Samachar Patra Prabandhan
Author:
Gulab KothariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 48
₹
60
Available
आज आम शिकायत यह है कि सम्पादक नाम की संस्था का लोप हो रहा है। जहाँ वह मौजूद है, वहाँ या तो प्रतीकात्मक है या उसके कार्य-अधिकार, विवेक और निर्णय का दायरा घटता जा रहा है। वैश्वीकरण की अदम्य आँधी ने समाचार-पत्रों को भी एक बाज़ार की वस्तु का रूप ग्रहण करने के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसी स्थिति में समाचार-पत्रों में प्रबन्धन की महत्ता और महिमा निरन्तर बढ़ती जा रही है।</p>
<p>समाचार-पत्र का एक व्यावसायिक वस्तु बनकर रह जाना दर्दनाक हादसा है। बाज़ारजनित दृष्टिकोण के कारण समाज में समाचार-पत्र के स्थान, सम्मान और विश्वसनीयता में परिवर्तन की प्रक्रिया धीरे-धीरे चल रही है।</p>
<p>इस माहौल में समाचार-पत्र प्रबन्धन के सम्बन्ध में एक ऐसी परिपक्व दृष्टि की ज़रूरत है जो बाज़ार की बढ़ती हुई ताक़त की व्यावहारिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए उन बुनियादी मूल्यों पर अडिग रहने की कला, दृष्टि और शक्ति दे, जिसके कारण समाचार-पत्रों ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दर्जा पाया है। पत्रकारिता के पुरोधा गुलाब कोठारी की इस पुस्तक से यह सब मिल सकेगा, ऐसा विश्वास है।
ISBN: 9788183611794
Pages: 127
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Anchalik Samwaddata
- Author Name:
Suresh Pandit
- Book Type:

- Description: लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के बावजूद संचार के विकेन्द्रीकरण का मुद्दा अभी विमर्श का विषय नहीं बन सका है। इसके बिना लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की सफलता भी आंशिक ही रहेगी। जब ज्ञान और सूचना को शक्ति माना जाता है तो भला केन्द्रीकृत सूचना-व्यवस्था से विकेन्द्रीकृत शासन-व्यवस्था की आशा कैसे की जा सकती है! जनता के क़रीब के शासकीय पायदानों अर्थात् पंचायतों, नगर पंचायतों, नगर निकायों और गाँवों तथा क़स्बों के समाचारों की महत्ता अख़बारों में बढ़े, तो ही विकेन्द्रित सत्ता का सही आभास हो पाएगा। राजधानी और बड़े शहरों की चमक-दमक-भरे समाचारों को उनका सही स्थान दिखा देने की ज़रूरत है। यह तभी सम्भव है जब कुशल आंचलिक संवाददाता ग्रामीण समाज और नवीन विकेन्द्रीकृत व्यवस्था पर केन्द्रित अच्छे समाचारों को प्रकाशन के लिए भेज सकें जिनमें लोगों के दिल की धड़कन सुनाई पड़े। इसके सामने राज्य और केन्द्र की सत्ता तथा शहर की चमकीली छवि भी फीकी पड़ जाएगी। इस परिप्रेक्ष्य में आंचलिक संवाददाता की मदद के लिए तैयार की गई यह पुस्तक बहुत प्रासंगिक है। निश्चय ही यह पुस्तक कुशल आंचलिक संवाददाता तैयार करने और उनके निरन्तर विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेगी।
Media Jantantra Aur Atankvad
- Author Name:
Sudhish Pachauri
- Book Type:

