Main Samay Hoon
Author:
Pawan JainPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
कुछ लोग कविता को एक ऐसा साज बनाना चाहते हैं जिसकी मधुर आवाज़ से थके-हारे इनसानों को नींद आ सके। लेकिन, पवन जैन उनमें से हैं जो कविता को ऐसा हथियार बनाना चाहते हैं जिसे लेकर समाज के शोषण और दुनिया के अँधियारे से युद्ध किया जा सके। पवन जैन की कविताएँ एक जागते हुए कवि की रचनाएँ हैं जो अपने चारों ओर पल-पल बदलती और बिगड़ती दुनिया को देख रहा है और हमें दिखाना चाहता है और साथ ही बिन पूछे हमसे पूछना चाहता है कि करना क्या है?</p>
<p>—जावेद अख्तर </p>
<p> </p>
<p>कविता किसे कहते हैं? वह शब्द है या शब्दार्थ? भाव है या भाव का भाषिक विस्फोट या फिर अति संवेदनशील लोक-मानस की असाधारण भाव प्रतिक्रिया—इस सब पर बरसों से विचार होता चला आ रहा है और समाज और कला-संस्कृति की परम्परा में इस सबको अलग-अलग समयों में स्वीकार-प्रतिस्वीकार किया जाता है।</p>
<p>यह भी कि कविता को कोई एक सुनिश्चित आकार-प्रकार, सुनिर्धारित ढाँचा या फिर अभिव्यंजना पद्धति आज तक अपनी सीमा रेखा में नहीं बाँध सकी। करोड़ों-करोड़ जाने-माने चेहरों की अपूर्वता और मौलिकता की तरह कविता भी हमेशा अपूर्व और मौलिक को अपनी आधारभूत पहचान मानती आई है—ठीक निसर्ग-सृजन की तरह। तथापि वह एक अभिव्यंजना-कला भी है। कवि द्वारा प्रयुक्त जाने-पहचाने से शब्द जब सर्वथा एक नई मुद्रा में आकर हमसे रोचक या उत्तेजक संवाद करने लगते हैं, हम मान लिया करते हैं, यह तो कविता है। तब भाषा के इस प्रकार की बनावटों को कविता कहना कोई अनहोना कथन कैसे कहा जाए?</p>
<p>पवन जैन की इन कविताओं का अन्तरंग गहरा राजनीतिक है। रचनात्मक तौर पर राजनीतिक किन्तु भारी सामूहिक व्यथा और क्षोभ से उपजा हुआ है। आदर्श नहीं बचे, मूल्य अवमूल्यों के द्वारा खदेड़ दिए गए, विचार की जगह कुविचार और घर को नष्ट-भ्रष्ट कर बाज़ार हमारे बीच किसी महानायक का प्रेत बन आ खड़ा है। ऐतिहासिक और क्रूर यथार्थ से ये कविताएँ हमारा साबक़ा करवाती हैं।</p>
<p>इन कविताओं में भाषा एक चीख़ बनकर फूटी है। इससे हम कविता की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियों और भाषा के आवेग-विह्वल विचलनों का अनुमान लगा पाएँगे और यह भी कि समय की बहुरूपी जटिलता और मानव-संवेदना की छटपटाहटों के बीच छिड़ा संग्राम किस तरह कविता का चेहरा-मोहरा बदल दिया करता है।</p>
<p>—डॉ. विजयबहादुर सिंह
ISBN: 9788183610520
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: नई स्त्री शिक्षा-सम्बलित-सजग स्त्री है! उसके प्रेम का पात्र बन पाना, उसके टक्कर का पुरुष बन पाना इतना आसान भी नहीं! स्त्रीवाद आप में उसके प्रेम के योग्य हो पाने की उमंग जगाता है! आत्मविकास का एक मौका देता है आपको! आत्मविश्वास की पहली सीढ़ी है आत्मनिरीक्षण! खौलते हुए पानी में चेहरा नहीं दिखता! अहंकार, क्रोध-लोभ या कामना एक विकट आँच है! इस आँच की सवारी मन को अदहन का पानी बना देती है: अन्तर्मन तो समझता है, लेकिन उसकी रिले-सर्विस जरा स्लो है, और उसका स्विच ‘ऑफ’ कर देने की सुविधा भी होती है, बाइबिल इसी अर्थ में तो कहती है–‘सीइंग दे दोंट सी, हियरंग दे दोंट हियर!’ सब बड़ी विभूतियों, लगातार सबको खरी-खोटी सुनानेवाले आत्मग्रस्त विष्णुओं का यही हाल है, मूर्ख वे थोड़े हैं–पर उनका आत्मबल कम है: बुरा जो ढूँढ़न मैं चला, बुरा न मिल्या कोय, जो दिल ढूँढ़ा आपना, मुझसे बुरा न कोय! स्त्री आन्दोलन यही विनय, यही आत्मसाक्ष्य जगाना चाहता है। प्रत्याक्रमण में, प्रतिघात या प्रतिशोध में इसकी आस्था नहीं है, शान्त प्रतिरोध यह करता है, आपको मौका देता है कि आप अपने भीतर झाँकें और सचमुच महसूस करें कि चित्त के पितृसत्तात्मक दबावों से या आदतन आपसे ऐसा व्यवहार नहीं हो गया जो दूसरों से आप अपने लिए नहीं चाहते? एक गम्भीर संकल्प लें कि अब ऐसा बिलकुल नहीं होगा। –भूमिका से
Saptaparna
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

- Description: मनुष्य की स्थूल पार्थिव सत्ता उसकी रंग-रूपमयी आकृति में व्यक्त होती है। उसके बौद्धिक संगठन से जीवन और जगत सम्बन्धी अनेक जिज्ञासाओं, उनके तत्त्व के शोध और समाधान के प्रयास, चिन्तन की दिशा आदि संचालित और संयमित होते हैं! उसकी रागात्मक वृत्तियों का संघात उसके सौन्दर्य-संवेदन, जीवन और जगत के प्रति आकर्षण-विकर्षण, उन्हें अनुकूल और मधुर बनाने की इच्छा, उसे अन्य मानवों की इच्छा से सम्पृक्त कर अधिक विस्तार देने की कामना और उसकी कर्म-परिणति आदि का सर्जक है।
Ullanghan
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

-
Description:
उल्लंघन संग्रह में कवि हुक्म-उदूली की अपनी प्राकृतिक इच्छा से आरम्भ करते हुए मौजूदा दौर की उन विवशताओं से अपनी असहमति और विरोध जताता है, जिन्हें सत्ता हमारी दिनचर्या का स्वाभाविक हिस्सा बनाने पर आमादा है।
एक ऐसे समय में ‘जिसमें न स्मृतियाँ बची हैं/न स्वप्न और जहाँ लोकतंत्र एक प्रहसन में बदल रहा है/एक विदूषक किसी तानाशाह की मिमिक्री कर रहा है’—ये कविताएँ हमें निर्प्रश्न अनुकरणीयता के मायाजाल से निकलने का रास्ता भी देती हैं, और तर्क भी।
कवि देख पा रहा है कि ‘सिकुड़ते हुए इस जनतंत्र में सिर्फ़ सन्देह बचा है’, ताक़त के शिखरों पर बैठे लोग नागरिकों को शक की निगाह से देखते हैं, तरह-तरह के हुक्मों से अपने को मापते हैं; कहते हैं कि साबित करो, तुम जहाँ हो वहाँ होने के लिए कितने वैध हो, और तब कविता जवाब देती है–‘ओ हुक्मरानो/मैं स्वर्ग को भूलकर ही आया हूँ इस धरती पर/तुम अगर मुझे नागरिक मानने से इनकार करते हो/तो मैं भी इनकार करता हूँ /इनकार करता हूँ तुम्हें सरकार मानने से!’
लगातार गहरे होते राजनीतिक-सामाजिक घटाटोप के विरुद्ध पिछले चार-पाँच सालों में जो स्वर मुखर रहते आए हैं, राजेश जोशी उनमें सबसे आगे की पाँत में रहे हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ इसी दौर में लिखी गई हैं। कुछ कविताएँ महामारी के जारी दौर को भी सम्बोधित हैं जिसने सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के सरकारी उद्यम पर जैसे एक औपचारिक मुहर ही लगा दी–‘सारी सड़कों पर पसरा है सन्नाटा/बन्द हैं सारे घरों के दरवाज़े/एक भयानक पागलपन पल रहा है दरवाज़ों के पीछे/दीवार फोड़कर निकल आएगा जो/किसी भी समय बाहर/और फैल जाएगा सारी सड़कों पर!’
