Bachi Hui Prithavi
Author:
Leeladhar JagudiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Unavailable
नई कविता के सशक्त कवि लीलाधर जगूड़ी का एक उल्लेखनीय संग्रह है—‘बची हुई पृथ्वी’। इस संग्रह की कविताएँ पाठकों को शब्दों की चित्रात्मकता से प्रभावित भी करेंगी और जीवन की नई अर्थवत्ता से सम्मोहित भी।</p>
<p>ये कविताएँ शाब्दिक कलाबाज़ियों से मुक्त और जीवन के सही सन्दर्भों से जुड़ी हुई हैं। इन कविताओं में रचनाकार का प्रश्न गौण हो जाता है और कविताएँ स्वतः जीवन का कड़वा यथार्थ भोगती नज़र आती हैं, प्रतीक ख़ुद-ब-ख़ुद बोलने लगते हैं, शब्द मस्तिष्क पर छा जाते हैं और कथ्य हृदय को सहज ही स्पर्श करने लगता है। पाठक महसूस करेंगे कि ये कविताएँ बहुत कुछ कहनेवाले मौन की तरह मुखर हैं; जिनमें मानवीय संवेदनाएँ भी हैं, विवशताओं का त्रिकोण भी है और इस नियति को अस्वीकार करती मनःस्थितियों का आक्रोश भी।</p>
<p>प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में कवि अँधेरे और सन्नाटे से घिरी अपनी ‘बची हुई पृथ्वी’ पर इसलिए उगने को अधीर प्रतीत होता है कि उसके अन्दर ‘जूझने’ का हौसला भी है ताकि आसपास की ‘वर्तमान पृथ्वी’ उसे इसीलिए आकर्षक लगी है कि वह ‘मिट्टी की गन्ध’ से भरी है।
ISBN: 9788171784097
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Sampurna Soorsagar : Vols. 1-5
- Author Name:
Soordas
- Book Type:

- Description: अष्टछाप वाले प्रसिद्ध सूरदास, महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे। यह जन्मान्ध थे जो दिल्ली और मथुरा के बीच जनमेजय के नागयज्ञ स्थल पर सीही में पैदा हुए थे। इनका जीवन-काल सम्भवत: सं. 1535 से 1640 वि. है। यह परसौली में रहते थे और गोवर्धनगिरि पर स्थापित श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन किया करते थे। यह स्वयं 'सूरसागर' कहे जाते थे और इनके कीर्तन पदों का संग्रह भी 'सूरसागर' कहलाया। इसमें केवल 'कृष्णलीला' के पद हैं। यह कृष्ण लीलात्मक ‘सूरसागर’ है। इसके प्रथम खंड में विनय के पद, गोकुल लीला एवं वृंदावन लीला के कुल 1100 पद हैं। डॉ. के इस महा कार्य ने सूर सम्बन्धी समय-समय पर उठी सभी समस्याओं का समाधान कर दिया है। एक अनुपम और अद्वितीय टीका के साथ बेहद महत्त्वपूर्ण कृति।
Lava
- Author Name:
Javed Akhtar
- Book Type:

- Description: लावा कुछ बिछड़ने के भी तरीक़े हैं खैर, जाने दो जो गया जैसे थकन से चूर पास आया था इसके गिरा सोते में मुझपर ये शजर क्यों इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में ढूँढ़ता फिरा उसको वो नगर-नगर तन्हा आज वो भी बिछड़ गया हमसे चलिए, ये क़िस्सा भी तमाम हुआ ढलकी शानों से हर यक़ीं की क़बा ज़िंदगी ले रही है अंगड़ाई पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत पैरों की बेताबियाँ पानी के अंदर देखिए बहुत आसान है पहचान इसकी अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है जो मंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा कि हमने देर लगा दी पलटके आने में आज फिर दिल है कुछ उदास-उदास देखिए आज याद आए कौन न कोई इश्क़ है बाक़ी न कोई परचम है लोग दीवाने भला किसके सबब से हो जाएँ
Sampoorna Kavitayein : Kumar Vikal
- Author Name:
Kumar Vikal
- Book Type:

-
Description:
कुमार विकल राजनीतिक कवि हैं। उनकी कविता पढ़ते हुए पाठकों को स्वाधीनता के बाद की भारतीय राजनीति की कुछ अत्यन्त भयावह वास्तविकताओं और त्रासद स्थितियों की संवेदनशील पहचान मिलती है। उनकी कविताओं में आपातकाल के गहरे आतंक के दिल दहलाने वाले चित्र हैं, नक्सलबाड़ी आन्दोलन के ख़ूँख़्वार दमन की विभीषिका की अभिव्यक्ति है और पंजाब में आतंक के राज से उपजी दहशत की ख़बरें हैं। लेकिन वे राजनीतिक घटनाओं के ब्यौरों पर नहीं, उनके सामाजिक अभिप्राय, जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभाव और मनुष्य के लिए उनके अर्थ के बारे में लिखते हैं।
इन कविताओं से गुज़रते हुए यह भी मालूम होता है कि कुमार विकल को हर तरह के छद्म और पाखंड से चिढ़ है; वह चाहे समाज में हो, साहित्य में हो या रचना की भाषा में। इस छद्म को उघाड़ने की वे बार-बार कोशिश करते हैं। उन्हें कविता की ताक़त पर बहुत भरोसा रहा इसलिए उन्होंने नए अनुभवों, नए अर्थों और नए भाषिक रचाव के लिए संघर्ष करनेवाली कविताएँ लिखीं, लेकिन वे अपने समय और समाज में कविता की सीमाएँ भी जानते थे, इसलिए ‘अपनी कविता से बाहर’ ‘कविता से कोई बड़ा हथियार’ गढ़ने की बात भी करते हैं।
कुमार विकल की कविता एक बेचैन मन की कविता है। यह बेचैनी जितनी राजनीतिक है उतनी ही नैतिक भी है। वे एक ओर भारत में फैलते वनतंत्र में साधारण आदमी को लगातार असुरक्षित देखकर बेचैन होते हैं तो दूसरी ओर सुरक्षा की चाहत के शिकार मनुष्य की मरती हुई मनुष्यता भी उन्हें व्याकुल करती है!
उनकी सम्पूर्ण कविताओं की यह प्रस्तुति निश्चय ही कविता-प्रेमी पाठकों के लिए एक उत्तेजक अनुभव सिद्ध होगी।
Tulsi Rachnawali Vol-1
- Author Name:
Dr. Ramji Tiwari
- Book Type:

