Kaun Hai Aisa Poojari Dair Mein
Author:
Maikash AkbarabadiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 199.2
₹
249
Available
हिंदी पाठकों के लिए मयकश अकबराबादी के फ़ारसी और उर्दू कलाम का इन्तिख़ाब पहली बार प्रकशित हो रहा है. किताब के संपादक सुमन मिश्र हैं.
ISBN: 9789394494404
Pages: 129
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
हमारे बीच इधर जिन कवियों के रचना-कर्म को गहरी उत्सुकता और उम्मीद के साथ देखा गया है, उनमें डॉ. विनय कुमार भी हैं। उन्होंने बाक़ी सबसे भिन्न रास्ता चुना है। हिन्दी-उर्दू के दोआब को अपनी भूमि मानकर उन्होंने कुछ अनूठी कविताएँ रची हैं। इनमें उनका अपना अनुभव सार रूप में प्रगट होता है। दिल्ली के अनुभव से लेकर गाँव-जवार और देश-दुनिया के प्रसंग यहाँ समाहित हैं। साथ-साथ समसामयिक विषयों एवं जीवन-तथ्यों, राजनीतिक-सामाजिक सन्दर्भों पर उनकी बेलाग, तिलमिला देनेवाली टिप्पणियाँ भी दर्ज होती चलती हैं। विवरणों-ब्योरों का ढेर लगाने के बजाय डॉ. विनय कुछ चुनिन्दा बिम्ब निर्मित करने की कोशिश करते हैं जो वास्तव में अनुभवों का सारांश होते हैं। डॉ. विनय भाषा को अपने ढंग से बरतते हैं—उर्दू-बहुल शब्दों-मुहावरों से जड़ी उनकी भाषा एक ही साथ अनलंकृत, सादी भी है और मीनाकारी से जगमग भी।
कवि विनय कुमार पेशे से मनोरोग-चिकित्सक हैं। हमारी भाषा में ऐसे कवि विरल हैं जो मनोरोग-चिकित्सा में भी यशस्वी हों। इस क्षेत्र में उनके अनुभव अभी कविता में विस्तार से आने को शेष हैं, लेकिन जहाँ-तहाँ उन अनुभवों की पदचाप, उनकी नेपथ्य-झंकार अवश्य सुनी जा सकती है। जटिल मनोगुत्थियों से उलझनेवाले डॉ. विनय कुमार का मुख्य ध्येय इन कविताओं में अपनी बात का सम्प्रेषण है जिसमें वह हमेशा ही अप्रत्याशित रूप से सफल होते हैं। उनकी कविता अपना सम्पूर्ण अर्थ-कोष एक ही पाठ में खोल देती है। ऐसी सम्प्रेषणीयता कविता को साधारण पाठकों के लिए सुगम तो बनाती ही है, साथ ही कविता को वैचारिक हथियार की क्षमता भी प्रदान करती है। डॉ. विनय कुमार की कविता की गुफ़्तगू अवाम से है।
—अरुण कमल
Taak Dhinadhin Bacche Nache
- Author Name:
Rameshraaj
- Rating:
- Book Type:

- Description: मन को लुभाते बालगीत - ताक धिना धिन बच्चे नाचें प्रख्यात कवि रमेशराज बहुआयामी प्रतिभा के धनी है। आपने ग़ज़ल के समानांतर 'तेवरी' आंदोलन चलाया। 'तेवरी' की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए 'तेवरीपक्ष' त्रैमासिक पत्रिका के साथ-साथ अनेक तेवरी संग्रहों का संपादन किया। आपने रसपरंपरा में एक नए रस 'विरोध' की स्थापना की। यही नहीं 'साधारणीकरण' जैसे सर्वमान्य सिद्धांत को चुनौती देते हुए एक नए सिद्धांत 'आत्मीयकरण' को प्रतिपादित किया। कवि रमेशराज एक अच्छे बालगीतकार भी हैं। आपके विगत एक वर्ष के भीतर दो बालगीत संग्रह प्रकाशित होने के उपरांत सद्यः प्रकाशित बालगीत संग्रह 'ताक धिनाधिन बच्चे नाचे' में विविध मौसमों के ऐसे बालगीत हैं जिनमें जाड़े के प्रकोप में स्वेटर अलाव, अंगीठी, गर्म चाय का जिक्र है तो वसंत के आते ही फूल भंवरों, तितलियों की बच्चों के मन को लुभाती मोहक छटाओं के दृश्य हैं।कोयल की प्यारी प्यारी कुहू कुहू की बोली है। होली के वे मदमाते पल हैं जिनमें बच्चे नकली मूछें लगाकर, पिचकारी हाथ में लेकर हुरियारे बने हुए धमाचौकड़ी मचाते हैं। रंग गुलाल उड़ाते है। बच्चों के मन को हर्षित करने वाले प्राकृतिक दृश्यों जैसे बर्फ के पहाड़, नदी, झरनों, विविध त्योहारों पर लिखे गए इन बालगीतों में मिठास है, उल्लास है। इनमें चलते हुए पटाखे है, फुलझडियां हैं। रंगबिरंगी अनारों से फूटती आतिशबाजी है। पतंगें हैं, छक्के लगाता बल्ला है। गेंद है। टिकटिक करती घड़ी है। नाचते मोर हैं। टर्र टर्र करते मेढक हैं। इन गीतों की शब्दावली सरस और रोचक है। विश्वास है इस संग्रह का स्वागत बच्चे ही नहीं साहित्य जगत के रसिक पूरे मनोयोग से करेंगे। आपकी 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।अलीगढ़ के ग्रन्थायन प्रकाशन की ओर से आपको *साहित्यश्री* पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
Hare Ko Harinaam
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

- Description: ‘केवल कवि ही कविता नहीं रचता, कविता भी बदले में कवि की रचना करती है' जैसी अनुभूति को आत्मसात् करनेवाले दिनकर की विचारप्रधान कविताओं का संकलन है 'हारे को हरिनाम', जिसमें उनके जीवन के उत्तरार्द्ध की दार्शनिक मानसिकता के दर्शन होते हैं। इसमें परम सत्ता के प्रति छलहीन समर्पण की आकुलता से भरी ऐसी कविताओं की अभिव्यक्ति हुई है जिनमें मनुष्य मन की विराटता है। हम कह सकते हैं कि ओज और आक्रोश से भरी राष्ट्रीय कविताओं के सर्जक दिनकर की भक्ति-भावनाओं से विह्वल रचनाओं का यह संग्रह संवेदना और आस्था के विरल आयामों से जोड़ने का एक सफल उपक्रम है। और संग्रह का नाम ‘हारे को हरिनाम’ से कुछ मित्रों के चौंकने पर सच स्वीकार करने की साहस-भरी वह मनुष्यता भी, जिसे राष्ट्रकवि दिनकर अपने इन शब्दों में व्यक्त करते हैं–“...किन्तु पराजित मनुष्य और किसका नाम ले? मैंने अपने आपको क्षमा कर दिया है। बन्धु, तुम भी मुझे क्षमा करो। मुमकिन है, वह ताज़गी हो। जिसे तुम थकान मानते हो। ईश्वर की इच्छा को न मैं जानता हूँ, न तुम जानते हो।”
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