Nigahon Ke Saye
Author:
Jaan Nisar AkhtarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
<strong>जाँ निसार</strong><strong> अख़्तर</strong></p>
<p>फरवरी, 1914 को खैराबाद, ज़िला—सीतापुर में जन्म हुआ। पिता मुज़्तर खैराबादी उर्दू के प्रसिद्ध कवियों में से थे और घर का वातावरण साहित्यिक होने के कारण उनमें बचपन से ही शे’र कहने की रुचि पैदा हुई और दस-ग्यारह वर्ष की आयु से कविता करने लगे। सन् 1939 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर में उर्दू के प्राध्यापक नियुक्त हुए, किन्तु 1947 में साम्प्रदायिक दंगे छिड़ जाने से त्याग-पत्र देकर भोपाल चले गए और वहाँ हमीदिया कॉलेज के उर्दू-फ़ारसी विभाग के अध्यक्ष बने। फिर 1950 में वहाँ से त्याग-पत्र देकर बम्बई चले गए। प्रारम्भ के रूमानी काव्य में धीरे-धीरे क्रान्तिकारी तत्त्वों का मिश्रण होता गया और वे यथार्थवाद की ओर बढ़ते गए। साम्राज्यवाद का विरोध और स्वदेश-प्रेम की भावना से इनकी कविता ओत-प्रोत रही। दूसरा महायुद्ध, आर्थिक दुर्दशा, राजनीतिक स्वाधीनता, विश्वशान्ति और ऐसी ही अनेक घटनाएँ हैं जिनको ‘अख़्तर’ ने वाणी प्रदान की। आज के जीवन-संघर्ष को वे कल के नव-निर्माण का सूचक मानते थे। उनके काव्य में सामाजिक यथार्थ का गहरा बोध परिलक्षित होता है और उनके काव्य का लक्ष्य वह मानव है जो प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सुन्दर, सरस और सन्तुलित जीवन के निर्माण के लिए संघर्षशील है। उनके कला-बोध की परिपक्वता एक ओर तो उनकी सम्पन्न विरासत और दूसरी ओर उर्दू-फ़ारसी साहित्य के गहन अध्ययन की देन है। प्रस्तुत पुस्तक का विषय-चयन तथा काव्य-सम्पादन उनकी उपर्युक्त विशेषताओं का ही परिणाम है। वे वर्षों फ़िल्म-जगत से सम्बद्ध रहे और उनके अनेक फ़िल्मी गीत विशेषतः लोकप्रिय हुए।</p>
<p>निधन: 18 अगस्त, 1976
ISBN: 9789389598629
Pages: 23
Avg Reading Time: 1 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘अकाल में सारस’ में भाषा के प्रति अत्यन्त संवेदनशील तथा सक्रिय काव्यात्मक लगाव एक नए काव्य-प्रस्थान की सूचना देता है। भाषा के सार्थक और सशक्त उपयोग की सम्भावनाएँ खोजने और चरितार्थ करने की कोशिश केदार की कविता की ख़ास अपनी और नई पहचान है। प्रगीतों की आत्मीयता, लोक-कथाओं की-सी सरलता और मुक्त छन्द के भीतर बातचीत की अर्थसघन लयात्मकता का सचेत इस्तेमाल करते हुए केदार ने अपने समय के धडक़ते हुए सच को जो भाषा दी है, वह यथार्थ की तीखी समझ और संवेदना के बग़ैर अकल्पनीय है। केदार के यहाँ ऐसे शब्द कम नहीं हैं जो कविता के इतिहास में और जीवन के इस्तेमाल में लगभग भुला दिए गए हैं, पर जिन्हें कविता में रख-भर देने से सुदूर स्मृतियाँ जीवित वर्तमान में मूर्त हो उठती हैं। परती-पराठ, गली-चौराहे, देहरी-चौखट, नदी-रेत, दूब, सारस जैसे बोलते-बतियाते केदार के शब्द उदाहरण हैं कि उनकी पकड़ जितनी जीवन पर है उतनी ही कविता पर भी। ‘अकाल में सारस’ एक कठिन समय की त्रासदी के भीतर लगभग बेदम पड़ी जीवनाशक्ति को फिर से उपलब्ध और प्रगाढ़ बनाने के निरन्तर संघर्ष का फल है।
Ghanmala : Aacharya Kunwar Chandraprakash Singh Ke Geet
- Author Name:
Kunwar Chandraprakash Singh
- Book Type:

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Description:
'घनमाला' महाकवि कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह की काव्य-साधना का अन्तिम गीत-संग्रह है। इस गीत-संग्रह का प्रकाशन भारत की स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में किया जा रहा है। इसमें कुल 150 गीत संकलित हैं। इन 150 गीतों में 75 गीत प्रायः सन् 1978 ई. के बाद रचे गए हैं। इन गीतों में छायावाद युग के गीतों के वही भाव मिलेंगे जो छायावाद के उत्कर्ष काल में रचे गए गीतों में मिलते हैं। इसीलिए कुँवर जी को छायावाद का अन्तिम कवि माना है और उनके शताब्दी न्यासी कवि व्यक्तित्व में जीवन के अन्तिम क्षणों तक छायावादी भाव-भूमि को सन्निहित देखकर उन्हें छायावाद के उन्नायक कवि की उपाधि से अलंकृत किया है।
इस गीत-संग्रह को दो खंडों में विभक्त किया गया है। पहले खंड में सन् 1978 ई. के बाद रचे गीत संकलित हैं और दूसरे खंड में छायावाद के उत्कर्ष काल में रचे गए गीत हैं। इस संकलन के दूसरे खंड में छायावाद के उत्कर्षकाल के गीत इसलिए संकलित किए गए हैं, जिससे पाठक पहले खंड तथा दूसरे खंड के गीतों को पढ़कर यह समझ सकें कि कुँवर जी की काव्य-साधना में छायावाद की अनुभूति तथा अभिव्यक्ति का सम्पूर्ण काव्य-वैभव आदि से अन्त तक समान रूप से विद्यमान है।
Pratinidhi Shairy : Akhtar Sheerani
- Author Name:
Akhtar Sheerani
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Description:
1905 में रियासत टोंक में जन्मे दाउद ख़ान शीरानी, जो आगे चलकर ‘अख़्तर’ शीरानी के नाम से मशहूर हुए, एक बहुत ही अमीर और प्रभावशाली पिता के पुत्र थे। देश-विभाजन से पहले ही उनके पिता हाफ़िज़ महमूद ख़ान शीरानी लाहौर आकर बस गए और यहाँ भी उनको वही मर्तबा हासिल हुआ जो टोंक में हुआ करता था। ज़ाहिर है कि नौजवान दाउद ख़ान के लिए पैसे-कौड़ी की कोई समस्या नहीं थी; शायरी भी उनके लिए पैसा कमाने का ज़रिया नहीं, शौक़ थी। फिर क्या कारण है कि यही दाउद ख़ान शीरानी बीच में ही तालीम से बेज़ार होकर आवारागर्दी को अपना मशग़ला बना बैठे? क्या कारण है कि ‘अख़्तर’ बनकर उन्होंने ख़ुद को शराब में डुबो लिया? वह कौन सी प्रेरणा थी जिसने उनके और उनके वालिद या घरवालों के बीच कोई सम्बन्ध लगभग छोड़ा ही नहीं? वह कौन सी कसक थी जो उनको हिन्दुस्तान के कोने-कोने में लिए फिरी? इस और ऐसे ही दूसरे अनेक सवालों के जवाब अभी भी पूरी तरह और सन्तोषजनक ढंग से सामने नहीं आए हैं। लेकिन इतना तय है कि ‘अख़्तर’ शीरानी एक बहुत ही निराशाजनक सीमा तक अपने माहौल से कटे हुए थे, और उनके व्यक्तित्व की ठीक यही विशेषता उनके कृतित्व की निर्धारक शक्ति भी बनी।
रहा सवाल ‘अख़्तर’ साहब की शायरी का, तो इसमें शक़ नहीं कि वे बहुत कम उम्र में ही कुल-हिन्द शोहरत के शायरों में गिने जाने लगे थे और पत्र-पत्रिकाओं में उनका कलाम छपने के लिए होड़-सी लगी रहती थी। लेकिन उनकी उदासीनता का, दुनिया से बेज़ारी का आलम यह था कि अपने जीवनकाल में उन्होंने अपना संग्रह प्रकाशित कराने की तरफ़ ध्यान तक नहीं दिया; उनकी रचनाओं का संकलन उनकी मृत्यु के बाद ही हुआ। नागरी लिपि में ‘अख़्तर’ की अभी तक बहुत छोटे-छोटे दो-एक चयन ही सामने आए हैं जो कि पाठक की प्यास को बुझाने का पारा नहीं रखते। मगर यह शिकायत प्रस्तुत संकलन को लेकर नहीं आएगी, इसका हमें विश्वास है।
Shame-Shehre-Yaran