- Description: गोस्वामी तुलसीदास की विलक्षण प्रतिभा से प्रसूत अनंत काव्य-कीर्ति-कौमुदी में स्नात होकर समस्त विश्व के काव्य-रसिक धन्य, रससिक्त और श्रद्धानवत होते रहे हैं, किंतु सभी के दृष्टि-पथ में 'रामचरितमानस' ही आकाशदीप की भाँति विराजमान है। अन्य ग्रंथरत्न छायावेष्टित ही रह जाते हैं। जबकि लोक-परलोक चिंतन, व्यावहारिक चेतन जीवन और अध्यात्मबोध, संस्कृति और संस्कार, संघर्ष और आस्था तथा जय और पराजय से युक्त विलक्षण व्यक्तित्व उनके सभी ग्रंथ-रत्नों को देखने के बाद ही सगुण साकार हो पाता है। संस्कारशील और सुरुचि-संपन्न पाठक भी इस विश्वकवि के संपूर्ण वाड्मय का रसास्वादन कर लेने के बाद ही पूर्ण परितोष का लाभ ले पाता है। गोस्वामीजी के सभी ग्रंथरत्नों को एकत्र उपलब्ध कराने के पुनीत उद्देश्य से ही इस 'रचनावली' की योजना बनाई गई है। ग्रंथावली का प्रथम खंड सुविज्ञ पाठकों को समर्पित है। इसमें गोस्वामीजी की 'रामलला नहछू', 'वैराग्य संदीपनी', 'बरवै रामायण', 'जानकी मंगल', 'पार्वती मंगल', 'रामाज्ञा-प्रश्न', 'दोहावली', 'श्रीकृष्ण गीतावली' कृतियों का समावेश है। आशा है, सुधी पाठकों को अभीप्सित परितोष मिल सकेगा।
Ber Bheelani Ke
- Author Name:
Siyaram Mishra
- Book Type:

- Description: बेर भीलनी के' काव्य की रचना खण्डशः हुई है। राम-कथा में भीलनी का प्रसंग युग सापेक्ष तथा मनोनुकूल प्रतीत होता है। भगवान् राम ने दरिद्रनारायण भक्त को गले से लगाया, अपने कर-कमलों से उसके आँसू पोंछे तथा द्रवीभूत हुए इसका सम्पूर्ण जीवन्त निदर्शन भीलनी प्रसंग में प्राप्त हो जाता है। शूद्रा भीलनी के प्रति राम की करुणा,धर्म का अस्पष्ट रूप तथा राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने की ललक, तथा लोकेषणा इन सब तत्त्वों ने मिलकर 'बेर भीलनी के' खण्ड काव्य के सृजन को बल प्रदान किया है। प्रत्येक रचना का अपना एक प्रयोजन हुआ करता है। रचना के पीछे भी निश्चित ही प्रयोजन-दृष्टि रहती है। इसमें निम्नवर्ग की एक साधारण स्त्री के आत्मिक एवं आध्यात्मिक संघर्ष की ऐसी कथा है, जो रामायण के शीर्षस्थ पात्रों, चरित्रों में भी अपनी पहचान बनाये रखती है। रामायण में प्रयुक्त अन्य साधारण पात्र, अपनी प्रयुक्ति के बाद रचना के गतिशील फलक में विलीन हो जाते हैं परन्तु शबरी जिस क्षण वाल्मीकि के द्वारा राम-गाथा में प्रयुक्त होती है उस समय तक वह अत्यन्त उच्च भाव-भूमि प्राप्त किये हुए होती है। रचनात्मक प्रयुक्ति के क्षण में शबरी के लिए राम स्वतन्त्र सत्ता नहीं है। साधना की यह परावस्था ही शबरी को सारे रामायणकालीन पात्रों में विशिष्ट बनाती है। कवि की मानवीय दृष्टि ने ही शबरी के साधारणत्व को असाधारणत्व प्रदान किया। जिस युग की यह कथा है उस समय सामाजिक स्तर पर भले ही वर्ण-व्यवस्था का विधान रहा हो पर व्यक्ति, कर्म के द्वारा वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा कर सकता था। 'बेर भीलनी के' की कथा में भी यही वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा है। यह ठीक है कि इसके लिए व्यक्ति को संघर्ष करना ही होता था। जिस समाज में हम रह रहे हैं उसमें वर्ग-व्यवस्था प्रधान है। वर्ग-मुक्त होने की हमारी सबसे प्रमुख समस्या है। सामाजिक वर्ग-व्यवस्था और वैयक्तिक कर्म विधान में एकता की चेष्टा सदा से कवि, विचारक, दार्शनिक और सधारक होते आये हैं। आज की वर्ग-व्यवस्था वाली सामाजिकता का श्रम-विधान के द्वारा सुलझाने की चेष्टा निरन्तर की जा रही है। हमारा समाज श्रम और कर्म दोनों ही क्षेत्रों में वैसे ही भटक गया है जैसे कि तपते मरुस्थल में कोई साथी खो जाता है। 'इस छोटे से खण्डकाव्य में मैं अपनी बात को केवल संकेत में ही कह सका हूँ क्योकि मुख्य रूप से इसे किसी इतर प्रयोजन के लिए ही मुझसे लिखवाया गया, छन्दोबद्ध भी लिखा तथा रचना की संरचना में वैचारिकता भी कम ही आने दी। फिर भी अपने मूल प्रयोजन में यह रचना भी मेरे कवि का उतना ही प्रतिनिधित्व करती है जितनी की अन्य काव्य-कृतियाँ।
TaLash
- Author Name:
Piyush Daiya
- Book Type:

- Description: पीयूष की ये कविताएँ वेदना की सान्द्र निजता को कुछ इस तरह रच रही हैं, जहाँ पाठक उसे अपने अनुभव, स्मृति और कल्पनाशीलता में मुक्त भाव से पा सके। विषयी और विषय को देखते-महसूस करते, थोड़ा बहुत अपने अनुभवों की भाषा में जानते पाठक पाता है कि यहाँ वेदना की प्रगाढ़ता, जो सहज भाव से किसी अन्तरंग की मृत्यु से जुड़ी महसूस होती है, एक तरह की स्वरता भी अपने में समोए है। यह प्रशान्त और गम्भीर स्वरता ही इन्हें पाठक के अन्तर्मन तक पहुँचाती है। संरचना की ज़ाहिर भिन्नता का कारण भी सम्भवतः यही है कि कहने, सहने, रहने, जीने के अन्दर कहीं वह मरना भी शामिल है, जिसके अ-भाव को, भाव की ऐसी धीर और इसी धीरता से सम्पृक्त ऐसी अनेक स्वरीय ललित भाषा में कहा जा सके, जो दु:ख की इस प्रगाढ़ता को दो टूक आर्थी स्तर पर कहने की औसत सांसारिकता या सामाजिकता से भिन्न है। वेदना और अस्ति-चिन्ता का आत्मानुभवी एहसास इसकी गति-प्रकृति और शिल्प में प्रयोगधर्मिता को निरा खेल बनने से रोकते हैं—इसलिए ही यहाँ पाठ का मुक्त अवकाश बिलकुल ही अलग और मौलिक है। इतने निकट से ‘मृत्यु’ के अनुभवों को सामने लाती इन कविताओं में ‘दु:ख’ उस तरह से वाचाल नहीं लगता कि उसे तात्कालिक भावुक प्रतिक्रिया की तरह देखा जा सके। शायद रचने के दौरान या कि रचना-प्रक्रिया में कविता की अपनी परम्परा की स्मृति की सक्रियता भी रही हो, कला की अपनी भाषा को स्वायत्त करने की ऐसी चेष्टा भी, जो उसे दु:ख के निरे आत्म-प्रकाशन से थोड़ा अलग कर सके। इन कविताओं में प्रतिबिम्बित करते बिम्बों की जगह, एक तरह की पारिवारिक स्थानिकता है, जो इसकी भाषा की सर्जनात्मकता का उत्स और आधार दोनों है। और यही वजह है कि इसमें जीवन और मृत्यु युगपद चित्रों की तरह, बल्कि गतिमान चित्रों की तरह गति करती लगती है। —प्रभात त्रिपाठी
MUJHE UDNA HAI
- Author Name:
Arjun Singh Negi
- Book Type:

- Description: Collection of Poems
Lamhoon Ki Oot Se
- Author Name:
Richa Dixit
- Book Type:

- Description: "Lamhon ki Oot se" means expressions of feelings that have surpassed, felt hard and deep at heart, in the various moments (lamhe) in life by everyone or the other being…… It's a Hindi poetry and Shayari collection; the verses are emotions of Melancholy, love, sadness, life etc.; the poetry is in Hindi n coupled with some lovely words of Urdu, the verses symbolise pain, harmony, love, broken heart, and all such moments which some of the other time have been a part of everyone’s life or feelings that have come across every common heart. While reading, one feels relativity to some of the other feelings of theirs. People loving poetry should not miss this one. Richa Dixit is a Hindi poet who, although coming up with her first book, already has a good reader base on her Facebook pages, “writing is meditating” and “Lamhon Ki Oot Se”, from the last three years. However, she works in HR but also has a passion for poetry. Scratching some rough lines in childhood, to passionate poetry and shayri writer …. this is what made this “Lamhon ki Oot Se” get its presence. For her, it’s a small giving to the poetry lovers' world.
Swachchhand
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

