
Magadh
Author:
Shrikant VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
मगध में संगृहीत कविताएँ इतिहास नहीं हैं, इतिहास का सम्मोहन हैं, मायालोक हैं; जिनमें नगर एवं गणराज्य, ‘मगध’, ‘अवन्ती’, ‘कोसल’, ‘काशी’, ‘श्रावस्ती’, ‘चम्पा’, ‘मिथिला’, ‘कोसाम्बी’ धूल में आकार लेते और धूल में निराकार हो जाते हैं बवंडर की तरह। इन कविताओं के नायक और नायिकाएँ हैं, इतिहास के निर्माता और गवाह, चन्द्रगुप्त, अशोक, बिंबिसार, अजातशत्रु, कालिदास, शकटार, वसंतसेना, वासवदत्ता, अम्बपाली...जिनका नाम लेते ही न जाने कितनी कहानियाँ जाग उठती हैं, कितने संस्मरण कौंध जाते हैं।
जरा, मरण, रोग, शोक, पतन, उत्थान, युद्ध, हत्या, जय, पराजय! मनुष्य की समग्र गाथा में महाकाव्यत्व होता है। ये कविताएँ उसी समग्रता और उसी महाकाव्यत्व को प्रस्तुत करने का एक उपक्रम हैं। ये पाठक को स्तब्ध करती हैं, चौंकाती हैं, भयभीत करती हैं, शोक-सन्देश की तरह उन पर छा जाती हैं, अनहोनी की तरह मँडराती हैं और होनी की तरह आकर बैठ जाती हैं। ये बिना चेतावनी दिए पाठक को अपनी गिरफ़्त में ले लेती हैं। इनका असर जादुई है।
जैन और बौद्ध दर्शन का स्मरण दिलाती हुई मगध में संगृहीत कविताएँ काल की एक झाँकी हैं और महाकाल की स्तुति! ये अतीत का स्मरण हैं, वर्तमान से मुठभेड़ और भविष्य की झलक!
मगध श्रीकान्त वर्मा की कविताओं में एक नया मोड़ है।
ISBN: 9788119159109
Pages: 111
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘संशयात्मा’ की कविताओं में हमारे समय की साँवली सच्चाइयाँ दर्ज हैं, दूधिया मिथ्याओं को सहज ही अनावृत करती हुईं। यहाँ झारखंड के पहाड़ों का अरण्यरोदन सुना जा सकता है और महानगर के कोलाहल में अनसुनी रह जानेवाली वह टेर भी जो अधरात लौटकर नींद के मुँदे कपाट खड़काती है। यहाँ इथियोपिया एक काली दुबली दौड़ाक लड़की का नाम है। यहाँ हवाई द्वीप के अपने दलदली ठिकाने में, इकला बचा, विदागीत गाता हुआ ओ-ओ आ-आ पाखी कभी नहीं मिले साइबेरियाई सारसों को सम्बोधित है जो उसके पीछे अनस्तित्व के आकाश में उड़ जानेवाले हैं। मिट रही प्रजातियों और नष्ट हो रही जैव विविधताओं का शोक-लेख इतना मार्मिक है कि मानवता की जयगाथा को मानवीयता की अपमृत्यु का अंदेशा कवलित कर लेता है। रह-रह हिंस्रता के हवाले होता मानव-मन हो, या सीवनों पर उधड़ता समाज—कवि की देखती-लेखती आँख अपलक खुली रहती है। सत्य का निष्कवच साक्षात्कार कवि-कर्म को अनायास उस उपक्रम में बदल देता है जिसे मुक्तिबोध ‘सभ्यता-समीक्षा’ कहते थे।
ज्ञानेन्द्रपति की काव्य-भाषा केवल इस मा’नी में समकालीन चलन से अलग नहीं कि वहाँ न देशज अपांक्तेय है, न तत्सम अछूत; बल्कि इसलिए भी कि वह ज़िन्दगी की धाह से अपना उजास पाती है; उसके शब्द धूल-गर्द और वनफूलों के परागकणों से अटे हैं। कविता केवल भाषा से रची ही नहीं जाती, वह भाषा को भी रचती चलती है और यह काम ज़िन्दगी की निहाई पर होता है—इस तथ्य को भी इन कविताओं को पढ़ते हुए महसूसा जा सकता है। संशयात्मा विनश्यति—गीता की उक्ति है; ‘संशयात्मा’ की कविताओं को पढ़कर बेहिचक यह कहा जा सकता है—संशयात्मा विपश्यति।
Jyamiti
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Shanti Nair
