Janata Store
Author:
Naveen ChaudharyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
नब्बे का दशक सामाजिक और राजनीतिक मूल्यों के लिए इस मायने में निर्णायक साबित हुआ कि अब तक के कई भीतरी विधि-निषेध इस दौर में आकर अपना असर अन्तत: खो बैठे। जीवन के दैनिक क्रियाकलाप में उनकी उपयोगिता को सन्दिग्ध पहले से ही महसूस किया जा रहा था लेकिन अब आकर जब खुले बाज़ार के चलते विश्व-भर की नैतिकताएँ एक दूसरे के सामने खड़ी हो गईं और एक दूसरे की निगाह से अपना मूल्यांकन करने लगीं तो सभी को अपना बहुत कुछ व्यर्थ लगने लगा और इसके चलते जो अब तक खोया था, उसे पाने की हताशा सर चढ़कर बोलने लगी।</p>
<p>मंडल के बाद जाति जिस तरह भारतीय समाज में एक नए विमर्श का बाना धरकर वापस आई, वह सत्तर और अस्सी के सामाजिक आदर्शवाद के लिए अकल्पनीय था। वृहत् विचारों की जगह अब जातियों के आधार पर अपनी अस्मिता की खोज होने लगी और राजनीति पहले जहाँ जातीय समीकरणों को वोटों में बदलने के लिए चुपके-चुपके गाँव की शरण लिया करती थी, उसका मौक़ा उसे अब शिक्षा के आधुनिक केन्द्रों में भी, खुलेआम मिलने लगा।</p>
<p>यह उपन्यास ऐसे ही एक शिक्षण-संस्थान के नए युवा की नई ज़ुबान और नई रफ़्तार में लिखी कहानी है। बड़े स्तर की राजनीति द्वारा छात्रशक्ति का दुरुपयोग, छात्रों के अपने जातिगत अहंकारों की लड़ाई, प्रेम त्रिकोण, छात्र-चुनाव, हिंसा, साज़िशें, हत्याएँ, बलात्कार जैसे इन सभी कहानियों के स्थायी चित्र बन गए हैं, वह सब इस उपन्यास में भी है और उसे इतने प्रामाणिक ढंग से चित्रित किया गया है कि ख़ुद ही हम यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि अस्मिताओं की पहचान और विचार के विकेन्द्रीकरण को हमने सोवियत संघ के विघटन के बाद जितनी उम्मीद से देखा था, कहीं वह कोई बहुत बड़ा भटकाव तो नहीं था? लेकिन अच्छी बात यह है कि इक्कीसवीं सदी के डेढ़ दशक बीत जाने के बाद अब उस भटकाव का आत्मविश्वास कम होने लगा है और नई पीढ़ी एक बड़े फ़लक पर, ज़्यादा वयस्क और विस्तृत सोच की खोज करती दिखाई दे रही है।
ISBN: 9788183618960
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: भारतीय राजनीति गठबंधन के दौर में में न केवल प्रवेश कर चुकी है, गठबंधन की सरकारों का गठन अब भारतीय लोकतंत्र का वर्तमान और आगामी अतीत नजर आ रहा है। राष्ट्रीय दलों ही नहीं, क्षेत्रीय दलों की पैठ मतदाताओं में जितनी गहरी होती जाएगी, यह चलन बढ़ेगा। क्षेत्रीय मुद्दों पर ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपने क्षेत्रीय दलों पर मतदाता का भरोसा लगातार बढ़ रहा है। यही वजह है कि मतदाता चाहता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी उसका प्रतिनिधित्व उसके क्षेत्रीय दल करें। पिछले लगभग एक दशक से मतदाताओं ने गठबंधन की सरकारों के गठन का जनादेश दिया है। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो उपलब्धियाँ हासिल की हैं, उन्हें सहज शब्दों में कहा जा सकता है-जो कहा, वह कर दिखाया। प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद भी उनकी कथनी और करनी एक ही बनी रही। अपनी बात को स्पष्ट और दृढ़ शब्दों में कहना अटलजी जैसे निर्भय और सर्वमान्य व्यक्ति के लिए सहज और संभव रहा है। मुद्दा चाहे पड़ोसियों से संबंध सुधारने की दिशा में चीन यात्रा का हो, लाहौर बस यात्रा हो या कारगिल से दुश्मन को खदेड़ना, आगरा वार्ता हो या फिर से खेल संबंधों की बहाली, परमाणु परीक्षण हो या डब्ल्यू.