Daste-Tahe-Sang
Author:
Faiz Ahmed 'Faiz'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
नज़्मों, ग़ज़लों, क़तआत और कुछ अन्य रचनाओं के इस संकलन में फ़ैज़ की बेहद मशहूर नज़्मों में से एक ‘आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो’ भी शामिल है। इस नज़्म को उन्होंने 1959 में लिखा था। लाहौर की गलियों से उन्हें मय ज़ंजीरों के घोड़ागाड़ी से क़िला लाहौर की टॉर्चर सेल ले जाया गया था। इस नज़्म के पीछे उनका वही अनुभव है। हर हाल में आज़ादी के शैदाई फ़ैज़ की यह नज़्म उनकी शख़्सियत और शायरी दोनों की ऊँचाई को बयान करती है। 1960 के दशक के शुरुआती सालों में प्रकाशित ‘दस्ते-तहे-संग’ में उस दौर में लिखी हुई अन्य नज़्में, ग़ज़लें और क़तआत भी संकलित हैं जिनमें से कुछ मास्को, बम्बई और लन्दन में भी लिखी गईं। कविताओं के अलावा इस संकलन का ख़ास आकर्षण फ़ैज़ की एक तक़रीर है जो उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय लेनिन शांति पुरस्कार ग्रहण करते हुए उर्दू में दी थी। ‘फ़ैज़... अज़ फ़ैज़’ शीर्षक से उन्हीं का लिखा हुआ एक और आलेख भी यहाँ आप पाएँगे जिसमें वे अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हैं और उस दौरान लिखी गई कविताओं की पृष्ठभूमि से भी हमें अवगत कराते हैं।
ISBN: 9789360861520
Pages: 80
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Shambook
- Author Name:
Jagdish Gupt
- Book Type:

- Description: ‘पद्मपुराण’ के सृष्टिखंड और उत्तरखंड, ‘महाभारत’ के शान्तिपर्व तथा ‘आनन्द रामायण’ के भी अनेक अध्यायों में शम्बूक की कथा समाहित है जिससे इसकी प्राचीनता और परम्परागत मान्यता दोनों ही बातें सिद्ध हो जाती हैं। इस पुस्तक में शम्बूक को भूमिपुत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शम्बूक की तर्कशीलता जीवन के उस पहलू को उद्घाटित करती है जिसकी उपेक्षा करने से राम का ब्रह्मतत्त्व एवं उनकी विराटता अपनी अर्थवत्ता खो देती है। आधुनिक युग की प्रजातांत्रिक समाजवादी विचारधारा इसी बिन्दु पर प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक परम्परा से मेल खा जाती है।
Nepathy Mein Hansi
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

- Description: ये कविताएँ पिछले सात आठ बरसों में लिखी गई है । हमारे आसपास इस बीच बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं । घटनाओं की गीत इतनी तेज और अप्रत्याशित बल्कि कहना चाहिये कि विस्मित कर देने वाली है कि उसे अव- धारणाओं में पकड़ना अगर असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है । दृश्य गहरी मानवीय तकलीफों और बेचैनियों से भरा है । इन कविताओं में .शायद इसके कुछ संकेत मिलें । शायद इसीलिए इन कविताओं में 'मूड्स' की बहुत भिन्नताएं हैं । निराशा, उदासी और उन्माद के इस दृश्य के बीच भी उम्मीद बची है । और यह उम्मीद है, इस देश की विराट श्रमशील जनता-जों बहुत थोड़े में अपना गुजर-बसर करते हुए भी, ज्यादा से ज्यादा जगह को मनुष्य के रहने लायक और सुंदर बनाने में जुटी हैं । ये कविताएँ उस धुँधले उजाले को देख और दिखा सकें ऐसी मेरी इच्छा है ।
Qashqa Kheencha Dair Mein Baitha
- Author Name:
Farhat Ehsas
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Chuka Bhi Hun Main Nahin !
- Author Name:
Shamsher Bahadur Singh
- Book Type:

-
Description:
शमशेर बहादुर सिंह की कविता एक विलक्षण संसार की रचना करती है जिसमें आपको अपनी नहीं उसकी शर्तों पर जाना होता है। इस कविता को आप चलते-जाते ऐसे ही नहीं पढ़ सकते, यह कविता अपने काठिन्य से नहीं, जैसा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं, बल्कि अपनी अद्वितीयता से आपको पढ़ने की आपकी कंडीशंड आदतों से छूटकर वापस नए सिरे से सावधान होने को कहती है।
यह शमशेर का उस दौर में आया संग्रह है जब कवि के रूप में उनका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण हो चुका था। इससे पहले उनकी ‘कुछ कविताएँ’, ‘कुछ और कविताएँ’, और ‘इतने पास अपने’ जैसे संकलन आ चुके थे और हिन्दी कविता की दुनिया में उन्हें लेकर पक्ष-विपक्ष बन चुका था। इसलिए यह संग्रह और भी महत्त्वपूर्ण है, हालाँकि जिस तरह उनके पहले कविता-संग्रह के लिए कविताओं का चयन जगत् शङ्खधर ने किया था, इस किताब में भी चयन उन्हीं का रहा, अर्थात् अब तक अपनी कविता को लेकर उनका संकोच जस का तस था। इस संग्रह की भूमिका में भी वे कहते हैं—‘अपनी काव्य-कृतियाँ मुझे दरअसल सामाजिक दृष्टि से कुछ बहुत मूल्यवान नहीं लगतीं। उनकी वास्तविक सामाजिक उपयोगिता मेरे लिए एक प्रश्नचिह्न-सा ही रही है, कितना ही धुँधला सही।’ अपने काव्य-कर्म को लेकर उनके इसी संशय ने शायद उन्हें भाषा और शिल्प के उस मानक तक पहुँचाया जिसे उनके जीते-जी ही ‘शमशेरियत’ कहा जाने लगा था, और उन्हें ‘कवियों का कवि’। बकौल नामवर सिंह, ‘शमशेर की आत्मा ने अपनी अभिव्यक्ति का जो एक प्रभावशाली भवन अपने हाथों तैयार किया है, उसमें जाने से मुक्तिबोध को भी डर लगता था—उसकी गम्भीर प्रयत्नसाध्य पवित्रता के कारण।’ और बकौल मलयज, ‘एक नितान्त निजी मुहावरा अपने पवित्र दर्प में तना हुआ।’
बहरहाल ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का यह संस्करण हिन्दी की नई पीढ़ी को एक आमंत्रण के रूप में प्रस्तुत है कि वह भी अपने इस पूर्वज, और कविता-परम्परा के श्रेष्ठतम पैमानों में से एक, कवि की कविताओं को जाने।
Sahar Ke Khwab
- Author Name:
Monika Singh
- Book Type:

-
Description:
प्रेम की गहरी व्यंजना, नज़दीकियों और दूरियों की हस्सास अक्कासी, देश और समाज की तल्ख़ हक़ीक़तों से ज़ख़्मी मिसरों और शे’रों की गहरी बुनावट—इन सबसे मिलकर बनती हैं मोनिका सिंह की ग़ज़लें और इस नए ग़ज़ल-संग्रह के ख़्वाब।
कहते हैं सहर यानी सुबह के वक़्त देखे गए ख़्वाब सच हो जाते हैं। इस संग्रह की ग़ज़लों में ऐसे अनेक ख़्वाब सँजोए गए हैं, जिन्हें सच होना ही चाहिए। ख़ुशियों के, प्यार के, मिलन के, समाजी एकता और क़ौमी मुहब्बत के ख़्वाब के साथ मोनिका सिंह अपने वक़्त को भी बहुत गहराई से देखती है; और अपने मन को भी। यही वजह है कि उनके अहसास का सन्तुलन कहीं भी गड़बड़ाता नहीं है।
‘यकायक नींद में आँसू निकल आए; वो ख़्वाबों में मुझे तड़पा गया शायद।’ एक ग़ज़ल का यह शे’र जहाँ इश्क़ की गहरी संवेदना को रौशन करता है, वहीं हमें ऐसे शे’र भी पढ़ने को मिलते हैं: ‘दूरियाँ दो मज़हबों में की जिन्होंने, कह रहे वो/फ़ासले होते नहीं कम, बात इतनी सी नहीं है/ फेंककर स्याही बने हैं देशभक्ति के पुजारी/बँट गए मुद्दों में यूँ हम, बात इतनी सी नहीं है।’
देवनागरी लिपि में लिखी जानेवाली ग़ज़लों ने धीरे-धीरे उर्दू अल्फ़ाज़ से अपनी नज़दीकी बढ़ाई है, आमफ़हम होने के नाम पर सपाट होने की आशंका को उसने काफ़ी कम किया है, और उर्दू ग़ज़ल की बहुस्तरीय अर्थगर्भिता के नज़दीक गई है। यह बात इस संग्रह में भी देखने को मिलती है।
Dhool Ki Jagah
- Author Name:
Mahesh Verma
- Book Type:

-
Description:
“महेश वर्मा महत्त्वपूर्ण युवा कवि हैं जो एक अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके में रहकर भी अपनी कहानी-करनी में अग्रगामी हैं। उनके यहाँ निजी और सामाजिक के बीच इधर बढ़ती दूरी से अलग छिटककर उन्हें निरन्तरता में देखने की कोशिश है। वे भाषा और जीवन में बार-बार अपनी कविता गढ़ते हैं जो उनकी कविता में मानवीयता का इज़ाफ़ा करती है और उसकी प्रासंगिकता बनाए रखती है।”
—अशोक वाजपेयी
Upshirshak
- Author Name:
Kumar Ambuj
- Book Type:

-
Description:
कुमार अम्बुज की ये कविताएँ अभूतपूर्व गहराई के साथ इस महाद्वीप के संकटग्रस्त, दुरभिसन्धि-युक्त जीवन और इसमें जी रहे मनुष्य की मुकम्मल अभिव्यक्तियाँ हैं। जो चीज़ें ओट और अँधेरे में रखी जा रही हैं, उन्हें प्रकाशित करते हुए ये उनकी अचूक पहचान करती हैं। उन सत्ता-शक्ति संरचनाओं और प्रविधियों को भी स्पष्टता से उजागर करती हैं जो नागरिकों को नयी दासता, असहिष्णुता और अमानुषिकता में धकेलने की कोशिश कर रही हैं।
इनमें दैनिक जीवन से उपजा, समकालीन यथार्थ में दूर तक पैठनेवाला एक नया, बहुआयामी शब्द-संसार दिखाई देगा। यहाँ सामाजिक-राजनीतिक चेतना और ऐतिहासिक समझ के साथ एक भविष्य-दृष्टि लगातार सक्रिय है। ये अपनी प्रखर काव्यात्मकता क़ायम रखते हुए, दख़ल और प्रतिरोध की जुझारू ज़मीन तैयार करने का साहस दिखाती हैं। प्राकृतिक और राजनीतिक आपदाओं का फ़र्क़ रेखांकित करती हैं। इनमें लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता के पक्ष में एक अथक, असमाप्त जिरह है।
इनमें वंचितजन की हताशा, जिजीविषा और उनके कारणों की अनवरत पड़ताल है। यहाँ रागात्मक, पारिवारिक सम्बन्धों, प्रेम, विस्थापन, अकेलेपन और अस्मिता की मार्मिक कविताओं में भी सभ्यता की अन्वेषी समीक्षा निहित है। अपने दृष्टिसम्पन्न शिल्प से ये, कविता की लिजलिजी, रूमानी और रूढ़ पदावलियों की परिधि तोड़ देती हैं। स्मृति, मृत्यु, संत्रास, न्याय, आशा और अस्तित्व के प्रश्नों को ये किसी विस्मयकारी अलौकिकता से नहीं बल्कि अविस्मरणीय लौकिक ढंग से सम्बोधित करती हैं।
व्यापक आशयों की इन रचनाओं से गुज़रते हुए समाज एवं मनुष्यता के प्रति असीम चिन्ता और लगाव का आवेग महसूस किया जा सकता है और यही इन कविताओं का आख्यान और इनका वास्तविक उपशीर्षक भी है। अर्थगर्भी भाषा का यह आत्मानुशासन बहुआयामी नैतिकता, बौद्धिकता और प्रतिबद्धता से उपजता है।
सहधर्मी कलाओं से संवादरत और विषय-वैविध्य से भरी ये कविताएँ हमारे समय में ‘विडम्बना के नए वृत्तांत’ तथा ‘विचारधारा के सर्जनात्मक उपयोग’ का भी उदाहरण हैं। ये कविता की नई ताक़त, अनन्यता और प्रौढ़ता का सबूत हैं।
Araj-Nihora
- Author Name:
Prakash Uday
- Book Type:

- Description: अगर आप भोजपुरी की मौजूदा सांस्कृतिक मुख्यधारा के साथ आलोचनात्मक सम्बन्ध विकसित करते हुए भोजपुरी जातीयता की पुनर्खोज करना चाहते हैं, अगर आप जीवन-संघर्षों के रस में सनी-पगी भोजपुरी की दूसरी परम्परा से अपने को जोड़ते हैं, अगर आप दया और घृणा के ध्रुवों के बीच विकसित होते इस इलाक़े के जीवन से कोई साबक़ा रखते हैं, तब यह संग्रह आपके ही लिए है।
Duniya Roj Banti Hai
- Author Name:
Alokdhanva
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी साहित्य में आलोकधन्वा की कविता और काव्य-व्यक्तित्व एक
अद् भुत सतत घटना, एक ‘फ़िनोमेनॅन’ की तरह हैं। वे पिछली चौथाई सदी से भी अधिक से कविताएँ लिख रहे हैं लेकिन बहुत संकोच और आत्म-संशय से उन्होंने अब यह अपना पहला संग्रह प्रकाशित करवाना स्वीकार किया है और इसमें भी रचना-स्फीति नहीं है। हिन्दी में जहाँ कई वरिष्ठ तथा युवतर कवि ज़रूरत से ज़्यादा उपजाऊ और साहिब-ए-किताब हैं, वहाँ आलोकधन्वा का यह संयम एक कठोर वग्रत या तपस्या से कम नहीं है और अपने-आप में एक काव्य-मूल्य है। दूसरी तरफ़ यह तथ्य भी हिन्दी तथा स्वयं आलोकधन्वा की आन्तरिक शक्ति का परिचायक है कि किसी संग्रह में न आने के बावजूद ‘जनता का आदमी’, ‘गोली दागो पोस्टर’, ‘भागी हुई लड़कियाँ’ और ‘ब्रूनो की बेटियाँ’ सरीखी कविताएँ मुक्तिबोध, नागार्जुन, रघुवीर सहाय तथा चन्द्रकान्त देवताले की काव्य-उपस्थितियों के समान्तर हिन्दी कविता तथा उसके आस्वादकों में कालजयी-जैसी स्वीकृत हो चुकी हैं। 1970 के दशक का एक दौर ऐसा था जब आलोकधन्वा की ग़ुस्से और बग़ावत से भरी रचनाएँ अनेक कवियों और श्रोताओं को कंठस्थ थीं तथा उस समय के परिवर्तनकामी आन्दोलन की सर्जनात्मक देन मानी गई थीं। आलोकधन्वा की ऐसी कविताओं ने हिन्दी कवियों तथा कविता को कितना प्रभावित किया है, इसका मूल्यांकन अभी ठीक से हुआ नहीं है। श्रोताओं और पाठकों के मन-मस्तिष्क में प्रवेश कर उन्होंने कौन-से रूप धारण किए होंगे, यह तो पता लगा पाना भी मुश्किल है।कवि आलोचक यदि चाहते तो अपना शेष जीवन इन बेहद प्रभावशाली तथा लोकप्रिय प्रारम्भिक रचनाओं पर काट सकते थे—कई रचनाकार इसी की खा रहे हैं—किन्तु उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा को यह मंजूर न था तो नितान्त अप्रगल्भ तरीक़े से अपना निहायत
दिलचस्प, चौंकानेवाला और दूरगामी विकास कर रही थी। उनकी शुरुआती विस्फोटक कविताओं के केन्द्र में जो इनसानी क़दरें थीं, वे ही परिष्कृत और सम्पृक्त होती हुई उनकी ‘किसने बचाया मेरी आत्मा को’, ‘एक ज़माने की कविता’, ‘कपड़े के जूते’ तथा ‘भूखा बच्चा’ जैसी मार्मिक रचनाओं में प्रवेश कर गईं। यों तो आलोकधन्वा हिन्दी के उन कुछ कवियों में से एक हैं जिनकी काव्य-दृष्टि तथा अभिव्यक्ति हमेशा युवा रहती हैं (और इसलिए वे युवतर कवियों के आदर तथा आदर्श बने रहते हैं), किन्तु लगभग अलक्षित ढंग से उन्होंने क्रमशः ऐसी प्रौढ़ता प्राप्त की है जो सायास और ओढ़ी हुई नहीं है और बुज़ुर्गियत की मुद्रा से अलग है। विषय-वस्तु, शिल्प, शैली तथा रुझानों में एक साथ सातत्य तथा विकास, सरलता तथा जटिलता, ताज़गी और परिपक्वता देखनी हों तो ‘छतों पर लड़कियाँ’, ‘भागी हुई लड़कियाँ’ और ‘ब्रूनो की बेटियाँ’ को इसी क्रम में पढ़ना दिलचस्प होगा जिनमें भारतीय किशोरियों/स्त्रियों के स्निग्ध और त्रासद जीवन-सोपान तो हैं ही, आलोकधन्वा के कवि-जीवन तथा काव्य-चेतना के अग्रसर चरण भी साफ़ नज़र आते हैं।
अभिव्यक्ति के सभी ख़तरे उठाने की मुक्तिबोध की जिस जागरूक सर्जनात्मक प्रतिज्ञा को कुछ कवियों और अधिकांश आलोचकों ने एकांगी साहसिकता की पिष्टोक्ति बना डाला है, उसे आलोकधन्वा ने उसके सभी अर्थों में सही समझकर अपनी पिछली कविताओं से परे जाने का फ़ैसला किया है। किसी कवि के लिए अभिव्यक्ति का एक सबसे बड़ा जोखिम अपनी ही पिछली छवि में आगे या अलग जाने में रहता है और वह ऐसा किसी योजना या कार्यक्रम के तहत नहीं करता, बल्कि उसके द्वारा जिया तथा देखा जा रहा जीवन तथा उस जीवन की उसकी समझ उससे वैसा करवा ले जाते हैं। जब ‘गोली दागो पोस्टर’ और ‘जनता का आदमी’ का कवि एक असहायता जो कुचलती है और एक उम्मीद जो तकलीफ़ जैसी है तथा एक ऐसे अकेलेपन, एक ऐसे तनाव जिसमें रोने की भी इच्छा हुई लेकिन रुलाई फूटी नहीं की बात करता है तो वह दैन्य या पलायन नहीं, बल्कि उस विराट मानवता की इकाई होने का ही स्वीकार है जिसके ऐसी तकलीफ़ों से गुज़रे बिना कोई बदलाव सम्भव नहीं है, क्योंकि यही एहसास इस दुनिया को फिर से बनाने की संघर्ष-भरी अभिलाषा के केन्द्र में है।
आलोकधन्वा ने शुरू नागार्जुन की परम्परा में किया था और जहाँ वे आज खड़े हैं वह नागार्जुन और शमशेर बहादुर सिंह की मिली-जुली ज़मीन लगती है जिसे उन्होंने दोनों वरिष्ठों की अलग-अलग उर्वरता से आगाह रहते हुए अपने समय और काव्य-समझ के मुताबिक़ अपने लिए तैयार किया है। आलोकधन्वा में एक वैश्विक तथा भारतीय दृष्टि तो हमेशा से थी, धीरे-धीरे वह अपने आसपास के तथा व्यापक सचराचर पर भी गई। हम कह सकते हैं कि यदि पहले वे मात्र सिंहावलोकन के कवि थे तो अब उनकी निगाह चीज़ों और ब्योरों में भी जाती है और उनके ज़रिए वे आदमी और व्यक्ति होने के गहरे एहसास तक पहुँचते हैं और उसे अपनी कविता में चरितार्थ करते हैं। उनके काव्य-संसार में अब इनसान और इनसानी सरोकार तो हैं ही, पेड़, पगडंडी, पतंग, पानी, रास्ते, रातें, सूर्यास्त, हवाएँ, बिकरियाँ, पक्षी, समुद्र, तारे, चाँद भी हैं। वे पगडंडी, चौक, रेल जंक्शन से निजी और सार्वजनिक दुनिया में पहुँचते हैं, थियेटर, मैटिनी शो और पहली फ़िल्म की रोशनी में स्मृतियों में जाकर अपनी संवेदना तथा सृजनशीलता के स्रोत खोजते-पाते हैं और समुद्र की आवाज़ उनके लिए किसी रहस्यमय अनादि-अनन्त की नहीं, आन्दोलन और गहराई की है। अति-मुखरता के लिए तो इसमें अवकाश ही नहीं है, आविष्ट भावातिरेक से भी वे अपनी ऐसी कविताओं में बचे हैं। आलोकधन्वा ने एक ऐसी भाषा और ऐसी तराशी हुई अभिव्यक्ति हासिल की है जिनमें सभी अतिरिक्त और अनावश्यक छीलकर अलग कर दिया गया है और तब ‘शरद की रातें/इतनी हलकी और खुली/जैसे पूरी की पूरी शामें हों सुबह तक/जैसे इन शामों की रातें होंगी/किसी और मौसम में’ या ‘समुद्र मुझे ले चला उस दोपहर में/जब पुकारना भी नहीं आता था/जब रोना ही पुकारना था’ सरीखी क्लासिकी रंगत की पंक्तियाँ प्राप्त होती हैं। यह अकारण नहीं है कि कवि मीर का ज़िक्र करता है। आलोकधन्वा ‘जो घट रहा है’ उसके कवि थे और रहेंगे लेकिन अब उसके भी प्रवक्ता हैं जिसका ‘होना’ सामान्यतः नहीं माना-पहचाना जाता। उन्हें उम्मीद है कि ‘कभी लिखेंगे कवि इसी देश में/इन्हें भी घटनाओं की तरह’ जबकि सच यह है कि वे स्वयं उस सबको घटना बनाने की क्षमता प्राप्त कर चुके हैं जो निश्चेष्ट, अमूर्त तथा अचल लगता है। चेतन में चेतना तो सभी देख लेते हैं, उसके साथ जड़ में चैतन्य को स्थापित कर पाना आलोकधन्वा जैसे अनन्य, दुस्साहसी सर्जक के बूते की ही बात है जो इस प्रक्रिया में अपनी प्रतिबद्धता को सम्पूर्ण बनाने की राह पर अग्रगामी नज़र आता है।
—विष्णु खरे
Panchamrit
- Author Name:
Ashwini Kumar Dubey
- Book Type:

- Description: चामृत’ में मैंने संगीत मार्तण्ड रजब अली ख़ाँ, उस्ताद अमीर ख़ाँ, पण्डित कुमार गन्धर्व, श्री कृष्णराव मजुमदार एवं आचार्य गोकुलोत्सव महाराज के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा की है। इन हस्तियों का क़द कितना बड़ा है, यह हमारी नई पीढ़ी को अच्छी तरह समझना चाहिए। दरअसल, शास्त्रीय संगीत एक अमूर्त कला है, जिसका आनन्द लेने के लिए आपको शास्त्रीय संगीत के व्याकरण को जानने की ज़रूरत नहीं है। धीरे-धीरे, सुनते-सुनते अपने आप समझ विकसित होने लगती है और आनन्द आने लगता है। 'पंचामृत’ पढ़कर आप एक बार ज़रूर इन पंच विभूतियों को सुनना और उनके बारे में पढ़ना चाहेंगे। शास्त्रीय संगीत की साधना बहुत कठिन है। यह अत्यन्त श्रम और समय साध्य है। बाबा कहा करते थे—शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए एक उम्र बहुत कम है। जबकि स्वयं वे 108 वर्षों तक जिए। 'पंचामृत’ में सम्मिलित सभी विभूतियों ने अपने समय को भली-भाँति पहचाना और उसके एक-एक पल का उपयोग किया, तब जाकर वे इतने महान संगीतकार हो सके। सचमुच, उनको सुनना एक नए अनुभव से गुज़रना है। —प्राक्कथन
Pratinidhi Kavitayein : Ravindra Bharati
- Author Name:
Ravindra Bharti
- Book Type:

- Description: रवीन्द्र भारती की कविताएँ साधारण लोगों और चीज़ों की साधारणता को इस तरह आलोकित करती हैं कि वे उत्सवधर्मी और बड़बोली असाधारणताओं के सम्मुख न सिर्फ़ उनका विकल्प बल्कि उनसे ज़्यादा गरिमापूर्ण और अर्थवान लगने लगती हैं। बहुत नज़दीक और बहुत जाने-पहचाने हमारे संसार में ही उनकी कविता ऐसे बिन्दुओं को चिह्नित करती चलती है जहाँ हम एक मनुष्य के रूप में सहजभाव से रह सकते हैं। सरल और आमफ़हम शब्दावली में अनुभूति के सघन क्षणों को कविता में ले आना रवीन्द्र भारती की विशेषता है, जिसे अपने देशज बोध के साथ वे एक अविस्मरणीय दृश्य के रूप में पाठक के सामने कर देते हैं। आज के काव्य-जगत में उनकी कविताओं को पढ़ना कविता की एक अत्यन्त प्राकृतिक भूमि से साक्षात्कार करना है, वह भूमि जहाँ कुछ भी ऐसा नहीं जो कविता न हो सके।
Mera Ghar
- Author Name:
Trilochan
- Book Type:

-
Description:
style="font-weight: 400;">वयोवृद्ध त्रिलोचन इस समय हिन्दी के सम्भवतः सबसे गृहस्थ कवि हैं, इस अर्थ में कि हिन्दी भाषा अपनी जातीय स्मृतियों और असंख्य अन्तर्ध्वनियों के साथ, सचमुच उनका घर है। वे बिरले कवि हैं जिन्हें यह पूरे आत्मविश्वास से कहने का हक़ है कि ‘पृथ्वी मेरा घर है/अपने इस घर को/अच्छी तरह मैं ही नहीं जानता।’ इस घर में हुब्बी, पाँचू, टिक्कुल बाबा आदि सब रसे-बसे हैं। त्रिलोचन की कविता साधारण से साधारण चरित्र या घटना या बिम्ब को पूरे जतन से दर्ज करती है, मानो सब कुछ उनके पास-पड़ोस में है, कि ‘तारे सब सहचर हैं मेरे’।
इस संग्रह में त्रिलोचन की ऐसी कई कविताएँ पहली बार पुस्तकाकार संगृहीत हो रही हैं जो उनके किसी पिछले संग्रह में नहीं आ सकी थीं और इधर-उधर पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थीं। इस चयन में बिना चीख़-पुकार मचाए, ‘पीड़ा-संग्रह’ है और यह मानने की बेबाकी भी
कि—‘मुझे अपने मरने का
थोड़ा भी दु:ख नहीं
मेरे मर जाने पर
शब्दों से मेरा सम्बन्ध
छूट जाएगा।’
त्रिलोचन की कुछ अवधी कविताएँ इस संग्रह को ‘घर की बोली’ देती हैं। उनमें न सिर्फ़ ‘भाखा की महिमा’ प्रगट है, पर स्वयं त्रिलोचन का अत्यन्त स्पन्दित भाषा संसार भी—एक बार फिर। —अशोक वाजपेयी
In Dino
- Author Name:
Kunwar Narain
- Book Type:

-
Description:
‘इन दिनों’ संग्रह कुँवर नारायण के विशद काव्य-संसार में ले जाता है। भाषा और विषय की विविधता अब तक उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जा चुके हैं। स्थानों और समयों को लेकर ये कविताएँ अपनी एक उन्मुक्त दुनिया रचती हैं जिनमें अनवरत जीवन की खुली आवाजाही है। इनमें टूटने का दर्द भी है, और उसे बनाने का उत्साह भी। इनमें यथार्थ की पक्की पकड़ है, उसका खुरदुरा स्पर्श, साथ ही उसका सहज सौन्दर्य भी। जीवन और विचारों से जूझती ये कविताएँ उस सन्धिरेखा पर अपने को सम्भव बनाती हैं जो एक दूसरे का निषेध नहीं, गहरी मानवीय संवेदनाओं का आधार है। राजनीतिक और सामाजिक विकृतियों और अराजकता के समय ये कविताएँ समस्याओं से वाबस्तगी को पूरी ज़िम्मेदारी से प्रतिबिम्बित करती हैं। कभी आयरनी, कभी हमदर्दी के स्वर में वे मनुष्य की सबसे संवेदनशील प्रतिक्रियाओं को जगाती हैं।
कुँवर नारायण की कविताओं में सीधी घोषणाएँ और फ़ैसले नहीं हैं, जीवन की बहुतरफ़ा समझ का वह धीरज है जो एक प्रौढ़ जीवन-विवेक और दृढ़ नैतिक चेतना से बनता है। समाज, राजनीति, व्यवसायीकरण आदि को लेकर उनकी कविताओं में दूरन्देशी फ़िक्र है जो लोक-जीवन के व्यापक हितों को केन्द्र में रखकर सोचती है—आज के मनुष्य की पीड़ा और जिजीविषा के साथ सार्थक संवाद स्थापित करने की कोशिश करती है। क्लासिकल अनुशासन में रहते हुए भी ये कविताएँ आदमी के बुनियादी आवेगों को भी इस तरह व्यक्त करती हैं कि एक सतर्क पाठक उनके साथ आसानी से एकात्म हो सकता है। कई जगह मिथकीय और ऐतिहासिक सन्दर्भों द्वारा कवि वर्तमान में हमारे यथार्थ-बोध को अधिक विस्तृत, गहरा और विवेकी बनाता है। ये कविताएँ आपका परिचय हिन्दी के उस अप्रतिम कवि से कराएँगी जिसकी ‘चक्रव्यूह’, ‘आत्मजयी’, ’अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’ जैसी कृतियाँ हिन्दी साहित्य की मूल्यवान धरोहर बन चुकी हैं।
TaLash
- Author Name:
Piyush Daiya
- Book Type:

- Description: पीयूष की ये कविताएँ वेदना की सान्द्र निजता को कुछ इस तरह रच रही हैं, जहाँ पाठक उसे अपने अनुभव, स्मृति और कल्पनाशीलता में मुक्त भाव से पा सके। विषयी और विषय को देखते-महसूस करते, थोड़ा बहुत अपने अनुभवों की भाषा में जानते पाठक पाता है कि यहाँ वेदना की प्रगाढ़ता, जो सहज भाव से किसी अन्तरंग की मृत्यु से जुड़ी महसूस होती है, एक तरह की स्वरता भी अपने में समोए है। यह प्रशान्त और गम्भीर स्वरता ही इन्हें पाठक के अन्तर्मन तक पहुँचाती है। संरचना की ज़ाहिर भिन्नता का कारण भी सम्भवतः यही है कि कहने, सहने, रहने, जीने के अन्दर कहीं वह मरना भी शामिल है, जिसके अ-भाव को, भाव की ऐसी धीर और इसी धीरता से सम्पृक्त ऐसी अनेक स्वरीय ललित भाषा में कहा जा सके, जो दु:ख की इस प्रगाढ़ता को दो टूक आर्थी स्तर पर कहने की औसत सांसारिकता या सामाजिकता से भिन्न है। वेदना और अस्ति-चिन्ता का आत्मानुभवी एहसास इसकी गति-प्रकृति और शिल्प में प्रयोगधर्मिता को निरा खेल बनने से रोकते हैं—इसलिए ही यहाँ पाठ का मुक्त अवकाश बिलकुल ही अलग और मौलिक है। इतने निकट से ‘मृत्यु’ के अनुभवों को सामने लाती इन कविताओं में ‘दु:ख’ उस तरह से वाचाल नहीं लगता कि उसे तात्कालिक भावुक प्रतिक्रिया की तरह देखा जा सके। शायद रचने के दौरान या कि रचना-प्रक्रिया में कविता की अपनी परम्परा की स्मृति की सक्रियता भी रही हो, कला की अपनी भाषा को स्वायत्त करने की ऐसी चेष्टा भी, जो उसे दु:ख के निरे आत्म-प्रकाशन से थोड़ा अलग कर सके। इन कविताओं में प्रतिबिम्बित करते बिम्बों की जगह, एक तरह की पारिवारिक स्थानिकता है, जो इसकी भाषा की सर्जनात्मकता का उत्स और आधार दोनों है। और यही वजह है कि इसमें जीवन और मृत्यु युगपद चित्रों की तरह, बल्कि गतिमान चित्रों की तरह गति करती लगती है। —प्रभात त्रिपाठी
Srishti Par Pahara
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

- Description: केदारनाथ सिंह का यह नया संग्रह कवि के इस विश्वास का ताज़ा साक्ष्य है कि अपने समय में प्रवेश करने का रास्ता अपने स्थान से होकर जाता है। यहाँ स्थान का सबसे विश्वसनीय भूगोल थोड़ा और विस्तृत हुआ है, जो अनुभव के कई सीमान्तों को छूता है। इन कविताओं में कवि की भाषा और पारदर्शी हुई है—और संवादधर्मी भी। संग्रह की लम्बी कविता ‘मंच और मचान’ इस दृष्टि से उल्लेखनीय है कि यहाँ कटते हुए वृक्ष के विरुद्ध एक व्यक्ति (चीना बाबा) का प्रतिरोध ‘घर’ के लिए आदमी के बुनियादी संघर्ष का रूपक बन जाता है। यहाँ तुच्छ कीचड़ भी दुनिया बचाने के लिए सक्रिय दीखता है और घास की एक छोटी-सी पत्ती भी बैनर उठाए हुए मैदान में खड़ी है। पानी, कपास, लकड़ी और धूल जैसी छोटी-छोटी चीज़ों की बेचैनी से भरी ये कविताएँ कोई दावा नहीं करतीं। वे सिर्फ़ आपसे बोलना-बतियाना चाहती हैं—एक ऐसी भाषा में जो जितनी इनकी है उतनी ही आपकी भी।
Asankalit Kavitayen
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

