The Shades Of Incandescent
Author:
Sonai TiwaryPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
EnglishCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 122.4
₹
144
Available
The Shades Of Incandescent
ISBN: 9789385137822
Pages: 71
Avg Reading Time: 1 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘जंगल’ जब तक ‘जंगलों’ में थे, तब तक जंगल के नियम, उसका बाहुबल, कमज़ोरों पर बाहुबलियों के शोषण जंगलों तक ही सीमित थे। आज जंगलों का फैलाव शहरों-गाँवों तक आ पहुँचा है। जंगलों के साथ शहरों-गाँवों तक में जंगली जानवरों के पैरों के निशान दिखाई देने लगे। आदमी भी इनके संग-साथ में तन की ताक़त एवं मन के, विचार के स्तर पर धीरे-धीरे जानवर होने लगा। सोच-विचार एवं विवेक के स्तर पर जिसने जंगल को परास्त कर दिया, वह आदमी रह गया पर जो स्वयं परास्त होकर जंगल के सामने नतमस्तक हो गया, जिसने अपने भीतर जंगल को बसा लिया, वह जंगली जानवरों से भी ज़्यादा भयावह हो गया। उसके पंजे करामात दिखाने लगे। बाहुबल शोषण का स्रोत बन गया, माफ़िया-संस्कृति सर उठाकर चलने लगी और शीघ्रातिशीघ्र ‘कुबेर’ बनने की ललक ने बिना पूँजी-पगहा वाला ‘अपहरण-उद्योग’ खड़ा कर दिया। जंगली चक्की चलने लगी, लोग पिसने लगे।
शोषण बढ़ा तो इसकी प्रतिक्रिया पहले कुनमुनाई, फिर अँगड़ाई लेने लगी। पाँवों तले दबी दूब भी पाँव हटने के बाद सर तो उठाती ही है। उठने लगे विरोधी स्वर...धीरे-धीरे उग्र होने लगे ये स्वर। फैलने एवं पकने लगीं उग्रवाद की फ़सलें।
बाहुबल, माफ़िया-संस्कृति, अपहरण-उद्योग और उग्रवाद के खाद-पानी के लिए कोयलांचल और उसके चारों ओर दूर-दूर तक फैली जंगल-पहाड़ों वाली ज़मीन बड़ी मुफ़ीद बन गई।
कहते हैं कोयलांचल में नोट हवा में उड़ते हैं। जिसके हाथों में ताक़त हो वह आगे बढ़कर लूट ले। लूट की जंगली प्रतिस्पर्धा बढ़ी तो बाहुबल का प्रदर्शन बढ़ा। लोग दूसरों की लाशें गिराकर उन्हें रौंदते हुए ‘नोट’ तक बढ़ने लगे। ख़ूनी-खेल गुल्ली-डंडा बन गया, उग्रवाद एवं अपहरण भी साथ-साथ क़दमताल करने लगे, इन सबके बीच पिसने लगा आम आदमी और लाल होने लगी काली ज़मीन।
लाल पड़ती जा रही धरती की परत-दर-परत खोलकर इसे देखने, समझने और दिखाने का प्रयास है यह उपन्यास।
Bina Darvaze Ka Makaan
- Author Name:
Ramdarash Mishra
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- Description: आर्थिक विपन्नता से ग्रस्त किसी युवती को जब जीवन-ज्ञापन के लिए काम करना पड़ता है तो समाज के भूखे भेड़िए उसे ललचाई नज़रों से देखने लगते हैं। लेकिन जब उसकी आर्थिक विपन्नता के साथ उसके पति की शारीरिक निष्क्रियता भी जुड़ जाए, तो उसे सार्वजनिक सम्पत्ति ही समझ लिया जाता है। ‘बिना दरवाज़े का मकान’ की नायिका दीपा निम्न वर्ग की एक ऐसी ही अभिशप्त युवती है जो जीविकोपार्जन के साथ-साथ अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष कर रही है। उसकी जीवन-प्रक्रिया तथा संघर्ष के क्रम में सम्भ्रान्त बेनक़ाब होता जाता है और दो समाज आमने-सामने तने हुए दिखाई पड़ते हैं। दिल्ली की एक भरी-पूरी कॉलोनी की पृष्ठभूमि पर आधारित कथा कभी-कभी गाँव की ओर भी चली जाती है और तब विडम्बना एकदम गहरा जाती है। दर्द और यातना के गहरे प्रसार के बीच जिजीविषा एवं संघर्ष से उत्पन्न मूल्य-चेतना उपन्यास को और सशक्त बनाती है।
Aadividrohi
- Author Name:
Howard Fast
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Description:
ईसा पूर्व 73 के आसपास रोम में हुए ग़ुलाम-विद्रोह की यह महागाथा ‘आदिविद्रोही’ स्वतंत्रता, प्रेम, उम्मीद और जिजीविषा की अपूर्व कथा है। इस विद्रोह का नेतृत्व ग़ुलामों के परिवार में ही जन्मे स्पार्टकस ने किया था। यह वह दौर था जब ग़ुलामी की प्रथा अपने शिखर पर थी और मनुष्यता का विशाल हिस्सा मुट्ठीभर उच्च वर्ग की सेवा और मनोरंजन का साधन भी था। तत्कालीन रोम के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक जीवन में ग़ुलामी की यह प्रथा कैसे काम करती थी, इसका अनुमान तो इस ऐतिहासिक उपन्यास से होता ही है; ग़ुलामों का अपना जीवन कैसा था; ग़ुलाम पुरुषों और स्त्रियों को पराधीनता की मानसिक यंत्रणा के अलावा शारीरिक तौर पर भी क्या कुछ झेलना पड़ता था, यह भी इससे समझा जा सकता है।
लेकिन उपन्यास का केन्द्रीय पात्र स्पार्टकस ही है जिसे कापुआ के अमीर लानिस्ता लेन्टुलस बाटियाटस ने ग्लैडिएटर के रूप में तैयार किया और जिसने आगे जाकर अपनी और अपने साथी ग़ुलामों की आज़ादी के लिए एक ऐतिहासिक विद्रोह को अंजाम दिया। स्वाधीनता, समानता और मुक्त विवेक के पैरोकार हावर्ड फ़ास्ट ने अपनी कृतियों में हमेशा ही साधारण जन की अन्तर्निहित शक्ति को पहचानते हुए ऐसी कथाओं की रचना की जो मानवता के भविष्य को लेकर उम्मीद पैदा करती है।
1951 में लिखे गए इस उपन्यास के विषय में यह जानना भी रोचक होगा कि तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के चलते उस समय अमेरिका के किसी प्रकाशक ने इसे छापने का साहस नहीं दिखाया था, लेखक ने इसे अपने परिचितों और पाठकों की सहायता से स्वयं प्रकाशित किया था। बाद में यह फ़िल्मों और टीवी धारावाहिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना।
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