Paryavaran Ke Paath
Author:
Anupam MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
''अनुपम मिश्र एक अत्यन्त विनम्र, निरभिमानी व्यक्ति थे जिन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में साधारण और सामुदायिक विवेक और विधि का जैसा अवगाहन किया वैसा आधुनिक टेकनॉलजी के दुश्चक्र में फँसे अन्य पर्यावरणविद् अकसर नज़रन्दाज़ करते रहे हैं। अनुपम जी लगभग ज़िद कर अपनी इस धारणा पर डटे रहे कि साधारण लोग और समुदाय पढ़े-लिखों से ज़्यादा जानता-समझता है और आधुनिकता को अपनी सर्वज्ञता के दम्भ से मुक्त हो सकना चाहिए। उनसे बातचीत का यह संचयन इस अनूठे व्यक्ति के सोच-विचार की नई परतें सहजता से खोलेगा, ऐसा हमारा विश्वास है।"
—अशोक वाजपेयी
ISBN: 9789388753258
Pages: 212
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: जीवन के उतार-चढ़ावों के बीच व्यक्ति अपने आसपास की बहुविध परिस्थितियों को देखकर आश्वस्त होता है और आगे बढ़ता है। पर कोई ऐसी भयावह परिस्थिति, जो केवल कहानियों में सुनी हो, सब तरफ का वातावरण नकारात्मकता से भरा हुआ हो, उसको सहने के लिए तो कोई मानवेतर शक्ति ही संबल बनती है। कोरोना काल में इन मानवेतर शक्तियों को जगाने के लिए श्रेष्ठ व्यक्तियों ने आह्वान किए। कुछ अदम्य साहसी पुण्यात्माओं ने कोरोना के वातावरण में भी मानव-मूल्यों का परिचय दिया। यही विषय-वस्तु इस पुस्तक में संकलित है। सामान्य परिस्थितियों में भी देहदान-अंगदान के विषय में संकल्पपूर्वक कुछ व्यक्ति मानव-मूल्यों को जीवित रख रहे हैं। मानव सेवा की यह प्रेरक कहानी इस पुस्तक के माध्यम से आप तक पहुँचाने का विनग्र प्रयास है।
Janiye Bharat Ke Mundaon Ko
- Author Name:
Radhagovind Patar
- Book Type:

- Description: "मानव जाति में सभ्यता का उद्भव एवं विकास होने के पहले मानव के रहन-सहन, व्यवहार, खान-पान आदि अन्य पशुओं से बहुत अधिक भिन्न नहीं था। परंतु मानव जाति में प्रकृति प्रदत्त विकसित मस्तिष्कीय चेतना एवं बोलने की क्षमता ने मनुष्य को स्पष्ट रूप से अन्य पशुओं से आगे एवं श्रेष्ठ बनाया। विकसित मस्तिष्क एवं वाक्शक्ति के कारण मनुष्य ने सभ्यता के क्षेत्र में प्रवेश किया। परंतु मानव समाज में भी संपूर्ण विश्व में सभी एक साथ, एक ही कालखंड में समान रूप से विकसित होकर सभ्यता को प्राप्त नहीं हुए थे। भिन्न-भिन्न क्षेत्र के मनुष्यों ने भिन्न-भिन्न कालखंड में सभ्यता के विभिन्न स्तर को प्राप्त किया। भारत में आर्य और द्रविड़ संस्कृति एवं सभ्यता विकसित हुई। इस बीच मानव समाज की अनेक अन्य छोटी-छोटी टुकडि़याँ जो वन-जंगलों और पहाड़ों में निवास करती थीं, सभ्यता की दौड़ में पीछे रह गइर्ं। ऐसी वनवासी टुकडि़याँ संपूर्ण भारत में है। मुंडा भी ऐसी ही एक आçदवासी जनजाति है जिसकी आबादी झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम आदि राज्यों में हैं। मुंडा लोग समय के साथ अपनी आदिम संस्कृति को पीछे छोड़ते हुए द्रुत गति से सभ्यता के उच्चतर पड़ाव पर पहुँच रहे हैं। कई स्थानों में मुंडारी संस्कृति, यहाँ तक कि मुंडारी भाषा भी पीछे छूट रही है। यह पुस्तक मुंडाओं के क्रमिक विकास की एक जीवंत कहानी बताती है जो आमजन के साथ मानवशास्त्र के प्रति रुचि रखनेवालों के लिए भी समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी। "
Pahar
- Author Name:
Nilay Upadhayaya
- Book Type:

