Shrikant Verma Rachanawali : Vols. 1-8
Author:
Shrikant VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 9600
₹
12000
Available
श्रीकान्त वर्मा मुक्तिबोध की पीढ़ी के बाद के कवियों में अन्यतम बेचैन और उत्तप्त कवि इस माने में ज़्यादा हैं कि उन्होंने अपनी कविता के ज़रिए न केवल अपने समय का सीधा, तीक्ष्ण और अन्दर तक तिलमिला देनेवाला भयावह साक्षात्कार किया, बल्कि हर अमानवीय ताक़त के विरुद्ध एक निर्मम और नंगी भिड़ंत की। इसीलिए उनकी कविता में नाराज़गी, असहमति और विरोध का स्वर सबसे मुखर है।
उनकी कविता उस दर्पण की तरह है, जहाँ कोई झूठ छिप नहीं सकता। उनकी कविता हर झूठ के विरुद्ध कहीं प्रतिशोध है तो कहीं सार्थक वक्तव्य। शायद इसीलिए वे सन् 60 के बाद की कविता के हिन्दी के पहले नाराज़ कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। वे एक ओर मानवीय संवेदना के गहन ऐन्द्रिक प्रेम और क्षोभ के विरल कवि हैं तो दूसरी तरफ़ सामाजिक कर्म की कविता में नैतिक क्षोभ से उपजे सामाजिक हस्तक्षेप के दुर्लभ कवि हैं। वे उत्तर खोजने के बजाय प्रश्न खड़े करनेवाले कवि हैं।
‘भटका’ मेघ से शुरू हुई श्रीकान्त वर्मा की काव्य–यात्रा ‘माया दर्पण’, ‘दिनारंभ’ और ‘जलसाघर’ से गुज़रते हुए एक ऐसी कवि की दुनिया है जहाँ बीसवीं शताब्दी के मनुष्य की अपने समय से सीधी बहस है। कवि दूसरे से उलझने के बजाय स्वयं से प्रश्न करता है जहाँ उसके आत्माभियोग और आत्म–स्वीकार का स्वर सबसे मूल्यवान है।
‘मगध’ और ‘गरुड़ किसने देखा है’ एक ऐसे कवि की अथाह करुणा की पुकार है जो युग–संधि पर खड़ा अपने समय के मनुष्य, समाज, राजनीति, इतिहास और काल को बहुत निर्मम होकर बेचैनी के साथ देखते हुए मनुष्य और समाज की नियति को परिभाषित कर रहा है। इसीलिए ‘मगध’ समकालीन व्यवस्था का मर्सिया भर नहीं है बल्कि समय, समाज और व्यवस्था के विरुद्ध एक सीधा हस्तक्षेप है।
इस खंड में पहली बार श्रीकान्त वर्मा की सम्पूर्ण प्रकाशित–अप्रकाशित, संकलित–असंकलित कविताओं का संचयन किया गया है जिसमें दर्ज है—एक कवि का सम्पूर्ण संसार जो अनेक संसारों में फैला हुआ है। इसके अतिरिक्त इस खंड में पुस्तकों की भूमिकाएँ, सम्पादकीय और अपने समकालीनों के साथ दो महत्त्वपूर्ण संवाद भी मौजूद हैं।
ISBN: 9788126727292
Pages: 3850
Avg Reading Time: 128 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: विजय बहादुर सिंह आधुनिक हिंदी के विकास में अपनी सृजनात्मक आलोचना से उल्लेखनीय योगदान देने वाले लेखकों में विजय बहादुर सिंह का नाम अग्रगण्य है। नियमित लेखन के साथ विजय बहादुर सिंह दीर्घ अवधि से शोध और अध्यापन कार्य से भी जुड़े रहे हैं। लेकिन मुख्यतः एक साहित्यालोचक के रूप में विख्यात विजय बहादुर सिंह ने आधुनिक हिंदी कविता और कवियों की सृजनात्मक उपलब्धियों के साथ-साथ हिंदी कथा और उपन्यास साहित्य पर भी अपनी आलोचना प्रस्तुत की है। ‘आलोचक का स्वदेश’ उनके द्वारा रचित चर्चित साहित्यिक जीवनी है। रचनाएँ डॉ. सिंह ने आठ खंडों में ‘भवानी प्रसाद मिश्र रचनावली’, चार खंडों में ‘दुष्यंत कुमार रचनावली’ और आठ खंडों में ‘नंददुलारे वाजपेयी रचनावली’ का निर्दोष और चर्चित संपादन किया। उन्होंने ‘आलोचक का स्वदेश’ नाम से नंददुलारे वाजपेयी की साहित्यिक जीवनी भी लिखी। ‘वृहत्त्रयी’, ‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता और संवेदना’, ‘उपन्यास : समय और संवेदना’, ‘महादेवी के काव्य का नेपथ्य’ आदि उनकी प्रमुख आलोचनात्मक कृतियाँ हैं। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं- ‘मौसम की चिट्ठी’, ‘पृथ्वी का प्रेमगीत’, ‘पतझर की बाँसुरी’, ‘भीमबैठका’। पुरस्कार व सम्मान विजय बहादुर सिंह को उनके कृतित्व तथा सृजनात्मक अवदान के लिए ‘रामविलास शर्मा सम्मान’, ‘लोक सम्मान’, ‘श्रेष्ठ कला आचार्य और कौमी एकता सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान के ‘सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार’ तथा मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ‘भवभूति अलंकरण’ से सम्मानित किया जा चुका है।
