Manjhinama | The True Story Of A Bonded Labourer Becoming A Union Minister | Minister Enterprises of India Jitan Ram Manjhi Book In Hindi
Author:
Amreen KhanPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 640
₹
800
Available
जीतन राम मांझी एक राजनीतिज्ञ हैं, जो केंद्र सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री हैं। वर्तमान में वे गया निर्वाचन क्षेत्र से संसद् सदस्य हैं। 20 मई, 2014 से 20 फरवरी, 2015 तक वे बिहार के 23वें मुख्यमंत्री भी रहे। इससे पहले उन्होंने नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री के रूप में कार्य किया। मांझी 1980 से बिहार विधानसभा के सदस्य हैं।
मांझी का जन्म 6 अक्तूबर, 1944 को बिहार के गया जिले के खिजरसराय क्षेत्र के महकार गाँव में हुआ था। मगध विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 13 साल तक गया टेलीफोन एक्सचेंज में काम किया।
जीतन राम मांझी ने 1980 में राजनीति में प्रवेश किया। कांग्रेस पार्टी के टिकट पर फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1990 का चुनाव हारने के तुरंत बाद मांझी जनता दल में चले गए। 1996 से 2005 तक मांझी बिहार में आरजेडी राज्य सरकार में मंत्री थे। 2010 के बिहार चुनावों में वे जहानाबाद जिले के मखदुमपुर से राज्य विधानसभा के लिए चुने गए।
2015 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मांझी ने पार्टी से अलग होकर हिंदुस्तान आवाम मोर्चा सेक्युलर नाम से अपनी पार्टी बनाई और भाजपा के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. में शामिल हो गए।
ISBN: 9789355627001
Pages: 248
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: सन्ताल हूल झारखंड में हुए महान उपनिवेश-विरोधी विद्रोह के वास्तविक स्वरूप और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उसके समुचित स्थान को रेखांकित करनेवाली पुस्तक है। भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आदिवासी प्रतिरोध का लम्बा सिलसिला रहा है। छोटानागपुर और सन्ताल परगना के आदिवासियों ने पहाड़ियों और घने जंगलों के अपने गढ़ में अंग्रेजों को कभी भी चैन से नहीं रहने दिया। वे ईस्ट इंडिया कम्पनी की शोषणकारी नीति और भेदभावपूर्ण व्यवस्था से असन्तुष्ट थे। उन्हें उसकी अधीनता स्वीकार नहीं थी। वे अपना राज चाहते थे, इसलिए उन्होंने बार-बार विद्रोह किया। उन्हीं विद्रोहों में से एक था सन्ताल हूल, जो 1857 के बहुचर्चित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के ठीक पहले 1854-55 में हुआ था। इस विद्रोह के नेता थे सिदो, कानू, चाँद और भैरव। सन्ताल हूल का–जैसा कि अन्य आदिवासी विद्रोहों में भी दिखता है—उपनिवेशवाद विरोधी तेवर और स्वाधीनता का उद्देश्य स्पष्ट था। उसके नेताओं और भागीदारों की शहादत भी असंदिग्ध थी। बावजूद इसके उसके बारे में भ्रम बना रहा और बौद्धिक-अकादमिक जगत में ‘इतिहास को नीचे से देखने’ का विचार पनपने के वर्षों बीत जाने के बाद तक सन्ताल हूल को भारतीय इतिहास की मुख्यधारा में समुचित स्थान नहीं दिया गया। इसी स्थिति के मद्देनजर आदिवासी इतिहास और संस्कृति के अधिकारी विद्वान डॉ. एस.पी. सिन्हा ने इस पुस्तक में सन्ताल हूल के बारे में उपलब्ध तमाम दस्तावेजों, परम्परागत और मौखिक स्रोतों को आधार बनाकर सन्तालों की अपनी व्यवस्था, अंग्रेजी व्यवस्था से उनके असन्तोष, हूल के नेताओं के व्यक्तित्व और नेतृत्व-क्षमता, हूल के उद्देश्य और आदर्श आदि के वास्तविक स्वरूप को सामने रखा है। यह पुस्तक एक ओर सन्ताल हूल सम्बन्धी पहले के अध्ययनों की समीक्षा करती है तो भावी अध्ययनों के लिए एक प्रासंगिक दिशा निर्देश भी प्रस्तावित करती है। सिदो, कानू, चाँद और भैरव जैसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आरम्भिक सूत्रधारों को उनका श्रेय प्रदान करते हुए यह पुस्तक इतिहास के अधूरे परिप्रेक्ष्य को पूरा करती है।
