Sahela Re
Author:
Mrinal PandePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
भारतीय संगीत का एक दौर रहा है जब संगीत के प्रस्तोता नहीं, साधक हुआ करते थे। वे अपने लिए गाते थे और सुननेवाले उनके स्वरों को प्रसाद की तरह ग्रहण करते थे। ऐसा नहीं कि आज के गायकों-कलाकारों की तरह वे सेलेब्रिटी नहीं थे, वे शायद उससे भी ज़्यादा कुछ थे, लेकिन कुरुचि के आक्रमणों से वे इतनी दूर हुआ करते थे जैसे पापाचारी देहधारियों से दूर कहीं देवता रहें। बाज़ार के इशारों पर न उनके अपने पैमाने झुकते थे, न उनकी वह स्वर-शुचिता जिसे वे अपने लिए तय करते थे। उनका बाज़ार भी गलियों-कूचों में फैला आज-सा सीमाहीन बाज़ार नहीं था, वह सुरुचि का एक क़िला था जिसमें अच्छे कानवाले ही प्रवेश पा सकते थे।</p>
<p>मृणाल पाण्डे का यह उपन्यास टुकड़ों-टुकड़ों में उसी दुनिया का एक पूरा चित्र खींचता है। केन्द्र में हैं पहाड़ पर अंग्रेज़ बाप से जन्मी अंजलिबाई और उसकी माँ हीरा। दोनों अपने वक़्तों की बड़ी और मशहूर गानेवालियाँ। न सिर्फ़ गानेवालियाँ बल्कि ख़ूबसूरती और सभ्याचार में अपनी मिसाल आप। पहाड़ की बेटी हीरा एक अंग्रेज़ अफ़सर एडवर्ड के. हिवेट की नज़र को भायी तो उसने उस समय के अंग्रेज़ अफ़सरों की अपनी ताक़त का इस्तेमाल करते हुए उसे अपने घर बिठा लिया और एक बेटी को जन्म दिया, नाम रखा विक्टोरिया मसीह। हिवेट की लाश एक दिन जंगलों में पाई गई और नाज़-नखरों में पल रही विक्टोरिया अनाथ हो गई। शरण मिली बनारस में जो संगीत का और संगीत के पारखियों का गढ़ था।</p>
<p>लेकिन यह कहानी उपन्यासकार को कहीं लिखी हुई नहीं मिली, इसे उसने अपने उद्यम से, यात्राएँ करके, लोगों से मिलकर, बातें करके, यहाँ-वहाँ बिखरी लिखित-मौखिक जानकारियों को इकट्ठा करके पूरा किया है। इस तरह पत्र-शैली में लिखा गया यह उपन्यास कुछ-कुछ जासूसी उपन्यास जैसा सुख भी देता है।</p>
<p>मृणाल पाण्डे अंग्रेज़ी में भी लिखती हैं और हिन्दी में भी। इस उपन्यास में उन्होंने जिस गद्य को सम्भव किया है, वह अनूठा है। वह सिर्फ़ कहानी नहीं कहता, अपना पक्ष भी रखता चलता है और विपक्ष की पहचान करके उसे धराशायी भी करता है। इस कथा को पढ़कर संगीत के एक स्वर्ण-काल की स्मृति उदास करती है और जहाँ खड़े होकर कथाकार यह कहानी बताती हैं, वहाँ से उस वक़्त से कोफ़्त भी होती है जिसके चलते यह सब हुआ, या होता है।
ISBN: 9788183618540
Pages: 198
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘सोशल वर्क’ और ‘सोशल जस्टिस’ इन दो शब्दों के बीच के स्पेश का मोहक किन्तु मार्मिक प्रतिबिम्बन है अलका सरावगी का उपन्यास—‘शेष कादम्बरी’। वृद्ध और युवा जीवन-दृष्टि के फ़र्क़ को रेखांकित करनेवाला यह उपन्यास अलका सरावगी के जीवन्त लेखन का ऐसा प्रतीक है जिसमें उन्नीसवीं सदी में जन्मे, रूबी दी के मामा देवीदत्त का व्यक्तित्व रूबी दी के लिए ‘आइडेंटिटी क्राइसिस’ का कारक बनकर उभरता है। इस ‘आइडेंटिटी क्राइसिस’ की गिरफ़्त में रूबी दी अपनी किशोरावस्था में ही आ चुकी हैं और इससे उबरने के प्रयास में वे एकरेखीय ‘सोशल-वर्क’ के आडम्बर से जुड़ी रहीं और अन्ततः अपनी नातिन ‘कादम्बरी’ में अपनी शेष कथा देखने को बाध्य हुईं। जीवन और उपन्यास का तालमेल बैठाने के लिए अलका सरावगी ने परिचित ढाँचे से बाहर निकलकर यह रेखांकित किया है कि ‘शेष कादम्बरी’ ऐसा जीवन है जिसमें उपन्यास का प्रवाह या फिर जीवन का
