Deshnama Gaonnama
Author:
DevisharanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
देवीशरण ठेठ आदमी हैं। वे अपने उपनाम ‘ग्रामीण’ को सार्थक करते हैं। गाँव का आदमी रूप, रंग और शृंगार की परवाह किये बिना अपनी मूल वस्तु के भरोसे जीवन जीता है। उसमें कुंठायें नहीं होतीं। आइने के सामने होकर वह फूलता नहीं। वह आदमी अपनी रचना के लिये जो भी चुनता है, वह उपयोग की प्रेरणा से बनती है। देवीशरण ‘ग्रामीण’ इसी प्रकृति की छाया में कविता, कहानी या गाँवनामा लिखते हैं। धूल, लाटा, चना, मजदूर, नदी-नाले, घर-छप्पर उनकी कविताओं के शीर्षक हैं। इन वस्तुओं के विश्लेषण के बजाय ‘ग्रामीण’ जी अपनी रचनाओं के द्वारा उनकी वस्तुओं से अपने अभिप्राय व्यक्त करते हैं। उनसे अपने मन की बात कहलवाते हैं। मानवीकरण करते हैं। इन वस्तुओं के प्रति अपना राग व्यक्त करते हैं। वे वस्तुओं को बुद्धि के आकाश में नहीं उड़ाते। वे आम आदमी को सम्बोधित करते रहते हैं। वे सिखाने-समझाने की प्रतिज्ञा से आगे बढ़ते हैं।
देवीशरण जी की अपनी आस्था है। आस्था ऐसी जो मनुष्य की समानता के लिये प्रतिबद्ध है। और आगे कहें तो यह कि वे मार्क्सवाद पर भरोसा करते हैं। मार्क्सवाद की बुनियादी निष्पत्तियाँ उनके भावबोध का अंग बन गई हैं। वे स्वाभाविक सी हो गई हैं, उनके लिये। अतः रचनाओं का स्फुरण इसी आस्थाजन्य स्वाभाविक प्रक्रिया से होता है। ग्रामीण जी मानते हैं कि श्रमिकों की संगठित शक्ति अपराजेय होती है। वे अपनी अनेक कविताओं में इसे व्यक्त करते हैं। उनका कविता संसार जीवन का वास्तविक क्षेत्र है। वह ज्यादातर अभिधा में हैं। उसमें गहरा आशावाद है। इस तरह की निरलंकृत कविता जनता की प्राथमिक दीक्षा के काम आती है। जनता के भावों का सीधा-साझापन इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इन कविताओं की प्रासंगिकता लम्बे समय तक रहेगी। — कमला प्रसाद
ISBN: 9788119092635
Pages: 304
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Pratinidhi Kavitayen : Bharatbhushan Agrawal
- Author Name:
Bharatbhushan Agrawal
- Book Type:

-
Description:
भारतभूषण अग्रवाल की कविता बिना किसी नाटकीयता, बिना कोई चीख़-पुकार मचाए ईमानदारी से अपनी सच्चाई को देखती-परखती कविता है। उसमें रूमानी आवेग से लेकर मुक्त हास्य, विद्रूप से लेकर अनुराग और कोमलता की कई छवियाँ, सभी शामिल हैं। कामकाजी मध्यवर्ग की विडम्बनाएँ, संवेदनशील व्यक्ति के ऊहापोह, शहराती ज़िन्दगी के रोज़मर्रा के सुख-दु:ख आदि को भारत जी ईमानदारी और पारदर्शिता से अपनी कविता में जगह देते हैं। उनमें अपनी विशिष्टता का रत्ती-भर भी आग्रह नहीं है। बल्कि अगर आग्रह है तो अपनी सीधी-सादी, सरल जान पड़ती लेकिन दरअसल जटिल साधारणता का। यह आग्रह उनकी आवाज़ को और सघन तथा उत्कट बनाता है।
उनकी कविता अपने को महत्त्वाकांक्षा के किसी विराट लोक में विलीन नहीं करती। वह अपनी उत्सुकताओं और बेचैनियों को जतन से नबेरती है। वह कविता में विकल्प इतना नहीं खोजती जितना सच्चाई की ही कई अन्यथा अलक्षित रह जानेवाली परतों को। कविता में कवि का यह अहसास बराबर मौजूद है कि सच्चाई और ज़िन्दगी कविता से कहीं बड़ी और व्यापक हैं और वे कविता में अँट नहीं पा रही हैं।
Pakistani Urdu Shayri: Vol. 1
- Author Name:
Narendra Nath
- Book Type:

-
Description:
पाकिस्तान के कुछेक नामचीन शायरों को छोड़ दें तो हिन्दी का पाठक वहाँ के ज़्यादातर शायरों से परिचित नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखकर ‘पाकिस्तानी उर्दू शायरी’ शीर्षक इस शृंखला की योजना बनाई गई थी जिसमें दो सौ से ज़्यादा शायरों को उनके जीवन-परिचय और रचनाओं के साथ पाठकों के सामने लाने का इरादा किया गया था।
इसके लिए इन पुस्तकों के सम्पादक नरेन्द्र नाथ पाकिस्तान भी गए, कराची और लाहौर के किताबघरों-पुस्तकालयों से नई-पुरानी किताबें जमा कीं और पत्र-पत्रिकाओं की फ़ाइलें खँगालीं। शायरों से निजी तौर पर ख़तो-किताबत भी की गई।
पाकिस्तान के शायरों को हिन्दी पाठक तक पहुँचाने के अलावा इस शृंखला का एक उद्देश्य हिन्दी और उर्दू कविता के बीच एक पुल बनाना भी है। भारत की आज़ादी के साथ ही पाकिस्तान एक मुल्क के रूप में अलग हो गया, सरहदें खिंच गईं, लेकिन कोई चीज़ थी जिसे नहीं बाँटा जा सका, वह तब भी एक थी, आज भी एक है। वह है देखने का, सोचने का, जीने का ढंग और हमारा सामाजिक-सांस्कृतिक बोध। पाकिस्तानी उर्दू शायरी के इन पाँच खंडों से गुज़रते हुए आप हर हाल में इस चीज़ को महसूस करेंगे। अनेक नज़्में और ग़ज़लें हैं जिनके रूपक, उपमाएँ और उपमान सरहदों से ऊपर उठकर भारत और पाकिस्तान के इस एकत्व को बरबस उजागर कर देते हैं।
इस खंड में कुल अठारह शायरों की रचनाएँ शामिल हैं, साथ ही उनका जीवन-परिचय भी, और जहाँ सम्भव हो सका, उनकी शायरी के बारे में टिप्पणियाँ भी। ख़ासतौर पर जिन विधाओं की रचनाएँ यहाँ ली गई हैं उनमें ग़ज़लें, नज़्में और फुटकर शे’र प्रमुख हैं। कुछ शायरों की रुबाइयाँ, क़तआत और गीत भी लिये गए हैं जो पाकिस्तान के काव्य-परिदृश्य का विस्तृत परिचय हमें देते हैं।
Safed Par Kala
- Author Name:
Prashan Kumar Jain
- Book Type:

- Description: Book
Har Koshish Hai Ek Baghawat
- Author Name:
Rajendra Kumar
- Book Type:

- Description: collection of poems
Kaise Chand Lafzon Mein Saara Pyaar Likhun
- Author Name:
Dinesh Gupta
- Book Type:

- Description: "कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ" एक कविता-संग्रह है, जिसमें प्यार मुहब्बत विषय पर कविता, शायरी, गीत और ग़ज़लें सम्मिलित है |
Pad Kupad
- Author Name:
Ashtbhuja Shukla
- Book Type:

-
Description:
‘पद-कुपद’ हिन्दी कविता की जनोन्मुख परम्परा में एक प्रतिमान है। अष्टभुजा शुक्ल ऐसे कवि हैं जिन्हें मनुष्यता के मौलिक मर्म का गहन ज्ञान है। उनकी कविताओं में वह गाँव और क़स्बा है जिसका संघर्ष निरन्तर बढ़ता जा रहा है। राजनीति और अर्थशास्त्र की भूमंडलीय परिभाषाओं के सम्मुख जो जीवन प्रायः भूलुंठित दिख रहा है, उसका प्रतिरोध अष्टभुजा शुक्ल की रचनाओं में गतिशील है।
पद-शैली में अष्टभुजा की ये अधिकांश रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पहले ही पाठकों-आलोचकों की प्रशंसा प्राप्त कर चुकी हैं। यह छन्द की वापसी जैसा कोई उपक्रम नहीं है, बल्कि शताब्दियों से आ रही कबीरी पुकार का पुनर्नवन है। स्वीकृत पद-शैली के आयतन में कवि ने समकालीन समाज के अन्तर्विरोधों व अन्तःसंघर्षों को व्यक्त किया है।
‘लोहे के कुछ चने सुबह थे, सायं जिन्हें भिगोया/पानेवाले राज पा गए, अष्टभुजा सब खोया।’ —आम जन के दु:ख-दर्द को प्रकट करते हुए अष्टभुजा शुक्ल इसके लिए उत्तरदायी व्यक्ति, प्रवृत्ति, व्यवस्था तक जाते हैं। जिस प्रखर राजनीतिक विवेक की आज हिन्दी कविता में सर्वाधिक आवश्यकता है, वह ‘पद-कुपद’ का प्राण-तत्त्व है।
शब्द की त्रिशक्ति के पारखी अष्टभुजा शुक्ल के इन पदों में व्याप्त व्यंग्य अनायास कवि नागार्जुन की याद दिलाता है। इन रचनाओं में जाने ऐसे कितने शब्द हैं जो विस्मृतप्राय पुरखों की तरह सामने आ खड़े होते हैं। कहना न होगा कि यह काव्यभाषा केवल अष्टभुजा के रचना-संसार में ही सम्भव है। यदि एक उदाहरण देना हो तो गन्ना पर रचा पद पढ़ा जा सकता है। बीस पंक्तियों में समूचा जीवन और उसका दर्शन समाया है—‘कटकर, छिलकर, निचुड़-निचुड़कर होकर गेंड़ी-गेंड़ी/अष्टभुजा की गाँठ बची तो फिर पनपेगी पेंड़ी’।
‘पद-कुपद’ वस्तुतः हिन्दी की जातीय कविता का अर्थवान विस्तार है। पथरीले यथार्थ के बीच अदम्य जिजीविषा की दूब अर्थात् अनहारी हरियाली की पहचान इन पदों को महत्त्वपूर्ण बनाती है।
Pratinidhi Shairy : 'Majaz' Lakhnavi
- Author Name:
Majaz Lakhnavi
- Book Type:

-
Description:
‘मजाज़’ की गिनती उन थोड़े से शायरों में की जा सकती है जिन्होंने कम उम्र में ही ऐसी शोहरत हासिल की कि आगे आनेवाली सारी नस्लें उनकी शायरी पर सर धुनें। ‘मजाज़’ की ख़ासकर ‘आवारा’ जैसी नज़्में तो भाषा की तमाम दीवारें तोड़कर व्यापक रूप से तमाम साहित्य–प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं। ‘मजाज़’ की शायरी उस दौर की शायरी है जब उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द अदब का आन्दोलन रफ़्ता– रफ़्ता अपने लड़कपन से शबाब की ओर बढ़ रहा था। आज़ादी की जंग और उसी के साथ तरक़्क़ीपसन्द अदब की सारी आशा–निराशा, उसके उतार–चढ़ाव, उसके सारे दु:ख–दर्द, ख़ुशियाँ, उसकी सारी उमंगें और उसका सारा आदर्शवाद कला के स्तर पर ‘मजाज़’ की शायरी में साफ़ दिखाई देते हैं, और यही सब तत्त्व हैं जिन्होंने ‘मजाज़’ को इनसान की क़ुव्वत और उसके सुनहरी मुस्तक़बिल में भरोसा रखना सिखाते हुए उनसे ‘ख़्वाबे–सेहर’ और ‘रात और रेल’ जैसी ख़ूबसूरत नज़्में कहलवार्इं। और यही कारण है कि जहाँ तरक़्क़ीपसन्द मुसन्निफ़ीन की अंजुमन को दुनिया के रंगमंच से विदा हुए कोई आधी सदी का अरसा गुज़र चुका है, वहीं उसकी बेहतरीन पैदावारों में से एक के रूप में ‘मजाज़’ की शायरी आज भी अपने पूरे तबो–ताब के साथ हमारे सामने आती है, और ज़िन्दगी-भर दर्दो–रंज से निहाल रहनेवाला यह ‘शायरे–आवारा’ अपने तमाम दर्दो–रंज से ऊपर उठकर दुनिया और दुनिया के सारे दुखों पर छा जाता है।
एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
Prarthna Ke Shilp Mein Nahin
- Author Name:
Devi Prasad Mishra
- Book Type:

-
Description:
देवी प्रसाद मिश्र के लिए 1987 का ‘भारत भूषण पुरस्कार’ प्रस्तावित करते हुए प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह की संस्तुति थी कि परम्परा के साथ एक नए सम्बन्ध की स्थापना, सामाजिक सरोकार और जीवन्त भाषा-संवेदना के कारण देवी प्रसाद मिश्र युवा कवियों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाते हैं।
‘परम्परा पाठ’ और ‘यह समय’ दो हिस्सों में बँटी इस कविता-पुस्तक का कैनवस किसी आदिम मनुष्य की संघर्ष-कथा से लेकर 1988 में मुफ़लिसी और तकलीफ़ में टूटते राम गरीब तक फैला है। हिन्दी कविता में सम्भवतः पहली बार अतीत और समकालिकता को उनकी अविच्छिन्नता और द्वन्द्वात्मकता में आमने-सामने रखा गया है। एक विस्तृत समय-संवेदना में फैली ये कविताएँ भारतीय मनुष्य की उत्पीड़ा और प्रतिरोध को अद्भुत अन्तरंगता, अनुभूति और इतिहासोन्मुखता के साथ व्यक्त करती हैं। अनुभूति और सहानुभूति की इतनी विस्तारधायी और सघन उपस्थिति सचमुच विरल है। दु:ख और दु:ख के कारणों की पड़ताल करती ये कविताएँ किसी भी दुखवाद के विरुद्ध हैं।
राज्य, सत्ता, अत्याचार, दु:ख, अस्तित्व, भाषा, कविता, सरोकार, नैतिकता, संघर्ष, क्रान्ति, परिवर्तन जैसे मुद्दों से टकराती देवी प्रसाद की कविताएँ शिल्प के किसी एकाश्मीय या मोनोलिथिक रूप को अस्वीकृत करती हैं और इस तरह मानो निराला के रचनाकर्म के प्रति प्रतिश्रुत होती हैं।
‘प्रार्थना के शिल्प में नहीं’ सिर्फ़ निरीहता और याचक मानसिकता के निषेध की ही नहीं, एक सकारात्मक और जनवादी विकल्प की अपूर्व और संवेदनशील प्रस्तावना है।
HINDI KI CHUNINDA GHAZALEN
- Author Name:
Editor : Gourinath
- Book Type:

- Description: collection of best hindi ghazals
You Only Live Once (Hindi Translation of You Only Live Once)
- Author Name:
Stuti Changle
- Book Type:

- Description: अगर आप अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाकर भागे तो क्या होगा? बीस साल बाद, तीन लोग आपकी तलाश कर रहे हैं। एक, आपसे दोबारा मिलने की आस लिये दम तोड़ रहा है। दूसरा, यह सोचता है कि काश, आप उनसे कभी मिले ही न होते। तीसरा, चाहता है कि काश वे आपसे एक बार मिल लेते। आप एक ही व्यक्ति हैं। हैं न? लेकिन उनमें से हर एक के लिए वही व्यक्ति नहीं हैं। प्यार की तलाश और खुद को ढूँढऩे पर आधारित इस कहानी में अपने जीवन से जुड़े सवालों के जवाब हासिल कीजिए। मिलिए एक टूटे दिलवाली, मगर यूट्यूब की उभरती स्टार अलारा से। एक संघर्षरत लेकिन उम्मीदों से भरे स्टैंडअप कॉमेडियन आरव से, और समुद्र तट पर बीच शैक के सनकी मालिक रिकी से। ये सब एक साथ गोवा के गहरे समंदर के किसी तट पर से मशहूर गायिका एलिशा के गायब होने के सच का पता लगाने निकल पड़ते हैं
Ghazale Akhil ki
- Author Name:
Akhilesh Nigam 'Akhil'
- Book Type:

-
Description:
ग़ज़ल की धारा गंगाजल की तरह होती है जो उसमें डुबकी लगाने वाले को पूर्णतया भाव-विभोर कर देती है, दिलो-दिमाग को तरो-ताज़गी देती है तथा नकारात्मक विचारों को दूर कर उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
यह ग़ज़ल कृति ग़ज़ल सम्बन्धी तमाम विशिष्टताओं से अभिमंडित है। ग़ज़लों में कहीं प्रेम व सौन्दर्य की सघन अनुभूतियाँ हैं तो कहीं बनते-बिगड़ते नए समाज की क्रूरता आक्रामकता, अवसरवादिता, बाज़ारवाद व ढेर सारी असंगतियाँ हैं। ग़ज़लों में प्रतिवाद के प्रखर स्वर विद्यमान हैं। जो ग़ज़लें सामाजिक बिडम्बनाओं में डूबी हैं उनमें प्रस्तुत तीक्षता एक विशिष्ट मिज़ाज को प्रकट करती है। ऐसी ग़ज़लों की भाव भूमि निराली ही नहीं प्रभावोत्पादी भी है। ग़ज़लों में भाषा की सादगी के साथ-साथ उनमें अर्थ की गहराई भी है। ग़ज़लों में सहज अभिव्यक्ति पर बल दिया गया है। भले ही उसमें अन्य भाषाई शब्दावली प्रयुक्त जाए।
ग़ज़लों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने की पुरजोर कोशिश की गयी है। सर्व धर्म समभाव, नशा मुक्त समाज की स्थापना, कन्या भ्रूण हत्या का विरोध, पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध अभियान, मानवता के सन्देश के साथ-साथ उत्साहपूर्वक जीवन जीने की बात ग़ज़लों में विद्यमान है।
मीरा याज्ञिक की डायरी
Sath Chalte Hue (Rowing Together)
- Author Name:
Sukrita Paul Kumar
- Book Type:

-
Description:
सहज प्रवाह में कई बार तो हवाओं के विरुद्ध भी, आगे बढ़ते, हम दोनों याद करते हैं कि इस संकलन की कविताओं को आकार देते हुए हमारा साथ कैसा रहा। लेकिन इस स्थिति से पहले हम अनुभव और भाषा की निजी धाराओं से भी गुज़रे। एक-दूसरे की कविताओं के अनुवाद की प्रक्रिया हमारे लिए जितनी प्रीतिकर श्रम थी, उतनी ही नैसर्गिक भी। किसी के मन में यह जिज्ञासा हो सकती है कि हमने अपने रचनात्मक लेखन के बजाय अनुवाद करने की बात क्यों सोची ? उसका उत्तर तनिक भी मुश्किल नहीं है। भाषा की सरहदें गलने-पिघलने लगती हैं जब कविता का अनुभव आसानी से एक-दूसरे तक पहुँच रहा हो। हमारी कविताओं ने यह भी तय किया कि वे एक-दूसरे की हो लें और एक अन्य भाषा में ख़ुद को कहें। हमने सिर्फ़ उनकी एक कामना को सुना, शायद यह देखने-जानने के लिए भी, कि किस तरह अनूदित कविताएँ एक बार फिर ‘मौलिक’ हो जाती हैं, कुछ खोकर या शायद कुछ हासिल करके भिन्नता पाती हुईं।
—सुकृता
Tumhari Hansi Sadaneera
- Author Name:
Mukesh Nema
- Book Type:

- Description: अपने बारे में क्या बताऊँ! दस सितंबर चौसठ के दिन केसली ज़िला सागर म.प्र. में पैदा हुआ। पिताजी सरकारी नौकरी में थे, उनकी देखा-देखी पढ़ने में दिलचस्पी जगी। बचपन की हर शाम खंडवा में माणिक्य वाचनालय में गुज़री। किताबें पढ़ने के अलावा कुछ किया ही नहीं मैंने। कॉलेज की पढ़ाई नरसिंहपुर में हुई। इक्कीस का होने पर बैठे-ठाले पीएससी दी और तेईस साल में सरकारी अफ़सर हो गया और फिर एक बेहद सुंदर, शिष्ट और भद्र लड़की मेरे जीवन में आई, राजेश्वरी। दो बच्चे हैं, रोहित और राधा। आजकल एडिशनल कमिश्नर एक्साइज़ मध्यप्रदेश हूँ और जीवन ठीक-ठीक बीत रहा है। अपनी लिखी कविताओं के बारे में क्या कहूँ... इनमें से अधिकांश प्रेम के आसपास रक़्स करती हैं और वह इसलिये कि प्रेम मेरे जीवन का सबसे चमकदार रंग है। ये कविताएँ सप्रयास लिखी गई रचनायें नहीं, बस मेरे अंदर ये बह निकली हैं। आप इनमें बौद्धिकता तलाशेंगे तो शायद निराश हों। ये बस प्रेम जानती हैं और उसी का प्रशस्ति गान करती हैं। मेरी कविताओं में मेरा सुंदर परिवार है, भरोसेमंद रिश्ते हैं, बचपन के दोस्त हैं, आकाश अपने नीले रंग के साथ मौजूद है और साफ़-सुथरी नदियाँ भी बहती हैं। ये उम्मीदों से भरी हैं और रोने-पीटने में भरोसा नहीं करतीं। ये ऐसी इसलिये हैं क्योंकि, ये वही कहती हैं, जो मैंने जिया है। मैं आशा करता हूँ, ये आपको भी अच्छी लगेंगी... मुकेश नेमा
Kamayani : Moolpath Evam Teeka
- Author Name:
Vishvambhar 'Manav'
- Book Type:

- Description: ‘कामायनी’ एक महाकाव्य है। इसकी प्रधान पात्र श्रद्धा है। काम की पुत्री होने के कारण उसका दूसरा नाम कामायनी भी है। प्रसाद जी ने इस गरिमामयी नारी को सम्मान देने के लिए ही अपने महाकाव्य का नाम ‘कामायनी’ रखा है। इसकी कथा का आधार ‘ऋग्वेद’, ‘छांदोग्य’ ‘उपनिषद्’, ‘शतपथ ब्राह्मण’ और ‘श्रीमद्भागवत’ है। घटनाओं का चयन प्रसाद ने मुख्यत: ‘शतपथ ब्राह्मण’ से किया है। उसमें मनु, श्रद्धा, इड़ा, किलात और आकुलि के नाम आए हैं। जल-प्लावन की घटना का उसमें कुछ विस्तार से वर्णन है। मनु देव-जाति में उत्पन्न होने पर भी मानवों के आदि पुरुष हैं। इसी से उनमें देवत्व और मानवत्व के सम्मिलित संस्कार पाए जाते हैं। इस पात्र की महत्ता इस बात में निहित है कि उसके माध्यम से देव-संस्कृति के विनाश के उपरान्त मानव-सभ्यता के विकास की कहानी कही गई है। ‘कामायनी’ में मनु, श्रद्धा और इड़ा, मन, हृदय और बुद्धि के प्रतीक हैं। इस दृष्टि से यह कृति अन्त:करण में वृत्तियों के विकास की गाथा भी कहती है। ‘कामायनी’ में सर्गों का नामकरण इन्हीं वृत्तियों के आधार पर हुआ है। यह मानवीय मनोविकारों का विराट रूपक है।
Lata Aur Vriksh
- Author Name:
Smt. Kranti Trivedi
- Book Type:

- Description: लता और वृक्ष “कहो न मिनी, इसका क्या अर्थ है?” “मन तौ शुदम का अर्थ होता है—मैं तेरा हो गया।” शब्द और अर्थ पर वार्त्तालाप होते देख इंदरानी खिसक ली, नहीं तो देखती अपार प्रेम भरा आलिंगन कैसे हुआ करता है। सुखबीर ने बहुत ही कोमलता से पूछा, “इसके आगे भी कुछ होगा, मिनी? आज इसी क्षण सुनने का मन हो रहा है।” संसार की सबसे सुखी नारी के स्वर में मिनी ने कहना आरंभ किया—“फारसी का यह पूरा छंद है— मन तौ शुदम, तौ मन शुदी। मन तम शुदी, तौ जाँ शुदी। ता कथाम गीयंद वाद अजी। मन दीगरम व तौ दीगरी।” “अब अर्थ भी बता दो, यह तुमने कहाँ पढ़ा था?” “मरियम अम्मा की नोट-बुक में था। मुझे अच्छा लगा तो रट लिया। इसका अर्थ है— मैं तेरा हो गया, तू मेरा हो गया। मैं शरीर बन गया, तू प्राण बन गया। कभी कोई यह कह न सके मैं और तू और तू और मैं हैं।
Naye Subhashit
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
सुभाषित संस्कृत काव्य-साहित्य की एक प्रचलित शैली है जिसमें रचित पदों में दृष्टि, सत्य, सौन्दर्य आदि का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। कम शब्दों में बात कहने की कला इस शैली की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। राष्ट्रकवि दिनकर की इस पुस्तक में इसी शैली में रचे गए हिन्दी-पद शामिल हैं।
सुभाषित हमेशा वाक्-कौशल लिये होते हैं। इनमें अन्तर्निहित सन्देश ऐसी चतुराई से पद्य-बद्ध किए जाते हैं कि इन्हें याद भी किया जा सकता है और अपने व्यावहारिक जीवन में उपयोग भी किया जा सकता है। इस पुस्तक के सुभाषित विभिन्न विषयों से सम्बन्धित हैं और इनका कैनवस बहुत बड़ा है। ये अनुभव और अध्ययन के साँचे में ढले हुए सुभाषित हैं। इसलिए इनमें जो एक अलग छन्दात्मक रंग देखने को मिलता है, उसके प्रभाव में ग़ज़ब का आकर्षण और माधुर्य है। व्यंग्य-विनोद का पुट तो ख़ास है ही।
दिनकर ने अपने इन सुभाषितों में जिस काव्य-कौशल का परिचय दिया है, वह अपनी सम्प्रेषणीयता में एक मिसाल है। मिसाल इस मायने में भी कि आम पाठकों को ध्यान में रखकर भी ऐसे काव्य की रचना की जानी चाहिए। यही कारण है कि ये सुभाषित पढ़नेवाले को अपनी ही कहन का हिस्सा लगने लगते हैं और हृदयतल को छू वहीं ठहर जाते हैं।
इस पुस्तक में ऐसे कई सुभाषित हैं जो आज के उथल-पुथल-भरे समय में साठ साल पहले लिखे जाने के बाद भी प्रासंगिक हैं। इसलिए यह पुस्तक सिर्फ़ पठनीय ही नहीं, एक ज़रूरी पुस्तक भी है।
Kammo Matiyarin
- Author Name:
Mukesh Dubey
- Book Type:

- Description: Book
Noopilan Ki Mayra Payabi
- Author Name:
Geeta Gairola
- Book Type:

- Description: Hindi poems by Geeta Gairola
Jee Haan Likh Raha Hoon
- Author Name:
Nishant
- Book Type:

-
Description:
व्यक्ति के मन, जीवन की छटपटाहट और असन्तोष कैसे कविता में आकर अभिव्यक्ति के फार्म्स और साहित्य की संस्थाबद्धताओं के विरुद्ध संघर्ष में बदल जाता है, यह देखना हो तो निशान्त की ये कविताएँ पढ़नी चाहिए। यह हाशिए से चलकर केन्द्र तक आए एक रचना-विकल मन का आक्रोश है जो इस संग्रह की, विशेषकर तीन लम्बी कविताओं में अपना आकार पाने, अपनी पहचान को एक रूप देने की अथक और अबाध कोशिश कर रहा है।
नाभिक से फूटकर वृत्त की परिधि रेखा की तरफ़ ताबड़तोड़ बढ़ता यह विस्फोट हर उस दीवार, मठ और शक्ति-केन्द्र को ध्वस्त करना चाहता है जो एक उगते हुए अंकुर के विकास को लगभग अपना कर्त्तव्य मानकर बाधित करना चाहते हैं। एक तरह से यह बीसवीं सदी के आख़िरी दशक में उभरी प्रतिरोध की वह युवा-मुद्रा है जिसे अपना हर रास्ता या तो अवरुद्ध मिला या फिर बेहद चुनौतीपूर्ण। समाज में बाज़ार अपनी चकाचौंध के साथ पसरा हुआ था और भाषा में संवेदना, परदुख और सरोकार आदि शब्दों के बड़े व्यापारी अपनी उतनी ही चमकीली दुकानें फैलाए बैठे थे।
इस संग्रह में शामिल तीनों लम्बी कविताएँ—‘कबूलनामा’, ‘मैं में हम, हम में मैं’ और ‘फ़िलहाल साँप कविता’—इन सब आक्रान्ता बाज़ारों-दुकानों के पिछवाड़े टँगे ख़ाली कनस्तरों को पीटने और पीटते ही चले जाने का उपक्रम है। उम्मीद है, यह कर्ण-कटु ध्वनि आपको रास आएगी।
साथ में हैं ‘कोलकाता’ और विभिन्न चित्रकारों की चित्रकृतियों पर केन्द्रित दो कविता-शृंखलाएँ जिनमें निशान्त का कवि अपनी काव्य-भूमि को नई दिशाओं में बढ़ाते हुए अपने पाठक को अनुभूति की अपेक्षाकृत दूसरी दुनिया में ले जाता है।
Kot Ke Bajoo Par Batan
- Author Name:
Pawan Karan
- Book Type:

-
Description:
पवन करण ने कविता का पाठ जीवन की पाठशाला से सीखा है। पवन करण के यहाँ कुम्हार के आवाँ से निकले घड़े की तरह आँच सोखकर, भीतर तलहटी में स्मृतियों की राख चिपकाए, अनपढ़ मुँह के बाहर आती बोली के झिझकते शब्दों में, अभाव का उत्सव खेलते जीवन के दृश्य दिखाई देते हैं। भले ही टेक्नॉलोजी और मैनेजमेंट के प्रशिक्षण ने बहुत जगहों पर आदमी को ही हाशिए पर सरका दिया हो, किन्तु मध्यवर्गीय भद्रलोक की वर्जनाओं से भिड़न्त की धमक वाली ये कविताएँ पाठक के संवेदनतंत्र में कुछ अलग ही प्रकार से हलचल पैदा करती है, क्योंकि भारतीय समाज अभी अपना नग्न फोटोसेशन कराने को उत्सुक प्रेमिका तथा बेटी और प्रेमिका के बीच पिता के प्यार के अन्तर तथा विवाह की तैयारी करती प्रेमिका से पति की ‘आन्तरिकता को जानने को उत्सुक आहत प्रेमी को अपने संस्कारों के बीच जगह नहीं दे पाया है। ‘कोट के बाज़ू पर बटन’ की भी कुछ कविताएँ भद्रलोक के काव्य-वितान में छेद करते हुए प्रेम और देह के बीच खड़ी की गई झीनी, रोमांटिक चादर को किनारे सरकाती हैं।
पवन करण के कहने की कला भाषा के सहज सम्बोधन में निहित है जिसके कारण पाठक चालाक शब्दों और उनकी चमक में चौंधियाने से बचता है। भाषा के स्तर पर कथ्य के बारीक यथार्थ को पवन करण ने बहुत सहजता से व्यक्त कर दिया है। निर्मल वर्मा जिस यथार्थ को कहानी में ‘झाड़ी में छिपे पक्षी’ की तरह बताते हैं, उस यथार्थ को पवन करण बहुत सरलता से पकड़कर झाड़ी के ऊपर बिठा देते हैं कि यह है देखो। उन्होंने अपनी कहन के शब्द, मुहावरे और औज़ार सड़क और गलियों से उठाए हैं, अत: भाषा में भद्रकाव्य के घूँघट न होने से वह नए अनुभव का आस्वाद देती हैं। कविताएँ कहीं भी कवि के ‘मैं’ को अस्वीकार नहीं करतीं अत: रचनात्मक संघर्ष द्विस्तरीय हो जाता है—व्यक्तिगत जो आन्तरिक है और बाह्य जो सामाजिक है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...