Looan Ke Behal Dinon Mein
Author:
Sunita JainPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.9
₹
195
Available
Poems
ISBN: 9788190656726
Pages: 112
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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अशोक यादव की ग़ज़लों में अनायास ही बिम्ब और सार्थक प्रतीकों का प्रयोग हो गया है। वे मुस्कुराते हैं, अपने अर्थ को ध्वनित करते हैं और इशारों में अपनी बात कहते हैं। हम सभी जानते हैं कि ग़ज़ल किसी बात को साफ़-साफ़ कहने का तरीक़ा नहीं है, बल्कि इशारों में अपनी बात कहने का मोहक अन्दाज़ है। इस अन्दाज़ से अशोक जी बख़ूबी परिचित हैं। इसलिए उनकी ग़ज़लों में लक्षणा और व्यंजना का सटीक प्रयोग पाया जाता है।
उनकी ग़ज़लें ज़िन्दगी की धूप में पुरवाई का वह शीतल स्पर्श हैं जिससे थके इंसान की थकान मिटती है। मिट्टी की वह सांस्कृतिक सुगन्ध हैं जो सम्पूर्ण वातावरण को अपसंस्कृति के प्रदूषण से बचाती है। आकाश का वह विस्तार हैं जो सबको अपने में समाहित करने का हौसला रखता है और सबके दिलों में पलती हुई उस आग की तरह हैं जो स्नेह और प्रेम से भरे दीपक की लौ में ज्योतित होकर जहाँ अँधेरा है, वहाँ-वहाँ प्रकाश का महोत्सव मनाती हैं और इनसानियत की पहरेदारी करती हैं।
–कुँअर बेचैन
Aalap Mein Girah
- Author Name:
Geet Chaturvedi
- Book Type:

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अपनी प्रतिबद्ध विवेकशील विश्वचेतना में रघुवीर सहाय के बाद की समर्थ हिन्दी कविता समसामयिक, प्रतिभावान युवा कवियों द्वारा इस कदर समृद्ध और अग्रेषित की जा रही है कि अपने पाठक, आस्वादक, समीक्षक और विश्लेषक के सामने अपूर्व, कभी-कभी तरद्दुद और सांसत में डाल देनेवाली, किन्तु शायद हमेशा रोमांचक चुनौतियाँ खड़ी करती जाती है।
गीत चतुर्वेदी की ये कविताएँ राष्ट्र ओर व्यक्ति-दशा ('स्टेट ऑफ़ द नेशन एंड द इंडीविजुअल') की कविताएँ हैं।
उनकी काव्य-निर्मित और शिल्प की एक सिफ़त यह भी है कि वे 'यथार्थ' और 'कल्पित', ठोस और अमूर्त, संगत से विसंगत, रोज़मर्रा से उदात की बहुआयामी यात्रा एक ही कविता में उपलब्ध कर लेते हैं।
इतिहास से गुज़रने का उनका तरीक़ा कुछ-कुछ चार्ली चैप्लिन-सा है और कुछ काल-यात्री (टाइम ट्रैवलर) सरीखा है...
भारतीय समाज के लुच्चाकरण और अमानवीयता पर जो बहुत कम हिन्दी कवि नज़र रखे हुए हैं, गीत चतुर्वेदी उनमें भी एक निर्भीक यथार्थवादी हैं।
—विष्णु खरे
Priyapravas
- Author Name:
Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'
- Book Type:

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‘प्रियप्रवास’ एक सशक्त विप्रलम्भ काव्य है जिसकी रचना प्रेम और शृंगार के विभिन्न पक्षों को लेकर की गई है। इस ग्रन्थ का विषय श्रीकृष्ण की मथुरा-यात्रा है, इसी कारण इसका नाम ‘प्रियप्रवास’ है। कथा-सूत्र से मथुरा-यात्रा के अतिरिक्त उनकी और ब्रज लीलाएँ भी यथास्थान इसमें लिखी गई हैं।...
श्रीकृष्ण को इस ग्रन्थ में एक महापुरुष की भाँति अंकित किया है, ब्रह्म करके नहीं।...जो महापुरुष हैं, उनका अवतार होना निश्चित है। भगवान श्रीकृष्ण का जो चरित्र प्रस्तुत किया है, उस चरित्र का अनुसन्धान करके आप स्वयं विचार करें कि वे क्या थे।
कवि ने अपनी इस कृति में कृष्ण-कथा के मार्मिक यक्ष क्रो किंचित् मौलिकता और एक नूतन दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।
—भूमिका से
Via Nayi Sadi
- Author Name:
Shriprakash Shukla
- Book Type:

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‘वाया नई सदी’ दस्तावेज़ है समय की असहजताओं और अस्वाभाविकताओं का जिन्हें हमने जीवन की स्वाभाविक मुद्राओं की तरह स्वीकार कर लिया है। ये कविताएँ इस स्वीकृति के विरुद्ध उठी मुट्ठियों की तरह हैं। यह समय जहाँ बोलने, चीखने और विरोध करने पर लगातार कठोर होती पाबन्दियाँ हमारी चुप्पियों पर हँसने लगी हैं, और हम प्यार को, जनतन्त्र को, मानवीयता को धीरे-धीरे छीजते देख रहे हैं, और ख़ामोश हैं।
‘हमारे समय के करुण इतिहास पर/हिंसा की तरह दर्ज अभिलाषाओं में/महामौन की तरह खड़ी है एक गाय/जो अभी-अभी खूँटे पर आई है/लहूलुहान’—‘गाय’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ भारत की नयी सदी की उस महाविडम्बना की ओर संकेत करती है जहाँ करुणा में रसे-बसे सांस्कृतिक प्रतीकों को हिंसक बिम्बों में बदलने की कोशिश बाक़ायदा सत्ता के इशारों पर हो रही है और समाज, जैसे कि उसे इसी का इंतज़ार था, इस प्रक्रिया को पूरा करने में जुटा हुआ है : ‘उनमें ग़ज़ब की सामूहिक सहमति है’, और ‘एक सीधी सरल गाय/हिंसक पशु में बदल जाती है।’
श्रीप्रकाश शुक्ल भारतीयता के इस क्षरण के प्रति अपनी असहमति, अपना प्रतिरोध दर्ज कराना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम बोलें, 'चुप्पी के काइएँपन से दूसरे की हत्या करने से बेहतर है/बोल-बोलकर ख़ुद के भीतर जमी काइयों का वध करना।’ वे कहते हैं कि ‘बोलता आदमी जब चुप हो जाए/तो समझिए कि इस व्यवस्था में एक तानाशाह का जन्म हो चुका है/जो हमारे मुँह से प्रवेश करता है और जीभ को चीरता हुआ/अंतड़ियों में उतर जाता है।’ इसीलिए वे एक मुखर आदमी के पक्ष में अपना बयान देते हैं, ‘मनुष्यों के मुद्दे राजनीति से बड़े होते हैं/और अर्थनीति से ज़्यादा उलझे हुए/...कि लोकतंत्र के मुद्दे भुजा से नहीं/भाषा से तय होते हैं।’
श्रीप्रकाश शुक्ल के इस नए संग्रह में कई कविताएँ ऐसी हैं जो इस विचित्र सदी को सीधे-सीधे सम्बोधित हैं और कई ऐसी जो समय के शोर में बिला रही मनुष्यता की सरस, सहज, सकारात्मक भंगिमाओं को आवाज़ देती हैं। उनके ‘नहीं होने’ को रेखांकित करती हैं ताकि हम उन्हें लौटा लाएँ। कोरोना काल के भीषण विद्रूप भी इन कविताओं में अंकित हुए हैं, और प्रकृति के साहचर्य से पल्लवित संवेदनाएँ भी। लेकिन ‘वाया’ की ओट से समय की लय को भंग करनेवाली ताक़तों को लेकर चेतावनी कहीं धूमिल नहीं पड़ती : ‘बादल होंगे लेकिन नमी नहीं होगी/...रक्षक होंगे लेकिन रक्षार्थ कुछ नहीं होगा.../और तब वे अपने वर्तमान से मुक्त होकर/एक शानदार विरासत का जश्न मनाएँगे/...मानव-मुक्त विकास का जश्न!’
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