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- Description: भारतीय स्त्री-कविता को बहुत दिनों से तलाश थी एक ऐसे स्त्री-स्वर की जिसके लेखन में निराला की नायिका पूरे ठस्से के साथ हँसती दिखाई दे, सबको दाँव देती हुई-सी हँसी। शान्ति नायर के कविता-संग्रह ‘ज्यामिति’ की कविताओं में सबको दाँव देती उसी हँसी का ताना-बाना मुझे विस्मय-विमुग्ध कर गया। उनमें बृहत्तर जगत के सरोकार अधिक मुखर और स्पष्ट रूप से सामने आते हैं, पर कविता की व्यंजना शक्ति की तिलांजलि दिये बग़ैर। संग्रह की ‘मैच द फ़ॉलोइंग’, ‘संजीवनी’, ‘दूध फटना’, ‘अनुष्ठान’ जैसी कविताओं में हमारे राजनीतिक-सामाजिक जीवन की समस्त विडम्बनाएँ जिस सजग बाँकपन के साथ व्यक्त हैं, वह किसी को भी एक झटके में उठाकर बैठा सकती हैं। ‘ट्रैफ़िक जाम’ कविता भास्वर प्रमाण है इस बात का कि पढ़ी-लिखी मध्यवर्गीय स्त्रियों पर अब कोई यह अभियोग लगा नहीं सकता कि दमित वर्गों-वर्णों की स्त्रियों का दुख उनके निजी दुखों में शामिल नहीं। चौके-चूल्हे, पास-पड़ोस, हाट-बाज़ार, दैनन्दिन जीवन के अन्य जीवंत प्रसंगों से धारोष्ण बिम्ब उठाकर जैसे भक्त-कवयित्रियाँ ध्वनि और रस-बोध से उच्छल कविताएँ सहज ही रच देती थीं, शान्ति नायर भी घरेलू बिम्बों को अद्भुत दार्शनिक उठान दे लेती हैं—‘अनिद्रा’ कविता में उदासीनता में ख़मीर का उठकर रात की सीमा के पार फूल जाना एक ऐसा बिम्ब है जो स्त्री ही साध सकती है। इसी तरह ‘पुट्टू’ कविता में तैयार पुट्टू को साँचे के बाहर कर देने की ख़ातिर जो धक्का दिया जाता है, उसका मर्म स्त्री, एक समधीत स्त्री ही समझ सकती है जो घर के काम ही नहीं करती, सब कामों से समय चुराकर पढ़ती भी है, जिसमें यह समझने की भी विलक्षण प्रज्ञा है कि जीवन की असल चुनौती है ज्ञान का संज्ञान में बदलना। दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना—कैसे—यह आपको शान्ति नायर की कविताएँ बख़ूबी समझा देती हैं। स्त्री की पसलियों का ‘लाड़ला दर्द’, ‘कर्तव्य के बिछावन’ पर यहाँ कुनमुनाकर सोता है पर नींद में मुस्कुराता हुआ।
Tulsi Rachnawali Vol-3
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Dr. Ramji Tiwari
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Mera Dawa Hai
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Sudha Om Dhingra
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Sampoorn Kavitayein : Manglesh Dabral
- Author Name:
Mangalesh Dabral
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मंगलेश डबराल ने अपने अन्तिम दिनों के एक व्याख्यान में कहा था कि ‘यह समय ‘पोएटिक इज़ पॉलिटिकल’ का है। जो काव्यात्मक है, वह राजनीतिक है।’ भाषा को निरर्थक बनाए जाने की सर्वव्यापी कोशिशों के मद्देनज़र काव्यात्मकता को एक सक्रिय हस्तक्षेप की तरह देखते हुए वे शायद कह रहे थे कि वह कविता ही है जो भाषा को उसके मंतव्य वापस कर सकती है, उसे भरोसे के लायक बना सकती है। शब्द और उसके अर्थ को एक कर सकती है।
उनकी अपनी कविता हमेशा यह काम करती रही। उथले अनुभवों को जल्दबाजी में जुटाए गए वाक्यों में प्रस्तुत कर देने के बजाय उन्होंने भाषा की गुरुता को बरकरार रखते हुए उसका प्रयोग किया, उसे काव्यात्मकता दी और सावधानी से चुनी गई शब्दावली में अपने अनुभवों, अपनी उम्मीदों, अपने दुखों और स्मृतियों को अनुस्यूत किया। उनकी कविताएँ पहाड़ के निर्जन में बहती उस निर्मल जलधारा की तरह हैं जिसके पानी में सबकुछ साफ़-साफ़ दिखाई देता है, नीचे तली में पड़े सब पत्थर, एक-एक कण रेत।
लेकिन वह कविता निर्जन की नहीं है, पहाड़ से लेकर मैदानों, शहरों और घर से लेकर दुनिया तक फैला उनके सरोकारों का एक बड़ा संसार वहाँ ऐसी भाषा में अभिव्यक्त होता रहा जो अपनी संरचना में अनायास ही विश्वसनीय और पारदर्शी है, जो अपनी धीरता और दृढ़ता के साथ फौरन आपकी अपनी अभिव्यक्ति हो जाती है।