- Description: हिन्दी कविता में युगान्तर उपस्थित करनेवाले कवि महाप्राण निराला के उस काव्य-संसार से गुज़रना जो अब तक अजाना और प्राय: अपठित रहा है, पाठकों के लिए कुछ कम महत्त्वपूर्ण और मुग्धकारी नहीं है—कहीं-कहीं विस्मय की हद तक। अपनी कविताओं के जो संग्रह उन्होंने तैयार किए, अनेक कविताएँ उनमें इसलिए शामिल नहीं कीं कि या तो वे प्रारम्भिक थीं या फिर कमज़ोर। कुछ कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने के बावबूद गुम गईं और कुछ उनके ही काग़ज़ों के ढेर में गुमनाम बनी रहीं। पर अब ऐसी सभी कविताएँ इस संग्रह में हैं। इनके अतिरिक्त इस संकलन में जहाँ निराला की पहली प्रकाशित कविता ‘जन्मभूमि’ है, वहीं आचार्य रामचन्द शुक्ल और बापू के प्रति लिखी गई व्यंग्य रचनाएँ भी हैं। परिशिष्ट में उनकी बहुचर्चित कविता ‘जुही की कली’ का आदि-रूप सुरक्षित किया गया है, जिससे उनकी रचना-प्रक्रिया को समझने में भी मदद मिलती है। इसलिए निराला की कविताओं का यह संकलन कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है—ख़ासकर, संकलनकर्ता डॉ. नन्दकिशोर नवल के शब्दों में कहें तो, ‘इसमें संकलित कविताएँ निराला के कवि-जीवन के आरम्भ और विकास दोनों को ही समझने की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी हैं’ और ‘इन कविताओं में से अनेक में हमें उनकी उत्कृष्ट काव्य-कला के दर्शन होते हैं।’
Navajeevana Gamyam
- Author Name:
Navajeevan Reddy
- Rating:
- Book Type:

- Description: The book Navajeevana Gayam is about Telugu versus a poetry and is one of the best books of its kind. In this book the author talks about social responsibility, society about its role, life and inspirational talk for all ages, Shiva philosophy, love, life and how to live a successful life, old and new generations, Hinduism and its essence. And every thing is written in a book. Essentially the author used simple everyday language to reach many people.
The Nightingale His Poems and Paintings of Dawn
- Author Name:
Ziad Dib Jreige
- Book Type:

- Description: Joyous music surrounds the tree of life and envelops its inhabitants in pure bliss, yet a single nightingale perch on a branch, as it looks at the souls it has to comfort, down below, below the joyous canopy of the tree of life, into the deep dark depths, 28 souls 28 mysteries 28 stations of life, all of which will resonate within us, no matter where we are on the tree of life.
Chalo Shanti Ki Or
- Author Name:
Susheela Agrwal
- Book Type:

- Description: This book has no description
Shoknach
- Author Name:
R. Chetankranti
- Book Type:

-
Description:
महत्त्वपूर्ण कवि आर. चेतनक्रांति का यह पहला संग्रह जवाबदेह भाषा और फ़ॉर्म के साथ-साथ हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में नए मुहावरे ईज़ाद करने के कारण अपनी मौलिक पहचान बनाता है।
चेतन की भाषा में एक ख़ास तरह का व्यंग्य है जो विडम्बनाओं एवं विद्रूपताओं की खिल्ली उड़ाता चलता है। जो लोग कविता (साहित्य) को मनोरंजन की चीज़ समझते हैं, उन्हें चेतन की कविताएँ निराश करेंगी क्योंकि ये कविताएँ पाठकों का टाइम पास नहीं करतीं, बल्कि रचनात्मक उत्तेजना और बेचैनी से भर देती हैं।
अपने कठिन समय की जटिल मानव-स्थितियों की ज़रूरी पड़ताल करती ये कविताएँ उन अवरोधक शक्तियों की भी शिनाख़्त करती हैं जो सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन की सहजता को अपने ढंग से नियंत्रित करना चाहती हैं। कवि के गहरे सरोकारों के दायरे में रिक्शेवाले, दैनिक वेतनभोगी, भूखे बच्चे एवं भूकम्प पीड़ित हैं तो दूसरी तरफ़ ‘सीलमपुर की लड़कियाँ’ भी हैं जिन्होंने अपनी हज़ारसाला पुरानी आत्माओं को उतारकर चुपके से एक नया सपना देखने का जोखिम उठाया है।
चेतन कविता और औसत राजमार्ग से अलग इस कठिन समय में अपनी रचनात्मक बेचैनी के साथ एक अलग और नया रास्ता बनाते हैं जो क़तार के आख़िरी आदमी के सपनों तक पहुँचता है और उसकी संवेदना से स्वयं को जोड़ता है। लेकिन चेतन अनुभूतियों के ही नहीं, दृढ़ विचारों और स्पष्ट ‘विज़न’ के कवि हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...