Paansa
Author:
GulzarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
‘पाँसा’ जो इस किताब का पहला नाटक है, युधिष्ठिर और द्रौपदी के पेचीदा रिश्ते को लेकर लिखा गया है। एक भाई ने जीती, और पाँच भाइयों में बँटी द्रौपदी स्वयंवर जीतने वाले अर्जुन को नहीं, बड़ा होने के नाते युधिष्ठिर को पहले मिली; युधिष्ठिर जिसने उसे फिर जुए में दाँव पर भी लगाया, और हारा भी।
आज भी, जब हम वक़्त में इतना आगे आ चुके हैं, इस रिश्ते को छूना आग को छूना है; इसके लिए गहरी ज़िम्मेदारी और समझदारी की दरकार है। यह नाटक जिसे पहले मशहूर समाज-चिन्तक और राजनयिक पवन कुमार वर्मा ने एक लम्बी कविता के तौर पर लिखा था, कविता के रूप में और ड्रामे के रूप में भी इस ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाता है; बिना उस तनाव को खोए जो इस कथा का अहम और ज़रूरी हिस्सा है। पवन कुमार वर्मा जैसे अपनी कविता में, वैसे ही गुलज़ार इस नाटक में वह करने में सफल रहे हैं जो सम्बन्धों के इस दुर्लभ समीकरण को लेकर किया जा सकता है। यानी वे द्रौपदी के यक्ष-प्रश्न को हमारे सामने खड़ा कर देते हैं और हम उसकी विडम्बना को लेकर नए सिरे से सोचना शुरू करते हैं।
इसके साथ इस किताब में चार छोटे नाटक और हैं जिनमें टैगोर की कहानी ‘स्त्रीर पत्र’ पर आधारित ‘सुनते हो’ और अहमद नदीम क़ासमी की तीन कहानियों के आधार पर बुने हुए तीन ड्रामे ‘बाबा नूर’, ‘मुख़बिर’ और ‘आलाँ’ शामिल हैं। इन तीनों ही नाटकों में विभाजन से पहले का पंजाब नज़र आता है, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है।
ISBN: 9789348157195
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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प्रस्तुत नाट्य शृंखला समाज के विभिन्न किरदारों को माध्यम बनाकर समाज के अमानवीय कृत्यों को उजागर कर यथार्थ को परदे के सामने लाती है। साथ ही जहाँ नाटक ‘वाह रे गोविन्दा वाह में’, मर्द दिवस की गुदगुदाने वाली परिकल्पना से पाठक और दर्शकों का जमकर मनोरंजन करती है वहीं ‘मैं इकबाल’ नाटक की रचना समाज के दिग्भ्रमित युवाओं को सच्ची और उजियारी राह पर लाने के लिए मशाल का काम करती है। नाटक की विषयवस्तु में किसी तरह का पांडित्य प्रदर्शन नहीं बल्कि अनछुए विषयों को बड़ी ही रोचकता के साथ स्पर्श किया गया है।
नाटक के हर दृश्य को मंच पर बड़ी सुगमता से दर्शाया जा सकता है। इसमें सन्देह नहीं। एक में हास्य रस की चाशनी है तो दूसरे में यथार्थ का कड़ुवा घूँट...।
Prem Aur Patthar
- Author Name:
Varsha Das
- Book Type:

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इस लघु-नाटक संकलन में वर्षा दास द्वारा किए गए चार कहानियों के नाट्य-रूपान्तरण हैं जिनमें उन्होंने कहानी के मूल मन्तव्य को बिना कोई हानि पहुँचाए उसे नाट्य-रूप दिया है। पहला नाटक डॉ. लोकनाथ भट्टाचार्य की बांग्ला कहानी ‘प्रेम ओ पाथर’ पर आधारित है। इसके केन्द्र में शिव की एक प्राचीन प्रस्तर-मूर्ति है जो कथा-नायक के लिए एक बड़े नैतिक निर्णय का आधार बनती है। वह उस मूर्ति की चोरी करनेवाले एक तथाकथित संस्कृति-प्रेमी द्वारा दी जानेवाली नौकरी को भी ठुकरा देता है और आगे हमेशा के लिए उससे सम्बन्ध समाप्त कर लेता है।
