Dyodhi Par Aalap
Author:
Yatindra MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
पिछली सदी के आख़िरी वर्षों तक आते-आते यथार्थ कुछ इस क़दर निरावृत्त हुआ कि उसे खोजने और रचना में व्यक्त करनेवाली पुरानी प्रविधियाँ अपने तमाम औज़ारों के साथ निरर्थक लगने लगीं। ‘समाजवाद’ से थोड़ा पहले ही नेहरूवीय भ्रमों का अवसान हुआ और रात के ‘अँधेरे में’ दिखनेवाला फासिस्ट जुलूस प्रभातफेरी और शोभायात्रा में बदल गया। न छिपाने में किसी की रुचि रह गई, न बताने को कुछ ख़ास बाक़ी बचा। हिन्दी की युवतम कविता के मुहावरे में इस विडम्बनात्मक स्थिति को यतीन्द्र मिश्र कुछ यूँ व्यक्त करते हैं : कठपुतलियाँ भी जानती हैं/जो दिखा रहीं वह नक़ली है/जो छिपा रहीं वह असली है...’ (कठपुतलियाँ)।</p>
<p>यथार्थ में हुए परिवर्तन के इस विस्फोट ने पुरानी दुनिया में रचे-पगे अनेक रचनाकारों को स्तब्ध कर दिया। उनकी आँखें फटी रह गईं, पर नए दृश्य अपने आशयों के साथ उनमें समा न सके। इस स्थिति का सामना होने पर कुछ ने तो अपने भी आवरण उतार फेंके और बहती गंगा में कूद पड़े, लेकिन अधिकांश ने पुराने वैचारिक ढाँचे को सख़्ती से पकड़ लिया। सम्भवतः असुरक्षा की भावना के चलते ‘विचारधारा के अवसान’ के युग में बननेवाला वैचारिक स्टीरियोटाइप पहले से अधिक एकीकृत और व्यापक हुआ। परम्परागत आलोचना ने भी इसे सराहा क्योंकि उसकी समस्या भी वही थी, यानी नए यथार्थ के सामने असहजता और अपने अप्रासंगिक हो जाने का भय। दोनों ने एक-दूसरे की कमी को पहचाना और भाषा में उसकी भरपाई की—‘दिखाई नहीं देती बात करती ज़ुबान में/एक ताज़ा आदिम महक/न ऐसा सच/जो निबौलियों की तरह कड़वा हो’ (हम प्रतिदिन)।</p>
<p>इस ‘मतलबपरस्ती’ के बरक्स कुछ स्वर हिन्दी कविता में ऐसे भी उभरे जिन्होंने नए यथार्थ की चमकीली सतह की चकाचौंध से आक्रान्त हुए बिना उसकी गहराइयों में जाने का जोखिम उठाया और वहाँ से भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे तत्त्व एकत्र किए। स्वभावतः, बहुस्तरीय यथार्थ से सम्पर्क और तदनुरूप भाषा-शैली की ईमानदार खोज के कारण उनके स्वर भी अलग-अलग थे, लेकिन उनकी एकसूत्रता भी ठीक उसी वजह से थी—‘इसी भीड़ में रहते हुए भीड़ से अलग/हर एक रोता है अपने-अपने ढंग से/जिस पर दूसरे अपने अनूठे तरीक़ों से हँसते हैं’ (मसखरे)। यतीन्द्र मिश्र की कविता इन्हीं नए स्वरों का प्रतिनिधित्व करती है। धैर्य के साथ चीज़ों को देखना, उनके रहस्यों को विखंडित करना यतीन्द्र मिश्र को विशेष प्रिय है।</p>
<p>यह संग्रह इस अर्थ में अनूठा है कि इसकी प्रायः सभी कविताएँ किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति को विश्लेषित करती, ठोस वस्तुस्थिति की कविताएँ हैं। भावनाओं की अमूर्त्त दुनिया भी है, लेकिन परदे के पीछे। इहलौकिकता के साथ यतीन्द्र मिश्र की कविता की दूसरी विशेषता है इसकी स्मृति-सम्पन्नता। वैसे तो ‘नमक’ जैसी एकाध कविता में अतीत के संघर्ष की स्मृति भी मिलती है, लेकिन आमतौर पर यतीन्द्र के यहाँ मिटती हुई अथवा हाशिये पर जाती हुई मूल्यवान चीज़ों की स्मृति बार-बार आती है। लोक और संगीत प्रायः इसके माध्यम बनते हैं।</p>