Solitude's Embrace
- Author Name:
Anna Belmonte
- Rating:
- Book Type:

- Description: Solitude’s Embrace is born of independent musings, provocative suggestions and novel observations, all pieced together to offer readers a chance to explore their own world with a new perspective. Maybe even spark a script of their own. With everything being outward and flashy, it can be a pleasant change of pace to switch the lens. To look closer to home, turn inward; not with judgment but with curiosity and awe. With over 150 possible branches in these pages to explore, get started to find which ones take root and speak to your individuality – grow a tree of thoughts all your own.
Sochati Hain Auraten
- Author Name:
Kumar Nayan
- Book Type:

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Description:
हिन्दी के पायेदार कवि-शायर कुमार नयन की कविताएँ अपने समय के जनमूल्यों से जुड़ती हुई करुणा, न्याय, प्रेम और प्रतिरोध की धारा रचती हैं। कवि की मानें तो ‘यह आग का समय है और उसके पास सिर्फ़ प्रेम है’, जिसके सहारे रोज़ बदलती दुनिया में उसे विश्वास है कि ‘प्यार करने को बहुत कुछ है इस पृथ्वी पर।’ कुमार नयन की कविताओं का एक-एक शब्द अपने ख़िलाफ़ समय से इस उद्घोष के साथ संघर्षरत है कि ‘तुम्हारी दुनिया बर्बर है, तुम्हारे क़ानून थोथे हैं।’ ये शब्द अपनी नवागत पीढ़ी से करुण भाव में क्षमा-याचना करते हैं, ‘क्षमा करो मेरे वत्स, तुम्हें बचपन का स्वाद नहीं चखा सका।’
लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका को पूँजी साम्राज्यशाही की चाकरी में दंडवत् देख कवि-मन आहत हो चौथे स्तम्भ मीडिया की ओर भरोसे से देखता है, लेकिन वहाँ से भी उसका मोहभंग हो जाता है, जब वह देखता है कि 'अन्य कामों के अतिरिक्त/एक और काम होता है अख़बार का/आदमी को आदमी नहीं रहने देना।' वस्तुत: मनुष्य को मनुष्य की गरिमा में प्रतिष्ठित देखने की सदिच्छा ही इन कविताओं के मूल में है, जिसके लिए मनुष्य विरोधी सत्ता-व्यवस्था के प्रतिरोध में कवि मुसलसल अड़ा दिखता है।
कुमार नयन की कविताएँ स्त्री के प्रेम, संघर्ष और निर्माण के प्रति अपनी सम्पूर्ण त्वरा के साथ एक अनोखी दास्तान रचती हैं। स्त्री के विविध रूपों के चित्रण में कवि की संवेदनक्षम दृष्टि उसे सृष्टि के नवनिर्माण की धातृ के रूप में प्रतिष्ठित करती जान पड़ती है। कविताओं में एक प्रकार का ख़ौफ़, आतंक, भय और संशय का स्वर प्रभावी दीख पड़ता है, जबकि कुमार नयन प्रेम और विश्वास के कवि हैं। पाठक इस द्वैत को समझ पाएँ तो उन्हें इन कविताओं का आत्मिक आस्वाद प्राप्त होगा!