टी.ओ. पर दो टूक राय या अमेरिका की मध्यस्थता को ठुकराने का फैसला। अटलजी के शासनकाल में देश की अर्थव्यवस्था ने नई ऊँचाइयों को छुआ। विदेशी मुद्रा भंडार, सूचना प्रौद्योगिकी, आउट सोर्सिंग, किसान बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, ग्रामीण सड़क योजना, स्वर्ण चतुर्भुज राजमार्ग, नदियों का एकीकरण, सागर माला, दूरसंचार सुविधाओं का विकास, ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार जैसी दर्जनों योजनाएँ हैं, जो अटल जी के कार्यकाल में शुरू हुईं और जो आगामी अतीत में भारत को विकसित देशों की पंक्ति में स्थान दिलाने में सफल होंगी। भारतीय राजनीति को अटल जी का योगदान है- समन्वय की राजनीति, सामंजस्य की राजनीति, मिल- जुलकर राष्ट्रहित में आगे बढ़ने की दिशा देना।
Pragatisheel Sanskritik Aandolan
- Author Name:
Murli Manohar Prasad Singh
- Book Type:

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Description:
पिछली सदी के चौथे दशक में प्रगतिशील आन्दोलन ने जिन मूल्यों और सरोकारों को लेकर साहित्य–कला–जगत में हस्तक्षेप किया, उनकी अद्यावधि निरन्तरता को देखने के लिए किसी दिव्यदृष्टि की ज़रूरत नहीं। साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता, वर्गीय शोषण तथा हर तरह की ग़ैरबराबरी के ख़िलाफ़ एक सुसंगत जनपक्षधर विवेक और नए सौन्दर्यबोध के साथ लिखी जानेवाली कविताओं, कहानियों, उपन्यासों, नाटकों और समालोचना की एक अटूट परम्परा सन् 36 के बाद देखने को मिलती है। साहित्य के साथ–साथ चित्रकला, शिल्प, रंगकर्म, संगीत और सिनेमा में भी प्रगतिशील कलाबोध की संगठित अभिव्यक्ति चौथे–पाँचवें दशक में सामने आने लगी थी। तब से कई उतार–चढ़ावों के बीच इस दृष्टि ने मुख़्तलिफ़ कलारूपों में, कहीं कम कहीं ज़्यादा, अपनी मानीख़ेज़ उपस्थिति बनाए रखी है।
आज हम औपनिवेशिक ग़ुलामी या संरक्षित पूँजीवादी विकास से नहीं, नवउदारवादी भूमंडलीकरण, निजीकरण और वित्तीय पूँजी के हमले से रूबरू हैं। बदले हुए वस्तुगत हालात बदली हुई साहित्यिक एवं कलात्मक अनुक्रियाओं–प्रतिक्रियाओं की माँग करते हैं। लिहाज़ा, इन आठ दशकों के दौरान अगर रचनात्मक अभिव्यक्ति की शक्ल और अन्तर्वस्तु में बदलाव न आते तो स्वयं निरन्तरता ही अवमूल्यित होती, इसलिए परिवर्तन, नए वस्तुगत हालात के बीच जनपक्षधर विवेक का नई तीक्ष्णता और त्वरा के साथ इस्तेमाल, यथार्थ की पहचान पर बल देनेवाले प्रगतिशील आन्दोलन की निरन्तरता का ही एक साक्ष्य बनकर सामने आता है।
प्रस्तुत पुस्तक प्रगतिशील आन्दोलन की इसी निरन्तरता पर भी केन्द्रित है। सांगठनिक धरातल पर आन्दोलन के विकास की रूपरेखा बताने तथा सम्भावनाएँ तलाशनेवाले लेखों के साथ–साथ कुछ महत्त्वपूर्ण समकालीन रचनाकारों व रंगकर्मियों के द्वारा अपने–अपने सांस्कृतिक कर्म में प्रगतिशील आन्दोलन का प्रभाव बतानेवाले आत्मकथ्य भी हैं।
Jokhim Bhare Hastakshep
- Author Name:
Hardeep Singh Puri