<p>‘बारामासा’, ‘लोकगीत’ और ‘क़िस्से-कहानियों की स्मृतियाँ’ ऐसी कविताएँ हैं, जिनमें यथार्थ और स्वप्न के सन्दर्भ में लोकजीवन की स्मृति को सहेजा गया है। ‘आदमी बने रहने की कोशिश’ तथा ‘अष्टपदी’ जैसी कविताओं में यह चिन्ता संगीत के माध्यम से हमारे सामने आती है, जबकि हाशिये पर पहुँच चुके लोग अपनी शक्ति के साथ ‘तकियाकलाम’, ‘मिरासिनें’ तथा ‘कछुआ और खरगोश’ में उपस्थित होते हैं। वैसे तो यतीन्द्र का काव्य-संसार शुरू से आख़िर तक ऐन्द्रिक संवेदनों का संसार है, लेकिन रंगों का जादू उन्हें ख़ासतौर पर सम्मोहित करता है। रंग और संगीत की परस्पर अन्तःक्रिया से निर्मित प्रेम का यह बिम्ब देखें—‘मैं नदी जितना साँवला/तुम सूर्योदय जितनी उज्ज्वल/हमारा प्रेम/कभी बसन्त/ कभी जोगिया में/एक अतिविलम्बित बढ़त’ (हमारा प्रेम)। तेज़ी से भागते समय को रंगों के आकर्षण में रोक रखना कवि को सम्भव जान पड़ता है। लिखना, पढ़ना और रँगना यहाँ परस्पर समानार्थक क्रियाएँ बनकर उभरती हैं। सम्भवतः इसीलिए अपने देशकाल का सबसे सार्थक आख्यान वे ‘सुनो रंगरेज’ जैसी कविता में कर पाते हैं। इस दृष्टि से ‘समय को रँगते हुए पढ़ना’, ‘सहजता के लिए जगह’ और ‘कजरी’ जैसी कविताएँ उल्लेखनीय बन पड़ी हैं।</p>
<p>कवि की यही प्रवृत्तियाँ तानसेन, तुकाराम, उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ और ग़ालिब तक उसे ले जाती हैं और उनके होने का मतलब, उनका सारतत्त्व तलाशती हैं। इसी तलाश में यतीन्द्र अक्सर उन जगहों पर भी पहुँचते हैं, जहाँ जीवन की साधारण परिस्थितियाँ अपनी विशिष्टता में मौजूद हैं। यहाँ उनके साथ कवि का सौहार्दपूर्ण रिश्ता हमें ज़्यादा बड़े आशयों की ओर ले जाता है और इस प्रक्रिया में ‘रफ़ू’, ‘लंगड़ा आम’, ‘सुबह’ व ‘ढोल’ जैसी महत्त्वपूर्ण कविताओं से हमारा सामना होता है। इन कविताओं को पढ़कर कोई भी पाठक मामूली चीज़ों से कविता बना देने की कवि की प्रतिभा को महसूस किए बिना नहीं रहेगा।</p>
<p>यह संग्रह हिन्दी की युवा कविता की सम्भावना, शक्ति और दिशा को प्रकट करनेवाला एक प्रतिनिधि संग्रह है।</p>
<p>—कृष्णमोहन
ISBN: 9788126709496
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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विचारक और संगीतविद् मुकुन्द लाठ चार दशकों से अधिक कविता लिखते रहे हैं। उनका यह संग्रह 1970 से लेकर 2012 के दौरान लिखी कविताओं का संग्रह है। जितना अचरज की बात है कि उन जैसा अधीत विद्वान चुपचाप इतने बरसों से कविता लिख रहा है, उससे कम अचरज की बात यह नहीं है कि ये कविताएँ किसी भी काव्य-निकष या काव्य-रुचि के आधार पर कविताएँ हैं।
इन कविताओं में शास्त्र और लोक दोनों समाहित हैं—उनमें परम्परा की आधुनिक अन्तर्ध्वनियाँ हैं और आधुनिकता के कई मर्म और उत्सुकताएँ गुँथी हुई हैं। वे बहुत सहजता से तत्सम और तद्भव को एक साथ साधती हैं। उन पर विचार हावी नहीं है और वे कविता की काया में हस्तक्षेप नहीं करते हैं बल्कि अनुभव की तरंगित सघनता में घुल-मिलकर आते हैं।
हमारे समय या शायद सभी समयों में मनुष्य की स्थायी विडम्बना यह है कि उसकी स्थिति हमेशा ही अन्तर्विरोध की है। मुकुन्द लाठ की कविता इस स्थायी और अटल अन्तर्विरोध से न मुँह मोड़ती है, न ही उसको सरलीकृत करती है।
