Samudra Mein Khoya Hua Aadmi
Author:
KamleshPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
“समुद्र में लापता हुए लोग भी बरसों बाद लौटकर आए हैं...” हरबंस उन्हें समझाने लगा—“बहुत बार समुद्रों में तूफ़ान आ जाते हैं। जहाज टूट जाते हैं। लोग समुद्र में खो जाते हैं...तैरते-तैरते वे अनजानी जगहों पर जा लगते हैं...” लेकिन बीरन न कहीं पहुँचा, न उसने किसी का दरवाज़ा खटखटाया, पहुँची सिर्फ़ उसके हमेशा के लिए विलीन हो जाने की ख़बर। अवाक् खड़ा रह गया, अपनी दैनंदिन चुनौतियों में उलझा-फँसा उसका परिवार। बीरन जिसे हमेशा अपने बाबूजी की बेबसी और मायूसी सताती रहती थी, जो कॉलेज के दिनों में शाम को ही अपनी ड्रेस धोकर सूखने के लिए डाल देता था, जूतों पर खड़िया फेर लेता था और जिसका भार, जिसकी मौजूदगी घर में किसी को महसूस नहीं होती थी, वही बीरन अपने बोझ से सबको मुक्त कर गया। मध्यवर्गीय जीवन के सफल चितेरे कमलेश्वर ने एक मार्मिक कथा के जरिए इस उपन्यास में दो समुद्रों की तरफ़ इशारा किए हैं—एक पानी का वह असीम सागर, जिसमें बीरन खो गया और दूसरा महानगर की ठंडी, उदासीन भीड़ का पराया समुद्र, जिसमें उसके पिता श्यामलाल और मासूम बहनें अपनी अलक्षित जिजीविषा के साथ तैरने की कोशिश करते रहे। आधुनिक सभ्यता के अथाह समुद्र में आज का मध्यवर्गीय व्यक्ति अपनी सीमाओं और विडम्बनाओं के साथ किस तरह लुप्त हो जाता है, यही इस उपन्यास का केन्द्रीय विषय है।
ISBN: 9788180319396
Pages: 124
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "कथा साहित्य के अंतर्गत कानन, अपर्णा, लीला कमल, बाँसों का झुरमुट तथा नाट्य-साहित्य के अंतर्गत अशोक वन, सत्यकाम, जिंदगी, आदमी, प्रतिध्वनि, देवी, नील झील आदि कृतियाँ जानकीवल्लभ शास्त्री के रचनाकार के उस प्रबुद्ध-सिद्ध गद्यकार पक्ष को उजागर करती है, जो अनेक कवियों के लिए एक कसौटी है। शास्त्रीजी का संस्मरण-साहित्य हिंदी साहित्य की वह अमूल्य निधि है, जिसके बीच से नहीं गुजरना एक सहज-सरल सारगर्भित भाव-निधि से वंचित रह जाना है। स्मृति के वातायन, निराला के पत्र, नाट्य-सम्राट् श्री पृथ्वीराज कपूर, हंसबलाका, कमर्क्षेत्रे: मरुक्षेत्रे, एक असाहित्यिक की डायरी और अष्टपदी आदि संस्मरण-साहित्य शास्त्रीजी का वैयक्तिक राग नहीं, जीवन का विराट् संदर्भ तथा चिंतन-मनन का संवेदनात्मक वह आरोह-अवरोह है, जिसमें पाठक स्वयं को आंतरिक और बाह्य रूपों में देख-समझ और जान सकता है। वैयक्तिक संदर्भों तथा अनुभूतियों को भी शास्त्रीजी ने जिस कुशलता से साहित्य बना दिया है, यह उनके चिंतनशील, मननशील एवं संवेदनशील सर्जक व्यक्तित्व की अन्यतम उपलब्धि है। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री एक सजग, अनुरागी, पारदर्शी और सूक्ष्मदर्शी विश्लेषक-आलोचक भी हैं। इनके समीक्षा-साहित्य रचनात्मक, क्रियाशील और मूल्यांकनपरक विद्वान् आचार्य का साक्षात्कार कराता है। वैसे इनकी आलोचना महज आलोचना नहीं, रचनात्मक-आलोचना है। "
Memoirs of Love
- Author Name:
Arkaprava De +1
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- Description: 'Experience lost relationships in their most cherished memories. Even when nothing good lasts forever, some stories never cease to be. "Memoirs of Love" is one such collection of tales from the heart for the heart. Exploring a range of emotions, each story enters the world of a unique character. Moving and buoyant, this treasure trove of lost love is an indispensable book.'
