Pratinidhi Kavitayein: Pawan Karan
Author:
Pawan KaranPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
पवन करण की कविताओं में हमें अपनी जानी-पहचानी दुनिया दिखाई देती है, लेकिन ठीक उसी तरतीब में नहीं, जिस तरतीब में हम उसे देखने के आदी हैं। वे उस दुनिया को भीतर से बदल रहे होते हैं; उसकी आन्तरिक बुनावट को उसके अपने ही औज़ारों से नया रूप देते हुए; और एकदम से इतना भी न बदलते हुए कि वह हमें अनजानी लगने लगे, डराने लगे। वे एक सुलझी हुई दृष्टि के साथ और सहानुभूतिपूर्वक हमारे सामाजिक आत्म को न्याय की एक व्यापक संकल्पना से अनुकूलित करते हैं और हमें अपने अन्यायों को देखने में सक्षम बनाते हैं।
स्त्री को उनकी कविता ने एक ऐसी कसौटी के रूप में चीन्हा है जिस पर हमारा वर्तमान और इतिहास, दोनों अपनी मनुष्यता और न्यायबोध को परख सकते हैं। उनकी प्रतिनिधि कविताओं की यह प्रस्तुति उनकी कवि-दृष्टि और काव्य-सामर्थ्य दोनों को समझने में सहायक होगी।
ISBN: 9789360861384
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: सारंग - जीवन के रंगों का इंद्रधनुष "उम्र के हर पड़ाव पर भावनाओं के वेग सेउभरे हुए शब्द मिलकर एक कविता हो गए।" इन्हीं शब्द पंक्तियों का इंद्रधनुष है यह कविता संग्रह। सारंग के अनेक पर्याय हैं • सावन का मोर, • देशभक्ति का जज्बा जगाने वाली भारतीय वायुसेना की हेलीकाप्टर डिस्प्ले टीम, • कोरियाई ड्रामा देखने वाले तो 'सारंग, सारंग हे, नादी सारंग' जानते ही हैं। और भी विभिन्न भावों का इंद्रधनुष है शब्द 'सारंग'। इस कविता संग्रह में कवि ने परिस्थितियों से उत्पन्न जवलन्त भावों को, शब्द रूप देकर, जीवन में ऊर्जात्मक और फलदाई संभावना को पिरोया है - राग सारंग-सा! सारंग - जीवन के रंगों का इंद्रधनुष "उम्र के हर पड़ाव पर भावनाओं के वेग सेउभरे हुए शब्द मिलकर एक कविता हो गए।" इन्हीं शब्द पंक्तियों का इंद्रधनुष है यह कविता संग्रह। सारंग के अनेक पर्याय हैं • सावन का मोर, • देशभक्ति का जज्बा जगाने वाली भारतीय वायुसेना की हेलीकाप्टर डिस्प्ले टीम, • कोरियाई ड्रामा देखने वाले तो 'सारंग, सारंग हे, नादी सारंग' जानते ही हैं। और भी विभिन्न भावों का इंद्रधनुष है शब्द 'सारंग'। इस कविता संग्रह में कवि ने परिस्थितियों से उत्पन्न जवलन्त भावों को, शब्द रूप देकर, जीवन में ऊर्जात्मक और फलदाई संभावना को पिरोया है - राग सारंग-सा!