मुकुन्द जी के यहाँ शब्द और बिम्ब की लीला के साथ-साथ गहरा विनोद भाव भी सक्रिय है।
कविता अगर एक स्तर पर सार्थक होने के लिए एक समूचे जीवन को उसकी जटिलता और सूक्ष्मता में प्रकट करती है और एक ऐसी मानवीय गरमाहट और हमआहंगी देती है जो अन्यथा सम्भव नहीं है तो मुकुन्द लाठ की कविता भरी-पूरी जीवन-कविता है।
—अशोक वाजपेयी
Dukh Koi Chidiya To Nahi
- Author Name:
Amit Manoj
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- Description: Poems
Ghar Ki Aurten Aur Chand
- Author Name:
Renu Hussain
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- Description: रेणु हुसैन की कविताओं की जो दुनिया है, उसकी केन्द्रीय धुरी है प्रेम। उनकी कविताओं के विषय अपनी पूरी विविधताओं के बावजूद घूम-फिर कर इसी धुरी पर लौट आते हैं लेकिन प्रेम की यह धुरी किसी भी मायने में एकांगी या एकरूपीय नहीं है, बल्कि अपनी पूरी सघनता और विस्तार के साथ बहुआयामी और बहुरूपीय है। आज के समय में जब प्रेम की चारों तरफ़ से घेरा जा रहा है। ‘लव जेहाद’ जैसे फ्रेज़ेज का सायास निर्माण किया जा रहा है, यहाँ प्रेम से पोषित रेणु हुसैन की ये कविताएँ व्यवस्था तथा ऐसे शब्दों के समक्ष मुस्कुराती हुई दिखाई देती हैं। रेणु हुसैन की कविताओं की एक दूसरी धुरी है घर और स्त्री। बात चाहे जो हो रेणु जी की कविताओं में घूमघामकर घर और स्त्री आ ही जाते हैं। लेकिन उनकी कविताओं में स्त्री जितना घर के भीतर है, उतनी वह घर के बाहर नहीं है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि घर के भीतर की स्त्री घर के बाहर नहीं देखती। देखती है लेकिन कम देखती है, मगर जब देखती है तो उसका फ़लक बहुत विस्तृत होता है। इस संग्रह में बहुत-सी कविताएँ इस बात का सशक्त उदाहरण हैं। घर और स्त्री से जुड़ी रेणु जी की कविताएँ इस बात का पता देती हैं कि घर के भीतर स्त्री जितनी है उतना ही स्त्री के भीतर घर। लेकिन रेणु जी की कविताओं में घर और स्त्री का यह सम्बन्ध उन अर्थों में बिल्कुल नहीं है जिन अर्थों में वह जाना जाता है। इन कविताओं में घर बिल्कुल अलग तरीक़े से आता है। अगर घर कहीं किसी रूप में स्त्री को बाँध रहा है तो उतना ही वह उसे आज़ाद भी कर रहा है। स्त्री जितना घर के बाहर जाती है, उतना ही लौटकर घर में वापिस आती है लेकिन अपनी पूरी ठसक, आज़ादी और सम्मान के साथ। ऐसा लगता है कि जैसे स्त्री और घर दोनों एक दूसरे के भीतर लगातार यात्रा कर रहे हैं। लेकिन इस यात्रा में स्त्री लगातार घर से आगे निकलती दिखाई देती है। रेणु हुसैन की कविताओं को देखकर लगता है कि जैसे पेड़ में पत्ते फूटते हैं और फूल आते हैं, ठीक उसी तरह ये कविताएँ काग़ज़ पर चली आई हैं। इन कविताओं में छलक पड़ता और सजीव हो उठता-सा रोमानीपन लगातार हमें अपनी तरफ़ खींचता है। इन कविताओं की भाषा में एक अलग क़िस्म का नयापन और अनोखापन है जो मुसलसल एक वाक्य से दूसरे में गूँजता और दृश्यमान होता हुआ दिखाई देता है। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए लगातार ऐसा लगता रहता है मानो शब्द और वाक्य कवयित्री ने चुने नहीं हैं, बल्कि वे चुन लिए गए हैं भावों के द्वारा अपनी अभिव्यक्ति के लिए। रेणु हुसैन की कविताएँ और उनकी भाषा हमें इस बात का पता देती हैं कि ये रेणु हुसैन की कविताएँ हैं और रेणु हुसैन की भाषा। —रजनी अनुरागी