Murda-Ghar
- Author Name:
Jagdamba Prasad Dixit
- Book Type:

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Description:
मुरदा-घर सामाजिक विसंगतियों और विषमताओं का यथार्थपूर्ण चित्रण है। वर्तमान अर्थव्यवस्था के तहत गाँवों के उजड़ने की प्रक्रिया जैसे-जैसे तेज़ होती गई, महानगरों में गन्दी बस्तियों और झोंपड़पट्टियों या झुग्गी-झोंपड़ियों का उतनी ही तेज़ी से विस्तार होता गया। इन बस्तियों में मानव-जीवन का जो रूप विकसित हुआ, वह काफ़ी विकृत और अमानवीय है। वेश्यावृत्ति और अपराध-कर्म का यहाँ विशेष रूप से विकास हुआ।
‘मुरदा-घर’ में झोंपड़पट्टी की वेश्याओं की दयनीय स्थिति का शक्तिशाली चित्रण है। विद्रूप यथार्थ ‘मुरदा-घर’ के केन्द्र में ज़रूर है, लेकिन उपन्यास की मुख्य धारा करुणा और संवेदना की है। विकृत से
विकृत स्थितियों से गुज़रते हुए भी उपन्यास के पात्र नितान्त मानवीय और संवेदनशील हैं। ‘मुरदा-घर’ में वर्तमान राज्य-तंत्र के अमानवीय रूप को भी उकेरा गया है। पुलिस-स्टेशन, हवालात, कचहरी वग़ैरह का जो रूप यहाँ सामने आया है, काफ़ी अमानवीय और नृशंस है।
‘मुरदा-घर’ आज की हमारी पूरी व्यवस्था पर एक प्रश्नचिह्न है। जैसा कि एक आलोचक ने कहा है, ‘मुरदा-घर’ आधुनिक हिन्दी उपन्यासों की दुनिया में एक चुनौती है। इसका सामना करना आसान नहीं है।’
Zed Plus
- Author Name:
Ramkumar Singh
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- Description: राजनीति की निगाह में आम आदमी की कोई क़ीमत नहीं है। उसके लिए वह बस एक खिलौना है। इस उपन्यास का नायक असलम ऐसा ही एक मामूली आदमी है जो दुर्योग से राजनीति के बड़े खिलाड़ियों के हत्थे चढ़ जाता है और न सिर्फ़ अपनी छोटी-छोटी ख़ुशियों से वंचित हो जाता है, बल्कि उसे अपना जीवन तक बचाना मुश्किल हो जाता है। देश के सर्वोच्च सुरक्षा-घेरे में कसा हुआ असलम समझ नहीं पाता कि बिना माँगे मिले इस वरदान का वह क्या करे, और अन्तत: ग़ायब हो जाता है। पता नहीं कहाँ! हाल ही में चर्चित हुई फ़िल्म 'जज़ेड प्लस’ का आधार बना यह उपन्यास जनसाधारण और शीर्ष पर आसीन सत्ताधीशों के बीच सीधे साक्षात्कार की दीर्घ बिम्ब-शृंखला है जिसमें बार-बार हमें साधारण होने के नाते अपनी निरर्थकता का गहरा आभास ही नहीं होता, मारक आघात पहुँचता है। पेंचदार, दिलचस्प और थ्रिलर उपन्यासों की-सी रफ़्तार से चलता हुआ यह उपन्यास अपनी प्रस्तुति में हिन्दी के लोकप्रिय कथा-लेखन के लिए एक गम्भीर और सरोकार-सजग प्रस्थान बिन्दु है।
Mataa-E-Dard
- Author Name:
Razia Fasih Ahamad
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Description:
‘मता-ए-दर्द’, यानी पीड़ा की पूँजी, जो उसके खाते में जमा होना शुरू हुई तो फिर बढ़ती ही चली गई। ख़ुशी के कुछ पल जो तय थे, वे ज़िन्दगी की शुरुआत में ही ख़र्च हो गए, जब उसने पहले प्यार का पहला सपना देखा था। जल्दी ही वह सपना टूटा और नासूर बनकर रूह के क़रीब बैठ गया। फिर प्यार उसके लिए प्यार न रहा, या तो उस नासूर को ढकने के लिए मरहम बना या वक़्तन-ब-वक़्तन उससे फूटनेवाली ठंडी आग की पलट, जिसका मक़सद मर्दों को अगर झुलसा देना नहीं तो सुलगाकर छोड़ देना ज़रूरी था। फिर भी यह उसकी जीत हरगिज़ न थी, दिल के हाथों वह बार-बार मजबूर हुई, अपने ऊपर से क़ाबू खो बैठी, और फिर पीड़ा की अपनी पूँजी समेटने में जुट गई। जहाँ यह उपन्यास ख़त्म होता है, वहाँ भी वह एक दोराहे पर ही खड़ी है।
पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में लिखा गया यह उपन्यास स्त्री को लेकर लिखी जानेवाली उन फ़ार्मूलाबद्ध कथाओं में से नहीं है जिसमें लेखक अपनी वैचारिक मान्यताओं को अपने पात्रों के ऊपर थोप देते हैं। यहाँ एक स्त्री है जो अपनी स्वाभाविक गति में बनती हुई अपनी ऊँचाई की तरफ़ बढ़ रही है। वह समझौते करती है, प्रतिकार करती है, हताश होती है, लेकिन अपनी ज़िन्दगी में जो ख़ूबसूरत है, महसूस करने लायक़ है, उसके प्रति आँखें बन्द नहीं करती।
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