Mummy Yadi Main Badal Hota
- Author Name:
Rameshraaj
- Book Type:

- Description: विगत पचास वर्षों से साहित्य की सेवा में लीन सुकवि रमेशराज ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनवरत लिखा है। व्यंग्य, लेख, निबंध, लघुकथा, कहानी, गीत, ग़ज़ल से लेकर हाइकु, जनक छंद, रसिया, लांगुरिया, कहमुकरी, चतुष्पदी, कवित्त, घनाक्षरी, दोहे, मुक्तछंद कविताएं, तेवरी, अर्थात् हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर शास्त्रसम्मत तरीके से अपनी क़लम का जादू बिखेरा है। मौलिक प्रयोगों के अंतर्गत लीक से हटकर दो मौलिक छंद -”नव कुंडलिया राज छंद” तथा “सर्प कुंडली राज छंद” भी छंदकाव्य में जोड़े हैं। बच्चों के लिए कविताएं लिखना निस्संदेह एक सरल कार्य नहीं। रमेशराज ने बच्चों के लिए भी खूब गीत कहानियां लिखी हैं। देश के बड़े-बड़े विद्वान साहित्यकारों को लेकर खूब परिचर्चाएं आयोजित की हैं, जिनमें उन्होंने अपने बाल्यकाल की रोचक घटनाओं पर प्रकाश डाला है। अब तक सात बालगीत संग्रह प्रकाशित होने के उपरांत आपका आठवां सद्यः प्रकाशित बालगीत संग्रह-“मम्मी यदि मैं बादल होता” बच्चों को विभिन्न प्रकार से शिक्षित ही नहीं करता, उन्हें गुणी और ज्ञानवान बनाने का एक उत्तम प्रयास भी करता है। एक बच्चा अपनी मम्मी से बादल बनकर सूखते खेतों पर बरसने की बात कहता है तो दूसरा बच्चा अपनी मम्मी के साथ गीता पढ़ने की बात करता है। पुस्तक के बालगीतों में ऐसे भी कई मोहक दृश्य हैं जिनमें बच्चे तुतलाते हुए मीठी-मीठी बातें करते हैं। नकली मूंछें लगाकर दादा जी बनते हैं। गुब्बारों में हवा भरकर उन्हें फोड़ते हैं और आनंदित होते हैं। जामुन आम और मीठे फल खाने के लिए चुपके से पेड़ों पर चढ़ते हैं। अपनी शरारतों पर मम्मी या दादी की डांट खाने से बचने के लिए तरह तरह के बहाने या किस्से गढ़ते हैं। इन गीतों में बच्चों का हमें नटखट स्वभाव ही देखने को नहीं मिलता, बल्कि कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो भविष्य में बड़े होकर देश के लिए सैनिक बनकर सीमाओं पर दुश्मन के दांत खट्टे करने की बात कहते हैं। वे वीर भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल बनना चाहते हैं। शिवाजी की तरह तलवार लेकर अरिदल का विनाश करने की सौगंधें खाते हैं। वे कहते हैं कि संसार को नई रोशनी से जगमग करेंगे। ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाएंगे। सद्भाव का अमृत सबको पिलाएंगे। कुल मिलाकर रमेशराज ने अपने इस बालगीत संग्रह “मम्मी यदि में बादल होता” में बच्चों के अल्हड़ बेफिक्र नटखट बालजीवन को सजीवता प्रदान की है तो दूसरी तरफ उन्हें ऐसा भावी नागरिक बनाने की कोशिश की है जो अपने पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्र के दायित्वों को समझे और उनका पालन करे। ~विनोद भारती 'व्यग्र'
Kahin Koi Darwaja
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

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Description:
अशोक वाजपेयी की 2009 से 2012 के दौरान लिखी गई कविताओं का यह संग्रह फिर उनकी अथक जिजीविषा, सयानी और संयत परिवर्तनशीलता, कविता तथा शब्द की सम्भावना और सीमा को स्पष्टता और निर्भीकता से अंकित करने का सशक्त साक्ष्य है। उनका अदम्य जीवनोल्लास और उतना ही उनके अन्तर में बसा अवसाद फिर शब्द-प्रगट है।
वे अपनी लगभग अकेली और अद्वितीय राह नहीं छोड़ते। उस पर आत्मविश्वास से चलते हुए वे कई अप्रत्याशित मानवीय अभिप्राय और दृश्य उकेरते-खोजते हैं। हमारे समय में अन्तःकरण की विफलता, नागरिकों के लहू-रिसते घाव, सदियों से हिलगी हताश प्रार्थनाएँ, अपने निबिड़ शून्य में सिसकता ब्रह्मांड, चकाचौंध के फिसलन-भरे गलियारों में अनसुना विलाप आदि सभी उनकी कविता में दर्ज हैं पर यह उम्मीद भी कि कहीं कोई दरवाज़ा खुलता है। यह कविता नाउम्मीद अँधेरे से इनकार नहीं करती पर उम्मीद का दामन भी नहीं छोड़ती। यह संग्रह एक वरिष्ठ कवि की एक अधसदी से लम्बी कविता-यात्रा का एक नया और भरोसेमन्द मुकाम है।
Is Yatra Mein
- Author Name:
Leeladhar Jagudi
- Book Type:

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Description:
‘‘लीलाधर जगूड़ी ने अपने दूसरे संग्रह द्वारा हिन्दी कविता में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। यह एक बड़ी बात है। इन कविताओं में जीवन को उसकी समग्रता में पकड़ने की कोशिश है जो इधर के ख्यातिप्राप्त कवि भी नहीं कर पा रहे हैं। या तो वे अपनी भीतरी दुनिया में रमे रहते हैं या बाहरी दुनिया में भटकते रहते हैं। जगूड़ी ने दोनों छोरों को पकड़ा है, साधने की कोशिश की है, किसी एक का निषेध नहीं किया है। दोनों दुनियाओं को जोड़ने का प्रयास उनकी इस संग्रह की कविताओं में अक्सर दीखता है। इससे कवि इनसान की तरह आत्मीय बनता है, पैग़म्बर या क्रान्तिकारी की तरह आस्था और आतंक नहीं जगाता। इस तरह उनका रास्ता धूमिल से अधिक सही है। जगूड़ी की इस यात्रा में अन्तः और बाह्य यात्राओं का विलय है। सच्चे कवि के लिए ये दोनों यात्राएँ अलग नहीं होतीं, केवल उन पर आग्रह घटता-बढ़ता रहता है। अपने अनुभूतिलोक के कारण, प्रतिबद्धता के नाम पर ‘रूपवादी’ और ‘राजनीतिवादी’ उसे एक का होकर रखना चाहते हैं और प्रचारित करते हैं कि दूसरा संसार झूठा है। वास्तविक प्रतिबद्धता अनुभूति की ही प्रतिबद्धता है जिसे कवि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में प्राप्त करता है और उससे बचता नहीं, रचता है।
जगूड़ी की दूसरी विशेषता इन दोनों दुनियाओं को जोड़ने का शिल्प है और तीसरा उनका बड़बोला न होना है। शिल्प के क्षेत्र में उनके बिम्ब फिसलते हुए प्रकृति से इनसान की ओर, इनसान से प्रकृति की ओर आते-जाते हैं। इस यात्रा में कहीं एक जगह रम नहीं जाते।
पेड़ के प्रतीक से जितना अधिक काम उन्होंने लिया है उतना बहुत कम नए कवियों ने लिया है। भाषा उनकी बोलचाल की, सहज है पर उसका प्रयोग वह एक असहज तेवर के साथ करते हैं, जिसकी ज़रूरत उनके जैसे कवियों को नहीं होनी चाहिए। भाषा का आप किसी आग्रह के साथ प्रयोग कर रहे हैं यह पाठक को बता देना कवि की अपनी ताक़त कम कर लेना है। कहीं-कहीं कविता के पूरे विन्यास में न खपने और चौंकाने वाले शब्दों का प्रयोग उन्होंने किया है जो अब उन्हें छोड़ देना चाहिए। कविता के सम्पूर्ण आकर्षण को किसी एक भड़कीले, असहनशील शब्द की ओर नहीं फेरना चाहिए।