Vande Matram
- Author Name:
Milind Prabhakar Sabnees
- Book Type:

- Description: वंदे मातरम् ऋषि बंकिमचंद्र की अलौकिक काव्य प्रतिभा की अभिव्यक्ति है। वैदिक काल से अर्वाचीन काल तक मातृभूमि के प्रति हमारे मन में बसनेवाले अनन्य प्र्रेम का अव्यक्त रूप यानी वंदे मातरम्! मातृभूमि के प्रति यह प्रेम शाश्वत है, चिरंतन है। जिस भूमि ने मुझे जन्म दिया, जिसने मेरा पालन-पोषण किया, मुझे समृद्धता दी और अंत में जिस भूमि में मैं मिल जाने वाला हूँ, वह भूमि यानी यह हमारी भूमाता, मातृभूमि! उसे हमारा शत-शत प्रणाम! भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त मातृपूजन, भूमिपूजन, इस जगन्माता का पूजन इन सबके प्रतीक बने शब्द हैं ‘वंदे मातरम्’! मातृभूमि के प्रति यह प्रेम प्रत्येक व्यक्ति के मन में सहज-स्वाभाविक होता है। जैसा अपनी जननी-माता के प्रति होता है ठीक वैसा ही! वह प्रेम हम प्रत्येक के हृदय में है। उस पर केवल निराशा के पुट चढ़े हैं, जिन्हें दूर हटाना होगा। अंतरतम की तह से ‘वंदे मातरम्’ के उच्चारण से उन्हें निश्चय ही दूर किया जा सकता है। वंदे मातरम्!!
Vikasit Bihar Ki Khoj
- Author Name:
Nitish Kumar
- Book Type:

- Description: सन् 1957 में प्रधानमंत्री नेहरू ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संदर्भ में लोकसभा में कहा था-' ' बोलने के लिए वाणी की जरूरत होती है, किंतु मौन के लिए वाणी और विवेक दोनों की जरूरत पड़ती है। '' बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के विषय में भी शायद पंडित नेहरू का यह वाक्यांश सटीक बैठता है। मुख्यमंत्री नीतीश बाबू चाहे प्रतिपक्ष में रहे या पक्ष में, सदन के एक-एक पल का उपयोग किया, ताकि संसदीय जनतंत्र मजबूत हो एवं जन- भागीदारी का यह मुखर मंच अपने मकसद में कामयाब हो। वे कर्पूरी ठाकुर की राजनीति के कायल रहे हैं। उन्होंने राजनीति में सिद्धांतों और मूल्यों की पैरवी की और इन्हें सही मायनों में अपनाया भी। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उनके कार्यकाल में बिहार राज्य का कायाकल्प हो गया है। प्रस्तुत पुस्तक में नीतीश बाबू के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कार्यों का विवेचन किया गया है। एक राजनेता के रूप में वे अपनी वाणी से कुछ न कहकर अपना उत्तर रचनात्मक कार्यो के रूप में देते हैं। उनकी मान्यता है कि सुशासन का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे। राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता का प्रमाण देनेवाले इन लेखों से आम आदमी का राजनीतिज्ञों में और विकास के कामों में विश्वास बढेगा।
Bhartiya Rajniti Aur Samvidhan : Vikas, Vivad Aur Nidan
- Author Name:
Subhash Kashyap
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Description:
हिन्दी-भाषी समाज के लिए यह स्थिति दुखद है कि देश की ज्वलन्त समस्याओं का परिप्रेक्ष्य स्पष्ट करनेवाली गम्भीर और व्यवस्थित सामग्री का हिन्दी में आज भी घोर अभाव है। प्रख्यात संविधान-विद् और पूर्व संसदीय सचिव सुभाष काश्यप की यह किताब राजनीति को प्रस्थान बिन्दु बनाते हुए भ्रष्टाचार अपराधीकरण, जातिवाद और साम्प्रदायिकता आदि जैसे विषयों पर संविधान और संसद की भूमिकाओं का एक विकास-क्रम में खुलासा करती है। पुस्तक चार भागों में विभाजित है—‘स्वाधीनता की अर्द्धशती’, ‘भारत का संविधान’, ‘भारत की संसद’ और ‘राज्यों में विधानपालिका’। इसमें जहाँ एक ओर संविधान- निर्माण, संविधान की आत्मा और संसद की बहुआयामी भूमिका जैसे मूलभूत प्रश्नों का गहराई के साथ विवेचन हुआ है, वहीं कुछ बिलकुल ताज़ा मुद्दों; जैसे—न्यायिक सक्रियता, लोकपाल, दल-बदल, राज्यपालों की भूमिका, राष्ट्रपति शासन और अनुच्छेद 356, सदन-अध्यक्ष की भूमिका और संसदीय विशेषाधिकार आदि जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है।
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