- Description: निश्छल प्रेम और दुर्निवार जीवन-तृष्णा की अपूर्व गाथा है—‘पहाड़’। राम ने अपनी प्रिया सीता के लिए समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था—प्रीत कारण सेतु बाँधल सिया उदेस सिरी राम हो। और दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी पिंजरी के लिए पहाड़ काटकर रास्ता बनाया। राम देवता थे, जबकि दशरथ मांझी बिहार के गया ज़िले के एक साधारण गाँव के अति साधारण निवासी; समाज के सर्वाधिक उपेक्षित, वंचित और अभावग्रस्त समुदाय के एक सदस्य। लेकिन उन्होंने मानवीय प्रेम की ऐसी मिसाल क़ायम की, जिसके बारे में अब तक सिर्फ़ पौराणिक कथाओं-किंवदन्तियों में सुना गया था। इस तरह ‘पहाड़’ में साधारण की असाधारणता मूर्त हुई है। दशरथ मांझी की यह गाथा उनके प्रेम की व्यक्तिगत परिधि तक सीमित नहीं है। इसमें उनके और उनके जैसे अनेक लोगों का जीवन-संघर्ष चित्रित है, जो समाज की सामन्ती शक्तियों के उत्पीड़न का शिकार बनते हैं। लेकिन तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद वे अपनी स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा की आकांक्षा से विमुख नहीं होते, बल्कि बार-बार संघर्ष करते हैं। उपन्यासकार ने काफ़ी बारीकी से सामाजिक-राजनीतिक जटिलताओं को प्रस्तुत किया है, जिससे यह कृति और व्यापक हो उठी है। ‘पहाड़’ का एक उल्लेखनीय पक्ष इसमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति प्रस्तुत दृष्टिकोण भी है। यह उपन्यास बतलाता है कि प्रकृति को अपनी लिप्सा-पूर्ति का साधन बनाकर मनुष्य अपने को ही नष्ट कर लेगा, जबकि उसके साहचर्य में उसका अस्तित्व बचा रह सकता है।
Nastikasobat Gandhi
- Author Name:
G. Ramchandra Rao +1
- Book Type:

- Description: काळ आहे 1944-1948.आंध्रप्रदेशात गांधी विचारांचा कार्यक्रम राबविणारे नास्तिकवादी कार्यकर्ते गोरा आणि महात्मा गांधी यांच्यामध्ये चर्चा होतात. विषय आहे : आस्तिकता आणि नास्तिकतादोन परस्पर विरोधी मताची माणसे एकमेकांशी चर्चा करत आहेत. परस्परांना तपासून बघत आहेत. मात्र या चर्चेत खंडनमंडन किंवा वादावादीचा खणखणाट नाही. चर्चेच्या ओघात दोघेही एकमेकाला समजून घेतात आणि दोघांमधील नाते अधिकाधिक दृढ होत जाते.गांधीजींच्या निधनानंतर तीन वर्षांनी गोरांनी या आठवणी लिहिल्या आणि तत्कालीन गांधीवादी विचारवंत किशोरीलाल मश्रुवाला यांनी प्रस्तावनेत या आगळ्यावेगळ्या संबंधाची वैचारिक उकल केली.सत्तर वर्षांपूर्वी इंग्रजीत प्रकाशित झालेल्या ‘An atheist with Gandhi' या पुस्तकाचा हा मराठी अनुवाद. सोबत ज्येष्ठ अभ्यासक किशोर बेडकिहाळ यांनी ‘पुस्तकासंबंधी' या प्रदीर्घ टिपणात या पुस्तकाचे आजच्या संदर्भात महत्त्व विशद केले आहे. Nastikasobat Gandhi | Gora (G. Ramchandra Rao)Translated By : Vijay Tambe नास्तिकासोबत गांधी | गोरा (जी. रामचंद्र राव)अनुवाद : विजय तांबे
Vyakaran Pravesh
- Author Name:
Shyam Chandra Kapoor
- Book Type:

- Description: व्याकरण उस विद्या को कहते है, जिससे हम भाषा को शुद्ध बोलना तथा लिखना सीखते है।भाषा— भाषा उस साधन का नाम है, जिससे हम बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट करते है। जैसे— हिंदी भाषा, अंग्रेजी भाषा, मलयालम भाषा, पंजाबी भाषा, तमिल भाषा आदि।
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