाहरी बातों की उपेक्षा करके अन्तराल में स्थित सहज सौन्दर्य की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट करता है। मनुष्य के कोमल स्वभाव, बालिका के अकृत्रिम प्रीति-स्निग्ध हृदय और प्रकृति के विराट और विपुल रूपों में अन्तर्निहित शोभा का ऐसा हृदयहारी चित्रण उन दिनों अन्यत्र नहीं देखा गया।’’
—आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
Pratinidhi Kavitayen : Gajanan Madhav Muktibodh
- Author Name:
Gajanan Madhav Muktibodh
- Book Type:

-
Description:
मुक्तिबोध की कविता अपने समय का जीवित इतिहास है : वैसे ही, जैसे अपने समय में कबीर, तुलसी और निराला की कविता। हमारे समय का यथार्थ उनकी कविता में पूरे कलात्मक सन्तुलन के साथ मौजूद है। उनकी कल्पना वर्तमान से सीधे टकराती है, जिसे हम फन्तासी की शक्ल में देखते हैं। नई कविता की पायेदार पहचान बनकर भी उनकी कविता उससे आगे निकल जाती है, क्योंकि समकालीन जीवन के हॉरर की तीव्रतम अभिव्यक्ति के बावजूद वह एक गहरे आत्मविश्वास की उपज है। चीज़ों को वे मार्क्सवादी नज़रिए से देखते हैं, इसीलिए उनकी कविताएँ सामाजिक यथार्थ के परस्पर गुम्फित तत्त्वों और उनके गतिशील यथार्थ की पहचान कराने में समर्थ हैं। वे आज की तमाम अमानवीयता
के विरुद्ध मनुष्य की अन्तिम विजय का भरोसा दिलाती हैं। इस संग्रह में, जिसे मुक्तिबोध और उनके साहित्यिक अवदान की गहरी पहचान रखनेवाले सुपरिचित कवि, समीक्षक
श्री अशोक वाजपेयी ने संकलित-सम्पादित किया है, उनकी प्रायः वे सभी कविताएँ संगृहीत हैं, जिनके लिए वे बहुचर्चित हुए हैं, और जो प्रगतिशील हिन्दी कविता की पुख़्ता पहचान बनी हुई है।
Sapno Ka Dhuan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
‘सपनों का धुआँ’ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की आज़ादी के बाद लिखी गई कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में दिनकर जी की उन कविताओं को संकलित किया गया है, जिनमें समकालीन स्थितियों के प्रति उनकी भावनात्मक प्रतिक्रिया सशक्त रूप में प्रस्फुटित हुई है। इस पुस्तक में जहाँ एक तरफ़ स्वराज से फूटनेवाली आशा की धूप और उसके विरुद्ध जन्मे हुए असन्तोष का धुआँ कविताओं में प्रतिबिम्बित होता है, वहीं दूसरी ओर एक विदुषी को लिखा गया कवि का गीत-पुंज भी है, जो कवि के गहन चिन्तन की दस्तावेज़ के रूप में हमारे सामने आता है।
मन-मस्तिष्क को उद्वेलित करनेवाली ये कविताएँ सभी पाठकों के लिए उपादेय हैं।
Ishq hai Surma-e-Deewanagi
- Author Name:
Shah Niyaz Ahmad Barelvi
- Book Type:

- Description: शाह नियाज़ अहमद साहब के फ़ारसी, उर्दू और हिन्दवी कलाम का संग्रह पहली बार हिंदी पाठकों के समक्ष आ रहा है, जिस में शाह नियाज़ अहमद बरेलवी द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध कलाम शामिल हैं. किताब का संपादन सुमन मिश्र ने किया है..
Media Monthon
- Author Name:
Dr. Mukesh Kumar
- Book Type:

- Description: Book
Jeevan Ke Din
- Author Name:
Prabhat
- Book Type:

-
Description:
ये लोक में टहलती हुई कविताएँ हैं। इन्होंने शहर की मुख्यधारा से सिर्फ़ लिपि उठाई है, बाक़ी सब इनका अपना है। नागर मुख्यधारा में रहते-बहते न इन कविताओं को रचा जा सकता है, न पढ़ा जा सकता है। इन्हें लिखने के लिए धीमी हवा की तरह बहते पानी की सतह जैसा मन चाहिए होता है, जो निश्चय ही कवि के पास है। कवि ने इन कविताओं को जैसे धीरे-धीरे उड़ती चिडिय़ों के पंखों से फिसलते ही अपनी भाषा की पारदर्शी प्याली में थाम लिया है, और फिर काग़ज़ पर सहेज दिया है। इनमें दु:ख भी है, सुख भी है, अभाव भी है, प्रेम भी, बिछोह भी, जीवन भी और मृत्यु भी, और इन कविताओं को पढ़ते हुए वे सब प्रकृति के स्वभाव जितने नामालूम ढंग से, बिना कोई शोर मचाए हमारे आसपास साँस लेने लगते हैं। यही इन कविताओं की विशेषता है कि ये अपनी विषयवस्तु के साथ इस तरह एकमेक हैं कि आप इनका विश्लेषण परम्परागत समीक्षा-औज़ारों से नहीं कर सकते। ये अपने आप में सम्पूर्ण हैं; और जिस चित्र, जिस अनुभव को आप तक पहुँचाने के लिए उठती हैं, उसे बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के जस का तस आपके इर्द-गिर्द तम्बू की तरह तान देती हैं, और अनजाने आप अगली साँस उसकी हवा में लेते हैं।
संग्रह की एक कविता ‘गड़रिये’ जैसे इन कविताओं के मिज़ाज को व्यक्त करती है—‘वे निर्जन में रहते हैं/ इनसानों की संगत के वे उतने अभ्यस्त नहीं हैं जितने प्रकृति की संगत के/...वे झाड़ों के सामने खुलते हैं/वे झिट्टियों के लाल-पीले बेरों से बतियाते हैं/...वे आकाश में पैदल-पैदल जा रही बारिश के पीछे-पीछे/दूर तक जाते हैं अपने रेवड़ सहित...’
ये कविताएँ अपने परिवेश के समूचेपन में पैदल-पैदल चलते हुए सुच्चे फूलों की तरह जुटाई गई कविताएँ हैं; जिनका प्रतिरोध, जिनकी असहमति उनके होने-भर से रेखांकित होती है। वे एक वाचाल समाज को थिर, निर्निमेष दृष्टि से देखते हुए उसे उसकी व्यर्थता के प्रति सजग कर देती हैं, और उसके दम्भ को सन्देह से भर देती हैं।
Bachi Hui Prithavi
- Author Name:
Leeladhar Jagudi
- Book Type:

-
Description:
नई कविता के सशक्त कवि लीलाधर जगूड़ी का एक उल्लेखनीय संग्रह है—‘बची हुई पृथ्वी’। इस संग्रह की कविताएँ पाठकों को शब्दों की चित्रात्मकता से प्रभावित भी करेंगी और जीवन की नई अर्थवत्ता से सम्मोहित भी।
ये कविताएँ शाब्दिक कलाबाज़ियों से मुक्त और जीवन के सही सन्दर्भों से जुड़ी हुई हैं। इन कविताओं में रचनाकार का प्रश्न गौण हो जाता है और कविताएँ स्वतः जीवन का कड़वा यथार्थ भोगती नज़र आती हैं, प्रतीक ख़ुद-ब-ख़ुद बोलने लगते हैं, शब्द मस्तिष्क पर छा जाते हैं और कथ्य हृदय को सहज ही स्पर्श करने लगता है। पाठक महसूस करेंगे कि ये कविताएँ बहुत कुछ कहनेवाले मौन की तरह मुखर हैं; जिनमें मानवीय संवेदनाएँ भी हैं, विवशताओं का त्रिकोण भी है और इस नियति को अस्वीकार करती मनःस्थितियों का आक्रोश भी।
प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में कवि अँधेरे और सन्नाटे से घिरी अपनी ‘बची हुई पृथ्वी’ पर इसलिए उगने को अधीर प्रतीत होता है कि उसके अन्दर ‘जूझने’ का हौसला भी है ताकि आसपास की ‘वर्तमान पृथ्वी’ उसे इसीलिए आकर्षक लगी है कि वह ‘मिट्टी की गन्ध’ से भरी है।
Clouds and Curses
- Author Name:
Amayraa Sahatiya
- Rating:
- Book Type:

- Description: a 20-year-old woman makes her debut as an author with clouds and curses, which contains a few sensitive topics. while hoping that the book holds you like the hugs you have been craving for, the poems are the unspoken words of the small-town girl, amayraa. she says, ‘this book is a cathartic attempt for me to get it all out. the things i have experienced, observed and heard are the poems in this book. “clouds and curses” is my medium of expression. i live for art, and it’s the purest way to unfold the essence of who i am.’
Pichhale Prishth Se Aage…
- Author Name:
Narayan Kulkarni Kavthekar
- Book Type:

-
Description:
मराठी के प्रसिद्ध कवि नारायण कुलकर्णी कवठेकर के काव्य-संग्रह ‘मागील पानावरून पुढे सुरू...’ का हिन्दी अनुवाद है—‘पिछले पृष्ठ से आगे...’।
संग्रह की कविताएँ देश की समकालीन परिस्थितियों पर नई शैली में प्रकाश डालती हैं। यह नई शैली हिन्दी पाठकों को निश्चय ही कवि की भावनाओं की उत्कट प्रतीति कराएगी। यह काव्य-संग्रह मनुष्य को असहाय, विवश एवं संत्रस्त बनानेवाली व्यवस्था के विरुद्ध एक प्रतिभावान कवि का कारगर हस्तक्षेप है।
न्यायिक प्रक्रिया का खोखलापन, सरकारी नीतियों की अशाश्वतता, सरकारी योजनाओं का ग़लत कार्यान्वयन, व्यवस्था द्वारा किए जानेवाले विकास के ग़लत दावे एवं फ़तवे, कलाकारों की बाधित स्वतंत्रता, प्रभावहीन नेताओं के नक़ली चेहरे, प्राकृतिक तत्त्वों की बेशुमार लूट, किसानों एवं आदिवासियों की छीछालेदर, उन पर बरसनेवाले आसमानी एवं सुल्तानी संकट, महिलाओं पर हो रहे निर्मम अत्याचार आदि कितने ही विषय हैं जिनको ज़मीनी यथार्थ के अधिकाधिक पहलुओं समेत प्रस्तुत कर कवि ने अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया है।
कवि द्वारा समस्या की जड़ तक जाने, उसके अछूते पहलुओं को उभारने तथा उक्ति, सूक्ति, स्वभावोक्ति, वक्रोक्ति, व्यंग्योक्ति आदि अभिव्यक्ति के सभी स्तरों पर नए प्रयोग करने से प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में हम असाधारण ताज़गी एवं जीवन्तता का अनुभव कर सकते हैं।
Kavita Ka Shuklapaksh
- Author Name:
Bachchan Singh
- Book Type:

-
Description:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ सिर्फ़ इसलिए हिन्दी का एक गौरव ग्रन्थ नहीं है कि उसने पहली बार साहित्य की समग्र परम्परा का एक वयस्क और उत्तरदायी परिप्रेक्ष्य से निदर्शन कराया, बल्कि इसलिए भी कि उसमें शुक्ल जी की गहरी रसिकता, सावधान और सटीक पहचान और सजग सुरुचि से चुनी हुई कविताओं या कवितांशों का एक विलक्षण संकलन भी है।
इस संकलन से शुक्ल जी का निजी रागबोध और काव्य-दृष्टि प्रगट होती है, साथ ही हिन्दी कविता-संसार की जटिल लम्बी परिवर्तन-कथा भी शुक्ल जी के विश्लेषण और चयन से विन्यस्त होती है। महत्त्वपूर्ण आलोचक डॉ. बच्चन सिंह ने अपने सहकर्मी डॉ. अवधेश प्रधान के साथ शुक्ल जी के चयन के आधार पर हिन्दी की एक ‘गोल्डन ट्रेजरी’ एकत्र की है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह हिन्दी काव्य की, छायावाद-पूर्व की सम्पदा से आकलित, एक रत्न-मंजूषा है। इस संकलन की एक और विशेषता की ओर भी ध्यान देना चाहिए—कविताओं में रूप का नैरन्तर्य और परिवर्तन। कुछ लोगों का विचार है कि साहित्य का इतिहास रूपों और उनके परिवर्तन का इतिहास होता है। शुक्ल जी को यह एकांगिता स्वीकार्य नहीं है। शुरू से ही रूपों के नैरन्तर्य, परिष्कार और परिवर्तन के प्रति वे सतर्क हैं। इन परिवर्तनों को वे कभी शब्द-शक्तियों के आधार पर, कभी क्रियारूपों और लय के आधार पर पहचानते हैं। इसमें केवल ‘श्रेष्ठ’ और ‘प्रिय’ का मनचाहा संकलन नहीं है, बल्कि ‘विविध’ और ‘प्रतिनिधि’ का सावधान चयन है जिसमें उत्कृष्ट काव्य-खंडों के साथ कुछ कमज़ोर काव्य-प्रयोग भी है जिनका ऐतिहासिक मूल्य है—काव्य-वस्तु और काव्य-भाषा के विकास की दृष्टि से। इसमें सफल काव्य-सृष्टि की ‘सिद्धावस्था’ के साथ असफल काव्य-प्रयत्नों की ‘साधनावस्था’ भी मौजूद है।
इस इतिहास-यात्रा में जगमगाते शिखरों के साथ कुछ गुमनाम घाटियाँ भी शामिल हैं। आप केवल ‘इतिहास’ में उद्धृत काव्य-रचनाओं को एक क्रम में देख जाएँ तो हिन्दी काव्यधारा का एक व्यापक और प्रतिनिधिमूलक गतिशील प्रवाह-चित्र सामने आ जाता है। यह संचयन ऐसी ही विविधवर्णी चित्रमाला है।
Beautiful Poem (Series-4)
- Author Name:
Dr.Sanjay Rout
- Book Type:

- Description: A beautiful collection of poetry by renowned author Dr.Sanjay Rout. This book is written in simple language, which is easy to understand. The content is supreme and very useful for the people who want to improve their thoughts and understand various things
Kagaz Par Aag
- Author Name:
Vasant Sakargaye
- Book Type:

-
Description:
‘निर्भयता एक ज़िद है/हर डर के विरुद्ध’ कहने वाले वसंत सकरगाए अपनी कविताओं में इस निर्भयता को पूरी ज़िद के साथ निभाते भी हैं। सफ़ेदपोश समाज के अँधेरे कोने हों या राजनीति की दम्भी और जन-निरपेक्ष मुद्राएँ, उनका कवि अपनी बात बिना किसी डर के और साफ़-साफ़ शब्दों में कहता है।
इस संग्रह में शामिल वे कविताएँ जो उन्होंने देश के वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए लिखीं; उनके सरोकारों को भी दिखाती हैं, और उनकी निडरता को भी रेखांकित करती हैं। ‘बुलडोजर हमारा राष्ट्रीय यंत्र’, ‘पत्र वापसी के लिए आवेदन-पत्र’, ‘मेरे घर छापा पड़ा’ और ‘कान’ जैसी कविताएँ बताती हैं कि कवि ने इक्कीसवीं सदी के भारत के राजनीतिक-सामाजिक समय को कितनी स्पष्ट पक्षधरता और पीड़ा के साथ लेकिन बिना किसी भय के देखा है। उनकी इन जैसी कविताओं का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ कवि अरुण कमल कहते हैं कि “ये कविताएँ ब्रेष्ट और नागार्जुन की याद दिलाती हैं और सिद्ध करती हैं कि सही समझ, निर्भीकता और ईमानदारी से ही प्रतिरोध संभव है।”
प्रकृति, लोक, जन-गण की बोली-भाषा और उनमें रचे-बसे जीवन को वे जैसे वर्तमान की भयावहता के समक्ष एक विकल्प की तरह लेकर चलते हैं; और कवि के अपने संसार को भी जो उनके लिए एक सम्पूर्ण जगत है। आलोचक विजय बहादुर सिंह के शब्दों में “कविता ज़मीन की ही चिन्ता न करे बल्कि ज़मीन से अँखुवे की तरह फूटे और लहलहाए भी..., यह आपका कवि करता है।... अच्छा लगा कि आप कोई भंगिमा लेकर नहीं बल्कि जीवन के गवाह कवि के रूप में आते हैं।”
यह संग्रह निश्चय ही बृहत् हिन्दी समाज का ध्यान आकर्षित करेगा।
Khudai Mein Hinsa
- Author Name:
Badri Narayan
- Book Type:

-
Description:
छोटे शहरों के रचनाकारों के बड़े केन्द्रों में उत्प्रवास और उनके मनोजगत में केन्द्र के सर्वग्रासी प्रसार और आधिपत्य के इस भयावह दौर में बद्री नारायण की कविता गुलाब के बरक्स कुकुरमुत्ते के बिम्ब को रचनेवाली काव्य-परम्परा का विस्तार है। यह एक ऐसा समय है जब केन्द्र अपने अभिमत का उत्पादन ही नहीं कर रहा है, उसका प्रसार भी कर रहा है। वह कुछ हद तक अपनी मान्यताओं से अलग दिखती धारणाओं और काव्य-भंगिमाओं को भी लील जाने को आतुर है। इसलिए कोई भी अन्य काव्य-भंगिमा उसके लिए असहनीय हो गई है। वह तर्क से या कुतर्क से उसे ख़ारिज कर देने पर आमादा है। यह समय कविता-परिदृश्य के आन्तरिक जनतंत्र को बचाने के कठिन संघर्ष का समय है। बद्री नारायण की कविता वस्तुतः जनतांत्रिक समय में एक संवादी नागरिक होने की इच्छा की कविता है। वह सीमान्त पर खड़े समुद्र से बात करने की इच्छा और कोशिश की कविता है। वह अपेक्षाओं और उसकी सीमा को जानती है। उसमें सपनों और आकांक्षाओं के पूरा न हो पाने की उदासी है लेकिन यह कविता अपने को उस कवि की वंश परम्परा से जोड़ना चाहती है जिसका गीत मछुआरों की बस्ती के बाहर गोल बनाकर बैठी स्त्रियाँ गाती हैं।
बद्री नारायण की कविता भारतीय समाज के निम्न वर्ग के ऐसे मिथकों, आख्यानों और इतिहास के अलक्षित सन्दर्भों के पास जाती है जिनमें उनकी पीड़ाएँ, अवसाद और संघर्ष की अदीठ रह गई गाथाएँ छिपी हैं। बद्री नारायण की कविता में वर्चस्वशाली शक्तियों द्वारा स्वीकृति प्राप्त कर चुके प्रचलित मिथक लगभग नहीं हैं। अप्रचलित मिथकीय आख्यानों का पुनर्पाठ करने की कोशिश भी यहाँ नहीं है। इन कविताओं में तो ऐसी जातियों और मानव-समूहों के अपने आख्यानों और जन-इतिहासों के चरित्र और गाथाएँ हैं जो उत्पादन की गतिविधियों से जुड़े होने के बावजूद समाज की परिधि पर नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। बद्री नारायण की कविता उन बहुसंख्य मानव समूहों के सपनों, आकांक्षाओं, उनकी कमज़ोरियों और उनकी शक्ति का भाष्य तैयार करती है। वस्तुतः कवि का काव्य-व्यवहार ही इस कविता की राजनीति का साक्ष्य है।
ये कविताएँ, कहा जा सकता है कि हमारे समाज के बहुजन की थेरी गाथाएँ हैं।
Umang-3
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
- Book Type:

- Description: जितने कवि हिन्दी के काव्याकाश में चमकते हुए दीख पड़े, सौन्दर्य के सुख-स्पर्श जादू से जिन्होंने मन को वशीभूत कर लिया तथा प्रकाश और दृष्टि दी, श्री गोपाल सिंह नेपाली उन्हीं में से एक हैं। —सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सोई उमंग उठ जाग, जाग जीवन से क्यों इतना विराग भावों की मादकता, मोहकता, आशा, विश्वास और महत्वाकांक्षाओं से भरी ‘उमंग’ की ये कविताएँ गोपाल सिंह नेपाली की काव्य-विशेषताओं को एक अलग आलोक में प्रकाशित करती हैं। अपनी तरफ से इन कविताओं की भाव-भूमि का परिचय देते हुए नेपाली जी बताते हैं कि कविता के इस रूप तक आने से पहले वे ब्रजभाषा की कोमल-कान्त पदावली, उमर खय्याम की हाला और उर्दू शायरी की उदासी तक भी होकर आए, लेकिन कविता का जो रूप उन्हें जँचा वह यही है जो उनके इन गीतों और कविताओं में साकार हुआ। कविता का यह रूप उमंग का है, प्रेरणा का है, समकालीन यथार्थ को समझने, उसे अंकित करने और उसमें परिवर्तन की चाह का है। प्रकृति को सम्बोधित उनके गीत-कविताएँ हमें अपने स्थूल व सूक्ष्म संसार को सुदूर अन्तरिक्ष के भीतर तक खोलने को आमंत्रित करते हैं, और सामाजिक सन्दर्भों की कविताएँ फौरन हालात को बदल देने को प्रेरित करती हैं। ‘किरण’ कविता की यह पंक्तियाँ चलती है कितना मन्थर तिरछी विद्युत-रेखा सी/आती है वह मेरे घर नक्षत्र-लोक की वासी कितनी कोमलता से हमें अखिल सृष्टि से जोड़ देती हैं। इस संग्रह की सभी कविताएँ इसी तरह आपकी चेतना को आयत्त कर लेती हैं।
Customer Reviews
3 out of 5
Book
Be the first to write a review...