Aag Jo Jalati Nahin
- Author Name:
Doris Kareva
- Book Type:

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Description:
डोरिस कारेवा एस्टोनिया और बाल्टिक देशों की ही नहीं, यूरोप की सबसे अहम कवियों और क़द्दावर सांस्कृतिक हस्तियों में शुमार हैं, उन कविताओं के लिए प्रशंसित जो लाघव और शिल्पगत कसाव के साथ-साथ जुनून और साहस-प्रदर्शन के सूक्ष्म तवाज़ुन को अंजाम देती हैं। पत्रिका एस्टोनियन लिटरेचर के अनुसार डोरिस की उपलब्धि यह है कि वे ऐसी कविता लिखती हैं जो मनुष्य की आत्मा और सृष्टि के बीच, ध्वनि के साथ-साथ मौन के बीच लरज़ रही रेखा पर सन्तुलन क़ायम करने का प्रयास करती हैं।
‘आग जो जलाती नहीं’ में डोरिस कारेवा की चार दशकों से भी अधिक सुदीर्घ काव्य-यात्रा समाहित है, इस बात को दर्शाती कि वे अपनी कविता में सतत गहराई और सुस्पष्टता के साथ-साथ अर्थ-बाहुल्य और सुर-संगति को एक साथ साधने में सक्षम हैं। यह अनेकार्थता एक ओर सुस्पष्टता का विलोम रचती है और दूसरी ओर ऐसी व्यंजना जो अपने प्रदीपन के चरम पर आप्त वाणी का-सा प्रभाव पैदा करती है।
उनकी कविता की तात्त्विक संवेदना ऐसी है कि उसके नैतिक आवेश की प्रतीति एकदम दैहिक स्तर पर होती है। उन्हें प्रेम की ऐसी तपस्विनी भी कहा जाता है जो प्रेम के चित्रण में निर्भीक भी है और विचारशील भी। प्रेम का यह रचाव “पर्वतीय पवन-सा इतना विशुद्ध एवं उदात्त” है, कि वे किसी अन्य समय और आयाम से लिख रही प्रतीत होती हैं।
AAO BACHCHO TUMHEN BATAYEN
- Author Name:
Ram Badan Ray
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- Description: Children's poems and Short-stories
Padchaap
- Author Name:
Vivek Gupta
- Book Type:

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Description:
ज्ञान, संवेदना, दृष्टि और
विचार जैसे तत्त्वों के बावजूद कविता तब तक सम्भव नहीं होती है जब तक कि भीतर का गहरा
आवेग और जीवन से संपृक्त सूत्र उसमें विद्यमान नहीं होते और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि एक
अपरिभाषित विकलता उसमें नहीं आ जाती। विवेक गुप्ता के पहले संग्रह की ये कविताएँ अपने समय
के दबावों के बीच जीवित मनुष्य की विकलता की कविताएँ हैं। ये कवि होने की इच्छा से नहीं,
मनुष्य हो सकने की आकांक्षाजन्य रचनात्मकता से अपना उत्स पाती हैं। यही कारण है कि कवि
अपने अवसाद के क्षणों में भी, सर्जनात्मकता को सम्भव कर पाता है।
‘मोक्ष प्रश्न’ एवं ‘बुद्ध’ शृंखला की कविताएँ कई प्रश्नों को नए तरह से रखने में समर्थ हुई हैं। दर्शन
और जीवन के बीच उपस्थित रूढ़ि, अन्धश्रद्धा और अन्धविश्वास की वे स्थूल रूप में नहीं, उनके
सूक्ष्म विध्वंसकारी रूप में पहचान करती हैं। कवि की दृष्टि अपनी सहजता में जीवन के सौन्दर्य
को, जीवन की अमरता को चुन लेती है और चीज़ों की रहस्यात्मकता को व्यर्थ कर देती है। वहाँ
‘निर्वाण की आभा की चमक’ में अन्तर्निहित उपहास, काव्य-शक्ति का उदाहरण हो जाता है। इन
