Farhad Nahin Hone Ke
Author:
Nusrat MehdiPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
This book has no description
ISBN: 9789387310612
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
रघुवीर सहाय का यह अन्तिम कविता-संग्रह है हालाँकि उनका चरम दस्तावेज़ नहीं। ये बची-खुची कविताएँ नहीं हैं जिन्हें हम एक दिवंगत कवि के लिए उचित सहानुभूति से पढ़ें। ये ऐसी रचनाएँ भी नहीं हैं जिनमें किसी तरह की शक्ति या सजगता का अधेड़ छीजन दिखाई पड़े। आज़ादी, न्याय और समता के लिए रघुवीर सहाय का चौकन्ना संघर्ष इस संग्रह में उतना ही प्रखर है जितनी बेचैन है उनकी भाषा की तलाश—अमिधा के जीवन को अभिधा में व्यक्त करने की ज़िद ताकि अर्थान्तर के इस चतुर समय में उनकी बोली के दूसरे अर्थ न लग जाएँ। रघुवीर सहाय की जिजीविषा इस पूरे संग्रह के आर-पार स्पन्दित है : उसमें विषाद है पर निरुपायता नहीं। उसमें दुःख है पर हाथ पर हाथ धरे बैठी लाचारी नहीं। वे अभी जीना चाहते हैं—“कविता के लिए नहीं/कुछ करने के लिए कि मेरी सन्तान कुत्ते की मौत न मरे।”
कविता के दृश्यालेख में फिर बच्चों, लड़कियों, पत्नी, अधेड़ों, परिवार, लोगों आदि के चेहरे हैं। पर उन्हें इतिहास या विचारधारा के दारुयोषितों की तरह नहीं, बल्कि अपने संघर्ष, अपनी लाचारी या अपनी उम्मीद की झिलमिल में व्यक्तियों की तरह देखा-पहचाना गया है। कविता नैतिक बयान है—ऐसा जो अत्याचार और अन्याय की बहुत महीन-बारीक छायाओं को भी अनदेखे नहीं जाने देता, न ही अपनी शिरकत की शिनाख़्त करने में कभी और कहीं चूकता है। यहाँ नेकदिली या भलमनसाहत से उपजी या करुणा के चीकट में लिपटी अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि नैतिक संवेदना और ज़िम्मेदारी का बेबाक-अचूक, हालाँकि एकदम स्वाभाविक प्रस्फुटन है।
अत्याचार और ग़ैरबराबरी के ऐश्वर्य और वैभव के विरुद्ध यह कविता ज़िन्दगी की निपट साधारणता में भी प्रतिरोध और संघर्ष की असमाप्य मानवीय सम्भावना की कविता है। भाषा उनके यहाँ कौशल का नहीं, अपनी पूरी ऐन्द्रिकता में, नैतिक तलाश और आग्रह का हथियार है। बीसवीं शताब्दी के अन्त के निकट यह बात साफ़ देखी-पहचानी जा सकती है कि हिन्दी भाषा को उसका नैतिक संवेदन और मानव-सम्बन्धों की उसकी समझ देने में जिन लेखकों ने प्रमुख भूमिका निभाई है, उनमें रघुवीर सहाय का नाम बहुत ऊपर है। हिन्दी कविता की संरचना, सम्भावना और संवेदना की मौलिक रूप से बदलनेवाले कालजयी कवियों में निश्चय ही रघुवीर सहाय हैं : हिन्दी में गद्य को ऐसा विन्यास बहुत कम मिला है कि वह कविता हो जाए जैसा कि रघुवीर सहाय की कविता में इधर, और इस संग्रह में विपुलता से हुआ है।
अन्तिम चरण में रघुवीर सहाय की कविता पहले जैसी चित्रमय नहीं रही पर उसमें उनकी निरालंकार शैली में, मूर्तिमत्ता है—वह पारदर्शिता जो उनकी कविता की विशिष्टता रही है, अधिक उत्कट, सघन और तीक्ष्ण हुई है। भाववाची को, जैसे ग़ुलामी, रक्षा, मौक़ा, पराजय, उन्नति, नौकरी, योजना, मुठभेड़, इतिहास, इच्छा, आशा, मुआवज़ा, ख़तरा, मान्यता, भविष्य, ईर्ष्या, रहस्य आदि को, बिना किसी लालित्य या नाटकीयता का सहारा लिए, और निरे रोज़मर्रा को कुछ अलग ढंग से देखने की कोशिश में रघुवीर सहाय जैसा सच-ठोस-सजीव बनाते हैं, वह एक बार फिर सिद्ध करता है कि उनके यहाँ जीने की सघनता और शिल्प की सुघरता में कोई फाँक नहीं थी। कविता जीने का, इसके आशयों को आत्मसात् करने और सोचने का ढंग है—कविता जीवन का दर्शन या अन्वेषण या उसकी अभिव्यक्ति नहीं है—वह जीवन है उससे तदाकार है।
कविता अपने विचार बाहर से उधार नहीं लेती, बल्कि ख़ुद सोचती है, अपनी ही सहज-कठिन प्रक्रिया से अपना विचार अर्जित करती है—रघुवीर सहाय की कविताएँ कविता की वैचारिक सत्ता का बहुत सीधा और अकाट्य साक्ष्य हैं। हिन्दी के विचार-प्रमुख दौर में इस कविता-वैचारिकता का ऐतिहासिक महत्त्व है।
इस संग्रह में पहले के संग्रहों की छोड़ दी गई कुछ कविताएँ भी शामिल हैं और इस तरह यह संग्रह रघुवीर सहाय की कविता की यात्रा को पूर्ण करता है। अपनी मृत्यु के बाद भी रघुवीर सहाय लगातार तेजस्वी और विचारोत्तेजक उपस्थिति बने हुए हैं। उनका एक समय था पर आज ऐसे बहुत से हैं जो मानते हैं कि हिन्दी में सदा उनका समय रहेगा।
—अशोक वाजपेयी।
Patthar par Buvai
- Author Name:
Vijay Singh Chauhan
- Book Type:

- Description: विजय सिंह चौहान द्वारा लिखित एक आकर्षक हिंदी कविता संग्रह 'पत्थर पर बुकाई' के गहन छंदों में डूब जाएँ। यह विचारपूर्ण संकलन हिंदी छंदों के माध्यम से गहरी भावनाओं और दार्शनिक चिंतन की खोज करता है। पुस्तक के कवर पर काई से ढके पत्थर की संरचना का एक कलात्मक जल रंग चित्रण है, जो प्रतीकात्मक रूप से कच्चे, प्राकृतिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है जो अक्सर काव्यात्मक अभिव्यक्ति को प्रेरित करते हैं। कविता के शौकीनों और हिंदी साहित्य के प्रेमियों के लिए बिल्कुल सही, यह संग्रह समकालीन हिंदी कविता के लेंस के माध्यम से जीवन की जटिलताओं पर एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करता है। सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति इसे किसी भी साहित्यिक संग्रह के लिए एक उत्कृष्ट जोड़ या हिंदी छंद की गहराई और सुंदरता की सराहना करने वालों के लिए एक सार्थक उपहार बनाती है।
Duhaswapn Bhi Aate Hain
- Author Name:
Ashtbhuja Shukla
- Book Type:

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वर्तमान के ‘अँखुआते बीजों’ को इतिहास के ‘गजाकार’ पत्थरों से कुचलनेवाले इतिहास-बोध की पहचान से चलकर यह संग्रह वर्तमान के ज्योतिदंडों को ‘हैंड्स-अप’ की मुद्रा में सिर पर थामे खड़ी किशोरियों तक जाता है। ‘शराबी पिताओं/और लतखोर माताओं के/प्रेम और नफ़रत और बेचारगी की कमाई’ इन किशोरियों के लिए वह इतिहास-बोध जो इतिहास से पहिया उठाकर लाता है और अपने विजयरथ लेकर निकल पड़ता है, अपनी पुस्तकों से राहत का कोई रास्ता नहीं ढूँढ़ पाता। वह शायद ढूँढ़ भी नहीं पाएगा क्योंकि इतिहासविद् तो इतिहास के अन्त की भविष्यवाणी पहले ही कर चुके हैं।
लोकजीवन की विभिन्न छवियों, भाव और भाषा-भंगिमाओं, प्रकृति और साथ ही नागर जीवन के विभिन्न सकारात्मक-नकारात्मक चित्रों का सार्थक निर्वाह करनेवाली ये कविताएँ एक बार फिर से अष्टभुजा शुक्ल के अलगपन को रेखांकित करती हैं।
तुकान्त और छन्द की शक्ति का पुनराविष्कार करनेवाले कवि अष्टभुजा शुक्ल इस संग्रह की कुछ कविताओं में भी अपने अभीष्ट मन्तव्य को कोई ढील दिए बग़ैर कई याद रह जानेवाली तुकान्त पंक्तियाँ देते हैं। ‘भारत घोड़े पर सवार है’ कविता अपनी लय और साफ़गोई के लिए बार-बार याद की जाएगी। पाठकों की स्मृति को बराबर विचलित करनेवाली अन्य अनेक कविताएँ भी इस संग्रह में शामिल हैं। सौन्दर्य का नितान्त नया आलम्बन प्रस्तुत करनेवाली ‘पाँच रुपए का सिक्का’ हो, मितभाषी ‘मन:स्थिति’ हो, महँगे फलों को मुँह चिढ़ानेवाले अमरूदों के लिए लिखी कविता ‘तीन रुपए किलो’ हो या कुछ लम्बी कविताएँ—जैसे ‘किसी साइकिल सवार का एक असन्तुलित बयान’, ‘युगलकिशोर’, ‘यह बनारस है’, ‘पप्पू का प्रलाप’ और ‘गोरखपुर : तीन कविताएँ’, आदि, ये सभी कविताएँ इस संग्रह की उपलब्धि हैं और आधुनिक हिन्दी कविता-परम्परा की भी।
—शकीलुर्रहमान
Shiv Ki Chhati Par Kali Ka Paon
- Author Name:
Kafir
- Book Type:

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पके हुए प्रेम की एक पहचान यह भी है कि सृजन के शिल्प में वह कभी-कभी कच्चा भी रह जाता है। इस तरह की लिखाई उत्कृष्टता की आकांक्षा व दबाव से मुक्त, सहज और स्वाभाविक होती है। काफ़िर की कविताएँ इसी सरलता से पैदा हुई हैं, जो दुनिया में प्रेम की उपस्थिति पर भरोसा जगाती हैं। इन कविताओं से गुज़रते हुए मैंने पाया कि इनकी बनावट में वैशिष्ट्य का आग्रह नहीं, किंतु जीवन की धड़कती हुई ध्वनि जहाँ-तहाँ गूँजती है।
काफ़िर की कविताओं में महज़ प्रेम नहीं है, बल्कि एक पक्के प्रेमी की तरह तबाह हो जाने की पर्याप्त चाह भी है। इस जटिल सरंचना वाले अंधकारपूर्ण संसार में उनकी कविताओं का प्रेमी ऐसा प्रतीत होता है मानो बिना बिजली वाले किसी गाँव में अमावस की तिथि पड़ी हो और सुदूर आकाश में सितारे जगमगा रहे हों।
इस दौर में प्रेम की कविता एक बड़ी चुनौती से जूझ रही है। प्रेम की अभिव्यक्ति में भावों की तीव्रता को गति की तीव्रता ने विचलित किया है। इस कठिनाई से उबरने का उपाय है एक सघन जीवन से जन्मा धैर्य और अपनी कला के प्रति वीतरागी भाव। काफ़िर की कविता में व्याप्त तीव्र भावनात्मक संवेग और निर्वाण की अवस्था के प्रति मद्धम आसक्ति एक तरह का विरोधाभासी दृश्य रचते हैं। नए-नए उपमान या बिम्बों से विस्मय जगाने वाली तकनीक नहीं, बल्कि उपरोक्त विरोधाभास के आंतरिक संघर्ष से उपजा धैर्य इन कविताओं की प्राणवायु है। —बाबुषा कोहली
Purple Orchids
- Author Name:
Ashish
- Book Type:

- Description: Embark on a poignant journey through the transformative relationship that shaped the author’s life. This heartfelt memoir recounts the joys and laughter that once flourished, finding solace in each other’s company. Yet, unspoken words and unresolved issues weigh heavily, casting shadows on their love. The book delves into unexpressed emotions,unsaid conversations, and the lingering sense of loss.It becomes a powerful outlet for the author’s feelings, offering a testament to the impact of our actions on cherished relationships. Amidst love, regret, and personal growth, this book is a touching tribute to a person who forever changed their life, exploring the beauty and challenges of deep connections while embracingforgivenes and understanding.
Chirag-E-Dair
- Author Name:
Mirza Ghalib
- Book Type:

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मिर्ज़ा ग़ालिब की बनारस-यात्रा मशहूर है। उन्होंने फ़ारसी में, जो उनकी प्रिय काव्यभाषा थी, एक मसनवी ‘चिराग़-ए-दैर' नाम से लिखी थी। यों तो बनारस सदियों से एक पुण्य-नगरी है और उसकी स्तुति में बहुत कुछ इस दौरान लिखा गया है। ग़ालिब की मसनवी उस परम्परा में होते हुए भी अनोखी है जो एक महान कवि की एक महान तीर्थ की यात्रा को सच्चे और सशक्त काव्य में रूपायित करती है। एक ऐसे समय में जब हिन्दू और इस्लाम धर्मों के बीच दूरी बढ़ाने की अनेक प्रबल और निर्लज्ज दुश्चेष्टाएँ हो रही हैं, इस मसनवी का हिन्दी अनुवाद एक तरह की याददहानी का काम करता है कि यह दूरी कितनी बहुत पहले पट चुकी थी।
—अशोक वाजपेयी।
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