Pida, Neend Aur Ek Ladki
Author:
Prerana SarwanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
डायरी से :</p>
<p>दु:ख का गर्भपात नहीं होता है। दु:ख सतमासे भी नहीं होते हैं। दु:ख तो सम्पूर्ण रूप से जन्मते हैं जीवन की कोख से, इस विचार मात्र से मेरे भीतर दु:खों की ज्वालामुखी उमड़ पड़ती है। उसी बहते हुए लावे में हैं हज़ारों दु:खों के भ्रूण, जो एक क्षण में पूर्ण रूप से जन्म लेते हैं। जो मेरे पतन के कारण हैं या उन्नति के, मैं नहीं जानती। मैंने स्वयं से बाहर निकलकर कभी कुछ देखने का साहस या प्रयास नहीं किया। मैं भीतर ही भीतर जीवन की खाई को गहरा करने में लगी रहती हूँ। मुझे याद है, मुझे चाँद ने कभी नहीं छुआ लेकिन बन्द कमरों में आकर सूरज की आग मेरी कोमल देह को झुलसाती रही, पीड़ा देती रही।</p>
<p>11 जुलाई, 1999</p>
<p>मेरी प्रत्येक कविता जीवन की प्रत्येक साँस का ऋण चुकाती है। मेरे जाने पर जीवन मुझ पर एहसान या दया की दुहाई न दे। मैं नहीं कहूँगी अपनी व्यथा, पर मेरी कविता जीवन के मुझ पर किए हुए अन्याय की कथा कहेगी। मृत्यु के बाद भी मेरी कविता ख़ामोश नहीं होगी। मेरी कविता की सत्यता से यह जीवन मृत्यु के बाद भी नहीं बच पाएगा।</p>
<p>25 जनवरी, 1999</p>
<p>कितना बचाया पर आज आख़िरकार गिन्नी चिड़िया के एक बच्चे को खा गई। हम क्या कर सकते हैं! ईश्वर ने जीवों की यही नियति निर्धारित की है। उसकी लीला वो ही जाने, चिड़िया जैसी कितनी इच्छाएँ मेरी रोज़ मरती हैं और आँसुओं में बहा दी जाती हैं।</p>
<p>20 मई, 2011
ISBN: 9788126724192
Pages: 124
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Ayachi
- Author Name:
Kashinath Mishra
- Book Type:

- Description: मनुष्य से याचना करना महापाप है। मनुष्य को केवल ईश्वर से याचना करने का अधिकार है’’ करीब 600 साल पहले मिथिला के इस दर्शन को अपने जीवन में उतारनेवाले महामहोपाध्याय श्री भवनाथ मिश्र प्रसिद्ध ‘अयाची’ के जीवन पर आधारित इस नाटक में मिथिला की ज्ञान परंपरा, सामाजिक इतिहास और भौतिक संतुष्टि के संस्कार को बेहतरीन तरीके से लिपिबद्ध किया गया है। इस नाटक का पहला संस्करण 1961 में प्रकाशित हुआ । दूसरा संस्करण आपके समक्ष है
Khud Se Guzarte Hue
- Author Name:
Sangita Kujara Tak
- Book Type:

- Description: Book
Tejasvini : Akka Mahadevi Ke Vachan
- Author Name:
Akka Mahadevi
- Book Type:

-
Description:
बारहवीं सदी के तीसरे दशक में, सन् 1130 के आसपास कभी उनका जन्म हुआ था, दक्षिण भारत, कर्नाटक के शिवमोगा जिले के एक गाँव उदूतड़ी में। शिव-भक्त माता-पिता के घर में।
परम्परा कहती है, वह अनन्य सुन्दरी थीं।
मनुष्य सुन्दरता सहन करने के लिए नहीं बने। सुन्दरता उनमें सदा से हिंसा जगाती आई है। तिस पर एक स्त्री की सुन्दरता, भक्त मन वाला उसका आलोक, उसकी आभा, उसकी तन्मयता!
सुन्दरी महादेवी को कभी न कभी वेध्य होना ही था।
लेकिन उन्हें किसी दूसरे ने नहीं वेधा। यह उपक्रम उन्होंने स्वयं ही किया।
कब महादेवी पहले-पहल स्त्री देह के वस्त्र से मुक्त हुईं, फिर काया के भीतर के मल-मूत्र से, कब वह मात्र आलोक खोजता केवल एक भक्त-मन रह गईं—उनकी जीवन-यात्रा सहज ही हमें सदियों से रोमांचित करती आ रही है, लगभग विमूढ़ और अवाक् करती।
ये जो उन अक्का महादेवी के वचन हमें आज व्याकुल कर देते हैं, ये उनके बोल, जो उन्होंने कभी लिखे नहीं थे, सुधारे या काटे-छाँटे नहीं थे। न ये कविताएँ थीं, न छंद। एक भक्त स्त्री के दिल की अग्नि ने इन्हें तपाया था, इन स्ववचनों को, एकालापों को।
यह उनके वचनों का हिन्दी रूपांतरण है।
Jyamiti
- Author Name:
Shanti Nair
- Book Type:

- Description: भारतीय स्त्री-कविता को बहुत दिनों से तलाश थी एक ऐसे स्त्री-स्वर की जिसके लेखन में निराला की नायिका पूरे ठस्से के साथ हँसती दिखाई दे, सबको दाँव देती हुई-सी हँसी। शान्ति नायर के कविता-संग्रह ‘ज्यामिति’ की कविताओं में सबको दाँव देती उसी हँसी का ताना-बाना मुझे विस्मय-विमुग्ध कर गया। उनमें बृहत्तर जगत के सरोकार अधिक मुखर और स्पष्ट रूप से सामने आते हैं, पर कविता की व्यंजना शक्ति की तिलांजलि दिये बग़ैर। संग्रह की ‘मैच द फ़ॉलोइंग’, ‘संजीवनी’, ‘दूध फटना’, ‘अनुष्ठान’ जैसी कविताओं में हमारे राजनीतिक-सामाजिक जीवन की समस्त विडम्बनाएँ जिस सजग बाँकपन के साथ व्यक्त हैं, वह किसी को भी एक झटके में उठाकर बैठा सकती हैं। ‘ट्रैफ़िक जाम’ कविता भास्वर प्रमाण है इस बात का कि पढ़ी-लिखी मध्यवर्गीय स्त्रियों पर अब कोई यह अभियोग लगा नहीं सकता कि दमित वर्गों-वर्णों की स्त्रियों का दुख उनके निजी दुखों में शामिल नहीं। चौके-चूल्हे, पास-पड़ोस, हाट-बाज़ार, दैनन्दिन जीवन के अन्य जीवंत प्रसंगों से धारोष्ण बिम्ब उठाकर जैसे भक्त-कवयित्रियाँ ध्वनि और रस-बोध से उच्छल कविताएँ सहज ही रच देती थीं, शान्ति नायर भी घरेलू बिम्बों को अद्भुत दार्शनिक उठान दे लेती हैं—‘अनिद्रा’ कविता में उदासीनता में ख़मीर का उठकर रात की सीमा के पार फूल जाना एक ऐसा बिम्ब है जो स्त्री ही साध सकती है। इसी तरह ‘पुट्टू’ कविता में तैयार पुट्टू को साँचे के बाहर कर देने की ख़ातिर जो धक्का दिया जाता है, उसका मर्म स्त्री, एक समधीत स्त्री ही समझ सकती है जो घर के काम ही नहीं करती, सब कामों से समय चुराकर पढ़ती भी है, जिसमें यह समझने की भी विलक्षण प्रज्ञा है कि जीवन की असल चुनौती है ज्ञान का संज्ञान में बदलना। दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना—कैसे—यह आपको शान्ति नायर की कविताएँ बख़ूबी समझा देती हैं। स्त्री की पसलियों का ‘लाड़ला दर्द’, ‘कर्तव्य के बिछावन’ पर यहाँ कुनमुनाकर सोता है पर नींद में मुस्कुराता हुआ।
Pratinidhi kavitayen : Kedarnath Singh
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

-
Description:
केदारनाथ सिंह शायद हिन्दी के समकालीन काव्य-परिदृश्य में अकेले ऐसे कवि हैं, जो एक ही साथ गाँव के भी कवि हैं और शहर के भी। अनुभव के ये दोनों छोर कई बार उनकी कविता में एक ही साथ और एक ही समय दिखाई पड़ते हैं। शायद भारतीय अनुभव की यह अपनी एक विशेष बनावट है जिसे नकारकर सच्ची भारतीय कविता नहीं लिखी जा सकती। केदार की कविता जो पहली बार रूप या तंत्र के धरातल पर एक आकर्षक विस्मय पैदा करती है क्रमश: बिम्ब और विचार के संगठन में मूर्त होती है और एक तीखी बेलौस सच्चाई की तरह पूरे सामाजिक दृश्य पर अंकित होती चली जाती है।
केदारनाथ सिंह की कविताएँ समय में देर तक टिकनेवाली कविताएँ हैं। केदार की कविताओं की दुनिया एक ऐसी दुनिया है जिसमें रंग, रोशनी, रूप, गन्ध, दृश्य एक-दूसरे में खो जाते हैं। पर यही दुनिया है, जिसमें कविता का 'कमिटमेंट' खो नहीं जाता; वहाँ हमें कविता के मूल सरोकार, कविता की बुनियादी चिन्ता, कविता का कथ्य या सन्देश (बेशक स्थूल अर्थ में नहीं) पूरी तीव्रता के साथ ध्वनित या स्पन्दित रहता है।
केदार की कविता किसी अर्थ में एकालाप नहीं, वह हर हालत में एक सार्थक संवाद है। वह एक पूरे समय की व्यवस्था और उसकी क्रूर जड़ता या स्तब्धता को विचलित करती है। चुप्पी और शब्द के रिश्ते को वह बख़ूबी पहचानती है और उसे एक ऐसी काव्यात्मक चरितार्थता या विश्वसनीयता देती है, जिसके उदाहरण कम मिलते हैं।
Bagule Pakad Rahi Hai Meen
- Author Name:
Rameshraaj
- Book Type:

- Description: दुहरे तुकांत में तेवरियाँ
Shayad
- Author Name:
Sudhir Ranjan Singh
- Book Type:

-
Description:
हाल के दशकों में जिन कवियों ने अपनी प्रतिभा और काव्य-व्यवहार से सर्वाधिक चकित और विस्मित किया है, उनमें सुधीर रंजन सिंह अग्रणी हैं। हिन्दी कविता के लगभग एकरस हो रहे स्वर को सुधीर ने अपनी कविताओं से न केवल भंग किया बल्कि उसे अनेक रंगों, रसों, ध्वनियों से सघन और संकुल किया। नितान्त अछूते, अनाघ्रात विषयों को कविता के कक्ष में आबद्ध करते हुए सुधीर रंजन ने कहन और प्रस्तुति की नई प्रविधि विकसित की जिसके अगले संस्करण के तौर पर इस नए संग्रह को देखा और परखा जा सकता है। कविता के ब्रह्मांड में व्यतीत ये परिवर्तन इतने सूक्ष्म एवं तरंगरूप हैं कि ज़रा-सी असावधानी पाठक को इस सम्पूर्ण ऐश्वर्य से वंचित कर सकती है। प्रस्तुत संग्रह 'शायद’ भी इसी सावधानी की माँग करता है, क्योंकि कई स्तरों पर यहाँ पारम्परिक सौन्दर्य-बोध विखंडित एवं निरस्त होता है :
गिद्ध आँखों से देखें तो
मुरदा होना सबसे सुन्दर होना है
इसीलिए यह पूरी कविता-पुस्तक जीवन का जयघोष है। अनेकानेक व्यक्तियों, चरित्रों, प्रसंगों, अनुभूतियों से समृद्ध यह संग्रह भाषा को भी नई भंगिमा से बरतता और अन्वेषित करता है। इसका एक उदाहरण ‘बैठना क्रिया से अभिप्राय’ कविता है जो सीधे-सीधे एक क्रिया का फलित पाठ है—सात अलग-अलग स्थितियों में, जो मिलकर सम्पूर्ण जीवन-पक्ष रचती हैं और एक गहरे राजनीतिक आशय से सारगर्भित होती हैं। 'धूप से पीठ टिकाए’ जैसे अनेक स्थल हैं जो हमें रोक लेते हैं। ऐसा अमूर्तन पहले नहीं मिलता। सुधीर के यहाँ होनेवाले ये भाषिक 'विचलन’ एक सर्वथा नए जीवन-बोध से उद्धृत हैं जिसका एक अप्रतिम उदाहरण है 'धन्य’ शीर्षक कविता जो पुन: अपने अन्दरूनी आशय में राजनीतिक है पर ऊपर से ऐसा भास नहीं होता। यही कारण है कि ये कविताएँ गम्भीर पाठ की अपेक्षा करती हैं।
सुधीर ने कुछ नए चरित्र भी रचे हैं। इनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं 'सड़क किनारे के मैकेनिक’, 'दर्जी’, 'सोनाराम लोहार’ और 'गायें’। यहाँ गायें भी चरित्र की तरह हैं। बेहद मार्मिक। सुधीर शायद पहली बार कविता की खोजबत्ती को अन्दर की तरफ़ घुमाते हैं जिसका परिणाम है 'आत्मस्वीकृति’ जैसी विलक्षण कविता। 'बिना किसी ग़लती और भूल के मैं कोई काम नहीं कर सकता था।’ इसी आभ्यन्तरीकरण का शायद यह देय हो कि कवि ने मृत्यु एवं अन्त के आभास को लेकर कुछ गहरी कविताएँ लिखी हैं। सुधीर की कविताओं में सान्द्रता एवं बौद्धिक त्वरा बढ़ी है। जीवन के सन्धान, भाषा के आकस्मिक प्रयोग एवं बिम्बों की शृंखला इस संग्रह को विशिष्ट बनाते हैं। शायद, और यही तो नाम है इस पुस्तक का, सुधीर अकेले कवि हैं अपनी पीढ़ी के जो अत्यन्त संयत एवं धीर भाव से गहरी उत्तेजना की सृष्टि करते हैं और शान्त प्रतीत होती सतह को भी घूर्णों से भर देते हैं। सुधीर की कविता भविष्य की वाणी है—किसी एक यात्रा के पहले कई गुना अधिक भोगी भटकन।
—अरुण कमल
Yaadon Ke Aaine Mein
- Author Name:
Ozair E. Rahman
- Book Type:

-
Description:
उजैर ई. रहमान की ये ग़ज़लें और नज़्में एक तजरबेकार दिल-दिमाग़ की अभिव्यक्तियाँ हैं। सँभली हुई ज़बान में दिल की अनेक गहराइयों से निकली उनकी ग़ज़लें कभी हमें माज़ी में ले जाती हैं, कभी प्यार में मिली उदासियों को याद करने पर मजबूर करती हैं, कभी साथ रहनेवाले लोगों और ज़माने के बारे में, उनसे हमारे रिश्तों के बारे में सोचने को उकसाती हैं और कभी सियासत की सख़्तदिली की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। कहते हैं, ‘साज़िशें’ बन्द हों तो दम आए, फिर लगे देश लौट आया है।’ इन ग़ज़लों को पढ़ते हुए उर्दू ग़ज़लगोई की पुरानी रिवायतें भी याद आती हैं और ज़माने के साथ क़दम मिलाकर चलनेवाली नई ग़ज़ल के रंग भी दिखाई देते हैं।
संकलन में शामिल नज़्मों का दायरा और भी बड़ा है। ‘चुनाव के बाद' शीर्षक एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ देखें :
सामने सीधी बात रख दी है/देशभक्ति तुम्हारा ठेका नहीं/ज़ात-मज़हब बने नहीं/बुनियाद/बढ़के इससे है कोई धोखा नहीं/कहते अनपढ़-गँवार हैं इनको/नाम लेते हैं जैसे हो गाली/कर गए हैं मगर ये ऐसा कुछ/हो न तारीफ़ से ज़बान ख़ाली। यह शायर का उस जनता को सलाम है जिसने चुनाव में अपने वोट की ताक़त दिखाते हुए एक घमंडी राजनीतिक पार्टी को धूल चटा दी। इस नज़्म की तरह उजैर ई. रहमान की और नज़्में भी दिल के मामलों पर कम और दुनिया-जहान के मसलों पर ज़्यादा ग़ौर करती हैं। कह सकते हैं कि ग़ज़ल अगर उनके दिल की आवाज़ हैं तो नज़्में उनके दिमाग़ की। एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ हैं :
देश है अपना, मानते हो न/दुःख कितने हैं, जानते हो न/पेड़ है इक पर डालें बहुत हैं/डालों पर टहनियाँ बहुत हैं/तुम हो माली नज़र कहाँ है/देश की सोचो ध्यान कहाँ है।
Urvashi : Dinkar Granthmala
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
उर्वशी और पुरूरवा की प्रेम-कथा का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इस प्राचीनतम आख्यान को अपने युग के नए अर्थ से जोड़ने का सृजनात्मक प्रयास दिनकर की विलक्षण दृष्टि का परिचय है। वे मानते हैं कि उर्वशी सनातन नारी तो पुरूरवा सनातन नर का प्रतीक है। उर्वशी चक्षु, रसना, घ्राण, त्वक् तथा श्रोत्र की कामनाओं तो पुरूरवा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द से मिलनेवाले सुखों से उद्वेलित मनुष्य का प्रतीक है।
पुरूरवा और उर्वशी का प्रेम मात्र शरीर के धरातल पर आकार नहीं लेता, वह शरीर से जन्म लेकर मन और प्राण के गहन, गुह्य लोकों में प्रवेश करता है। रस के भौतिक आधार से उठकर रहस्य और आत्मा के अन्तरिक्ष में विचरण करता है। पुरूरवा के भीतर देवत्व की तृषा है। इसलिए मर्त्य लोक के नाना सुखों में वह व्याकुल और विषण्ण है। उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है। वह सहज, निश्चिन्त भाव से पृथ्वी का सुख भोगना चाहती है। पुरूरवा की वेदना समग्र मानव-जाति की चिरन्तन वेदना से ध्वनित है।
उर्वशी से पुरूरवा के बिछड़ने के बाद विरह को दिनकर एक दार्शनिकता के साथ व्यक्त करते हैं—संन्यास प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर सकता, न प्रेम संन्यास को क्योंकि प्रेम प्रकृति और परमेश्वर संन्यास है और मनुष्य को सिखलाया गया है कि एक ही व्यक्ति परमेश्वर और प्रकृति दोनों को प्राप्त नहीं कर सकता। ...और वेदना की भूमि चूँकि पुरूरवा के संन्यास पर समाप्त नहीं हुई, इसलिए औशीनरी की व्यथा ने कविता को वहाँ समाप्त होने नहीं दिया।
निहितार्थ यही कि इन्द्रियों के मार्ग से अतीन्द्रिय धरातल का स्पर्श कर प्रेम की आध्यात्मिक महिमा को एक व्यापक धरातल पर रचती 'उर्वशी' दिनकर की अपने पाठ और प्रभाव में कभी न ख़त्म होनेवाली कृति है, एक दुर्लभ गीति-नाट्य कृति।
Jidhar Kuchh Nahin
- Author Name:
Devi Prasad Mishra
- Book Type:

- Description: ‘जिधर कुछ नहीं’ की विशिष्टता यह नहीं है कि यह हिन्दी की सबसे लम्बी कविताओं में एक है बल्कि यह कि यह एक नई तरकीब से लिखी गई है और वैकल्पिक नागरिकता को आविष्कृत करने के लिए एक दुष्कर और लम्बी अन्तर्यात्रा पर निकली हुई है। यह वैकल्पिक सृष्टि को खोजना तो है लेकिन इसके लिए भारतीय पृथ्वी के कोलाहल, वैषम्य और क़ैद से गुज़रने से कोई निज़ात नहीं है। दरअस्ल, जो शोर, दिग्भ्रम, अमर्ष, धुंध और अँधेरा मौजूद है, उसी के पीछे और नीचे वैकल्पिक नागरिकता छिपी हुई है। तो खोज का प्रश्न राजनीतिक प्रबोध और बड़ी समाजार्थिक परिकल्पना से जुड़ा हुआ है। देवी एक ऐसी सामाजिक सुरंग से गुज़रने और पाठक को गुज़ारने का चयन करते हैं जिसके कितने ही स्टेशन और अड्डे ढहा दिये गये हैं या जला दिये गये हैं। यह कठिन समय में लिखी गई कविता है जब राज्य के चरित्र को बदल दिया गया है, जब उत्तर-सत्य का बोलबाला है, जब बड़ी संकल्पनाएँ नष्ट की जा रही हैं, जब ज्ञान की जगह अंधी आस्था को स्थापित किया जा रहा है, जब अपराध को वैधता दी जा रही है, जब सामाजिक रचना के लिए मानवीय अन्तर्दृष्टि की जगह घृणादृष्टि ले रही है, जब ज्ञान को संदेहास्पद बनाया जा रहा है और इतिहास का विभाजक पाठ तैयार किया जा रहा है। उजाड़ने का यह काम भले ही बहुत क्रूर तरीक़े से किया गया दिख रहा हो, इस अमानवीय और नागरिकता विरोध की दीर्घ और सत्तात्मक परंपरा है। इस रौशनी में देखने पर यह साफ़ होगा कि यह कविता किसी भी तरह से प्रतिक्रियात्मक संरचना भर नहीं है बल्कि एक दस्तावेज़ी और ऐतिहासिक कामकाज है जिसकी प्रासंगिकता असमाप्य है क्योंकि ताक़त का दुरुपयोग ख़त्म होता नहीं दिखता। इस कविता में देवी कहन का अप्रतिम हुनर दिखाते हैं, हिन्दवी की तमाम प्रविधियों से लेन-देन शुरू कर देते हैं और इस कारोबार की अनायासता में एक नयी काव्य तकनीक हासिल कर लेते हैं। वह अनुभव की विपुलता से गुज़रते हुए कितनी ही बार रेटरिक को काव्यात्मक विज़न और परानुभूति की बड़ी सूझ में बदल देते हैं। इस महाकविता का पाठ उतना कठिन नहीं है जितना वह अपनी संरचना में दिखता है जो भले ही समकालीनता के कोने में किये गये एकांतिक दुस्साहस का नतीजा हो या किसी फक्कड़ के हाथ लग जाने वाली मौलिकता की जादुई भभूत। वैकल्पिक की खोज में भटकती कविता की परिकल्पना और संरचना दोनों अपूर्व हैं जो भारतीय और विश्व कविता के बीच गर्दन बहुत ऊँची करके खड़ी हो सकती हैं। किताब के अन्त में आता उत्तर कथन इस कविता के आलोक में राजकीय दमन और रचना के बीच के जटिल सम्बन्ध को जिस तरह से देखता है, हिन्दी विचार जगत में वह विरल है।’
Zid
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

- Description: आग, पहिया और नाव की ही तरह भाषा भी मनुष्य का एक अद्वितीय अविष्कार है ! इस अर्थ में और भी अद्विरिय कि यह उसकी देह और आत्मा से जुडी है ! भाषा के प्रति हाम्र व्यवहार वस्तुतः जनतंत्र और पूरी मनुष्यता के प्रति हमारे व्यवहार को ही प्रकट करता है ! हम एक ऐसे समय से रूबरू हैं जब वर्चस्वशाली शक्तियों की भाषा में उददंडता और आक्रामकता अपने चरम पर पहुँच रही है ! बाज़ार की भाषा ने हमारे आपसी व्यवहार की भाषा को कुचल दिया है ! विज्ञापन की भाषा ने कविता से बिम्बों की भाषा को छिनकर फूहड़ और अश्लीलता की हदों तक पहुंचा दिया है ! इस समय के अंतर्विरोधों और विडम्बनाओं को व्यक्त करने और प्रतिरोध के नए उपकरण तलाश करने की बेचैनी हमारी पूरी कविता की मुख्य चिंता है ! उसमें कई बार निराशा भी हाथ लगती है और उदासी भी लेकिन साधारण जन के पास जो सबसे बड़ी ताकत है और जिसे कोई बड़ी से बड़ी वर्चस्वशाली शक्ति और बड़ी से बड़ी असफलता भी उससे छीन नहीं सकती, वह है उसकी जिद ! मेरी इन कविताओं में यह शब्द कई बार दिखाई देगा ! शायद यह जिद ही है जो इस बाजारू समय में भी कवि को धुंध और विभ्रमों के बीच लगातार अपनी जमीन से विस्थापित किए जा रहे मनुष्य की निरंतर चलती लड़ाई के पक्ष में रचने की ताकत दे रही है ! सबसे कमजोर रोशनी भी सघन अँधेरे का दंभ तोड़ देती है ! इसी उम्मीद से ये कविताएँ यहाँ है !
Ujla Aasman
- Author Name:
Sangita Swarup
- Book Type:

- Description: Book
Bagdad Se Ek Khat
- Author Name:
Mahendra Mishra
- Book Type:

- Description: अपने समय से संवाद करती ये कविताएँ कवि महेन्द्र मिश्र के लम्बे प्रशासकीय मौन के बाद सामने आ रही हैं। आज से कोई चौबीस वर्ष पहले उनका पहला काव्य-संकलन आया था—‘अनायास वर्षा’। तब से बहुत कुछ घटित हो चुका है दुनिया में और काव्य का परिदृश्य भी वही नहीं है, जो उस समय था। इन कविताओं से गुज़रते हुए मैंने अनुभव किया कि इस संग्रह के रचयिता ने इस बीच के लगभग सारे सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को अपनी चेतना में जज़्ब करने के बाद वह वस्तु-फ़लक तैयार किया है, जिससे इस कृति को आकार मिलता है। यह बौद्धिक रूप से एक अत्यन्त सजग रचनाकार की रचना है—जिसे अपने से की गई एक लम्बी बहस भी कहा जा सकता है। वस्तुतः इस किताब का नाम ‘बग़दाद से एक ख़त’ वह संकेतक है, जो इन कविताओं के ‘टोन’ का निर्धारण करता है। मुझे अच्छा लगा कि वैचारिक आवेग वाली लम्बी कविताओं के साथ-साथ यहाँ कुछ अपेक्षाकृत छोटी कविताएँ भी हैं—जैसे ‘वह लड़का’ और ‘नदी’ जो अलग ढंग की कविताएँ हैं और पाठक से सीधे संवाद करती हैं। यह भरा-पूरा संग्रह प्रमाण है कि अपनी प्रशासकीय उलझनों में चाहे इस कवि ने कविता का साथ—अस्थायी रूप से—छोड़ दिया हो, पर कविता ने अपने इस ‘पुराने प्रेमी’ का साथ कभी नहीं छोड़ा। — केदारनाथ सिंह
Dilfareb
- Author Name:
Rajkumar Kori Raz
- Book Type:

- Description: This book has no description
Shav
- Author Name:
Sanjay Alung
- Book Type:

- Description: Poems
Neend Ka Rang
- Author Name:
Sara Shagufta
- Book Type:

-
Description:
मैंने आसमान से एक तारा टूटते हुए देखा है। बहुत तेज़ी से आसमान के ज़हन में एक जलती हुई लकीर खींचता हुआ... जो तारा मैंने टूटता हुआ देखा उसका भी एक नाम था : सारा शगुफ़्ता। उस तारे के टूटते वक़्त आसमान के ज़हन में जो लम्बी और जलती हुई लकीर खिंच गई थी वह लकीर सारा शगुफ़्ता की नज़्म थी।
—अमृता प्रीतम, ‘एक थी सारा’ से
जहाँ तक सारा शगुफ़्ता के अनुभवों की बात है, तो मेरे नज़दीक उनमें सब से ऊँचा उसका प्रतिरोध का स्वर है। यह वह औरत है जिसे बचपन में भावनात्मक और शारीरिक स्तर पर प्रताड़ित किया गया, चार मर्दों ने तलाक़ दी, बच्चों ने छोड़ दिया, मुशायरा सर्किल ने बहिष्कृत किया, लेकिन यही वह औरत भी है जिसने इन हालात के सामने चुप रहने से इंकार कर दिया। अगर उसकी काव्य-शैली की बात की जाए, तो वह उर्दू-फ़ॉर्मलिज़्म के बर्तन को उठाकर खिड़की के बाहर फेंक देती है—शगुफ़्ता आज़ाद नज़्म के स्वरूप को तोड़ती-फोड़ती है, तहस-नहस कर डालती है, और नए सिरे से नए साँचे में ढालती है।
—असद अलवी, अनुवादक और समालोचक
सारा शगुफ़्ता की पहुँच उन हक़ीक़तों तक है जिन तक हमारे नस्री शायरी (गद्य कविता) लिखने वाले शायर कभी नहीं पहुँच सके। वह आला सतह की प्रतिभा की मालिक है। इन्सान के ज़हन का जैसा बोध उसे हासिल हुआ है वह हम में से किसी को हासिल नहीं।
—क़मर जमील, मशहूर शायर
Beech Ka Rasta Nahin Hota
- Author Name:
Pash
- Book Type:

-
Description:
पाश की कविता हमारी क्रान्तिकारी काव्य-परम्परा की अत्यन्त प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति है। मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित व्यवस्था के नाश और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना के लिए जारी जनसंघर्षों में इसकी पक्षधरता बेहद स्पष्ट है। साथ ही यह न तो एकायामी है और न एकपक्षीय, बल्कि इसकी चिन्ताओं में वह सब भी शामिल है, जिसे इधर प्रगतिशील काव्य-मूल्यों के लिए प्रायः विजातीय माना जाता रहा है।
अपनी कविता के माध्यम से पाश हमारे समाज के जिस वस्तुगत यथार्थ को उद्घाटित और विश्लेषित करना चाहते हैं, उसके लिए वे अपनी भाषा, मुहावरे और बिम्बों-प्रतीकों का चुनाव ठेठ ग्रामीण जीवन से करते हैं। घर-आँगन, खेत-खलिहान, स्कूल-कॉलेज, कोर्ट-कचहरी, पुलिस-फौज और वे तमाम लोग जो इन सबमें अपनी-अपनी तरह एक बेहतर मानवीय समाज की आकांक्षा रखते हैं, बार-बार इन कविताओं में आते हैं। लोक-जीवन में ऊर्जा ग्रहण करते हुए भी ये कविताएँ प्रतिगामी आस्थाओं और विश्वासों को लक्षित करना नहीं भूलतीं और उनके पुनर्संस्कार की प्रेरणा देती हैं। ये हमें हर उस मोड़ पर सचेत करती हैं, जहाँ प्रतिगामिता के ख़तरे मौजूद हैं; फिर ये ख़तरे चाहे मौजूदा राजनीति की पतनशीलता से पैदा हुए हों या धार्मिक संकीर्णताओं से; और ऐसा करते हुए ये कविताएँ प्रत्येक उस व्यक्ति से संवाद बनाए रखती हैं जो कल कहीं भी जनता के पक्ष में खड़ा होगा। इसलिए आकस्मिक नहीं कि काव्यवस्तु के सन्दर्भ में पाश नाज़िम हिकमत और पाब्लो नेरुदा जैसे क्रान्तिकारी कवियों को ‘हमारे अपने कैम्प के आदमी’ कहकर याद करते हैं और सम्बोधन-शैली के लिए महाकवि कालिदास को।
संक्षेप में, हिन्दी और पंजाबी साहित्य से गहरे तक जुड़े डॉ. चमनलाल द्वारा चयनित, सम्पादित और अनूदित पाश की ये कविताएँ मनुष्य की अपराजेय संघर्ष-चेतना का गौरव-गान हैं और हमारे समय की अमानवीय जीवन-स्थितियों के विरुद्ध एक क्रान्तिकारी हस्तक्षेप।
Ghanmala : Aacharya Kunwar Chandraprakash Singh Ke Geet
- Author Name:
Kunwar Chandraprakash Singh
- Book Type:

-
Description:
'घनमाला' महाकवि कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह की काव्य-साधना का अन्तिम गीत-संग्रह है। इस गीत-संग्रह का प्रकाशन भारत की स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में किया जा रहा है। इसमें कुल 150 गीत संकलित हैं। इन 150 गीतों में 75 गीत प्रायः सन् 1978 ई. के बाद रचे गए हैं। इन गीतों में छायावाद युग के गीतों के वही भाव मिलेंगे जो छायावाद के उत्कर्ष काल में रचे गए गीतों में मिलते हैं। इसीलिए कुँवर जी को छायावाद का अन्तिम कवि माना है और उनके शताब्दी न्यासी कवि व्यक्तित्व में जीवन के अन्तिम क्षणों तक छायावादी भाव-भूमि को सन्निहित देखकर उन्हें छायावाद के उन्नायक कवि की उपाधि से अलंकृत किया है।
इस गीत-संग्रह को दो खंडों में विभक्त किया गया है। पहले खंड में सन् 1978 ई. के बाद रचे गीत संकलित हैं और दूसरे खंड में छायावाद के उत्कर्ष काल में रचे गए गीत हैं। इस संकलन के दूसरे खंड में छायावाद के उत्कर्षकाल के गीत इसलिए संकलित किए गए हैं, जिससे पाठक पहले खंड तथा दूसरे खंड के गीतों को पढ़कर यह समझ सकें कि कुँवर जी की काव्य-साधना में छायावाद की अनुभूति तथा अभिव्यक्ति का सम्पूर्ण काव्य-वैभव आदि से अन्त तक समान रूप से विद्यमान है।
Bandi Jeevan Aur Anya Kavitayen
- Author Name:
Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'
- Book Type:

-
Description:
कई महीनों से इन कविताओं की पाण्डुलिपि मुझे लगातार अपने वादे की याद दिलाती हुई मेरे पास थी कि मुझे भूमिका के रूप में कुछ लिखना है। इस दौरान मैंने कई विषयों पर लिखा है, लेकिन यह भूमिका लिखना मेरे लिए अजीब तरह से मुश्किल रहा। मैं कविता का निर्णायक अथवा आलोचक नहीं हूँ, इसलिए कुछ हिचकिचाहट थी। लेकिन मैं कविता से प्यार करता हूँ और इन छोटी कविताओं में से कई ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वे मेरी स्मृति में अटक गईं और उन्होंने मेरे जेल-जीवन की यादें ताज़ा कर दीं—और उस अजीब और भुतही दुनिया की भी, जिसमें समाज द्वारा अपराधी मानकर बहिष्कृत लोग अपनी तंग और सीमित ज़िन्दगी को प्यार करते थे। वहाँ हत्यारे थे, डाकू और चोर भी थे, लेकिन हम सब जेल की उस दु:ख-भरी दुनिया में साथ-साथ थे, हमारे बीच एक जज़्बाती रिश्ता था। अपनी एकाकी कोठरियों में ही हम चहलक़दमी करते—पाँच नपे-तुले क़दम इस तरफ़ और पाँच नपे-तुले क़दम वापस, और दु:ख से संवाद करते रहते। दोस्त-अहबाब और आसरा ख़यालों में ही मिलता और कल्पना के जादुई कालीन पर ही हम अपने माहौल से उड़ पाते। हम दोहरी ज़िन्दगी जी रहे थे—जेल की ज़ेरेहुक्म और तंग, बन्द और वर्जित ज़िन्दगी और जज़्बात की, अपने सपनों और कल्पनाओं, उम्मीदों और अरमानों की आज़ाद दुनिया। उन सपनों का बहुत-सा इन कविताओं में है, उस ललक का जब बाँहें उसके लिए फैलती हैं जो नहीं है और एक ख़ालीपन हाथ आता है। कुछ वह शान्ति और तसल्ली जिन्हें हम उस दु:ख-भरी दुनिया में भी किसी तरह पा लेते थे। कल की उम्मीद हमेशा थी, कल जो शायद हमें आज़ादी दे। इसलिए मैं इन कविताओं को पढ़ने की सलाह देता हूँ और शायद वे मेरी ही तरह दूसरों को भी प्रभावित करेंगी।
—जवाहरलाल नेहरू
Abhi, Bilkul Abhi
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

-
Description:
'बिकल मन/ठहरो/हम उपेक्षा नहीं करते/किसी की आवाज़ की/और फिर वह/गली/सागर पार/निर्जन, कहीं से भी आए!’
केदार जी सबकी आवाज़ सुनते हैं। प्रकृति का कण-कण। घर का कोना-कोना, मन का रेशा-रेशा; जहाँ भी स्पन्दन है, केदार जी की कविता अपनी पूरी संवेदना के साथ वहाँ पहुँच जाती है। हर स्वर की प्रतिध्वनि को व्यक्त करने को उनके शब्दों का रोम-रोम खुला है। खुलते दिन, उतरती साँझें, गहराती रातें—सभी बिम्ब यहाँ उपस्थित हैं और साथ में है रचने को कवि के आतुर हाथ...
'खोल दूँ यह आज का दिन/जिसे/मेरी देहरी के पास कोई रख गया है/एक हल्दी रँगे/दूरदेशी पत्र-सा...इस सम्पुटित दिन के सुनहले पत्र को/जो द्वार पर गुमसुम पड़ा है/खोल दूँ।’
प्रकृति केदार जी की कविताओं का विषय नहीं, उनकी सहचरी है। वे प्रकृति को देखते भी हैं, उससे उजास भी लेते हैं और उसकी पुनर्रचना भी करते हैं। इसी तरह लोक और उसमें रचा-बसा घर, और घर में बुने हुए रिश्ते—इन सबकी इयत्ता उनके शब्दों के साथ-साथ चलती है, उनसे अपना नया रूप पाती है, एक नई परिभाषा जो हमें नए सिरे से जीने का भरोसा और उम्मीद देती है। घर के रूप में एक ख़ाली कमरा भी उन्हें अपनी पूरी भयावहता में अन्तत: एक सकारात्मक बिन्दु दिखाई देता है जहाँ से वे और हम अपनी नई यात्रा शुरू कर सकते हैं...
'आज भी खड़ा है वह/...मेरी प्रतीक्षा में/बड़े-बड़े डैनों वाला कमरे का दानव...उसे सब ज्ञात है/...इसीलिए कभी कुछ पूछता नहीं है/जब बाहर से आता हूँ/चुपके से क्षत-विक्षत डैने उठाकर/मुझे जगह दे देता है/मानो कहता हो : अब बहुत थक गए हो तुम/योद्धा, विश्राम करो!’
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.