कविताओं में शोरगुल को संयम से बताने का धीरज है, चीज़ों को बहुत क़रीब से देखने का उपक्रम
है और वह दृढ़ता भी है जो ‘झंडा उठाए अकेले आदमी’ की सहायता को एक अनन्त जिजीविषा में
बदल देती
है।
यह सब नारेबाजी अथवा सतही राजनीतिक शब्दावली से नहीं, कवि की जीवन में निष्ठा और
प्रतिबद्धता से सम्भव हुआ है, इस बात के सूत्र इस संग्रह की कविताओं में बार-बार मिलते हैं। ‘वह
एक घर था ऐसा’, ‘जुलूस’, ‘विस्थापन’, ‘इस तरह थे हम वहाँ’ जैसी कविताएँ हमारे परिवार और
समाज में लगातार बढ़ती जा रही यंत्रणा और अलगाव की ट्रेजडी की गहन पड़ताल ही नहीं करतीं,
बल्कि ‘ऐसा नहीं होना चाहिए’—इस उत्कट इच्छा का भी प्रकटीकरण करती हुई चलती हैं। एक युवा
कवि के पहले ही संग्रह में भाषा का संयम, शब्दों से नए अर्थ ले सकने की क्षमता, एक पंक्ति से
दूसरी पंक्ति के बीच लम्बी दिखनेवाली कठिन दूरी तय करने का सहज सामर्थ्य और इन सबके बीच
की जगहों में कविता का रचाव देखना सुखद प्रतीति है। अपने समय की पहचान करने का
विश्वसनीय प्रयास भी इन कविताओं में है। ‘न्याय को सबसे क्रूर और ख़तरनाक हथियार में बदल60
देने’ वाले इस समय में ‘मृत्यु के भय के बीच प्रेम की सम्भावना’ को टटोलते हुए यह भी समझना
कि ‘अब वैसा कुछ भी नहीं है, जो जैसा दिखाई देता है’ और ‘अकेले पड़ते जाने की नियति को’
सर्वाधिक उल्लेखनीय भयावहता की तरह रेखांकित करना, कवि की गहरी दृष्टि और क्षमता का ही
प्रमाण है। नयापन और नएपन की खोज भी इन कविताओं को विचारणीय बनाती है।
विडम्बनाजन्य व्यंग्य के सहारे ‘प्रेम के टूटने’ को उपलब्धि कह देना एक नए तरीक़े को इंगित करता
है। उनकी अनेक कविताओं में कहन की नई कला और दीप्ति है। अपने से पूर्व की कविता की सुदीर्घ
परम्परा के सूत्र उनकी कविता में हैं और साथ ही वह प्राणवान प्रखरता भी, जिससे वे अपने तरह के
काव्यलोक का निर्माण करते दिखते हैं।
कविता के उत्सुक पाठक के रूप में मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि ये कविताएँ, इस दौर
में लिखी जा रही ढेर सारी कविता के बीच ‘सच्ची कविता’ की पहचान के संकट को हल करने में
सहायक होनेवाली कविताएँ हैं। यह संग्रह सब दूर एक रचनात्मक दबाव पैदा करेगा, यह उम्मीद भी
इन्हीं कविताओं से पैदा होती है।
—कुमार अंबुज
Lams
- Author Name:
Monika Singh
- Book Type:

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Description:
ग़ज़ल एक विधा के रूप में जितनी लोकप्रिय है, ग़ज़ल कहनेवाले के लिए उसे साधना उतना ही मुश्किल है। दो मिसरों का यह चमत्कार भाषा पर जैसी उस्तादाना पकड़ और कंटेंट की जैसी साफ़ समझ माँगता है, वह एक कठिन अभ्यास है। और अक्सर सिर्फ़ अभ्यास उसके लिए बहुत नाकाफ़ी साबित होता है। यह तक़रीबन एक ग़ैबी है जो या तो होती है या नहीं होती।
मोनिका सिंह की ये ग़ज़लें हमें शदीद ढंग से अहसास कराती हैं कि उन्हें ग़ैब का यह तोहफ़ा मिला है कि ज़ुबान भी उनके पास है और कहने के लिए बात भी। और बावजूद इसके कि ये उनका मुख्य काम नहीं है, उन्होंने ग़ज़ल पर ग़ज़ब महारत हासिल की है। अपने भीतर की उठापटक से लेकर दुनिया-जहान के तमाम मराहिल, ख़ुशियाँ और ग़म वे इतनी सफ़ाई से अपने अशआर में पिरोती हैं कि हैरान रह जाना पड़ता है। शब्दों की किसी बाज़ीगरी के बिना और बिना किसी पेचीदगी के वे अपना मिसरा तराशती हैं जिसमें लय भी होती है और मायने भी।
