Juloos Wala Adami
Author:
RamakantPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
‘जुलूस वाला आदमी’ कथाकार रमाकान्त का महत्त्वाकांक्षी उपन्यास है। उनके मन में इसे लिखने की रूपरेखा सन् 60 के दशक में बन चुकी थी, लेकिन इसका लिखा जाना उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक जारी रहा। यह एक राजनीतिक उपन्यास है लेकिन उससे कहीं अधिक है आजादी से ठीक पहले और बाद के सामाजिक बदलाव की अकथ कथा। इस उपन्यास के सन्दर्भ में स्वयं कथाकार ने अपनी डायरी में यत्र-तत्र जो दर्ज किया है, परिचय के लिए वही अपने में पर्याप्त है। रमाकान्त जी के शब्दों में : “हमारे देश के स्वातंत्र्योत्तर काल में व्यक्ति और समाज के जीवन की कथा कही है मैंने इस उपन्यास में। उपन्यास इतिहास का दस्तावेज नहीं होता। यह किसी कालखंड में जीवन की मूलधारा और व्यक्ति की चेतना के विकास का अंकन होता है। यही कहने का प्रयास है मेरा ...यह उपन्यास कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक तिकड़मबाजी की नीति और संघर्षशील जनपक्ष के अंतर्विरोधों और उनके टकराव को उभारता है। मेरा नायक नेता नहीं बनना चाहता। ...जुलूस आगे बढ़ता रहता है और जुलूस वाला आदमी सब पीछे छोड़ता चलता है। जुलूस को कहाँ पहुँचना है, यह जानता है, पर कैसे, किन रास्तों से होकर गुजरेगा, यह नहीं जानता।” यह उपन्यास पाठकों को इस जुलूस में सहर्ष आमंत्रित करता है। इस उम्मीद के साथ कि ‘जुलूस वाला आदमी’ का पाठक अन्तिम सफे तक रचनाकार का साथ देते हुए, जीवन में इस जुलूस से बहुत कुछ पाएगा भी।
ISBN: 9788171193271
Pages: 403
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "चंद्रमा का प्रकाश उसका अपना नहीं, यह तो सूरज का प्रतिबिंब है। लेखिका का मानना है कि इसी तरह उसके व्यक्तित्व में जो चमक है, वह तो उसके आराध्य या मनमीत के व्यक्तित्व का ही प्रतिबिंब है। कवयित्री पॉश कॉलोनी में रहती है, फिर भी उसने एअरकंडीशंड रूम में बैठकर कविताएँ नहीं लिखी हैं। उसने प्रकृति के विविध वर्णी रूपों के बीच अपने को स्थापित किया है। प्रत्येक संग्रह की कविताओं में पीले पत्ते, मलय पवन, कोंपल, कोयल, भ्रमर, सूर्यकिरण, ओसबिंदु, इंद्रधनुष, तितलीपंख, मेहँदी, मृगछौना, धूप, बादल, लैंपपोस्ट, उजड़ा उपवन आदि को प्रतीकों के रूप में स्वीकार किया है। कविताओं में नए प्रतीक, नए बिंब और नए मुहावरों का प्रयोग किया है। उसकी कविताओं में गहरी अनुभूति की सफल अभिव्यक्ति हुई है। जो कुछ कहा गया है, उसका एकएक शब्द सार्थक और सच्चा है, फिजूल का शब्द एक भी नहीं है। कवयित्री ने कविताएँ लिखी नहीं हैं, कविताओं ने अपने को उससे लिखवा लिया है। काव्यरस से सराबोर ये कविताएँ सभी आयु वर्ग के पाठकों को रुचिकर लगेंगी।"
Balgandharva : Aadhunik Marathi Rangmach Ke Ek Mithak Ki Talash
- Author Name:
Abhiram Bhadkamkar
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Khwab Sa Kuchh
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Sanjay Manharan Singh
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Description:
उपन्यास पढ़ना शुरू करते ही, यह महसूस होने लगता है कि यह एक कवि की गद्यकथा है। बेशक इसकी लय गति थोड़ी तीव्र है, और आँखों के सामने उपस्थित होने वाले दृश्य, तुरन्त कथा प्रवाह में बिला जाते हुए लगते हैं। लेकिन इसकी गति में मौजूद सहज घुलनशीलता स्मृति में बहुत कुछ बचाए रखती है, कि हम उसे अपने अनुभवों के आईने में अपने अंतरंग और आत्मीय की तरह सजीवता में देख सकें और तब 'ख्वाब सा कुछ' में 'सच सा कुछ' देखते हुए हम जान पाते हैं, कि शायद सच से बढ़कर दूसरा कोई सपना है भी नहीं।
गाँव और कस्बे के यथार्थ जीवन को उपन्यासकार, कुछ इस तरह से लिखता है कि, वह ब्यौरों के चित्रण में सिमटने और सीमित हो जाने के बदले, विडम्बना और आत्म-व्यंग्य से समृद्ध रूपकीय विन्यास जैसा लगने लगता है। चरित्र, कथानक या सामाजिक परिवेश, इस व्यापक व्यंजकता में एकदम घुले मिले लगते हैं। ऐंठबहार, घुमनाहा और बुतरू के परिवार का अतीत और वर्तमान, लेखक की लिखत में कुछ इस तरह विन्यस्त हो सका है कि हम उन्हें उनसे भिन्न किसी भी परिवार और परिवेश में देख और पा सकते हैं।
उपन्यास में यौन वर्जना ग्रस्त भारतीय समाज के जो रूप उभरते हैं, वे भी केवल यथार्थ निर्देश नहीं करते, बल्कि पूरे समाज की आत्मरुद्धता की ओर सार्थक संकेत करते प्रतीत होते हैं। लेकिन उपन्यास के पाठ में सबसे महत्त्वपूर्ण उसकी पठनीयता है जो विविध मानसिकता के पाठकों को भी बाँधे रखने की अजब किस्सागोई से सम्पन्न है।
—प्रभात त्रिपाठी
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