आज जब मूढ़ता और मूर्खता समाज और राजनीति के सर्वाधिक प्रकाशित और वाचाल घटक हो चले हैं, हमें एक ऐसी अन्तर्यात्रा की ज़रूरत है जो हमें इस दिशाहीन शोर के बीच अकंप रख सके। मंगलेश डबराल की कविताओं के साथ यह यात्रा की जा सकती है।
यह उनकी कविताओं की सम्पूर्ण प्रस्तुति है।
Sparsh ke Gulmohar
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Sangeeta Gupta
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अपने चित्रों एवं फ़िल्मों के लिए विख्यात संगीता गुप्ता के पास निश्चय ही असीम का वरदान है, वे चित्रकार होने के साथ-साथ कवि भी हैं। कला, साहित्य एवं वृत्तचित्र जैसे बहुआयामी क्षेत्रों में उनकी सक्रियता इसी तथ्य को इंगित करती है। जीवन में उनकी गहरी आस्था है, विषमताओं से गुज़रते हुए भी उनका स्वर सदा सकारात्मक ही रहा है। उनका प्रेम व्यक्ति-विशेष तक सीमित नहीं, वह जीवन से जुड़े सब छोटे-बड़े तत्त्वों तक व्याप्त है। इस संग्रह की कविताएँ जीवनोमुखी हैं। उल्लास व आनन्द से भरी कविताएँ उनकी जिजीविषा को उनके चित्रों की भाँति मूर्त से अमूर्त की ओर ले जाती हैं।
‘स्पर्श के गुलमोहर’ संगीता गुप्ता का एक महत्त्वपूर्ण काव्य-संकलन है। 1988 में प्रकाशित उनके पहले काव्य-संग्रह ‘अन्तस् से’ के बाद अब तक की उनकी रचनात्मक सक्रियता में उनके सरोकार निरन्तर परिपक्व हुए हैं। निश्चय ही यह कवि की रचना-यात्रा का एक अहम पड़ाव है।
Pani Ki Prarthana : Paryavaran Vishayak Kavitayen
- Author Name:
Kedarnath Singh
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- Description: ारनाथ सिंह के कविता-कर्म में प्रकृति और पर्यावरण की उपस्थिति बरगद की जड़ों की तरह इतनी गहरी और विस्तीर्ण है कि उनकी कुछेक कविताओं को पर्यावरण-केन्द्रित कहना अन्याय होगा। उनकी कई ऐसी कविताएँ जो आपाततः प्रकृति और पर्यावरण की परिधि से बाहर दिखती हैं, लोक और प्रकृति के ताने-बाने को अन्तःसलिला की तरह समेटकर रखती हैं। उनकी पर्यावरण सम्बन्धी कविताओं का चयन दुष्कर तो है ही, कइयों को ग़ैरज़रूरी भी लग सकता है। यह भी हो सकता है कि इस तरह के चयन में ऐसी कई कविताएँ छूट जाएँ जिनमें प्रकृति और पर्यावरण की चिन्ता थोड़े भिन्न स्वरूप में मौजूद है। इस चयन का उद्देश्य केदारनाथ सिंह की ऐसी कविताओं को एक स्थान पर दर्ज करना है, जिनमें प्रकृति और पर्यावरण या तो चरित्र-नायक की तरह या स्थापत्य के स्तर पर अधिक प्रदीप्त हैं। आज पूरा विश्व जिस तरह से पर्यावरण संकट से गुज़र रहा है, यह चिन्ता का विषय है। यह चिन्ता जब कवि की चिन्ता बन जाती है तो जीवन के संकट का प्रश्न बन जाती है क्योंकि कवि पूरी पृथ्वी का नागरिक होता है। पृथ्वी की सभी आहटें उसकी बंसी के सुर बन जाती हैं। ऐसे विषय जब लेखन में आते हैं तो अक्सर बेसुरे हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में कविताएँ सुरसाधक-शब्दसाधक की तरह आपका सन्तुलन बनाए रखती हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से केदारनाथ सिंह की कविताओं के चयन का यह सम्भवत: पहला प्रयास है। इससे कवि के दृष्टि-विस्तार को समझने और ऐसे विषयों को भाषा में बरतते हुए ज़रूरी संवेदनशील बिन्दुओं को उजागर करने में कुछ सहायता अवश्य मिलेगी, ऐसी उम्मीद है। साथ ही, कवि के कुछ अनचीन्हे बिन्दुओं को भी रेखांकित किया जा सक
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