Tajmahal Ka Tender
Author:
Ajay ShuklaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘ताजमहल का टेंडर’ हिन्दी का ऐसा मौलिक नाटक है जिसने सफल मंचनों के नए कीर्तिमान गढ़े। संस्कृत, अंग्रेज़ी और अन्य भाषाओं से अनूदित-रूपान्तरित नाटकों पर निर्भर रहनेवाले हिन्दी रंगमंच के पास हिन्दी के अपने मौलिक नाटक इतने कम हैं कि उँगलियों पर गिने जा सकते हैं। उनमें भी मंचीयता के गुणों से सम्पन्न नाटक तो और भी कम हैं। ऐसे में ‘ताजमहल का टेंडर’ एक राहत की तरह मंच पर उतरा था और आज वह अनेक नाटक-मंडलियों की प्रिय नाट्य-कृतियों में है, दर्शकों को तो ख़ैर वह भुलाए ही नहीं भूलता। देश-विदेश की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद और मंचन हो चुका है, और हो रहा है।</p>
<p>नाटक का आधार यह परिकल्पना है कि मुग़ल बादशाह शाहजहाँ इतिहास से निकलकर अचानक बीसवीं सदी की दिल्ली में गद्दीनशीन हो जाते हैं, और अपनी बेगम की याद में ताजमहल बनवाने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। नाटक में बादशाह के अलावा बाक़ी सब आज का है। सारी सरकारी मशीनरी, नौकरशाही, छुटभैये नेता, क़िस्म-क़िस्म के घूसख़ोर और एक-एक फ़ाइल को बरसों तक दाबे रखनेवाले अलग-अलग आकारों के क्लर्क, छोटे-बड़े अफ़सर, और एक गुप्ता जी जिनकी देखरेख में यह प्रोजेक्ट पूरा होना है। सारे ताम-झाम के साथ सारा अमला लगता है और देखते-देखते पच्चीस साल गुज़र जाते हैं। अधेड़ बादशाह बूढ़े होकर बिस्तर से लग जाते हैं और जिस दिन ताजमहल का टेंडर फ्लोट होने जा रहा है, दुनिया को विदा कह जाते हैं।</p>
<p>नाटक का व्यंग्य हमारे आज के तंत्र पर है। बीच-बीच में जब हम इसे बादशाह की निगाहों से, उनके अपने दौर की ऊँचाई से देखते हैं, वह और भी भयावह लगता है, और ताबड़तोड़ कहकहों के बीच भी हम उस अवसाद से अछूते नहीं रह पाते जिसे यह नाटक रेखांकित करना चाहता है—यानी स्वार्थ की व्यक्तिगत दीवालियों के बीच पसरा वह सार्वजनिक अन्धकार जिसे आज़ादी के बाद के भारत की नौकरशाही ने रचा है।</p>
<p>
ISBN: 9788126729159
Pages: 80
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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एक इतिहास वह है जिसे राजा–महाराजा, शासक शक्तियाँ और मुख्यधारा के नायक बनाते हैं; इसके बरअक्स एक दूसरा इतिहास भी होता है। इस इतिहास में शामिल होते हैं वे तमाम बेचेहरा लोग जिनके कन्धों से होकर नायकों के विजय–मत्त घोड़े अपने झंडे फहराते हैं। मसलन, सीतानाथ जो इस नाटक का ‘नायक नहीं’ है। वह इतिहास के पिछवाड़े पड़े लाखों औसत जनों की तरह का ही एक शख़्स है, जिनका नाम कहीं दर्ज नहीं होता। लेकिन सीतानाथ इसी व्यर्थता–बोध के चलते आत्महत्या करता है और एक स्थानीय अख़बार में एक–कॉलमी ख़बर बनकर उभरता है। शरद जो ख़ुद भी ‘नायक नहीं’ है, अपनी लेखिका पत्नी वासन्ती के साथ मिलकर उस आत्महत्या पर एक कहानी गढ़ने की कोशिश करता है, लेकिन असफल होता है, और अन्त में पाता है कि वह भी सीतानाथ की ही तरह ‘बाक़ी इतिहास’ का एक अर्द्ध–नायक भर है जिसके सामने न जीने की वजह मौजूद है, न मरने
की।मध्यवर्ग की इसी उबाऊ और दमघोंटू दैनिकता का विश्लेषण ‘बाक़ी इतिहास’ अपने बहुस्तरीय शिल्प के माध्यम से करता है। देश के कोने–कोने में सैकड़ों बार सफलतापूर्वक मंचित हो चुके इस नाटक का विषय आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना तीन दशक पहले था।
Achanak
- Author Name:
Gulzar
- Book Type:

-
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साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फ़ॉर्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयाँ अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है।
गुलज़ार की लोकप्रिय फ़िल्म 'अचानक’ उनकी सभी फ़िल्मों की तरह संवेदनशील और सधी हुई फ़िल्म है जिसको अपने वक़्त में बहुत सराहा गया था। दाम्पत्य-प्रेम, पति-पत्नी के बीच भरोसे और शक, भटकाव, प्रतिहिंसा और पश्चाताप की महीन नक़्क़ाशी इस फ़िल्म की विशेषता है। इस पुस्तक में उसी फ़िल्म का मंज़रनामा पेश किया गया है।
पाठकों को दर्शक में तब्दील कर देनेवाली एक प्रभावशाली प्रस्तुति।
Ghasiram Kotwal
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:

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Description:
इस नाटक में घासीराम और नाना फड़नवीस का व्यक्ति-संघर्ष प्रमुख है, लेकिन तेन्दुलकर ने इस संघर्ष के साथ अपनी विशिष्ट शैली में तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति का मार्मिक चित्रण भी किया है। सत्ताधारी वर्ग और जनसाधारण की सम्पूर्ण स्थिति पर समय और स्थान के अन्तर से कोई वास्तविक अन्तर नहीं पड़ता। घासीराम हर काल और समाज में होते हैं और हर उस काल और समाज में उसे वैसा बनानेवाले और मौक़ा देखकर उसकी हत्या करनेवाले नाना फड़नवीस भी होते हैं—यह बात तेन्दुलकर ने अपने ढंग से प्रतिपादित की है।
घासीराम एक प्रकार से एक प्रसंग मात्र है जिसे तेन्दुलकर ने अपने वक्तव्य की अभिव्यक्ति का एक निमित्त, एक साधन बनाया है। नाटक में नाटककार का उद्देश्य नाना फड़नवीस और तत्कालीन पतनोन्मुख समाज के चित्रण द्वारा शाश्वत सच्चाइयों को उजागर करना है और उसमें वह पूरी तरह सफल हुआ है।
यह नाटक एक विशिष्ट समाज-स्थिति की ओर संकेत करता है जो न पुरानी है और न नई। न वह किसी भौगोलिक सीमा-रेखा में बँधी है, न समय से ही। वह स्थान-कालातीत है, इसलिए ‘घासीराम’ और ‘नाना फड़नवीस’ भी स्थान-कालातीत हैं। समाज की स्थितियाँ उन्हें जन्म देती हैं, और वही उनका अन्त भी करती हैं।
राजिन्दरनाथ, बृजमोहन शाह, ब.व. कारंत, अलोपी वर्मा, अरविन्द गौड़ तथा कमल वशिष्ठ आदि विभिन्न ख्यातनामा निर्देशक इसके अनेक सफल मंचन कर चुके हैं।
Dharamguru
- Author Name:
Swarajbir
- Book Type:

- Description: यह नाटक उच्चस्तरीय बौद्धिक रचना का प्रमाण देता है। नाटककार ने पूरे धार्मिक व्यवहार पर जो कटाक्ष किया है, वह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। संवादों, घटनाओं तथा कार्यव्यापार के माध्यम से उभारा गया नाटकीय टकराव शिखर को छूता है। इस नाटक ‘धर्मगुरु’ की प्रस्तुति से पंजाबी नाटक नए क्षितिजों के द्वार खोलता है...। —गुरुशरण सिंह (नाटककार एवं निर्देशक) स्वराजबीर के नाटक पहली बार पंजाबी नाटक को उस नाट्य विधिविधान के साथ जोड़ते हैं जो भारतीय नाट्य रूप से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि ये नाटक अग्रदूत बनकर पंजाबी नाटक में पैदा हुई जड़ता को तोड़ते हैं। नाट्य-विधि के रूप में ही इनमें कविता और गद्य अन्तर्सम्बन्धित हैं। —डॉ. सुतिंदर सिंह नूर स्वराजबीर का नाटक ‘धर्मगुरु’ वर्तमान समय पर एक बड़ी टिप्पणी है जो धर्म और राजनीति की साँठ-गाँठ के माध्यम से समाज के समूचे अस्तित्व को अपनी गिरफ़्त में लेने के लिए सक्रिय है। इस समय इसकी प्रस्तुति एक साहसिक क़दम है। —‘नवांजमाना’ (दैनिक, जालंधर) यह नाटक ‘धर्मगुरु’ आज के दौर में फैले धार्मिक कठमुल्लापन और सामाजिक आपाधापी पर तीखा व्यंग्य है। तथाकथित धार्मिक नेताओं की मनमानियों और समाज की बेबसी की त्रासदी के दौर में इस नाटक का मंचन बुद्धिजीवियों और कलाकारों की बुलन्द आवाज़ और सच्चाई का प्रतीक है। —‘अजीत’ (दैनिक, जालंधर)
Ek Adhpaka Sa Natak
- Author Name:
Chirag Khandelwal
- Book Type:

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Description:
हिन्दी में मौलिक नाटकों की कमी की शिकायत से भरे माहौल में एक अधपका-सा नाटक सुखद विस्मय और भरोसेमन्द आश्वस्ति की तरह है। युवा नाटककार चिराग़ खंडेलवाल की यह कृति मौजूदा दौर के विपर्यय को उसकी पूरी बेतरतीबी के साथ उजागर करती है। इसके किरदार ऐसे हालात से रू-ब-रू हैं जो सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर जितने विघटनकारी हैं, व्यक्तिगत स्तर पर भी उतने ही मारक और व्यर्थताबोध भरने वाले हैं। दरअसल पूरा परिदृश्य ही बेतुकेपन, विवेकहीनता और विसंगितयों से खंडित है। ऐसे में सम्पूर्णता सम्भव नहीं है। नाटक इस यथार्थ को रेखांकित करते हुए सम्पूर्णता के स्वप्न को जगाता है।
एक अधपका-सा नाटक की एक उल्लेखनीय विशेषता इसका सरल फ़ार्म है। पारम्परिक ढाँचे को पूरी तरह नकारे बिना, ‘नाटक के अन्दर नाटक’ जैसी युक्ति को अपनाते हुए नाटककार ने मानो सारे बन्धन खोलकर यह सुविधा दे दी है कि पात्र अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ एक-एक शब्द जोड़ते हुए इसको अद्यतन कर सकते हैं और अपने समय-समाज के प्रासंगिक सवालों को इसमें शामिल कर सकते हैं। इस तरह यह नाटक हमेशा नया और समकालीन बना रहता है।
Chatushkon Evam Anya Natak
- Author Name:
Vratya Basu
- Book Type:

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style="font-weight: 400;">नई शताब्दी में बांग्ला नाट्याकाश में जिन नवीन नक्षत्रों का उदय हुआ है, व्रात्य बासु उनमें श्रेष्ठतम हैं। नाटककार, निर्देशक एवं अभिनेता—इन तीनों रूपों में उन्होंने आम जनता एवं बुद्धिजीवियों के मन-मस्तिष्क पर अपने चिन्तन एवं बुद्धिमत्ता की गहरी और स्थायी छाप छोड़ी है। व्रात्य का परिचय बांग्ला थिएटर के एकनिष्ठ संस्कृतिकर्मी के रूप में है। वे इस समय के जनसमादृत नाटककार हैं। राजनीतिक फैंटेसी, प्रकृति एवं मनुष्य तथा मनुष्य और मनुष्य के बीच के सम्बन्ध, कला और जीवन के मध्य का सम्बन्ध मूल्यबोधहीनता, क्रान्ति और प्रेम के बीच का द्वन्द्व, समय, सभ्यता एवं संस्कृति के बीच का द्वन्द्व आदि विविध समकालीन विषयों पर रचित व्रात्य बासु के नाटक जिस प्रकार एक के बाद एक सफलता के साथ मंचस्थ हुए हैं, उसी प्रकार उन्होंने आलोचकों के मन में भी जगह बनाई है।
इस पुस्तक में चार नाटक हैं, जिनमें आज का समय एवं मनुष्य के भीतर का अन्तर्द्वन्द्व मुखर हुआ है। यह समय अपनी सारी कुटिलताओं और अच्छाइयों के साथ इन नाटकों में उपस्थित है। व्रात्य बासु के ये नाटक निःसन्देह आज के समय की अमूल्य निधि हैं।
Agni Aur Barkha
- Author Name:
Girish Karnad
- Book Type:

- Description: इतिहास, पुराण, जातक और लोकथाएँ गिरीश कारनाड के लिए सर्वाधिक समृद्ध उत्प्रेरक और आकर्षक कथा-बीज स्रोत रहे हैं। नई दृष्टि एवं संवेदना के वहन के लिए वे अपनी रचना का शरीर अतीत से चुनते हैं। उनकी विशिष्टता यह है कि वे मिथकीय कथानकों से आधुनिक और सामयिक समस्याओं के सम्प्रेषण का काम लेते हैं। अग्नि और बरखा के लिए कारनाड पुनः अतीत की ओर लौटे हैं, इसके केन्द्र में है–महाभारत का वन पर्व। अपने वनवास काल में देशाटन में पांडव इधर-उधर भटक रहे हैं। सन्त लोमष इन्हें यवक्री अर्थात् यवक्रत की गाथा सुनाते हैं। महाभारत जैसी महागाथा का पटल इतना जटिल है कि ऐसे छोटे वृत्तान्त पर ध्यान न जाना स्वाभाविक था, लेकिन कारनाड को इस कथा ने सर्वाधिक प्रभावित किया। इस कथा के भीतर कई गम्भीर अर्थ विद्यमान हैं, नाटककार इस नाट्य-रूपान्तर में इसके निहित अर्थों व अभिप्रायों को स्पष्ट करता है। अतीत के प्रकाश में वर्तमान धुँधलके को साफ़ और उजला करने की यह रचनात्मक कोशिश निःसन्देह पठनीय और दर्शनीय है, इसका एक प्रमाण यह भी है कि अब तक इस नाटक के दर्जनों सफल मंचन हो चुके हैं।
Natya Manjari
- Author Name:
Jagdish Prasad Singh
- Book Type:

- Description: महाराज, आपने जिस तरह दर्जनों शत्रुओं पर विजय प्राप्त की, वह इस देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। आपने पिछले कुछ महीनों में पूरे दक्षिणी हिन्दुस्तान पर अधिकार कर लिया और मराठा राज्य को हर तरह समृद्ध किया। हैदराबाद में आपका प्रवेश उस नगर के लोग हमेशा याद रखेंगे। आपके स्वागत के लिए नगर को पूरी तरह सजाया गया था और सभी सड़कों और गलियों में कुमकुम की एक पर्त बिछायी गई थी। नगर में स्थान-स्थान पर विजय द्वार बनाए गए थे और सड़क की दोनों तरफ लाखों नगरवासी रंग-बिरंगे परिधानों में खड़े थे। मकानों की छतों पर और बालकनियों में महिलाओं ने आपके और सैनिकों के स्वागत के लिए भीड़ लगा रखी थी। मराठी सेना ने इस अवसर के लिए अपने वस्त्रों की सादगी का त्याग कर दिया था और नए, भड़कीले वस्त्र पहन लिये थे। सेनाधिकारियों और चुने हुए सिपाहियों ने अपने शिरस्त्राण में मोतियों की माला लगा रखी थी, और उनकी बाँहों में सोने के बाजूबंद चमक रहे थे। उनकी वर्दी नई थी जिस पर सोने के तार का काम किया हुआ था और उनके हथियार नए और चमचमाते हुए थे ।
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