Yahudi Ki Ladki
Author:
Agha Hashra KashmiriPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
जब-जब पारसी थिएटर का ज़िक्र होता है, आगा हश्र कश्मीरी का नाम अपने आप ज़बान पर आ जाता है। आगा हश्र कश्मीरी उर्दू और हिन्दी—दोनों ही रंगमंचों पर समान रूप से छाए रहे हैं और अब वे नाटक की दुनिया में क्लासिक बन चुके हैं। ‘यहूदी की लड़की’ आगा हश्र का एक बहुचर्चित नाटक है। एक पुरानी फ़िल्म ‘यहूदी’ की पटकथा इसी नाटक पर आधारित है। इस नाटक के माध्यम से आगा हश्र कश्मीरी ने यहूदियों पर होनेवाले रोमनों के अत्याचार को उभारकर धर्मान्धतावाद, सत्ता के अहंकार तथा मानवीय भावनाओं की विजय का मनोरम आख्यान प्रस्तुत किया है। आज जबकि साम्प्रदायिकता अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई है और सत्ता का दमन-चक्र तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा है, इस नाटक की प्रासंगिकता और बढ़ गई है।
ISBN: 9788126702527
Pages: 80
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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...(मोहन) राकेश के बाद पहली बार हम इस नाटक में सुगठित संवादों का श्रवण-सुख भी पाते हैं।
—राजेंद्र पॉल; ‘फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस’।
‘महाभोज’ सामाजिक यथार्थ का रूखा अंकन मात्र नहीं है, यह बहुत सोचे-समझे, रचनात्मक डिज़ाइन की उत्पत्ति है, साथ ही बहुत सघन भी। इस नाटक को उन राजनीतिक नाट्य-रचनाओं में गिना जाएगा जो सिर्फ़ दर्शकों की भावनाओं और आक्रोश का दोहन मात्र नहीं करतीं, बल्कि यथार्थ की क्रूर और विचलित करनेवाली छवि के शक्तिशाली प्रक्षेपण के द्वारा दर्शक की नैतिक संवेदना को चुनौती देती हैं और उन्हें अपने विवेक की खोज में प्रवृत्त करती हैं।
—अग्नेश्का सोनी; ‘पेट्रियट’।
और सबसे ज़्यादा यह उपन्यास/नाटक मन्नू भंडारी की संवेदनशील जागरूकता की एक देन है और नाटककारों की श्रेणी में उनके चिर-अभीप्सित आगमन का प्रमाण भी।
—कविता नागपाल; ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’।
Pagla Ghora
- Author Name:
Badal Sarkar
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- Description: सुप्रसिद्ध नाटककार बादल सरकार की यह कृति बांग्ला और हिन्दी दोनों भाषाओं में अनेक बार मंचस्थ हो चुकी हैं। बांग्ला में शम्भू मित्र (‘बहुरूपी’, कलकत्ता) और हिन्दी में श्यामानन्द जालान (‘अनामिका’, कलकत्ता), सत्यदेव दुबे (‘थियेटर यूनिट’, बम्बई) तथा टी.पी. जैन (‘अभियान’, दिल्ली) ने इसे प्रस्तुत किया। गाँव का निर्जन श्मशान, कुत्ते के रोने की आवाज़, धू-धू करती चिता और शव को जलाने के लिए आए चार व्यक्ति—इन्हें लेकर नाटक का प्रारम्भ होता है। हठात् एक पाँचवाँ व्यक्ति भी उपस्थित हो जाता है—जलती हुई चिता से उठकर आई लड़की, जिसने किसी का प्रेम न पाने की व्यथा को सहने में असमर्थ होकर आत्महत्या कर ली थी और जिसके शव को जलाने के लिए मोहल्ले के ये चार व्यक्ति उदारतापूर्वक राजी हो गए थे। आत्महत्या करनेवाली लड़की के जीवन की घटनाओं की चर्चा करते हुए एक-एक करके चारों अपने अतीत की घटनाओं की ओर उन्मुख होते हैं, उन लड़कियों के, उप-घटनाओं के बारे में सोचने को बाध्य होते हैं जो उनके जीवन में आई थीं और जिनका दुखद अवसान उनके ही अन्याय-अविचार के कारण हुआ था । किन्तु ‘पगला घोड़ा’ में नाटककार का उद्देश्य न तो शमशान की बीभत्सता के चित्रण द्वारा बीभत्स रस की सृष्टि करना है और न ही अपराध-बोध का चित्रण। बादल बाबू के शब्दों में यह ‘मिष्टि प्रेमेर गल्प’ अर्थात् ‘मधुर प्रेम-कहानी’ है।
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