Dakkhin Tola
Author:
Anshu MalviyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
अंशु मालवीय की कविताओं का विषय-व्यास अनेक दिशाओं में फैला हुआ है। यूँ तो इस संग्रह का प्राथमिक स्वर राजनैतिक विद्रूपता का है पर दीगर स्वर भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। यहाँ भँवरी देवी, शाहबानो, मिथिलेश, सगुनाबाई आदि की शोषण-गाथाएँ हैं। वे स्त्रियाँ भी हैं जो निर्जला व्रत रखकर पसीना चुआते हुए काम कर रही हैं। शोहदों के कन्धों की रगड़ झेलते हुए काम पर जा रही हैं। वे जलती औरतें हैं जो धर्म के कारखाने में दिहाड़ी मजदूर थीं। अंशु की कविताओं में ‘दक्खिन टोला’ का दैनिक जीवन, वहाँ की संस्कृति, भाषा और सुख-दुख आम जन के दुखों से अलग एक दूसरी दुनिया के लगते हैं। वहाँ से गान नहीं रुदन उठता है। भाषा का अर्थ अपभ्रंश और बोली के माने अभंग है। संस्कारों की वृहद सूची में मेहनत के अलावा कोई संस्कार नहीं है।</p>
<p>ये कविताएँ बताती हैं कि साम्प्रदायिकता और राजनीति के सम्बन्ध कितने अन्तर्गुम्फित हैं। ‘कौसर बानो की अजन्मी बिटिया की ओर से’ जैसी अमानुष और कलपाती हुई कविता हो या फिर ‘खून’, ‘गाय’ और ‘यूसुफ भाई’ जैसी कविताएँ। कोई जरूरी नहीं कि हर खेल लपटों की तरह ही दिखे, वह शान्त और अनुत्तेजक भी हो सकता है। ‘न कोई वीभत्स मुखौटा न नाखून, न खून के धब्बे... बस कोई दोस्त आपसे पूछ लेगा, तुम्हारा मजहब क्या है? और आपकी रीढ़ बर्फ की तरह ठंडी हो जाएगी।’ तुलसीदास का अपनी चौपाइयों, दोहों को नारा हो जाते देखना, एक पेड़ का वह एहसास है जो अपनी लकड़ियों से सलीब बनते देख रहा है।</p>
<p>प्रेम और पारिवारिकता की इस संग्रह में भरपूर समाई हुई है। असमय चले गए पिता से कविता और राजनीति पर बहस करने की अपूर्ण इच्छा है। माँ-पिता के प्रणय पलों की सात्विकता है। वह गेहुँआ आलस्य है जो माँ बनने की प्रक्रिया में स्त्री देह पर छा जाता है। अंशु की कविता का यह एक छोर है, दूसरे छोर पर हो ची मिन्ह की दाढ़ी है जिसे वे वियतनाम के जंगल कहते हैं जिनमें साम्राज्यवादियों के सपने भटक जाते थे। अंशु मालवीय अपनी कर्मशील रचना-यात्रा में आज एक समादृत कवि के रूप में हमारे सामने हैं। खुशी की बात है कि वर्षों से अनुपलब्ध अंशु का ये चर्चित कविता-संग्रह पाठकों के बीच कविता के उसी तेवर के साथ दोबारा उपस्थित है जिसकी कमी की बात बार-बार की जाती रही है। </p>
<p>—हरीश चन्द्र पाण्डे
ISBN: 9788119996094
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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दुर्धर्ष भाग्य और क्षुद्र समय से आजीवन घिरे रहे महा-कवि और महा-प्राण मनुष्य निराला ने हिन्दी कविता को अपने ही हाथों वह दे दिया जिसे अर्जित करने में युगों की प्रतिभा और शक्ति व्यय हो जाती है। छायावाद के दौर में ही उन्होंने एक कदम बढ़कर मुक्त छन्द में यथार्थवादी कविता को सम्भव किया तो स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान और आजादी के बाद भारतीय राजनीति तथा समाज की स्थितियों को लक्षित कर कविताएँ और उपन्यासों की रचना भी की। ‘सरोज स्मृति’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसी कविताओं से उन्होंने कविता की सामर्थ्य के नए मानक गढ़े, तो गीतों में परम्परा, प्रयोग और लोकचेतना के असंख्य अर्थसघन बिम्ब अगली पीढ़ियों के लिए छोड़े। लेकिन यह नवीनता और प्रयोगधर्मिता किसी मामूली चमत्कार-प्रियता का परिणाम नहीं थी, यह निश्चय ही दुख के ताप से नित नूतन होते उनके मन का स्वाभाविक प्रवाह रहा होगा जो क्षणों की अवधि में वर्षों-दशकों को लाँघता चलता है।
