Noopilan Ki Mayra Payabi
Author:
Geeta GairolaPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 172.2
₹
210
Available
Hindi poems by Geeta Gairola
ISBN: 9789381923719
Pages: 96
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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भारतीय समाज के मध्यवर्ग के तमाम आख्यानों, इतिहास, स्मृति और राजनीति का अचूक इस्तेमाल करते हुए, साथ ही उसे बाज़ार की भाषा से दूर ले जाकर हर दिन दुःसाध्य होती जाती दुनिया और जीवन को खोजने-नबेरने का साहस दिखाती हुई इन कविताओं में मनुष्य की चिन्ताओं को बड़े फ़लक पर विमर्श का मौक़ा मिला है। इसी कारण इन कविताओं में ऐसे चरित्रा औ गतिविधियाँ सहज ही अपनी भागीदारी बना पाए हैं, जो एक साथ पढ़े जाने पर अपने समवेत प्रतिरोध का शोर रचते हैं।
प्रतापराव कदम, इन कविताओं के बहाने—राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक प्रपंचों पर ऐसा तीक्ष्ण प्रहार करते हैं कि यह देख पाना सम्भव लगता है कि मनुष्य की आकांक्षाओं और सपनों के समर्थन में कभी शब्द या भाषा भी खड़ी हो सकती है। यह इन कविताओं के माध्यम से बख़ूबी सम्भव हो सका है और शोर-शराबे वाले ऐसे कृतघ्न समय में अगर कोई कवि अपने भ्रम के सहारे जीवन की सहजता को बचाए रखता है, तो वह कोशिश कम नहीं मानी जा सकती—‘दूर से, अछड़ते जैसे कोई है झोपड़ी में/जैसे कोई फ़सल निहारते खड़ा बीच खेत/यही भरम बनाए-बचाए रखता है। (भरम)’
इसी भरम को पोसते हुए स्वयं कवि, उसकी कविता या पाठक ही नहीं, बल्कि वे तमाम लोग भी समृद्ध होते हैं, जिनके जीवन में इस तरह का कोई भरम या विश्वास बचा हुआ है।
—यतीन्द्र मिश्र
Tareekh Hamein Saath Liye Jaatee Hai
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Hariom
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Description:
कविता अन्ततः एक भाषिक संरचना है। शब्दों को बरतने की कला है। लय और संरचना उसके अनिवार्य तत्व हैं। समकालीन भारतीय राजनीति की शिकार सिर्फ़ मनुष्यता ही नहीं हमारी भाषा भी हुई है। वो भाषा जो अमीर ख़ुसरो, ग़ालिब, मीर, रहीम से लेकर मुक्तिबोध की सृजनात्मकता से गुज़रकर हमें प्राप्त हुई।
हरिओम की कविताएँ भाषा का एक खोया हुआ आत्मीय संसार गोया हमे वापिस सौंपती हैं। उनके लेखन में एक स्वाभाविक लय है जो अपनी सहजता से हमें चकित करती है। इसे एक लम्बे अभ्यास के बिना प्राप्त करना असम्भव है। कहीं-कहीं नए शब्दों को शामिल करते हुए अनायास ही वे भाषा की न सिर्फ़ पुनर्रचना करते प्रतीत होते हैं; बल्कि उसे नया संस्कार भी देते हैं।
और हम सदियाँ बिताकर आ गए थे जैसे लम्हों में—वाक्य ऐसे लगते हैं जैसे किसी शेर का पूरा मिसरा हों। भूख से नहीं मरता कोई—जैसा यांत्रिक, संवेदनहीन अहम्मन्य वाक्य जैसे किसी ग़ैरज़िम्मेदार तानाशाह का प्रतीक बन जाता है। अपने समय और समाज की गहरी चिन्ता और एहसास के बावजूद इस संग्रह की मुख्य थीम प्रेम है। वे कहते हैं—वक़्त ने जगह को ऐसे घेर रखा है/जैसे मेरी बाँहों ने तुम्हें।
वक़्त और जगह याद करिए—Time & Space—आइंस्टाइन ने जब समय को स्थान का अनिवार्य चौथा आयाम बताया था तो वैज्ञानिकों को ये समझने में कुछ समय लगा था। किन्तु प्रेम की अनुभूति के बरक्स समय और स्थान के युग्म को हरिओम इस सहजता से लाकर रख देते हैं कि हमें ये बोध ही नहीं होता कि उनकी बाँहों में समय है। और उनकी प्रेमिका जिसे वे ‘तुम’ कहकर सम्बोधित कर रहें हैं—वो जगह है, वो पृथ्वी है, वो अन्तरिक्ष है। जिसका समय से मुक्त होना असम्भव है बल्कि अस्तित्व भी असम्भव है।
हरिओम युवा हैं। अपने शब्दों को यक़ीन के साथ स्वर देते हैं और लय पर उनका अधिकार है। तारीख़ हमें साथ लिये जाती है संग्रह में इसके अलावा भी बहुत कुछ है और जो नहीं है वो अगली रचनाओं में और ताक़त के साथ आएगा।
इस यक़ीन के साथ शुभकामनाओं सहित...
—नरेश सक्सेना
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