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘ग़ुबारे-अय्याम’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की आख़िरी कविता पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था। साल 1981 से 1984 के बीच लिखी गईं इन नज़्मों और ग़ज़लों का मुख्य स्वर अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने जैसा है। जैसाकि हमें मालूम है उनका निजी और सार्वजनिक जीवन असाधारण ढंग से घटनाप्रधान रहा। जेल भी गए और जीवन के कई साल निर्वासन में भी गुज़ारे। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ की पहली कविता ‘तुम ही कहो क्या करना है’ में फ़ैज़ ने प्रगतिशील सोच वाले उन तमाम लोगों के संघर्ष को शब्द दिए हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए बराबरी और इज़्ज़त के सपने देखे थे; जो जवान हौसलों के साथ एक बड़ी दुनिया बनाने निकले थे, लेकिन उन्हें गहरी निराशा मिली—‘जब अपनी छाती में हमने/इस देस के घाओ देखे थे/था वेदों पर विश्वास बहुत/और याद बहुत से नुस्ख़े थे/...’ पर घाव इतने पुराने और जटिल थे कि ‘वेद इनकी टोह को पा न सके/और टोटके सब बेकार गए’। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ में संकलित ‘एक नग़्मा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’, ‘एक तराना मुजाहिदीने-फ़िलस्तीन के लिए’, ‘हिज्र की राख और विसाल के फूल’ तथा ‘आज शब कोई नहीं है’ जैसी नज़्में और ग़ज़लें उनके आख़िरी दिनों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं लेकिन उम्मीद से ख़ाली वे भी नहीं हैं।
Samudra Se Lautenge Ret Ke Ghar
- Author Name:
Amey Kant
- Book Type:

- Description: collection of poems
Ghazale Akhil ki
- Author Name:
Akhilesh Nigam 'Akhil'
- Book Type:

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Description:
ग़ज़ल की धारा गंगाजल की तरह होती है जो उसमें डुबकी लगाने वाले को पूर्णतया भाव-विभोर कर देती है, दिलो-दिमाग को तरो-ताज़गी देती है तथा नकारात्मक विचारों को दूर कर उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
यह ग़ज़ल कृति ग़ज़ल सम्बन्धी तमाम विशिष्टताओं से अभिमंडित है। ग़ज़लों में कहीं प्रेम व सौन्दर्य की सघन अनुभूतियाँ हैं तो कहीं बनते-बिगड़ते नए समाज की क्रूरता आक्रामकता, अवसरवादिता, बाज़ारवाद व ढेर सारी असंगतियाँ हैं। ग़ज़लों में प्रतिवाद के प्रखर स्वर विद्यमान हैं। जो ग़ज़लें सामाजिक बिडम्बनाओं में डूबी हैं उनमें प्रस्तुत तीक्षता एक विशिष्ट मिज़ाज को प्रकट करती है। ऐसी ग़ज़लों की भाव भूमि निराली ही नहीं प्रभावोत्पादी भी है। ग़ज़लों में भाषा की सादगी के साथ-साथ उनमें अर्थ की गहराई भी है। ग़ज़लों में सहज अभिव्यक्ति पर बल दिया गया है। भले ही उसमें अन्य भाषाई शब्दावली प्रयुक्त जाए।
ग़ज़लों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने की पुरजोर कोशिश की गयी है। सर्व धर्म समभाव, नशा मुक्त समाज की स्थापना, कन्या भ्रूण हत्या का विरोध, पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध अभियान, मानवता के सन्देश के साथ-साथ उत्साहपूर्वक जीवन जीने की बात ग़ज़लों में विद्यमान है।
मीरा याज्ञिक की डायरी
Tulsi Rachna-Sanchayan
- Author Name:
Dr. Ramji Tiwari
- Book Type:

- Description: तुलसी रचना संचयन एक चिर कालिक अभाव की परिपूर्ति का उपक्रम है। समृद्ध भारतीय ज्ञान-परंपरा और लोकमंगल विधायिनी, अप्रतिहत आध्यात्मिक आस्था के सजग प्रहरी महात्मा तुलसीदास का 'रामचरितमानस' भारतीय संस्कृति का श्रेष्ठतम प्रतीक है। किंतु 'मानस' की अतिव्याप्त लोकप्रियता के कारण उनके अन्य मूल्यवान और कालजयी ग्रंथ प्रायः छायावेष्टित ही रह जाते हैं। इस 'संचयन' में गोस्वामीजी के सर्वस्वीकृत बारह ग्रंथों के महत्त्वपूर्ण अंशों को संकलित किया गया है। पाठकों की सुविधा के लिए आरंभ में ही सभी कृतियों का किंचित् विस्तार से परिचय दे दिया गया है, जिससे वे चयनित अंशों में मूल प्रतिपाद्य, शिल्प-सौष्ठव और कवि-दृष्टि का साक्षात्कार कर सकें। अंशों के चयन में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि कृति विशेष का सर्वोत्तम सामने आ जाए और सभी अंशों के योग से राम-कथा एवं गोस्वामीजी के कृतित्व का समग्र स्वरूप स्पष्ट हो जाए, जिससे पाठकों के लिए संपूर्ण तुलसी वाड्मय का सम्यक् रसास्वादन और समाकलन संभव हो सके। पाठकों की सुविधा के लिए परिशिष्ट में कठिन शब्दों के अर्थ दे दिए गए हैं। आशा है, यह संचयन विद्यार्थियों, शोधार्थियों और सामान्य अध्येताओं के लिए प्रेरक और उपकारक सिद्ध होगा।
Mrityunjayee
- Author Name:
Bhagwat Jha Azad
- Book Type:

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Description:
‘मृत्युंजयी’ का मुख्यराग है—लोक मुक्ति। दलित, शोषित, उपेक्षित, प्रताड़ित, पीड़ित; आर्थिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वथा उपेक्षित और अज्ञान के अन्धकार में भटकते अज्ञानी लोगों की बिलखती चेतना के रेगिस्तानी समुद्र में आस्था और संकल्प की सुगम राह बना डालने की युक्ति : “करो उपकृत धरा लोक को/अपना ज्ञान बाँटकर उनको/श्रम से मंडित जग जीवन है/यह रहस्य बतला कर उनको।”
“अपने सत्कर्मों से मानव/जीवन काल बढ़ा सकता है/धर्म आचरण से आत्मा को/वह उदात्त बना सकता है।”
कवि ने यहाँ तत्त्व के लिए संघर्ष किया है, अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए संघर्ष किया है और लोक दृष्टि विकसित करने के लिए जन संघर्ष को अनिवार्य माना है : “मिटा भूत के पद्चिन्हों को/भूल पुराने व्यथा-व्यंग्य को/नई राह पर कदम बढ़ाकर/नई कहानी लिख डाला है/एक नया संसार बनाकर।”
‘मृत्युंजयी’ पढ़कर आप एक ऐसे फूल की कल्पना कर सकते है जो कभी जुही भी हो जाता है तो कभी कमल, कभी मौलश्री, कभी अमलतास तो कभी शेफालिका। ‘मृत्युंजयी’ पढ़ने और उसकी संवेदना के आन्तरिक सतह का स्पर्श करने के पश्चात आपको सहज अनुभव होगा कि महाकवि भागवत झा ‘आज़ाद’ अपने शब्दों से जीवन की परिधि का विस्तार करते हैं। उनकी कविता मानव मन में उच्चतर जीवन मूल्यों के प्रति उत्कंठा और आस्था जगाती है और इस तरह मानवीय नश्वरता के विरुद्ध शाश्वरता का जयगान करती है।
Bhagnveena
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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Description:
भग्न वीणा’ युगदृष्टा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की सुभाषितों से भरी ऐसी विचारप्रधान कविताओं का संकलन, जिसमें महाकवि के जीवन के उत्तरार्द्ध की दार्शनिक मानसिकता के दर्शन होते हैं।
इस संग्रह में संगृहीत कविताएँ परम सत्ता के प्रति निश्चल भावना से समर्पित हैं। मनुष्य–मन की विराटता का यहाँ परिचय होता है।
नई साज–सज्जा और सरल सुबोध भाषा–शैली में प्रकाशित यह कृति सभी प्रबुद्ध पाठकों के लिए पठनीय है।
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