उनकी प्रतिनिधि कविताओं के इस संकलन में प्रयास किया गया है कि पाठक निराला के विराट कृतित्व के कुछ सबसे दीप्तिमान शिखरों का साक्षात्कार कर सके।
Pratinidhi kavitayen : Gopal Singh Nepali
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
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गोपाल सिंह ‘नेपाली’ उत्तर छायावाद के प्रतिनिधि कवियों में कई कारणों से विशिष्ट हैं। उनमें प्रकृति के प्रति सहज और स्वाभाविक अनुराग है, देश के प्रति सच्ची श्रद्धा है, मनुष्य के प्रति सच्चा प्रेम है और सौन्दर्य के प्रति सहज आकर्षण है। उनकी काव्य-संवेदना के मूल में प्रेम और प्रकृति है।
ऐसा नहीं है कि ‘नेपाली’ के प्रेम में रूप का आकर्षण नहीं है। उनकी रचनाओं में रूप का आकर्षण भी है और मन की विह्वलता भी, समर्पण की भावना भी है और मिलन की कामना भी, प्रतीक्षा की पीड़ा भी है और स्मृतियों का दर्द भी।
‘नेपाली’ की राष्ट्रीय चेतना भी अत्यन्त प्रखर है। वे देश को दासता से मुक्त कराने के लिए रचनात्मक पहल करनेवाले कवि ही नहीं हैं, राष्ट्र के संकट की घड़ी में ‘वन मैन आर्मी’ की तरह पूरे देश को सजग करनेवाले और दुश्मनों को चुनौती देनेवाले कवि भी हैं।
‘नेपाली’ एक शोषणमुक्त समतामूलक समाज की स्थापना के पक्षधर कवि हैं—
वे आश्वस्त हैं कि समतामूलक समाज का निर्माण होगा। मनुष्य रूढ़ियों से मुक्त होकर विकास पथ पर अग्रसर होगा। प्रेम और बन्धुत्व विकसित होंगे और मनुष्य सामूहिक विकास की दिशा में अग्रसर होगा—
“सामाजिक पापों के सिर पर चढ़कर बोलेगा अब ख़तरा
बोलेगा पतितों-दलितों के गरम लहू का क़तरा-क़तरा
होंगे भस्म अग्नि में जलकर धरम-करम और पोथी-पत्रा
और पुतेगा व्यक्तिवाद के चिकने चेहरे पर अलकतरा
सड़ी-गली प्राचीन रूढ़ि के भवन गिरेंगे, दुर्ग ढहेंगे
युग-प्रवाह पर कटे वृक्ष से दुनिया भर के ढोंग बहेंगे
पतित-दलित मस्तक ऊँचा कर संघर्षों की कथा कहेंगे
और मनुज के लिए मनुज के द्वार खुले के खुले रहेंगे।”
Khat E Abyaz
- Author Name:
Shifa Kajganwi
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- Description: Book
Meghdoot
- Author Name:
Kalidas
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भारतीय संस्कृत साहित्य की अमूल्य थाती ‘मेघदूत’ प्रकृति तथा विपरीत परिस्थितियों में फँसे एक मनुष्य के अवचेतन रिश्ते का प्रतीक है। कालिदास ने अपनी यह महान रचना एक मिथकीय घटना के आधार पर बुनी है, जिसमें भगवान कुबेर का सेवक और अनन्त यौवन के वरदान से विभूषित यक्ष अपनी यक्षिणी के मोह के वशीभूत हो अपने स्वामी के लिए रोज़ सुबह ताज़े फूल तोड़ने का अपना कर्तव्य भुला बैठता है। इस पर क्रोधित हो कुबेर यक्ष को एक वर्ष के लिए जंगल में संन्यासी का जीवन बिताने के लिए भेज देता है।
एकान्तवास के दौरान जहाँ यक्ष का ध्यान प्रकृत और उसके तत्त्वों की ओर जाता है, वहीं उसके शरीर और एकाकी हृदय को बदलते मौसमों की मार भी झेलनी पड़ती है। परिणामस्वरूप यक्ष विभ्रम का शिकार हो जाता है। उसे प्रकृति की तमाम वस्तुओं में मानवीय क्रियाओं का आभास होने लगता है और वह उनमें अपनी भावनाओं का मनोछवियों का प्रतिबिम्ब देखने लगता है। आकाश में छाए-भरी बादलों में उसे अपना एक दोस्त दिखाई देता है जो दूर हिमालय में स्थित अलकानगरी में उसके लिए अवसादग्रस्त उसकी प्रेमिका तक उसका सन्देश लेकर जा सकता है। इस कृति में मृत्युंजय ने इतिहास और विरासत की छवियों को जिस अनूठे ढंग से समकालीन सन्दर्भों में पकड़ा है, उसके चलते यह पौराणिक नाट्य एक गीतात्मक प्रस्तुति बन गया है। पौराणिक चरित्रों और प्रतीकों को पाद-टिप्पणियों और प्राचीन ग्रन्थों के हवाले से समझाया गया है, उससे यह पुस्तक और भी पठनीय हो जाती है।
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