—शिव नारायण सम्पादक, 'नई धारा'।
Ek Parityakt Pul Ka Sapna
- Author Name:
Saumya Malviya
- Book Type:

- Description: ये कविताएँ बीते दो-एक दशकों में उपजी बेचैनियों और निराशाओं को स्वर देने का प्रयास करती हैं। वक़्त की चोट को शब्दों में महसूसना चोट पर मरहम का ही काम नहीं करता, बल्कि उसे ज़िन्दा भी रखता है। यह संग्रह अपने ज़ख़्मों के प्रति उत्तरदायी बने रहने की अपील करता हुआ, उनके भरने की उम्मीद की व्यर्थ और अश्लील सकारात्मकता से मुक्त उम्मीद भी करता है। जैसे-जैसे इस दौर की अलामतें हम पर नुमायाँ हुई हैं, कविता, विचार और संवेदना में भ्रम और कुहासा बढ़ा है। दृश्य के धुँधलाने के साथ दृष्टि भी क्षीण होती-सी महसूस हुई है। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ इस सन्दर्भ में दृष्टि की खोज भी हैं और उसके थिर और स्पष्ट बने रहने की टॉर्च भी। हालाँकि इन कविताओं में रोशनी की दिशोन्मुखता नहीं, आग की दहनप्रियता अधिक है और इस जलने में केवल सन्ताप नहीं, प्रतिदिन की, सम्बन्धों की, स्थितियों और संघर्षों की ऊष्मा भी है जो जीवन को ठंडेपन से दूर रखते हुए जीवन्त-जाग्रत बनाए रखती है। शिल्प और भाषा के स्तर पर अपने को परस्पर काटते हुए प्रयोग भी उस विकलता को अपने में विन्यस्त करते हैं जो अन्तर्वस्तु की ज़मीन पर जगह-जगह उद्घाटित हुई है। इन कविताओं में एक कवि की यात्रा भी है जो गणित, विज्ञान, दर्शन और समाजशास्त्र की गलियों में भटकती हुई बार-बार कविता के दयार पर लौटती है। ये लौटना ही उसका अरमान भी है और उसका निकष भी। नतीजन इनमें जो धधक रहा है, कई पाँवों का चक्कर, कई हाथों की दुआ है जो हर बार कविता पर आकर ख़त्म होती है। इसलिए तमाम उत्कंठाओं और व्याकुलताओं के बाद भी इन कविताओं में एक बसेरापन भी है और अपनी जगह की ठसक भी।
Nepali Kavitayen
- Author Name:
Sarveshwardayal Saxena
- Book Type:

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Description:
नेपाली साहित्य या भाषा की प्राचीनतम रचना चौदहवीं शती का एक ताम्रपत्र माना जाता है। लेकिन मल्लकाल के अन्त के साथ ही नेपाली में साहित्य सर्जना होने लगी। सुवानन्द दास की पहली कविता, जिसमें पृथ्वीनारायण शाह (प्रथम नेपाल नरेश) की विजय-यात्रा इत्यादि का वर्णन है, नेपाली साहित्य की प्रथम कविता है। लेकिन नेपाली साहित्य की वास्तविक शुरुआत भानुभक्त आचार्य और उनके महाकाव्य ‘नेपाली रामायण’ से माननी चाहिए, जिसे भानुभक्त आचार्य ने जेल के अन्दर लिखा था।
इस काल को हम नेपाली मानस के निराशा-युग, पराजय-काल के रूप में ले सकते हैं। अंग्रेज़ों के साथ अपमानजनक सुगौली सन्धि (1816) के समय अनेक दरबारी षड्यंत्रों की बीभत्सता चरम रूप में थी। सत्ता के लिए हर कोई दूसरे की लाश पर खड़े रहने को तत्पर था। नेपाली इतिहास के लहूलुहान पन्ने इन्हीं दिनों लिखे गए। भानुभक्त की ‘रामायण’ इसी भक्तिकाल (1853) की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है।
सत्ता और शास्त्रीयता के विरुद्ध भयंकर युद्ध के नायक गोपालप्रसाद रिमाल प्रथम कवि हैं जिनका प्रभाव आज तक बरकरार है। 1940 में ही महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा भी स्वतंत्रता युद्ध में कूद गए। रिमाल और देवकोटा दो ऐसे अद्वितीय कवि हैं, वे अब हमारे मध्य नहीं रहे, जिन्होंने नेपाल को नई जागृति दी। 1950 में नेपाल में प्रजातंत्र की स्थापना हुई। 1950-60 के दशक को हम नेपाली साहित्य का अभूतपूर्व दशक कह सकते हैं।
इस संग्रह में 1961 के बाद के कवियों को ही प्रस्तुत किया गया है—अपवाद के रूप में सर्वश्री गोपालप्रसाद रिमाल, लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा और मोहन कोइराला हैं।
संग्रह के कवियों में दुरूहतावादी और ‘कला कला के लिए’ माननेवाले और अपने को प्रगतिशील कहनेवाले किसी वाद के समर्थक कवियों को शामिल नहीं किया गया है।
नेपाली कविता में साठ के दशक के बाद जो पीढ़ी उभरी है, वह साहित्य को आदमी की व्यथा, वेदना, विसंगति, कटुता और जीवन के घिनौने यथार्थ को प्रकट करने का माध्यम स्वीकारती है और उसे आम आदमी तक ले जाना चाहती है। ऐसे सभी कवियों को इस संग्रह में शामिल करने का प्रयास किया गया है जो सौ साल बाद के पाठक के लिए नहीं लिखते बल्कि आज के पाठकों के सामने आज की संवेदना को लेकर जाना चाहते हैं।
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