
Chhainya-Chhainya
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
124
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
248 mins
Book Description
<span style="font-weight: 400;">उनके पास लगभग उतने ही शब्द हैं, ठीक जितने ‘आम आदमियों’ के शब्दकोश में होते हैं । उनके पास लगभग नियत जीवन-हृदय हैं जैसे आम आदमियों की जिन्दगी में होते हैं। उनके पास क़रीब-क़रीब वही इच्छाएँ हैं जो किसी भी आदमी के निजीपन में उसे तरंगित या उद्वेलित कर सकती हैं। हिन्दी फ़िल्मों की लोकप्रियता में संगीत के जादू से मिलकर जो मनहरणकारी क्रिया सम्पन्न होती है, उसका मूल भी यही बिन्दु है। लेकिन, गुलज़ार इसी मनहरणकारी व्यवसाय में अपनी संवेदन-शीलता से रिश्तों का अनूठा स्पर्श देने में कामयाब होते हैं। यही उनकी सबसे बड़ी खूबी बन जाती है। चाँद, रात, शाम, सुबह या सूरज उनके जरिए नई अर्थवत्ता ग्रहण करते चलते हैं। मुहावरों के नवप्रयोग होते हैं, प्रकृति की सूक्ष्म व्यंजनाएँ खुल जाती हैं। शायद इसलिए कि शब्दों की ध्वन्यात्मकता को उन्होंने अपने ढंग से परख लिया है। उनके पास लोक रस, गंध और स्पर्श सुरक्षित हैं। वे स्मृतियों और यथार्थ के बीच एक पुल बनाते हैं। उदासी का तहलका मचाने वाली खामोशी की सर्जना करते हैं। गुलज़ार के शब्द, लोक-हृदय के उफानों, सुखों, इच्छाओं तथा यथार्थ के प्रति उत्पन्न आवेगों को इस तरह बाँटते प्रतीत होते हैं कि हम उन्हें देखने, सुनने, महसूसने लगते हैं। उनकी काव्य-यात्रा प्रकृति और मन के बीच अपने आपको खो देने की प्रबल इच्छा से संपन्न होती है। ‘बंदिनी’ सेΓ‘इजाज़त’ के बाद ‘सत्या’ और ‘फ़िलहाल’ तक गुलज़ार ऐसी निर्बन्ध परंपरा में बदलते हैं जो हमें लगातार अपने साथ ले चलने के लिए खींचती है। हमारी अनुभूतियों को उठाती है और उन्हें बेजान होने से बचने का अवसर प्रदान करती है। वह स्पर्श करती है, गूँजती है और अपने भीतर खो जाने की माँग करती है।</span></p> <p><span style="font-weight: 400;">फ़िल्मों के सौदे में भी गुलज़ार उम्र उधेड़ के, साँस तोड़ के लम्हे देते हैं। ‘छैंया-छैंया’ गुलज़ार के प्रेमियों के लिए उन्हीं लम्हों का ताजा गुच्छा है।</span>