‘यह सबक मुझको सिखाया तल्ख़ी-ए-हालात ने, साफ़-सीधी बात कहनी चाहिए मुबहम नहीं।' मुबहम यानी जो स्पष्ट न हो। यही साफ़गोई इनकी ग़ज़ल की ख़ूबी है, और दूसरे यह कि ज़िन्दगी से दूर वे कभी नहीं जातीं। वे पूछती हैं—‘जिस मसअले का हल ज़माने पास है तेरे, क्यूँ बेसबब उसकी पहल तू चाहता मुझसे।’ दिल के मुआमलों में भी उनके ख़यालों की उड़ान अपनी ज़मीन को नहीं छोड़ती। दर्द का गहरा अहसास हो या कोई ख़ुशी उनकी ग़ज़ल के लिए सब इसी दुनिया की चीज़ें हैं। ‘ढल रहा सूरज, उसे इक बार मुड़ के देख लूँ, रात लाती कारवाँ ज़ुल्मत भरा वीरान सब/ख़ौफ़ आँधी का कहाँ था, गर मिलाती ख़ाक में, बारहा मिलते रहे मुझसे नए तूफ़ान सब।’
उम्मीद है हिन्दी पाठकों को ये ग़ज़लें अपनी-सी लगेंगी।
Raheem Dohawali
- Author Name:
Vagdev
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- Description: "रहीम अर्थात् अब्दुर्रहीम खानखाना को अधिकतर लोग कवि के रूप में जानते है; लेकिन कविता ने उनका दूसरा पक्ष आवृत कर लिया हो, ऐसा नहीं है। रहीम का व्यक्तित्व बहुआयामी था। एक ओर वे वीर योद्धा, सेनापति, चतुर राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ थे तो दूसरी ओर कवि-हृदय, कविता-मर्मज्ञ, उदार चित्त, उत्कट दानी, मानवीयता आदि गुणों से ओत-प्रोत थे। रहीम का जीवन तीव्र घटनाक्रमों से भरा रहा। चार वर्ष की उम्र में पिता असमय बिछड़ गए। तीन पुत्र युवावस्था में ही एक-एक कर गुजर गए। एक धर्मपुत्र फहीम युद्ध में मारा गया। इसके बाद उपाधि और जागीरदारी छिन गई। इस प्रकार 7 2 वर्ष का उनका जीवन बारंबार कसौटी पर कसा गया; और इस रस्साकाशी ने उन्हें इस कदर तोड़कर रख दिया कि अंत समय में पुनः मिली उपाधि और सत्ता का भी वे उपभोगी नहीं कर सके। इस पुस्तक में उसी युग-पुरुष के जीवन-वृत्त और काव्य-संसार पर प्रकाश डाला गया है। यह पाठकोपयोगी सामग्री अब्दुर्रहीम खानखाना उर्फ रहीम के रचनाकर्म और व्यक्तित्व से परिचित कराएगी। "
Kavishree
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
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- Description: श्री' रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ओजस्वी कविताओं का संग्रह है। कविताओं में प्रखर राष्ट्रवाद, प्रकृति के प्रति उत्कट प्रेम एवं मानव-कल्याण-कामना की मंगल-भावना के दर्शन होते हैं। 'कविश्री' में संगृहीत हैं दिनकर जी की 'हिमालय के प्रति', 'प्रभाती', 'व्याल विजय' एवं 'नया मनुष्य' जैसी प्रसिद्ध प्रदीर्घ कविताएँ, जो हिन्दी काव्य-साहित्य की अमूल्य निधि हैं। दिनकर का काव्य-व्यक्तित्व जिस दौर में निर्मित हुआ, वह राजसत्ता और शोषण के विरुद्ध हर मोर्चे पर संघर्ष का दौर था। इसलिए 'कविश्री' में संकलित रचनाओं को पढ़ना भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में साहित्य के योगदान से भी परिचित होना है। अपने ऐतिहासिक महत्त्व के कारण पाठकों के लिए एक संग्रहणीय और अविस्मरणीय संग्रह।
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