-
Description:
कविश्री सुमित्रानंदन पंत का काव्य-संसार अत्यन्त विस्तृत और भव्य है। प्रायः काव्य-रसिकों के लिए इसके प्रत्येक कोने-अँतरे को जान पाना कठिन होता है। पंत जी की काव्य-सृष्टि में, किसी भी श्रेष्ठ कवि की तरह ही, स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठता के शिखरों के दर्शन होते हैं, नवीन काव्य-भावों के अभ्यास का ऊबड़-खाबड़, निचाट मैदान भी मिलता है और अवरुद्ध काव्य-प्रयासों के गड्ढे भी। किन्तु किसी कवि के स्वभाव को जानने के लिए यह आवश्यक होता है कि यत्नपूर्वक ही नहीं, रुचिपूर्वक भी उसके काव्य-संसार की यात्रा की जाए। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने पंत जी के बारे में लिखा कि आरम्भ में उनकी प्रवृत्ति इस जग-जीवन से अपने लिए सौन्दर्य का चयन करने की थी, आगे चलकर उनकी कविताओं में इस सौन्दर्य की सम्पूर्ण मानव जाति तक व्याप्ति की आकांक्षा प्रकट होने लगी। प्रकृति, प्रेम, लोक और समाज-विषय कोई भी हो, पंत-दृष्टि हर जगह उस सौन्दर्य का उद्घाटन करना चाहती है, जो प्रायः जीवन से बहिष्कृत रहता है। वह उतने तक स्वयं को सीमित नहीं करती, उस सौन्दर्य को एक मूल्य के रूप में अर्जित करने का यत्न करती है।
सुमित्रानंदन पंत की जन्मशती के अवसर पर उनकी विपुल काव्य-सम्पदा से एक नया संचयन तैयार करना पंत जी के बाद विकसित होती हुई काव्य-रुचि का व्यापक अर्थ में अपने पूर्ववर्ती के साथ एक नए प्रकार का सम्बन्ध बनाने का उपक्रम है। यह चयन पंत जी के अन्तिम दौर की कविताओं के इर्द-गिर्द ही नहीं घूमता, जो काल की दृष्टि से हमारे अधिक निकट हैं; बल्कि उनके बिलकुल आरम्भिक काल की कविताओं से लेकर अन्तिम दौर तक की कविताओं के विस्तार को समेटने की चेष्टा करता है। चयन के पीछे पंत जी को किसी राजनीतिक-सामाजिक विचारधारा, किसी नई नैतिक-दार्शनिक, दृष्टि जैसे काव्य-बाह्य दबाव में नए ढंग से प्रस्तुत करने की प्रेरणा नहीं है—यह एक नई शताब्दी और सहस्राब्दी की उषा वेला में मनुष्य की उस आदिम, साथ ही चिरनवीन सौन्दर्याकांक्षा का स्मरण है, पंत जी जैसे कवि जिसे प्रत्येक युग में आश्चर्यजनक शिल्प की तरह गढ़ जाते हैं।
किसी कवि की जन्मशती के अवसर पर परवर्ती पीढ़ी की इससे अच्छी श्रद्धांजलि क्या हो सकती है कि वह उसे अपने लिए सौन्दर्यात्मक विधि से समकालीन करे। पंत-शती के उपलक्ष्य में उनकी कविताओं के संचयन को ‘स्वच्छंद’ कहने के पीछे मात्र पंत जी की नहीं, साहित्य मात्र की मूल प्रवृत्ति की ओर भी संकेत है। संचयन में कालक्रम के स्थान पर एक नया अदृश्य क्रम दिया गया है, जिसमें कवि-दृष्टि, प्रकृति, मानव-मन, व्यक्तिगत जीवन, लोक और समाज के बीच संचरण करते हुए अपना एक कवि-दर्शन तैयार करती है। ‘स्वच्छन्द’ के माध्यम से पंत जी के प्रति विस्मरण का प्रत्याख्यान तो है ही, इस बात को नए ढंग से चिह्नित भी करना है कि जैसे प्रकृति का सौन्दर्य प्रत्येक भिन्न दृष्टि के लिए विशिष्ट है, वैसे ही कवि-संसार का सौन्दर्य भी अशेष है, जिसे नई दृष्टि अपने लिए विशिष्ट प्रकार से उपलब्ध करती है।
Chautha Shabda
- Author Name:
Parmanand Srivastav
- Book Type:

-
Description:
‘उजली हँसी के छोर पर’ (1960) और ‘अगली शताब्दी के बारे में’ (1981) संग्रहों के बाद परमानंद श्रीवास्तव की कविताओं का तीसरा संग्रह ‘चौथा शब्द’ एक दशक से कुछ अधिक के अन्तराल पर प्रकाशित हो रहा है। कविता के इतिहास में यह बीता हुआ दशक कविता के लिए ही कठिन समय बनकर उपस्थित नहीं हुआ, शब्द या अभिव्यक्ति के सभी रूपों और माध्यमों के लिए और सबसे अधिक मानवीय अस्तित्व के लिए, मनुष्य द्वारा अर्जित समस्त मूल्य सम्पदा के लिए चुनौती बनकर उपस्थित हुआ। यह दौर बीता नहीं है बल्कि आज और अधिक भयावह प्रश्नों और शंकाओं से घिरा है। परमानंद श्रीवास्तव ने कविता के बाहर भी शब्द के पक्ष में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में, मानवीय मूल्यों के पक्ष में लगातार संघर्ष किया है और कविता के भीतर भी धीमी शान्त ऐन्द्रिकता, राग संवेदना और जीवन के प्रति सहज आसक्ति मात्र से सन्तुष्ट न होकर ऐसा उत्तेजक नाटकीय
शिल्प विकसित किया है जो कविता के पाठकों के रूप में अपने समाज के प्रति सीधा सम्बोधन है।
परमानंद श्रीवास्तव के इस संग्रह में ‘इन दिनों’, ‘साध्वियों’, ‘बटोर’ जैसी कविताएँ अपने कठिनतम समय के मुख्य संकट को न किसी शब्द-छल से छिपाती हैं, न ख़तरनाक ताक़तों को सीधे लक्ष्य करने से बचती हैं। इसके बाद भी परमानंद श्रीवास्तव कविता के अपने विन्यास या रूप-तंत्र के प्रति कितने सजग हैं, इसका अनुमान सहज ही किया जा सकता है। ‘चौथा शब्द’ में उनका अनुभव-संसार अधिक विस्तृत है और स्थितियों, चरित्रों तथा समय की त्रासदियों को देखने-समझने की दृष्टि भी अधिक विकसित और सचेत है। ‘वह अघाया हुआ आदमी‘, ‘फ़ुर्सत में’, ‘अपरिचित', ‘सहपाठी मिले एक दिन’ जैसी कविताएँ एक तरह के कथातन्तु का आश्रय लेती हैं जबकि ‘स्त्री सुबोधनी’ जैसी कविता मानवीय अनुभव और भाषा के स्रोतों तक जाने के लिए एक विलक्षण लोकरंग प्राप्त करती है। स्त्री की यातना के अनुभव प्रत्यक्ष कई कविताओं मे दर्ज हैं। यह कविता भी उसी अनुभव को अतीत की यातनापूर्ण यादों में जोड़कर देखने की सार्थक कोशिश है। परिप्रेक्ष्य-सम्पन्न कविताओं के लिए यह संग्रह ज़रूर ही पाठकों के बीच देर तक चर्चा में रहेगा और शायद आनेवाली कविता का संकेत भी देगा।
Dakchal Samay Par Rekh
- Author Name:
Krishnamohan Jha 'Mohan'
- Book Type:

- Description: कृष्णमोहन झा 'मोहन' जीवनक जाहि मोड़ पर अपन बेस अनुभवी कनहा पर कविता केँ उठाक' मैथिली साहित्यक दुनिया मे प्रवेश कयलनि ओइ उमेर तक अबैत-अबैत सामान्य कवि हाँफ' लगैत अछि आ बेसी सँ बेसी अपना केँ दोहराब' लगैत अछि; मुदा मोहन जीक पहिल संग्रह 'ग्लोबल गाम सँ अबैत हकार' पढ़िक' बुझायल जे अपन युगक प्रश्न सँ गाँथल एवं राजनीतिक रूप सँ सचेत ओ एक टा एहेन प्रश्नाकुल कवि छथि जिनक चेतना ग्लोबल सँ ल'क' लोकल धरिक गूँज-अनुगूँज सुनबा लेल उत्सुक छनि।... ओइ दृष्टि सँ ई दोसर संग्रह हिनक पहिल संग्रहक विस्तार एवं पूरक प्रतीत होइत अछि। आइ कविता आ ओकर परिसर मे जे नाना प्रकारक विमर्शक हल्ला सुनाय पड़ैत अछि ओकर अइ संग्रह मे अनुपस्थिति एवं तकरा जगह पर भूमण्डलीकृत दुनिया मे गाम-घरक करुण नियति केँ अनुरेखित करब कृष्णमोहन जीक राजनीतिक समझ छियनि। एकैसम शताब्दीक तेसर दशकक आरंभ मे जीवन-स्थिति तँ एहेन विकट बनि गेल छै जे हिनका सदति 'सोहारीक त'र सँ बजार हुलकी' दैत देखार दै छनि। अइ विध्वंसक वास्तविकताक आगू हिनक कवि बेसी आशावादी बन' मे समर्थ नइँ छनि, मुदा किछु बरख पहिने हकार बनिक' जे दुख लोकक जीवन मे प्रवेश कयने छल ओकर चाँगुर सँ दकचल समय पर अपन रेख खिंचबाक प्रयत्न अइ संग्रहक कविता मे लक्षित कयल जा सकैत अछि। दूरसंचारक विस्फोटक कारणें आइ जीवनक सब क्षेत्र मे एक टा अरुचिकर एकरूपता व्याप्त अछि, जइ सँ कवितो बचल नहि अछि। बिनु अनुभवक एक टा रेडीमेड काव्यबोध प्राय: कविक रचना मे हेलैत देखार दैत अछि। खुशीक बात ई जे कृष्णमोहन झा 'मोहन' अनुभूत संसार सँ अपन अभिव्यक्ति केँ मार्मिक ओ प्रामाणिक बनबैत छथि एवं समकालीन मैथिली कविता केँ अपना तरहें समृद्ध करैत छथि। —कृष्णमोहन झा, सिलचर
Rekhte Ke Beej Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
Krishna Kalpit
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी कविता के परिदृश्य में कृष्ण कल्पित की जगह एकदम अलग और विशिष्ट है। बहैसियत कवि उन्हें जितनी चिन्ता अपने समय और समाज की है, उतने ही गम्भीर वे नागरिक परिसर में कविता के स्थान, उसकी भूमिका और व्यक्तित्व को लेकर भी बराबर रहते हैं। भाषा और भाषिक साहस के धनी ऐसे कम ही रचनाकार आज हमारे सामने हैं। बकौल देवी प्रसाद मिश्र, ‘दुस्साहस, असहमति, आवेश, अन्वेषण, पुकार, आह, ताक़त का विरोध, शिल्प-वैविध्य, नैतिक जासूसी और बाजदफ़ा पॉलिटिकली इनकरेक्ट—इस सबने मिलकर कृष्ण कल्पित को हमारे समय का सबसे विकट काव्य-व्यक्तित्व बना दिया है।’
इस संग्रह में शामिल कविता ‘रेख़्ते के बीज’, अगर अन्य कविताओं को फ़िलहाल न भी देखें, तो अकेली ही उनके सामर्थ्य को रेखांकित करने के लिए काफ़ी है। शिव किशोर तिवारी के अनुसार, ‘आगामी समयों में 'रेख़्ते के बीज’ को उत्तर-आधुनिकता की प्रतिनिधि कविता के रूप में उद्धृत किया जाएगा। शंभु गुप्त का कहना है कि ‘उनके अलावा अन्य कोई कवि इतिहास को इतने मौजूँ तरीक़े से पुनराख्यायित नहीं कर पाता जैसा उन्होंने सम्भव किया है।’ स्वीकृति और अस्वीकृति की पतली रेखा पर चलते हुए वे अकसर अपनी मेधा और निर्भीकता से समकालीन साहित्य-जगत को विचलित भी करते हैं, लेकिन उनकी कविता हर आपत्ति से बड़ी ही सिद्ध होती है। युवा कवि अविनाश मिश्र के शब्दों में, ‘एक योग्य कवि की उपेक्षा उसे पराक्रमी बनाती चलती है। कृष्ण कल्पित ने शिल्प से आक्रान्त और शब्द से आडम्बर किए बग़ैर हिन्दी कविता में एक असन्तुलन पैदा किया है। उनकी कविता पूरब की कविता की नई प्रस्तावना है।'
Chahne Ki Adat Hai
- Author Name:
Parul Singh
- Book Type:

- Description: This book has no description
Dasht Mein Dariya
- Author Name:
Sheen Kaf Nizam
- Book Type:

-
Description:
निज़ाम साहब का काव्य मैंने पढ़ा भी है उनके गहन-गम्भीर स्वर में सुना भी और इस अनुभव से बार-बार आप्यायित हुआ हूँ।
निज़ाम साहब की कविताएँ मुझे सबसे पहले इसीलिए आकृष्ट करती हैं कि वे भारतीय रचनाएँ हैं। जिस संवेदन संसार में वे हमें आमंत्रित करती हैं, वह हमारा जाना-पहचाना है और उसमें वह बड़ी सहजता से प्रवेश करते हैं। फिर जो देश-काल उनकी रचनाओं में गूँजता है, वह भी हमारा अपना सुपरिचित देश-काल है। हमें अपने को यह याद नहीं दिलाना पड़ता कि हम किसी सुन्दर मगर पराए बग़ीचे में झाँक रहे हैं।
निज़ाम साहब के काव्य में एक और बात मुझे विशेष आकृष्ट करती है; वह है उसमें भावना और विचार का विलक्षण सामंजस्य। निज़ाम दूर की कौड़ी लानेवाले या उड़ती चिड़िया के पर काटनेवाले शायर नहीं हैं। चमत्कारी बात उनकी अभीष्ट नहीं है। सीधा-साधा मानवीय सत्य कितना बड़ा चमत्कार होता है, यह वह जानते हैं, और उसी को अपने भीतर से पाना, उसी को दूसरे के भीतर उतार देना उनका अभीष्ट है।
ग़ज़ल के स्वभाव में ही यह चीज़ है कि उसका एक-एक शे’र विचार अथवा भाव वस्तु की दृष्टि से एक मुक्तक होता है : लय अथवा तुक इन मुक्तकों को शृंखलित करती चलती है। विचारों अथवा भावों के जगत में मुक्त आसंगों की-सी एक निरायास यात्रा होती रहे, इस उद्देश्य की पूर्ति निज़ाम की ग़ज़लें भी बख़ूबी करती हैं। कभी-कभी तो एक ही शे’र पढ़कर पाठक गहरे में छुआ जाकर देर तक वहीँ निःस्तब्ध रुका रह सकता है—ग़ज़ल इसकी छूट देती है।
मेरा विश्वास है कि निज़ाम साहब का यह संग्रह हिन्दी जगत में दूर-दूर तक पढ़ा जाएगा और सम्मान पाएगा; इतना ही नहीं, वह एक बहुत बड़े पाठक वर्ग का अपना हो जाएगा; अपना, आत्मीय और सखावत सहज आनन्द देनेवाला।
—अज्ञेय (भूमिका से)।
Sonak Pijra
- Author Name:
Baidyanath Mishra
- Book Type:

- Description: मानव-दुर्दशाक बढ़ैत परिमाण, मानव-मूल्यक खुल्लमखुल्ला अपमानक वातावरण सँ मुक्तिक कामना हरदम सँ जन-आकांक्षा रहलए। कविताक लेल ई आकांक्षा, जीवन-राग छी जे पीड़ा आ कचोटक ताल पर बजैत रहैए। वैद्यनाथ मिश्रक कविता अही कचकैत पीड़ाक माझ सँ गमन करैए। आइ जाहि तथाकथित 'जनतांत्रिक व्यवस्था' सँ शासित छी हमरा लोकनि, ताहि मे पद-प्राप्ति होइते 'सेवक' अधिनायक भ' जाइए, भाग्य-विधाता बनि जाइए। अपेक्षा करैए जे ओकरा सँ जन-अधिकारक बात नइँ कयल जाए। कोनो प्रश्न नइँ पूछल जाए। कर्तव्यक चर्चा नइँ कयल जाए। जन के लेल एकमात्र उपाय छै, ठेहुनिया रोपि दसो नह जोड़ि, अनुनय, विनय, प्रार्थना, मनुहार, चिरौरी कयल जाए—हे प्रभो! (भक्तक) आनंददाता, कनी एम्हरो तकियउ! खाली ओएह सब मनुख नइँ जकर संपत्ति दिनानुदिन विशाल भेल जाइए। बाकी जनता सेहो अही देशक वासी छी... एम्हरो तकियउ... जनतंत्रक नाम पर एहि विकराल बिडम्बना सँ सोझाँ-सोंझी होइत वैद्यनाथ मिश्रक कविता गंहीर उतरैत तीक्ष्ण व्यंग्य मे परिणत भ' जाइए। सूक्ष्म-पर्यवेक्षण आ स्पष्ट संलिप्तता सँ भरल-पुरल वैद्यनाथ मिश्रक कविता, विम्ब-विधानक सरलता सँ अपरूप काव्यानुभूतिक सृष्टि करैए, सोचबाक लेल बिलमबैए आ चेतना केँ हिलकोरैए। वैद्यनाथ मिश्रक कविता स्वयं आ समय सँ साक्षात्कार करबैए। एहि अनुभूतिक लेल पढऩाइ आवश्यक शर्त। —कुणाल
Naaritav
- Author Name:
Preeti pravah
- Book Type:

- Description: Collection of Poems
Ummid Ki Tarah Lautna Tum
- Author Name:
Pankaj Subeer
- Book Type:

- Description: इन कविताओं के बारे में मैं किताब की भूमिका या अपनी बात लिखने से हमेशा परहेज़ करता हूँ, मगर इस किताब के बारे में कुछ लिखना मुझे ज़रूरी लगा, सो लिख रहा हूँ। 8 अप्रैल 2025 को मैंने अपने पिता को हमेशा के लिए खो दिया। किसी व्यक्ति के हमेशा के लिए चले जाने के बाद आप कैसा महसूस करते हैं, यह मेरे लिए पहला अनुभव था। मुझे ऐसा लगा कि मेरे अंदर का एक बड़ा हिस्सा टूट कर खो गया है। मैं अपने अंदर एक प्रकार का सूनापन, एक बड़ी ख़ला को महसूस करने लगा। पिता के जाने के ठीक तीसरे दिन मैं सुबह छह बजे अपनी टेबल पर अन्यमनस्क अवस्था में बैठा हुआ था। एक दिन पहले ही पिता की अस्थियों को नर्मदा में विसर्जित कर के आया था। मेरे सामने काग़ज़ और क़लम रखे हुए थे। मैंने क़लम को उठाया और यूँ ही कुछ लिखना शुरू किया, जो लिखा जा रहा था वह एक कविता जैसा था- 'पिता- तीन दिन बीत गये'। अगले दिन जब फिर बैठा तो फिर एक कविता लिखी... बस उसके बाद सिलसिला चलता रहा... दिनों नहीं बल्कि अगले कुछ महीनों तक... प्रारंभ में कविताएँ पिता पर लिखी गयीं... फिर धीरे-धीरे और विषय जुड़ते चले गये। इस प्रकार इन कविताओं का जन्म हुआ। इस किताब में सात कविताएँ- 'रबाब- एक मुसलसल इश्क़', 'गौतम राजऋषि के लिए', 'लिफ़ाफ़ा', 'ताना-बाना', 'तुम', 'पीली और उदास आँखें' तथा 'विश्वास' मेरी पुरानी कविताएँ हैं, बाक़ी सारी कविताएँ उसी तीन से चार माह की अवधि की हैं। उसे मैं 'जुनून-अवधि' भी कह सकता हूँ। मुझे नहीं पता कि ये कविताएँ भी हैं कि नहीं। मुझे नहीं पता कि इनको इस प्रकार सामने भी लाना चाहिए था अथवा नहीं। मगर अब ये कविताएँ आपके सामने हैं। इनको पढ़ें, और अगर ठीक नहीं लगें तो इनको ख़ारिज कर देने का भी पूरा अधिकार आपके पास है।
Dhoomketu Dhoomil Aur Sathottari Kavita
- Author Name:
Meenakshi Joshi
- Book Type:

-
Description:
कविता जीवन की अभिव्यक्ति है, परन्तु उसकी सार्थकता जीवन से जुड़े रहने पर ही निर्भर है। यदि उसमें जीवन की सौन्दर्यमूलक और संवेदनशील अभिव्यक्ति नहीं है, मात्र काल्पनिकता है तो उसकी सार्थकता सन्दिग्ध हो जाती है। काव्य के माध्यम से सहृदय साहित्यकार अपनी अनुभूतियों को कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त करते रहे हैं और पाठकों ने भी ऐसी अभिव्यक्तियों को सहर्ष स्वीकार किया है। साहित्य की विविध विधाओं में काव्य ही एक ऐसी विधा है, जो आदिकाल से लेकर आज तक सहज और स्वाभाविक रूप में निरन्तर प्रवहमान है। कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अभिव्यक्ति की क्षमता काव्य में होती है। इसीलिए महाकवि कालरिज ने कहा था—कविता श्रेष्ठतम शब्दों का श्रेष्ठतम क्रम में संयोजन है। दोहा, छन्द इसका सशक्त प्रमाण हैं। समय के साथ-साथ काव्य के भाव-बोध, वस्तु और शिल्प में भी परिवर्तन हुए हैं। आधुनिक हिन्दी काव्य में यह परिवर्तन छायावाद से ही परिलक्षित होने लगा था। छायावादी कवियों ने अनुभूतियों की गहराई के साथ ही अभिव्यक्ति को भी प्रांजलता प्रदान की। तदनन्तर प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता का दौर आया। स्वाधीनता के बाद हिन्दी कविता विभिन्न आन्दोलनों के दौर से गुज़रती रही। इन सब आन्दोलनों में साठोत्तरी काव्य के नाम से अभिहित कविता अपने बेबाक चित्रण के कारण आधुनिक हिन्दी काव्य में अपनी एक अलग पहचान बनाने में पूर्णतः सफल हुई है।
साठोत्तरी कविता में धूमिल की रचनाधर्मिता एक अहम् भूमिका रखती है। इनकी कविताओं में कथ्य का ही ठोस धरातल नहीं है, अपितु शिल्प की भी एक नई भंगिमा है। कथ्य, भाषा एवं संरचना की दृष्टि से उन्होंने परम्परागत प्रतिमानों को तोड़कर नए प्रतिमानों की रचना की। उनकी कविताएँ संसद से लेकर सड़क तक बिखरी हैं। भ्रष्ट राजनीति और सामाजिक दिशाहीनता को उन्होंने व्यंग्य और वक्तव्य के माध्यम से अत्यन्त सपाट लहज़े में व्यक्त किया है।
Pani ka Pta Puchh Rahi Thi Machhali
- Author Name:
Kamleshwar Sahu
- Book Type:

- Description: Poems
Uttar Paigamber
- Author Name:
Arun Dev
- Book Type:

- Description: v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main">कौतुकपूर्ण सृजन का अतिरेक आपको उन्मत्त कर सकता है, लेकिन सामूहिक चेतना में जो कुछ भी छिपा रहता है, उसे केवल अनछुए सच का इलाक़ा ही बाहर निकालता है। यह केवल सृजन का विवेक ही है जो इस अनछुए को चमकाता है। सुप्रसिद्ध अवधी कवि मलिक मुहम्मद जायसी पर लिखी अरुण देव की कविता इसी तरह आपको बाँध लेती है। अवधी कविता के इस महाचितेरे कवि जायसी की स्मृतियों को कवि नाना अर्थ छवियों से टहोकता चलता है और जायसी की काव्यात्मक शख़्सियत से जुड़े अनुत्तरित सवालों की तरफ़ हमारा ध्यान खींचता है। अपनी कविताओं—‘चाहत’, ‘रफ़ी के लिए’ और ‘विज्ञापन और औरत’—में अरुण देव समकालीन जीवन के तमाम घुमाव-पेचोख़म को एक साथ पकड़ने की कोशिश करते हैं। नरेटर चिर-परिचित यथार्थ से जूझते हुए उससे परे जाना चाहता है जिसे रोज़ बदलते सामाजिक मूल्यों ने जकड़ रखा है। अरुण देव उबाऊ क़िस्म के लम्बे विवरणों से बचते हैं और उस संवेदनशीलता का ध्रुवीकरण करते चलते हैं जो दमघोंटू नहीं है। कविताओं में कवि विषयासक्ति की चकाचौंध और निरी भावुकता से बचता चलता है। वह हाज़िर जवाब है। स्थिर उबाऊ टेकों के लिए उसके यहाँ कोई जगह नहीं। उसकी कविताएँ चाक्षुष बोध की कविताएँ हैं। विश्लेषी बोध की नहीं। ये कविताएँ हमें यथार्थ से रूबरू कराती चलती हैं और इनमें किसी भी तरह की भावोत्तेजना का घोल नहीं। उनकी तीखी व्यंजनाएँ आत्म-दया में तिरोहित नहीं होतीं और उनकी बहुत–सी कविताएँ प्रेम-बोध की कविताएँ हैं जिनमें शनै:-शनै: प्रेम का स्वर धीमा होता जाता है और मूलभाव उभरकर सामने आता है। अरुण देव की कविताएँ मानव मन की थाह लेती हैं और अपनी व्यंजनाओं में जीवन की विषमताओं को पचाती चलती हैं। उनके लिए कविता ही एकमात्र साधन है जो हमें मुक्त करता है। —शफी किदवई, द हिन्दू
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...