दूसरा नाटक लाभुबहन मेहता की गुजराती कहानी ‘बिन्दी’ पर आधारित है जिसमें एक युवती के आकस्मिक वैधव्य और फिर उसके जीवन के एक नए मोड़ की कहानी को रूपायित किया गया है। नाटक ‘मरा हुआ’ डॉ. लोकनाथ भट्टाचार्य की ही बांग्ला दिलचस्प नाटक है जिसमें एक कुत्ते की मौत और मनुष्यों से उसके सम्बन्ध को बहुत मनोरंजक ढंग से प्रकाश डाला गया है।
‘जेसल-तोरल’ एक गुजराती लोककथा पर आधारित नाटक है जिसमें एक किंवदन्ती के माध्यम से हमें एक नैतिक सबक मिलता है। कहानी एक लुटेरे की है जो अन्त में अपने किए पर पश्चात्ताप करता है और बदल जाता है।
Aap Na Badlenge
- Author Name:
Mamta Kaliya
- Book Type:

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मैंने तुम्हारा नाटक पढ़ लिया था। सबसे पहली बात तो यह कि इसमें एक बहुत ही सामयिक और महत्त्वपूर्ण थीम को उठाया गया है। दहेज के सवाल पर हर स्तर पर कुछ न कुछ लिखा जाना चाहिए और मुझे ख़ुशी है कि तुमने इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए नाटक का सहारा लिया। दूसरे तुम्हारी भाषा में बहुत कसावट है और नाटकीयता भी है। प्रारम्भिक दृश्य बड़े सघन लगते हैं और कार्य-व्यापार में भी एक तरह की नाटकीय क्रूरता का अहसास होता है जो ज़रूरी है।
—नेमिचन्द्र जैन, प्रख्यात रंग-आलोचक
इधर मैंने अपने विद्यार्थियों को 'यहाँ रोना मना है' एकांकी पढ़ाया। एकांकी सबको बहुत अच्छा लगा।
—के.एम. मालती; अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, गवर्नमेंट आर्ट्स एवं साइंस कॉलेज, कालीकट, केरल
Teen Ekant
- Author Name:
Nirmal Verma
- Book Type:

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तीन एकान्त निर्मल वर्मा की तीन कहानियों (‘धूप का एक टुकड़ा’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’ और ‘वीक-एंड’) का नाट्य-पाठ है जिसका मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रेपर्टरी कम्पनी ने 1975 में किया था। ‘कहानी का रंगमंच’ के प्रणेता देवेन्द्र राज अंकुर इस चर्चित प्रस्तुति के निर्देशक थे।
इन कहानियों और उनके इस नाट्य-पाठ के सम्बन्ध में उल्लेखनीय यह है कि यह उन कहानियों का नाट्य-रूपान्तर नहीं है, कहानियों के मूल पाठ की तस-की-तस प्रस्तुति है जिसमें मंच पर कहानी की नाटकीयता को सामने लाने के लिए निर्देशकीय संकेत और मंच-विवरण जोड़ दिए गए हैं।
तीनों ही कहानियाँ ‘मोनोलॉग’ हैं जो स्मृति में आकार ग्रहण करती हैं और एक व्यक्ति के एक लम्बे संवाद के रूप में खुलती हैं। निर्मल जी के शब्दों में ‘उनके बीच एकमात्र समानता यह थी कि वे मोनोलॉग स्वर में रची गई थीं, जब अकेलेपन के क्षणों में व्यक्ति अपने से ही बोलने लगता है। ...परम्परागत अर्थ में इसे नाटकीय संवाद नहीं कहा जा सकता। किन्तु जो शब्द अपने से कहे जाते हैं, वहाँ ‘स्व’ ही लड़ाई का मैदान बन जाता है...।’
अपने समय के समर्थ अभिनेताओं ने इस आत्मसंघर्ष को जिस सम्पूर्णता में साकार किया था, वह इस पाठ में भी दिखाई देता है। अपने निर्देशकीय वक्तव्य में देवेन्द्र राज अंकुर इन्हें ‘अकेलेपन के कुछ क्षणों में पात्रों के स्वयं से साक्षात्कार की कहानियाँ’ कहते हैं। इसी को रेखांकित करने के लिए प्रस्तुतियों को एक सम्मिलित नाम ‘थ्री टेक्स्ट्स इन सॉलिट्यूड’ दिया गया था।
Harit Nongjabi
- Author Name:
Maharaj Kumari Binodini Devi
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- Description: ‘हरित नोङ्जाबी’ महाराज कुमारी बिनोदिनी देवी का बहुचर्चित नाटक है जिसकी सिर्फ उनके लेखन में नहीं अपितु आधुनिक मणिपुरी साहित्य में उल्लेखनीय स्थान है। ‘नोङ्जाबी’ शब्द का आशय वर्षा ऋतु में दिखाई देने वाले ताम्रवर्णी आभा से युक्त उन बादलों से है जिन्हें वर्षा ऋतु के विराम ले लेने का संकेत माना जाता है। वस्तुत: नोङ्बाजी का शाब्दिक अर्थ है—वर्षा या बादल का भक्षक जिसका प्रयोग लेखक ने प्रेम को खा जाने वाले समय और समाज को रूपायित करने के लिए किया है। बिनोदिनी इस नाटक में उस प्रतिगामिता को उजागर करती हैं जो न केवल प्रेम को बल्कि कला को भी हेय सिद्ध करने रीति-नीतियों का समर्थन करती है, और जीवन के प्रति रचनात्मक दृष्टि को हतोत्साहित करती हुई मनुष्य की रचनात्मकता को निरे उत्पादन में जोत देना चाहती है। इसके अलावा इस संकलन में दो रेडियो नाटक भी संकलित हैं जिनमें मणिपुरी समाज की स्थानीय परिस्थितियों, आकांक्षाओं और सपनों को कुशलतापूर्वक चित्रित किया गया है। हिन्दी में इन्हें प्रस्तुत करते हुए विशेष रूप से यह ध्यान में रखा गया है कि वे शब्द जो मणिपुरी जीवन व भाषा का आस्वाद हम तक पहुँचाते हैं, उन्हें जस-का-तस रखा जाए; और उनके अर्थ दे दिए गए हैं। सुरुचिपूर्ण ढंग से लिखित और उतनी ही सजगता से अनूदित मणिपुरी साहित्य की ये प्रतिनिधि रचनाएँ हिन्दी पाठकों को महत्त्वपूर्ण लगेंगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
Shri Maithlisharan Gupt Ke Natak
- Author Name:
Maithlisharan Gupt
- Book Type:

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Description:
श्रीमैथिलीशरण गुप्त के नाटकों का यह संग्रह एक साथ प्रकाशित होने के कारण ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इस अर्थ में और भी महत्त्वपूर्ण है कि अभी तक अप्रकाशित, ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन’, नाटकों के पहली बार प्रकाशन के कारण अधिकतर मूल्यवान है। इसमें पाँच मौलिक और चार अनूदित कुल नौ नाटक सम्मिलित हैं। इन सभी प्रकार के नाटकों के चयन में गुप्त जी ने वैविध्य का ध्यान रखा है। इन नाटकों का मुख्य उद्देश्य अपने समय के महत्त्वपूर्ण और चुनौती-भरे प्रश्नों का उत्तर देना रहा है।
‘अनघ’ नाटक अहिंसा, करुणा, लोक-सेवा आदि पर आधारित है। ‘विसर्जन’ में पहली बार बेगार प्रथा की ख़िलाफ़त की गई है। यह बेगार प्रथा और शोषण के ख़िलाफ़ सशक्त नाटक है। ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग पर केन्द्रित है जो महात्मा गांधी द्वारा कुलियों पर किए गए अत्याचार के विरोध की याद दिलाता है। महाकवि भास के संस्कृत नाटकों के किए गए अनुवादों में पारिवारिकता, उदारता, सत्याग्रह, लोक-सेवा, अन्तरात्मा की प्रतिध्वनि और अहिंसा आदि मूल्यों की मार्मिक अभिव्यक्ति है। श्रीमैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित इस संग्रह के नाटक उनके समय के प्रश्नों को समझाने और उनका उत्तर खोजने के अतिरिक्त आज के नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श के चिन्तन को भी रेखांकित करते हैं।
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