लीलाधर जगूड़ी का यह संग्रह ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए।’’
—सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(दिनमान, 13 मई, 1975)
Isi hawa Mein Apni Bhi Do Chaar Sans Hai
- Author Name:
Ashtbhuja Shukla
- Book Type:

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Description:
अष्टभुजा शुक्ल की कविता का यथार्थ दरअसल भारतीय समाज के उस छोर का यथार्थ है, जिस पर ‘बाज़ार’ की नज़र तो है, लेकिन जो बाज़ार की वस्तु बन चुकने के अभिशाप से अभी बचा हुआ है। अष्टभुजा शुक्ल की कविता इसी ‘बचे हुए’ के ‘बचे होने’ के सत्यों और सत्त्वों के साथ साग्रह खड़े होने के साहस की कविता है। अष्टभुजा का यह साहस किसी विचार, विचारधारा या विमर्श के अकादमिक शोर में शामिल कवियों वाला साहस नहीं है। यह उस कवि का साहस है जो सचमुच ही खेती करते हुए—‘हाथा मारना’ जैसी कविता, यानी उत्पादन-प्रक्रिया में हिस्सेदारी करते हुए निजी तौर पर हासिल सजीव जीवन-बोध की कविताएँ लिखता है। न केवल लिखता है, बल्कि कविता और खेत के बीच लगातार बढ़ती हुई दूरी को मिटाकर अपने हस्तक्षेप से अन्योन्याश्रित बना डालता है। कविता में चौतरफ़ा व्याप्त मध्यवर्गीयताओं से बेपरवाह रहते हुए वह यह दावा करना भी नहीं भूलता कि जो खेत में लिख सकता है, वही काग़ज़ पर भी लिख सकता है। मैं काग़ज़ पर उतना अच्छा नहीं लिख पाता/इसलिए खेत में लिख रहा था/यानी हाथा मार रहा था।
खेत में अच्छा और काग़ज़ पर ख़राब लिखने की आत्म-स्वीकृति उसी कवि के यहाँ सम्भव है जो कविता करने के मुक़ाबले किसानी करने को बड़ा मूल्य मानता हो यानी जो कविता का किसान बनने के लिए तैयार हो। उसकी कविताओं में जहाँ-तहाँ बिखरी हुई तमाम घोषणाएँ, मसलन यह कि—मैं ऐसी कविताएँ लिखता हूँ/जो लौटकर कभी कवि के पास नहीं आतीं, कहीं से दम्भप्रेरित या अविश्वसनीय नहीं लगतीं। कवि और कविता के सम्बन्धों की छानबीन करने की ज़रूरत की तरफ़ इशारा करती हुई इन कविताओं में छिपी हुई चुनौती पर आज की आलोचना को ग़ौर करना चाहिए।
अष्टभुजा की कविता में मध्यवर्गीय निराशा और आत्मसंशय का लेश भी नहीं है। वहाँ तो साधनहीनताओं के बीच राह निकाल लेने का हठ और किसी चिनगारी की रोशनी के भरोसे घुप अँधेरी यात्राओं में निकल पड़ने का अदम्य साहस है। अष्टभुजा की कविता उस मनुष्य की खोज करती हुई कविता है जिसके ‘हिस्से का आकाश बहुत छोटा है’, लेकिन जो अपने छोटे से आकाश में ही ‘अपना तारामंडल’ बनाना चाहता है। उसकी कविता में ‘ग्यारहवीं की छात्रा’ इतना तेज़ साइकिल चलाती है कि समय उससे पीछे छूट जाता है और 12वें किलोमीटर पर पहुँचकर, 11वें किलोमीटर पर पीछे छूट गए समय का उसे इन्तज़ार करना पड़ता है। अष्टभुजा का यह संग्रह उनके काव्य-संवेदन को प्रौढ़ता की अगली मंज़िल प्रदान करता है। हर वह पाठक, जो कविता में एक निर्बन्ध भाषा, बेलौस साफ़गोई और आत्मविश्वास की वापसी का इच्छुक है, अष्टभुजा का यह संग्रह बार-बार पढ़ना चाहेगा।
—कपिलदेव
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