Gule-E-Nagma
- Author Name:
Firak Gorakhpuri
- Book Type:

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Description:
‘आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम-असरो
जब ये ध्यान आएगा उनको, तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा था।’
‘फ़िराक़’ की शायरी इस धरती की सोंधी-सुगन्ध, नदियों की मदमाती चाल, हवाओं की नशे में डूबी मस्ती में ढूँढ़ी जा सकती है। ‘फ़िराक़’ प्रायः कहा करते थे कि कलाकार का मात्र भारतवासी होना पर्याप्त नहीं है, वरन् उसके भीतर भारत को निवास करना चाहिए।
भारत की शायरी की पहचान भारतीयता से होनी चाहिए। भारतीयता का एक विशिष्ट काव्य प्रतिमान है।
‘फ़िराक़’ की शायरी ने जीवन पर अमृत वर्षा कर दी और उसे ऐसा मधुर संगीत प्रदान किया, जिससे देवताओं के पवित्र नेत्र भीग जाएँ। ‘फ़िराक़’ की शायरी जीवन के लिए पाकीज़ा दुआ बन गई।
'फ़िराक़' ने उर्दू शायरी को एक बिलकुल नया आशिक़ दिया है और उसी तरह बिलकुल नया माशूक़ भी। इस नए आशिक़ की एक बड़ी स्पष्ट विशेषता यह है कि इसके भीतर एक ऐसी गम्भीरता पाई जाती है जो उर्दू शायरी में पहले नज़र नहीं आती थी।
‘फ़िराक़’ के काव्य में मानवता की वही आधारभूमि है और उसी स्तर की है जैसे ‘मीर’ के यहाँ उनके काव्य में ऐसी तीव्र प्रबुद्धता है, जो उर्दू के किसी शायर से दब के नहीं रहती। अतएव, उनके आशिक़ में एक तरफ़ तो आत्मनिष्ठ मानव की गम्भीरता है, दूसरी तरफ़ प्रबुद्ध मानव की गरिमा है।
Pahar Per Laltain
- Author Name:
Mangalesh Dabral
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Description:
मंगलेश डबराल का यह कविता-संग्रह वर्षों पहले प्रकाशित हुआ था और पिछले कई वर्ष से अनुपलब्ध था। यह कविता की आन्तरिक शक्ति और सार्थकता ही कही जाएगी कि एक बड़े अन्तराल के बाद भी कविता के समर्थकों के बीच इस संग्रह की ज़रूरत आज भी बनी हुई है। इस संग्रह के पहले संस्करण में लिखी पंकज सिंह की टिप्पणी को यहाँ याद करना शायद अप्रासंगिक नहीं होगा :
‘‘मंगलेश की कविताएँ जहाँ एक ओर समकालीन जीवन के अँधेरों में घूमती हुई अपने सघन और तीव्र संवेदन से जीवित कर्मरत मनुष्यों तथा दृश्य और ध्वनि बिम्बों की रचना करती हैं और हमारी सामूहिक स्मृति के दुखते हिस्सों को उजागर करती हैं, वहीं वे उस उजाले को भी आविष्कृत करती हैं जो अवसाद के समानान्तर विकसित हो रही जिजीविषा और संघर्षों से फूटता उजाला है।
‘‘अपने अनेक समकालीन जनवादी कवियों से मंगलेश कई अर्थों में भिन्न और विशिष्ट है। उसकी कविताओं में ऐतिहासिक समय में सुरक्षित गति और लय का एक निजी समय है जिसमें एक ख़ास क़िस्म के शान्त अन्तराल हैं। पर ये शान्त कविताएँ नहीं हैं। इन कविताओं की आत्मा में पहाड़ों से आए एक आदमी के सीने में जलती-धुकधुकाती लालटेन है जो मौजूदा अंधड़-भरे सामाजिक स्वभाव के बीच अपने उजाले के संसार में चीज़ों को बटोरना-बचाना चाह रही है और चीज़ों तथा स्थितियों को नए संयोजन में नई पहचान दे रही
है।‘‘कविता के समकालीन परिदृश्य में ‘पहाड़ पर लालटेन’ की कविताएँ हमें एक विरल और बहुत सच्चे अर्थों में मानवीय कवि-संसार में ले जाती हैं जिसमें बचपन है, छूटी जगहों की यादें हैं, अँधेरे-उजालों में खुलती खिड़कियाँ हैं, आसपास घिर आई रात है, नींद है, स्वप्न-दुस्वप्न हैं, ‘सम्राज्ञी’ का एक विरूप मायालोक है मगर यह सब ‘एक नए मनुष्य की गंध से’ भरा हुआ है और ‘सड़कें और टहनियाँ, पानी और फूल और रोशनी और संगीत तमाम चीज़ें हथियारों में बदल गई हैं।’
‘‘पहाड़ों के साफ पानी जैसी पारदर्शिता इन कविताओं का गुण है जिसके भीतर और आर-पार हलचल करते हुए जीवन को हम साफ़-साफ़ देख सकते हैं।’’
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