-
Description:
ग्यारह सितम्बर की सुबह दो अमेरिकी टॉवरें ही नहीं गिरीं, मीडिया की ‘बाइनरी’ यानी ‘विलोमवाची मीडिया’ टावरें भी गिर गईं। ग्यारह सितम्बर के बाद का मीडिया एक क़िस्म के विकेन्द्रण की चपेट में है। अब एक मामूली-सा अरबी चैनल ‘अलजजीरा’, ‘सी.एन.एन.’ पर भारी है। मीडिया का कंटेंट अब ‘पहचान के चिह्नों’ को, उसके ‘भावकों’ को सक्रिय करता है और वे ही पलटकर उसका कंटेंट बनाते हैं। आप स्टूडियो में जो बनाते हैं, वही कंटेंट नहीं होता। जो उसे रिसीव करता है, ग्रहण करता है वह अपना कंटेंट बनाता है। यह एक प्रकार की उत्तर-संरचनावादी अनेकार्थता है जो मीडिया बनाने लगा है और जो नज़र आने लगी है।
आतंकवाद जनतन्त्र का विलोम है। वह स्वयं किसी जनतन्त्र को नहीं मानता। न उसे बने रहने देना चाहता है। ऐसे में यदि जनतन्त्र स्वयं ही सिकुड़ने लगे या कि उसे सत्ता सिकोड़ने लगे तो आतंकवाद को ही ताकत मिलती है। शुरू में लग सकता है कि आतंकवादी जनतन्त्र का लाभ उठा रहे हैं, उन्हें रोकना चाहिए। चूँकि मीडिया अब तक सत्ता संवलित जनतन्त्र पर पलता आया है और उसने आतंकवाद को हमेशा ऑफ़िसियल नज़र से देखा है, इसलिए वह उसे न दिखाने में यक़ीन किया करते हैं। इससे आतंकवाद की साख बढ़ती है, बिन लादेन का मिथक्करण इसी कारण है। तब क्या करें ? इस मामले में बाबा तुलसीदास हमारे बड़े काम के हैं और अपने चैनलों को तुलसीदास का रावण-वर्णन इन दिनों ज़रूर पढ़ना चाहिए। आतंकवाद सूचना की पकड़ से बाहर रहस्य बनकर सूचना बनता है। उसे और बाहर कर देने से उसी की मदद होती है। आतंकवाद मीडिया युग की राजनीतिक कार्रवाई है। उसका भूत मीडिया ही उतार सकता है। वह जितना सूचना में रहेगा उतना ही संवाद में रहेगा। जितना संवाद में रहेगा उतना ही जनतन्त्र में आकर सहज बनेगा।
Masi Kagad
- Author Name:
Prabhash Joshi
- Book Type:

-
Description:
‘जनसत्ता’ के प्रारम्भिक वर्षों में छपे प्रभाष जोशी के सैकड़ों लेखों और सम्पादकीय टिप्पणियों में से किया गया एक चयन है—‘मसि कागद’। ज़ाहिर है इन लेखों में वे सभी विशेषताएँ प्रतिबिम्बित हैं, जिनके चलते ‘जनसत्ता’ ने पाठकों की आत्मीयता प्राप्त की।
ये रचनाएँ प्रभाष जोशी की ख़ास शैली का उदाहरण तो हैं ही, वे यह भी बताती हैं कि राजनीति हो या खेल, समाज हो या संस्कृति, संगीत हो या सिनेमा—लेखक की निगाह घटनाओं के नए सन्दर्भ देखती है, उनके अनदेखे पहलुओं को परखती है और उन्हें लोक-जीवन और विवेक की कसौटी पर कसती है।
इन लेखों में प्रभाष जोशी राजनीति को नैतिक सवालों में बदलते हैं। सिनेमा को समाज से जोड़ते हैं। उनकी पत्रकारिता सत्ता के गलियारों में नहीं भटकती। वे अपने लेखन में पाठकों के प्रति अपनी जवाबदेही को सर्वाधिक महत्त्व देते हैं। इन लेखों में समाज के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त हुआ है। इनमें सामाजिक विसंगतियों को बदलने की बेचैनी भी दिखाई देती है।
Anchor Reporter
- Author Name:
Punya Prasoon Vajpayee
- Book Type:

- Description: जब कोई व्यक्ति टेलीविज़न के परदे पर समाचार देख रहा होता है तो उसके ज़ेहन में दो व्यक्ति अहम हो जाते हैं—एंकर और रिपोर्टर। एंकर जो टेलीविज़न के परदे पर पहले-पहल किसी ख़बर की सूचना देता है, उसके बारे में बताता है, तो रिपोर्टर वह होता है जो घटनास्थल से यह बता रहा होता है कि घटनाक्रम किस प्रकार घटित हुआ। वास्तव में किसी महत्त्वपूर्ण ख़बर के दौरान दर्शकों के लिए यह भी महत्त्वपूर्ण नहीं होता है कि वे चैनल कौन-सा देख रहे हैं, वह महत्त्वपूर्ण ख़बर जिस भी चैनल पर आ रही होती है, दर्शकों का रिमोट उसी चैनल पर ठहर जाता है। ऐसे में किसी समाचार चैनल के लिए एंकर और रिपोर्टर बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि दर्शकों को चैनल से जोड़ने का काम वही करते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि एंकर और रिपोर्टर को हर परिस्थिति को सँभालने में माहिर होना चाहिए। पुण्य प्रसून वाजपेयी ‘आजतक’ के प्रमुख एंकर थे। पेशे के रूप में एंकर-रिपोर्टर का काम क्या होता है, उसकी भूमिका क्या होती है, उसका काम कितना चुनौतीपूर्ण होता है—पुण्य प्रसून जी ने इन्हीं पहलुओं को विभिन्न कोणों से इस पुस्तक में रखा है। यह पुस्तक टी.वी. पत्रकारिता सीखनेवालों के लिए तो उपयोगी है ही, उनके लिए भी बड़े काम की साबित हो सकती है जो इन पेशों की चुनौतियों को जानना-समझना चाहते हैं। यह एक ‘इनसाइडर’ की ‘इनसाइड स्टोरी’ की तरह है।
Corporate Media : Dalal Street
- Author Name:
Dilip Mandal
- Book Type:

-
Description:
राडिया कांड मीडिया की ताक़त और उसकी ख़ामी, दोनों को एक साथ दर्शाता है। ताक़त इस बात की कि मीडिया जनमत बना सकता है, जनमत को बदल सकता है, लोगों के सोचने के एजेंडे तय करता है और ख़ामी यह कि मीडिया पैसों के आगे किसी बात की परवाह नहीं करता। मीडिया को पैसेवाले पैसा कमाने के लिए और ताक़त के लिए चलाते हैं। इसलिए इसके दुरुपयोग की आशंका इसकी संरचना और स्वामित्व के ढाँचे में ही दर्ज है।
राडिया कांड से यह ज़गज़ाहिर हो गया कि ख़ासकर ऊँचे पदों पर मौजूद मीडियाकर्मी पैसे और प्रभाव के इस खेल में हिस्सेदार बन चुके हैं। पिछले 20 वर्षों में मीडियाकर्मियों के मालिक बनने की प्रक्रिया भी तेज़ हुई है। कुछ सम्पादक तो मालिक बन ही गए हैं। इसके अलावा भी मीडिया संस्थानों में मध्यम स्तर पर काम करनेवाले पत्रकारों तक को कम्पनी के शेयर दिए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पत्रकार ही क्यों न हो, उस कम्पनी या उस व्यवसाय के विरुद्ध काम क्यों करेगा जिसमें उसके शेयर हों? इस तरह पत्रकारों की प्रतिबद्धता को नए ढंग से परिभाषित कर दिया जाता है। पत्रकारों का ईमानदार या बेईमान होना अब उनकी निजी पसन्द का ही मामला नहीं रहा। कोई पत्रकार अपनी मर्ज़ी से ईमानदार नहीं रह सकता। यह बात कई लोगों को तकलीफ़देह लग सकती है। राडिया कांड ने मीडिया को सचमुच गहरे ज़ख़्म दिए हैं।
—इसी पुस्तक से
Photo Patrakarita
- Author Name:
Dhananjai Chopra
- Book Type:

- Description: हमारा समय विजुअल कम्युनिकेशन यानी दृश्य संचार का समय है। वास्तविक दुनिया हो या आभासी दुनिया, हर तरफ छवियां ही छवियां हैं। कास्टिंग के लगभग सारे उपक्रम यानी प्रिंटकास्ट, ब्रॉडकास्ट, टेलीकास्ट, वेबकास्ट और ह्यूमनकास्ट अनायास ही छवियों के अधिकाधिक प्रयोग की होड़ में शामिल हो गए हैं। संचार के क्षेत्र में छवियों यानी दृश्यों के इस तरह प्रयोग से जन-संप्रेषण की दुनिया में बड़ा बदलाव आया है। इस बदलाव का कारण बना, हमारे मोबाइल फोन में कैमरे का आ जाना। इक्वींसवीं सदी के प्रारंभ से ही लोगों ने अपने आसपास के दृश्यों को सहेजना शुरू कर दिया था। दृश्यों के माध्यम से जन इतिहास का लिखा जाना यह बता रहा था कि आने वाले समय में शब्दों से कहीं अधिक दृश्य पढ़े जाएंगे। हुआ भी यही, हमने एक ऐसे समाज की रचना कर ली है, जिसमें दृश्य संचार के बिना रह पाना मुश्किल हो रहा है। टेक्नोलॉजी के बलबूते बदलती दुनिया और बदलते समय में दृश्य संस्कृति विकसित हो रही है। दृश्य गढ़े जा रहे हैं, रचे जा रहे हैं, प्रस्तुत किए जा रहे हैं और पढ़े जा रहे हैं। अब से पहले इतने अधिक दृश्यों का आदान-प्रदान कभी नहीं हुआ था। दरअसल यह दृश्य विस्फोट यानी विजुअल एक्सप्लोजन का समय है। यह फोटोग्राफी और फोटो पत्रकारिता को सीखने, समझने, सहेजने और संचरित करने का अप्रतिम समय है।
Kahne Ko Bahut Kuchh Tha
- Author Name:
Prabhash Joshi
- Book Type:

- Description: प्रभाष जोशी की इस पुस्तक में उनके सम्पूर्ण लेखन से चुनकर प्रतिनिधि लेखों का संग्रह किया गया है। वे एक समाजधर्मी पत्रकार थे जिन्होंने अपने समय के बनते इतिहास का दो टूक विश्लेषण किया। उसके साथ ही अपने सक्रिय वैचारिक पहल से समकालीन इतिहास को बनाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज के समय में ऐसे पत्रकार और समाज चिन्तक की कमी एक गतिरोध और यथास्थिति का माहौल बना रही है। ऐसे में प्रभाष जोशी के ये लेख एक नई पहल के लिए प्रेरित करते हैं। पुस्तक में इन अध्यायों के अन्तर्गत लेख रखे गए हैं, उनके शीर्षक हैं : ‘पत्रकारिता है सदाचारिता’, ‘अपनी हिन्दी का हाल’, ‘शिखरों के आसपास’, ‘राजमंच का नेपथ्य’, ‘खेल का सौन्दर्यशास्त्र’ तथा ‘बार-बार लौटकर जाता हूँ नर्मदा’। ये शीर्षक ही पुस्तक में संकलित लेखों के कथ्य बयान कर देते हैं। एक बार फिर से प्रभाष जोशी को पढ़ना आपको इस मुश्किल समय से नए सिरे से परिचित कराएगा। सामाजिक बदलाव की पहल के लिए प्रेरित करेगा।
Khabrein Vistar Se
- Author Name:
Shyam Kashyap +1
- Book Type:

-
Description:
भारतीय भाषाओं में टीवी पत्रकारिता के बारे में पढ़ने-पढ़ाने के लिए किताबें या तो लिखी ही नहीं गईं या फिर वे ऐसी नहीं हैं जो इस कमी को पूरी तरह भर सकें। हिन्दी में तो एक भी ढंग की किताब नहीं है। ‘ख़बरें विस्तार से’ का प्रकाशन इस दिशा में सार्थक प्रयास है।
टेलीविज़न के समाचारों का संकलन, सम्पादन, प्रस्तुतीकरण, वाचन और प्रसारण कैसे और किस तरह से होता है—यानी वे कौन लोग हैं जो ख़बरें लाते, बनाते और दिखाते हैं? एंकर, रिपोर्टर, प्रोड्यूसर, कैमरामैन, वीडियो एडिटर आदि बनने के लिए कहाँ जाएँ, क्या करें? या फिर समाचार चैनलों में कैसे काम होता है? ख़बरों की शूटिंग से लेकर प्रसारित होने तक में किस तरह की तकनीक का प्रयोग होता है? इन सारे सवालों का जवाब पाठक को ‘ख़बरें विस्तार से’ में मिल सकता है। इसे ठेठ भारतीय सन्दर्भ को ध्यान में रखकर लिखा गया है। यह किताब टीवी और ख़बरों की दुनिया को पूरी तरह समझने में मदद करती है। पुस्तक की रूपरेखा इस ढंग से तैयार की गई है कि पाठकों का परिचय टीवी न्यूज़ की बदलती दुनिया से भी हो और ख़बरें बनने की प्रक्रिया को समझने में भी उन्हें सुविधा हो। पुस्तक में न्यूज़ चैनलों की सम्पादकीय और तकनीकी कार्यप्रणाली की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है। ‘ख़बरें विस्तार से’ टेलीविज़न पत्रकारिता के छात्रों व शिक्षकों के साथ सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
Chand : Phansi Ank
- Author Name:
Nareshchandra Chaturvedi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Samachar Evam Praroop Lekhan
- Author Name:
Dinesh Kumar Gupta +1
- Book Type:

- Description: इस पुस्तक के उद्देश्य और स्वरूप को लेकर लेखकीय टिप्पणी इस प्रकार है—“प्रशासनिक, व्यावसायिक एवं कार्यालयी स्तर पर हिन्दी प्रयोग के प्रयास विभिन्न स्तरों पर किए जा रहे हैं, किन्तु उनमें विभिन्न कारणों से एकरूपता और एकसूत्रता का अभाव है। प्रस्तुत पुस्तक में इन अभावों के आधारभूत कारणों को तलाशते हुए, प्रायोगिक स्तर पर हिन्दी के व्यावहारिक स्वरूप का एक सुस्पष्ट प्रतिमान सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।” निश्चय ही लेखक–द्वय के इस प्रयास को यहाँ सार्थक हुआ देखा जा सकता है। उन्होंने इस पुस्तक को तीन अध्यायों में विभाजित कर विषय–विवेचन को एक सुसंगति प्रदान की है, ख़ासकर ‘समाचार–लेखन’ और ‘प्रारूप– लेखन’ नामक अध्यायों में। इनके अतिरिक्त तीसरे अध्याय ‘अशुद्धि–शोधन’ में अशुद्धि के विभिन्न स्तरों का गम्भीरतापूर्वक विवेचन किया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि अपने संक्षिप्त कलेवर में भी अपने विषय की यह एक संग्रहणीय पुस्तक है।
Hindi Patrakarita : Ek Yatra
- Author Name:
Mrinal Pande
- Book Type:

- Description: अरसे तक ‘राष्ट्रीय मीडिया’ मानी जानेवाली अंग्रेजी मीडिया के वर्चस्व को, अपने व्यापक जमीनी जुड़ाव की बदौलत किनारे कर, देश के कोने-कोने तक पहुँच बना चुकी हिन्दी मीडिया का यह ऐतिहासिक सफर अत्यन्त चुनौतीपूर्ण रहा है, जिसका ब्योरा मृणाल पाण्डे ने इस किताब में दर्ज किया है। इसमें औपनिवेशिक काल में बढ़ती राष्ट्रीय भावना से उपजे अखबार और अंग्रेजी की अधीनता से लेकर, आजादी के बाद के दौर में विज्ञापन और निजी कॉरपोरेटों की बढ़ती मौजूदगी से आए उन बदलावों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है जिन्होंने पत्रकारिता का परिदृश्य आमूल बदल दिया। आगे डिजीटलीकरण, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बढ़ते प्रभावों और विज्ञापनों पर भारी निर्भरता ने बदलावों को और तेज किया। और अब, राजनीति, कारपोरेट और मीडिया के बीच स्पष्ट किन्तु जटिल रिश्तों की छाया में यह सवाल सामने है कि एक समय भारतीय लोकतंत्र को आगे बढ़ाने का जरिया बनी हिन्दी मीडिया आज हमारे संविधान प्रदत्त सूचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हक को आगे बढ़ा पाने में किस हद तक सक्षम है? जरूरी जानकारियों से भरी यह किताब पत्रकारिता के छात्रों, प्रोफेसरों और मीडियाकर्मियों के साथ-साथ उन सबके लिए एक विचारोत्तेजक पाठ है जो मीडिया और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास, वर्तमान और भविष्य में दिलचस्पी रखते हैं।
Hindi Patrakarita Ka Pratinidhi Sankalan
- Author Name:
Tarushikha Surjan
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी पत्रकारिता की डेढ़ सदी की यात्रा को एक पुस्तक में समाहित करने का यह प्रयास सराहनीय है। देश और समाज के निर्माण में हिन्दी पत्रकारिता की अपनी एक विशिष्ट और महती भूमिका रही है। यह संकलन न केवल महत्त्वपूर्ण सम्पादकों व पत्रकारों की लेखनी से परिचय कराता है, बल्कि पत्रकारिता के वास्तविक व आदर्श स्वरूप का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ भी प्रस्तुत करता है। हिन्दी पत्रकारिता अपने उद्भव काल से अभी तक जिन-जिन पड़ावों से गुज़री है, उनका भी दिग्दर्शन इस संकलन में होता है।
यह संकलन हिन्दी पत्रकारिता के अध्ययन और अध्यापन से जुड़े वर्ग के लिए भी एक मानक सन्दर्भ पुस्तक सिद्ध होगी—ऐसा मेरा विश्वास है। इस वृहद् कालखंड को समूची समग्रता के साथ अपने भीतर समेटे हुए इस संकलन में सम्मिलित किए गए मूर्धन्य पत्रकारों के सम्पादकीय वस्तुतः देश, समाज और विश्व को समझने के लिए भी एक उजली खिड़की उपलब्ध कराते हैं।
—भीष्म नारायण सिंह
(भूतपूर्व राज्यपाल एवं केन्द्रीय मंत्री)
Bhartiya Cine-Siddhant
- Author Name:
Anupam Ojha
- Book Type:

- Description: “मैं अक्सर महसूस करता हूँ कि हमारी जनता एक तरफ़ व्यावसायिक विकृतियों का शिकार है तो दूसरी तरफ़ उन विशिष्टतावादी फ़िल्मकारों का जिनके शब्दों का उस पर कोई असर नहीं होता और जो उसे और उलझा देते हैं। मैं सोचता था कि हमारे भी गम्भीर फ़िल्मकार इस देश के मिथकों और लोक-परम्परा को उसी तरह आत्मसात् कर सकेंगे, जैसे अकीरा कुरोसावा ने जापान के क्लासिकी परम्परा को किया है और फिर एक नया लोकप्रिय फ़ॉर्म विकसित हो सकेगा। उलटे हम पाते हैं कि पश्चिम के विख्यात फ़िल्मकारों में ही उलझे हैं हमारे लोग और कभी-कभी उनकी नाजायज नक़ल भी करते हैं। हमें पहले ही नहीं मान लेना चाहिए कि जनता प्रयोग और नवीकरण के मामले में तटस्थ है।” —उत्पल दत्त हिन्दी सिनेमा एक साथ ढेर सारे मिले-जुले प्रभावों से परिचालित है। एक तरफ़ हॉलीवुड सिनेमा, लोकनाट्य रूपों तथा पारसी थियेटर की खिचड़ी, दूसरी तरफ़ पौराणिक मिथकों का लोक-लुभावन स्वरूप, तीसरी तरफ़ इटैलियन नवयथार्थवादी सिनेमा का प्रभाव। इन सबके बीच भारतीय सिनेमा के अपने मूल गुणों को पहचानने-परखने की कोशिश ही इस पुस्तक का ध्येय है। दादा साहब फाल्के ने भारतीय सिनेमा को व्याकरण के साँचे में कसने के लिए एक भारतीय सिने-सिद्धान्त की आवश्यकता महसूस की थी लेकिन वे स्वयं ऐसा कर नहीं पाए और आगे भी नहीं किया जा सका। भारतीय सिने-सिद्धान्त और सिने-कला, इतिहास, पटकथा की संरचना आदि पर छिटपुट टिप्पणियों, लेखों, विचारों को एकत्रित कर सिने-सिद्धान्त का अवलोकन इस पुस्तक के मुद्दों में केन्द्रीय है। सिनेमा की कला-भाषा का ठीक से शिक्षण नहीं होने के चलते एक दृष्टिहीन सिनेमा का व्यावसायिक लुभावना सम्मोहन समाज पर हावी है। यह पुस्तक भारतीय सिने-सिद्धान्त को लेकर किंचित् भी चिन्तित व्यक्तियों को गम्भीरता से सोचने के लिए तथ्य उपलब्ध कराएगी, साथ ही एक सामूहिक प्रयास के लिए प्रेरित करेगी।
Television Aur Crime Reporting
- Author Name:
Vartika Nanda
- Book Type:

-
Description:
वर्तिका नन्दा की यह किताब हिन्दी पत्रकारिता के गम्भीर अध्येताओं, विशेषकर टीवी पत्रकारिता के छात्रों के लिए, अपराध पत्रकारिता के अनेक आयाम उजागर करनेवाली पठनीय सामग्री देती है। आज के भाषाई समाचार जगत में अपराध संवाददाता की भूमिका, उसके लिए ख़बरों के सही स्रोत और प्रस्तुति के तरीक़े क्या हों? टीवी के न्यूज़रूम में अपराध विषयक ख़बरें किस तरह अन्तिम आकार पाती हैं? टीवी के लिए अपराध से जुड़े समाचारों को किस तरह से लिखा जाना चाहिए? उसका तकनीकी पक्ष, साक्षात्कार तथा एंकरिंग की दृष्टि से उनका सही नियामन तथा प्रसारण कैसा हो?—इस सब पर अपने लम्बे अनुभवों की मदद से लेखिका ने सिलसिलेवार तरीक़े से प्रकाश डाला है। पुस्तक के अन्त में दिए गए टीवी स्क्रिप्ट के कुछ नमूने तथा उनसे जुड़ी शब्दावली का समावेश पुस्तक की उपादेयता को बढ़ाता है।
—मृणाल पाण्डे
‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार’ प्राप्त वर्तिका नन्दा के स्तम्भ पढ़ता रहा हूँ। उनकी पृष्ठभूमि, मीडिया में व्यावहारिक अनुभव और अध्यापन सम्पन्न है। मीडिया के तीनों सशक्त माध्यमों—इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और रेडियो में उन्होंने काम किया है। ख़ासतौर से मीडिया पर उनके स्तम्भ अत्यन्त सूचनाप्रद और विचारपरक होते हैं। आज मीडिया में कैरियर की अनन्त सम्भावनाएँ और अवसर हैं। यह पुस्तक मीडिया जगत की सूक्ष्म और बारीक़ चीज़ों को भी पाठकों तक पहुँचाएगी। उनकी दोनों भूमिकाएँ (पत्रकारिता अध्यापन) इस पुस्तक को विशिष्ट, अलग और महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। मीडिया जगत के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े लोगों के लिए नहीं, बल्कि पत्रकारिता जगत में रुचि रखनेवाले सामान्य पाठकों के लिए भी।
—हरिवंश।
Maine Danga Dekha
- Author Name:
Manoj Mishra
- Book Type:

-
Description:
बीसवीं सदी के आख़िरी वर्ष भारतीय सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में साम्प्रदायिकता और जाति के उभार के वर्ष भी रहे हैं। समय के इस मोड़ पर हमने अचानक पाया कि जैसे आधुनिकता और प्रगतिशीलता के मूल्य सहसा हमारा साथ छोड़ गए और हम विकल होकर धर्मों और जातियों की शरण ढूँढ़ने लगे। इसी प्रक्रिया में हमने असहिष्णुता और हिंसा के अनेक रूप भी देखे।
यह पुस्तक 1989 से 1996 तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों, क़स्बों और गाँवों में हुए साम्प्रदायिक और जातीय दंगों की रिपोर्टिंग का संकलन है। ये उस दौर के दंगे हैं जब मंडल और कमंडल (अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद) आन्दोलन अपने चरम पर थे। इसके परिणामस्वरूप पहले साम्प्रदायिक दंगे हुए, फिर जातीय दंगे।
यह पुस्तक पत्रकारिता में रुचि रखनेवाले सामान्य पाठकों और पत्रकारिता के छात्रों के लिए भी उपयोगी है, क्योंकि लेखक ने दंगों की रिपोर्टिंग कैसे की जाती है, इसका वर्णन इसमें किया है।
Idea Se Parde Tak : Kaise Sochta Hai Film Ka Lekhak?
- Author Name:
Ramkumar Singh +1
- Book Type:

- Description: यह किताब सिनेमा के एक सहयोगी पेशेवर के रूप में फ़िल्म-लेखक के कामकाज का सिलसिलेवार वृत्तान्त प्रस्तुत करती है। फ़िल्म का अपना तौर-तरीक़ा है, जिसके दायरे में रहकर ही फ़िल्म-लेखक को काम करना पड़ता है। इसलिए एक हद तक अपनी स्वायत भूमिका रखने के बावजूद उसको अपना काम करते हुए निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, कैमरा-निर्देशक आदि अनेक सहयोगी पेशेवरों के साथ संगति का ख़याल रखना पड़ता है। ज़ाहिर है, फ़िल्म-लेखन जिस हद तक कला है, उसी हद तक शिल्प और तकनीक भी। एक सफल फ़िल्म लेखक बनने के लिए जितनी ज़रूरत प्रतिभा की है, उतनी ही परिश्रम, कौशल, अनुशासन और समन्वय की। सबसे लोकप्रिय कला के रूप में अपनी जगह बना चुका सिनेमा आज एक महत्त्वपूर्ण इंडस्ट्री भी है जो लाखों-लाख युवाओं के सपनों का केन्द्र बन चुकी है। ऐसे में फ़िल्म-लेखन की दिशा में कदम बढ़ाने वालों के लिए यह किताब एक अपरिहार्य हैण्डबुक की तरह है।
Rajneeti Meri Jaan
- Author Name:
Punya Prasun Bajpai
- Book Type:

- Description: Book related to media politics and society.
Web Patrikarita : Naya Media Aur Rujhan
- Author Name:
Shalini Joshi +1
- Book Type:

-
Description:
एक ऐसे दौर में जब मीडिया प्रिंट, रेडियो और टीवी से होता हुआ वेब पर उतर आया है और वहाँ भी उसके कई रूप दिखने लगे हैं, ऐसे न्यू मीडिया के दौर में जर्नलिज़्म से जुड़े छात्रों, शोधकर्ताओं और अध्यापकों, पेशेवरों और विशेषज्ञों के सामने कुछ नई चुनौतियाँ और सवाल भी आए हैं। न्यू मीडिया कमोबेश उसी समय प्रकट हुआ जब ग्लोबल विलेज की अवधारणा ज़ोर मार रही थी, भूमंडलीकरण ने आकार ग्रहण कर लिया था और नवउदारवादी शर्तें व्यापक कॉरपोरेट मिज़ाज का निर्माण कर रही थीं।
आधुनिकतम तकनीकी से लैस इस मीडिया सिस्टम में नए सवाल और नई पेचीदगियाँ भी जुड़ती जा रही हैं। उन्हें समझने, उनके हल के औज़ार तैयार करने के लिए एक बिलकुल ही नए तेवर वाले मुस्तैद जर्नलिस्ट की दरकार है। कहने को वे मल्टीमीडिया न्यूज़पर्सन होंगे लेकिन उन्हें सिर्फ़ स्किल्स में ही दक्षता हासिल नहीं करनी होगी बल्कि उन्हें समाचार के बुनियादी मूल्यों और अपने पेशे की बुनियादी नैतिकताओं पर भी फिर से नज़र डालनी होगी। उन्हें नए ढंग से विश्वसनीयता और प्रामाणिकता हासिल करनी होगी जो इधर कॉरपोरेट मीडिया के विभिन्न क़िस्मों के दबावों, स्वार्थों और लालचों में कमज़ोर पड़ गई है या बिखर गई है या मिटा ही दी जा रही है।
न्यू मीडिया सिर्फ़ वेब का ही मीडिया नहीं माना जाना चाहिए, इसे विश्वास का भी न्यू मीडिया समझना चाहिए। ऐसा करते हुए हमें डॉ. शिलर का यह कथन भी नहीं भूलना चाहिए कि कथित विविधता सांस्कृतिक परजीवीपन है। इसे सांस्कृतिक वैविध्य नहीं समझना चाहिए। प्रस्तुत किताब इंटरनेट की इन तात्कालिक कमज़ोरियों और अन्तर्विरोधों की ओर भी इशारा करती है। यह किताब वेब मीडिया के छात्रों और प्रशिक्षुओं को इस माध्यम की बारीकियों के बारे में बताते हुए लिखी गई है। यह उन सहूलियतों का भी विवरण पेश करती है जो न्यू मीडियाकर्मी के लिए हो सकती हैं। और इसमें पत्रकारिता के बुनियादी उसूल, समाचार ज़रूरतें, भाषा और प्रयोग की विविधताओं जैसे पाठ तो स्वाभाविक रूप से शामिल हैं ही।
Patrakarita Ke Naye Ayam
- Author Name:
S. K. Dubey
- Book Type:

-
Description:
पत्रकारिता एक बौद्धिक कर्म है। पत्रकारिता अतीत का मन्थन करती है, वर्तमान को सँवारती है और भविष्य को सुधारने का ताना-बाना बुनती है। युग-चेतना से समृद्ध पत्रकारिता ही विषम परिस्थितियों का सम्यक् विवेचन करके जनमानस को आम सहमति के बिन्दु तक ले जाने का मंच प्रदान करती है। युगीन समस्याओं, जन-आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और सम्भावनाओं पर मनन करके एक रचनात्मक चिन्तन का कैनवस तैयार करती है।
चेतना का प्रवाह करना पत्रकारिता है। परस्पर विरोधी विचारों को समर्थन-विरोध प्रणाली से तौलते हुए तत्त्व की बातें तथ्य सहित पाठकों के सामने लाना पत्रकार कर्म की सफलता है। पत्रकारिता जन-जन को जोड़ने का काम करती है। इसका प्रमुख कार्य मेल-जोल की संस्कृति का विकास करना है। 21वीं सदी की पत्रकारिता महज़ सैद्धान्तिक या वैचारिक ही नहीं रह गई है, उस पर व्यावसायिकता निरन्तर हावी होती जा रही है। विश्वविद्यालयों के अध्यापक पहले से तथा कार्यरत पत्रकार दूसरे से सम्बन्ध रखते हैं। पत्र-पत्रिका आख़िर व्यावसायिक उत्पाद भी हैं।
पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में अपने समय के विभिन्न आयामों से गुज़रती एक महत्त्वपूर्ण और संग्रणीय पुस्तक।
Jab Top Mukabil Ho
- Author Name:
Prabhash Joshi
- Book Type:

-
Description:
‘जब तोप मुकाबिल हो’ पुस्तक में प्रभाष जोशी के पत्रकारिता और मीडिया के दूसरे माध्यमों से सम्बन्धित लेखों के अलावा भाषा, अर्थ, जगत और महिलाओं से जुड़े लेख संकलित हैं। पुस्तक की भूमिका में प्रभाष जोशी लिखते हैं :
“ जब तोप मुकाबिल हो’ तो अख़बार निकालो’—ऐसा अकबर इलाहाबादी ने कहा है। आज लोग तोप का मुक़ाबला करने को अख़बार नहीं निकालते। वे पैसा और थोड़ा-बहुत पव्वा कमाने के लिए अख़बार निकालते हैं। इसलिए छापने के पैसे माँगने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती। अपन ऐसी पत्रकारिता करने नहीं आए थे। आज़ादी के बाद के दूसरे दशक में लगता था कि पत्रकारिता समाज बदलने और नया समतावादी और न्याय आधारित समाज बनाने का एक माध्यम है। आज आप ऐसी बातें करें तो लोग हँसने लगते हैं। फिर भी नरसिंह राव के कहने पर मनमोहन सिंह जब सन् इक्यानबे में नवउदार आर्थिक व्यवस्था लाए तब तक भारतीय पत्रकारिता में समाज परिवर्तन की वाहक बनने की इच्छा थी। आज जो प्रवृत्तियाँ आप देख रहे और दुखी हो रहे हैं, वे सब इसके बाद की हैं।
लेकिन यहाँ जो लेख संकलित हैं, वे आज की पत्रकारिता की आलोचना में नहीं हैं। ये पत्रकारिता करने या उसे कॉलेजों में पढ़ानेवालों के लिए भी नहीं हैं। मुझे हमेशा लगता रहा कि पत्रकारिता करने और करके दिखाने की चीज़ है, उपदेश देने या सिखाने की नहीं। यह अपने काम की आत्मालोचन है और जो कर न पाए, उसका अफ़सोस भी। लेकिन यह पत्रकारिता को जनसम्पर्क अभियान या प्रकाशन उद्योग बना देने के विरुद्ध तो है ही। मुझे अब कोई पचास साल हो जाएँगे लेकिन कभी मुझे नहीं लगा कि पत्रकारिता बेकार का काम है। ऐसा होता तो अपने अख़बार में मैं लगातार लिखता नहीं रह सकता था—न दैन्यम् न पलायनम्!”
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...