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- Description: 7 मार्च, 2011 को मैनहैटन के एक आला दर्जे के रेस्टोरेंट में विशेष लंच का आयोजन था। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून और उनकी पूरी ए-टीम मौजूद थी। जल्दी ही स्पष्ट हो गया कि चर्चा का मुख्य विषय लीबिया था, जहाँ कथित रूप से मुअम्मर गद्दाफी की सेना विद्रोहियों के गढ़ बेंगाजी की ओर पूरे विपक्ष को कुचलने के लिए तेजी से बढ़ रही थी। प्रति व्यक्ति 80 डॉलर के इस लंच पर सुरक्षा परिषद् में प्रतिनिधित्व करनेवाले देशों के दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण कूटनीतिज्ञों का एक छोटा समूह बल प्रयोग पर चर्चा कर रहा था, जो कहने को तो नागरिकों की सुरक्षा के लिए था, लेकिन वास्तव में उसका मकसद सत्ता-परिवर्तन करना था। बात आगे बढ़ी और महज दस दिन बाद परिषद् की मंजूरी मिल गई, और फिर सबकुछ बेकाबू हो गया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन राजदूत, हरदीप पुरी परिषद् के मनमाने फैसले लेने के ढंग और इसके कुछ स्थायी सदस्यों में बिना सोचे-समझे दखलंदाजी की मची रहनेवाली बेचैनी का खुलासा करते हैं। संकटपूर्ण हस्तक्षेप दिखाता है कि केवल लीबिया और सीरिया ही नहीं, बल्कि यमन और क्रीमिया में बल प्रयोग के फैसले विनाशकारी रूप से गलत साबित हुए। वरिष्ठ राजनयिक हरदीप पुरी इस प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हैं, जिसके अंतर्गत हस्तक्षेप करनेवाले देश अपने हित को साध लेने के बाद मुँह मोड़ लेते हैं। वह हस्तक्षेपों और सत्ता-परिवर्तन के प्रयासों के विरुद्ध चेतावनी देने की भारत की भूमिका को भी स्पष्ट करते हैं। संयम और सावधानी के पथ पर चलते हुए, संकटपूर्ण हस्तक्षेप दुनिया के ताकतवर देशों को उनके बुरे कर्मों की याद दिलाती है और वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था में सुधार की माँग करती है।
Bharat Ka Nav-Nirman
- Author Name:
Suresh Rungta
- Book Type:

- Description: छह विभिन्न शीर्षकों में विभक्त प्रस्तुत पुस्तक ‘भारत का नव निर्माण’ सुरेश रूँगटा द्वारा समयसमय पर विभिन्न पत्रों में लिखे गए सारगर्भित लेखों का संकलन है। इन आलेखों में पिछले तीनचार वर्षों के दौरान राज्य के अलावा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए बुनियादी एवं सुधारवादी परिवर्तनों का विस्तार से विवरण है। ज्वलंत विषयों तथा घटनाओं, खासकर आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं पर आधिकारिक ढंग से गहन एवं निष्पक्ष चिंतन और विवेचन के साथ उसके उचित समाधान के तर्कसम्मत सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं। मूल रूप से पुस्तक का आलोच्य विषय है—भारत का पुनरुत्थान—भौतिक एवं बौद्धिक स्तरों पर। भारत एवं हिंदुत्व के विरुद्ध फैलाई जा रही भ्रांति एवं अनर्गल प्रवादों का परदाफाश करके रूँगटाजी ने लोकोपयोगी काम किया है। कृषिसमस्या, भूमिअधिग्रहण, पर्यावरण की रक्षा, खाद्यसुरक्षा, गरीबों की बैंक तक पहुँच एवं कालेधन और भ्रष्टाचार की विदाई के अलावा विकास के पैमाने की विकृति और नैतिकता से बढ़ती हुई दूरी आदि से संबंधित लेख भी पुस्तक में संकलित हैं। निस्संशय सामयिक विषयों पर तटस्थ भाव से विवेचन पुस्तक की सार्थकता है। भारत के नवनिर्माण तथा स्वर्णिमउज्ज्वल भविष्य के लिए जिस मनःस्थिति और कार्यकलापों की आज आवश्यकता है, उनपर केंद्रित हैं इस पुस्तक के पठनीय लेख।
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