Kranti Ki Ibarten
Author:
Sudhir VidyarthiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
Kranti Ki Ibarten
ISBN: 9788126721481
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: "देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कार्य क्षमता, बोलने की अनूठी शैली और आम व्यक्ति के साथ हर पल जुड़े रहने की इच्छा ने उनके व्यक्तित्व को अप्रतिम बना दिया है। नरेंद्र मोदीजी आज केवल एक व्यक्तित्व भर नहीं हैं, बल्कि वे हमारे देश के एक-एक नागरिक की आँखों की चमक हैं। नरेंद्र मोदीजी केवल अपने कदम बढ़ाने में यकीन नहीं रखते हैं, बल्कि वे कहते हैं कि मेरे साथ 130 करोड़ भारतीयों के कदम साथ चलेंगे, तो देश विकास के पथ पर अग्रसर होगा और भारत की पताका सदैव विश्व में सबसे ऊपर नजर आएगी। वे सकारात्मकता से भरपूर हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति भी उन्हें विचलित नहीं करती। वे जितना अधिक राजनीति में बेजोड़ हैं, उतने ही शब्दों और विचारों के अधिकारी। उनकी बातें और उनका लेखन हर भारतीय में ऊर्जा, जोश और आत्मविश्वास का संचार करता है। यह पुस्तक नरेंद्र मोदीजी के प्रेरक विचारों का नवनीत है। यह पुस्तक हर भारतीय की सकारात्मकता को ऊर्जावान बनाने और उन्हें राष्ट्र के लिए समर्पित होने का भाव जाग्रत् करेगी।"
Jab Neel Ka Daag Mita : Champaran-1917
- Author Name:
Pushyamitra
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Description:
सन् 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी के अवतरण की अनन्य प्रस्तावना है, जिसका दिलचस्प वृत्तान्त यह पुस्तक प्रस्तुत करती है।
गांधी नीलहे अंग्रेज़ों के अकल्पनीय अत्याचारों से पीड़ित चम्पारण के किसानों का दु:ख-दर्द सुनकर उनकी मदद करने के इरादे से वहाँ गए थे। वहाँ उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया वह शोषण और पराधीनता की पराकाष्ठा थी, जबकि इसके प्रतिकार में उन्होंने जो कदम उठाया वह अधिकार प्राप्ति के लिए किए जानेवाले पारम्परिक संघर्ष से आगे बढ़कर 'सत्याग्रह’ के रूप में सामने आया। अहिंसा उसकी बुनियाद थी।
सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ़्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया। यह सफल भी रहा। चम्पारण के किसानों को नील की ज़बरिया खेती से मुक्ति मिल गई, लेकिन यह कोई आसान लड़ाई नहीं थी।
नीलहों के अत्याचार से किसानों की मुक्ति के साथ-साथ स्वराज प्राप्ति की दिशा में एक नए प्रस्थान की शुरुआत भी गांधी ने यहीं से की। यह पुस्तक गांधी के चम्पारण आगमन के पहले की उन परिस्थितियों का बारीक ब्यौरा भी देती है, जिनके कारण वहाँ के किसानों को अन्तत: नीलहे अंग्रेज़ों का रैयत बनना पड़ा।
इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई ज़िक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे।
इसका एक रोचक पक्ष उन किंवदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुज़रते वक़्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं।
सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में क़िस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का ख़याल रखा है।
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