उद् दात है। अलका सरावगी की यह औपन्यासिक कृति उपभोक्तावादी मूल्यों के बरक्स उदारवादी मूल्यों की स्थापना भी करती है। आधुनिक जीवन के पेचोखम का रूपायण इस उपन्यास को अविस्मरणीय बनाता है।
Raat Ka Reporter
- Author Name:
Nirmal Verma
- Book Type:

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रात का रिपोर्टर सम्भवत: आपातकाल के दिनों को लेकर लिखा गया हिन्दी में पहला उपन्यास है, और निर्मल जी के कथा-लेखन में नए मोड़ का सूचक भी।
उपन्यास का कथा-नायक रिशी यहाँ एक ऐसे पत्रकार के रूप में सामने आता है, जिसका आन्तरिक संकट उसके बाह्य सामाजिक यथार्थ से उपजा है... हालात ने उसे जैसे अस्वस्थ और शंकालु बना दिया है। उसके चारों ओर अँधेरे का साम्राज्य है और उसका अन्तर्जगत भी उसकी ज़द में है। ऐसे में यदि वह अपने इर्द-गिर्द के अँधेरे को जाँचने-परखने की कोशिश करता है, तो स्वयं भी उसकी कसौटी पर होता है।
वस्तुतः यह एक ऐसी कथाकृति है, जो एक बुद्धिजीवी की चेतना पर पड़ने वाले युगीन दबावों को रेखांकित करती है और उन्हें उसके व्यवहार में घटित होते हुए दिखाती है। इससे गुज़रते हुए हम जिस माहौल से गुज़रते हैं, वह चाहे हमारे अनुभव से बाहर रहा हो या हम उससे बाहर रहे हों, लेकिन वह हमारी दुनिया की आज़ादी के बुनियादी सवालों से परे नहीं है।
Aangan Mein Ek Vriksha
- Author Name:
Dushyant Kumar
- Book Type:

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दुष्यन्त कुमार ने बहुत कुछ लिखा पर जिन अच्छी कृतियों से उनके रचनात्मक वैभव का पता चलता है, यह उपन्यास उनमें से एक है।
उपन्यास में एक सामन्ती परिवार और उसके परिवेश का चित्रण है। सामन्त ज़मीन और उससे मिलनेवाली दौलत को क़ब्ज़े में रखने के लिए न केवल ग़रीब किसानों, अपने नौकर-चाकरों और स्त्रियों का शोषण और उत्पीड़न करता है, बल्कि स्वयं को और जिन्हें वह प्यार करता है, उन्हें भी बर्बादी की तरफ़ ठेलता है, इसका यहाँ मार्मिक चित्रण किया गया है।
उपन्यास बड़ी शिद्दत से दिखाता है कि अन्तत: सामन्त भी मनुष्य ही होता है और उसकी भी अपनी मानवीय पीड़ाएँ होती हैं, पर अपने वर्गीय स्वार्थ और शोषकीय रुतबे को बनाए रखने की कोशिश में वह कितना अमानवीय होता चला जाता है, इसका ख़ुद उसे भी अहसास नहीं होता।
उपन्यास के सारे चरित्र चाहे वह चन्दन, भैनाजी, माँ, पिताजी और मंडावली वाली भाभी हों या फिर मुंशीजी, यादराम, भिक्खन चमार आदि निचले वर्ग के हों—सब अपने परिवेश में पूरी जीवन्तता और ताज़गी के साथ उभरते हैं। उपन्यासकार कुछ ही वाक्यों में उनके पूरे व्यक्तित्व को उकेरकर रख देता है, और अपनी परिणति में कथा पाठक को स्तब्ध तथा द्रवित कर जाती है।
दुष्यन्त कुमार की भाषा के तेवर की बानगी यहाँ भी देखने को मिलती है—कहीं एक भी शब्द न फ़ालतू, न सुस्त।
अत्यन्त पठनीय तथा मार्मिक कथा-रचना।
Global Gaon Ke Devta
- Author Name:
Ranendra
- Book Type:

- Description: ग्लोबल गाँव के देवता आदिवासी जनजीवन की ज्वलन्त गाथा है। असुर आदिवासी समुदाय को केन्द्र में रखकर लिखा गया यह उपन्यास उनकी लगातार बढ़ रही मुश्किलों का बयान करते हुए वर्तमान भारतीय समाज, संस्कृति, सियासत और सत्ता प्रतिष्ठान के सामने कई प्रासंगिक प्रश्न खड़े करता है। ये असुर आदिवासी ही हैं जिन्होंने आग और धातु की खोज की, धातु को गलाकर औजार बनाया। मानव सभ्यता और संस्कृति को आगे बढ़ाने में उनका योगदान किसी व्याख्या का मोहताज नहीं है लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि आज उन्हें अवरोध समझा जा रहा है? तमाम परिस्थितियों का सामना करते हुए हज़ारों सालों से जीवित रहते आए आदिवासी समुदायों के अस्तित्व पर आज संकट क्यों मंडरा रहा है? वस्तुतः यह उपन्यास हमारी सभ्यता-संस्कृति के उस अँधेरे अन्तराल को उजागर करता है जहाँ समाज के छोटे प्रभावी हिस्से द्वारा समाज के अधिकतर सामान्य हिस्से के लोगों को उनकी ज़मीन से उखाड़ने, उन्हें साधनहीन बनाने को ही ‘विकास’ माना जाता है। इसमें भी विडम्बना यह कि ख़ुद को मुख्यधारा कहने वाला प्रभावी हिस्सा यह कार्य सामान्य हिस्से की भलाई के नाम पर करता है। असुर आदिवासियों के सन्दर्भ में इस मुख्यधारा के नज़रिये का हवाला इस प्रकार है कि अतीत की अनगिनत किंवदन्तियाँ और मिथक उनके संहार की कथाओं से भरे पड़े हैं, तो वर्तमान में उनके पारम्परिक इलाकों की ज़मीन में दबे खनिजों के लिए उन्हें वहाँ से बेदख़ल किया जा रहा है। इस उपन्यास की कथा यूँ तो झारखंड की पृष्ठभूमि में रची गई है लेकिन यह दुनिया के उन तमाम लोगों के जीवन संघर्ष का प्रतीक प्रतीत होती है जो अपनी ज़मीन, अपनी आबोहवा को बचाने के लिए लड़ रहे हैं।
Ek Ghoont Chandani
- Author Name:
Rakesh Kumar Singh
- Book Type:

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यह छोटा-सा उपन्यास प्रेम की एक बड़ी कहानी है—प्रेम की, और प्रेम की खोज की और प्रेम के विस्तार की। कहानी खोए हुए प्रेम को ढूँढ़ने की, और मिल गए प्यार को बचाए रखने की।
प्यार की कोई एक परिभाषा नहीं होती, प्यार की परिभाषा से कभी कोई रिश्ता तय भी नहीं किया जा सकता; इस तथ्य को जानते हुए भी समाज, संसार प्यार को किसी न किसी रिश्ते में बाँध देना चाहता है, जहाँ वह धीरे-धीरे अपने सत्त्व को, अपनी ऊष्मा को खो देता है। यह कथा एक अनन्त और अकुंठ प्यार को सँजोए रखने की भीतरी जद्दोजहद की कहानी है। इसकी अपनी रवानी है, जैसे प्यार की होती है...और है अपने ढंग की पढ़त भी।
—इसी पुस्तक से
Salam Aakhiri
- Author Name:
Madhu Kankariya
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समाज में वेश्या की मौजूदगी एक ऐसा चिरन्तन सवाल है जिससे हर समाज हर युग में अपने-अपने ढंग से जूझता रहा है। वेश्या को कभी लोगों ने सभ्यता की ज़रूरत बताया, कभी कलंक बताया, कभी परिवार की क़िलेबन्दी का बाई-प्रोडक्ट कहा और कभी सभ्य, सफ़ेदपोश दुनिया का गटर जो ‘उनकी’ काम-कल्पनाओं और कुंठाओं के कीचड़ को दूर अँधेरे में ले जाकर डंप कर देता है। इधर वेश्याओं को एक सामान्य कर्मचारी का दर्जा दिलाए जाने की क़वायद भी शुरू हुई है। लेकिन
ऐसा कभी नहीं हुआ कि समाज अपनी पूरी इच्छाशक्ति के साथ वेश्यावृत्ति के उन्मूलन के लिए कटिबद्ध हो जाए; इस अभिशाप के उन्मूलन के नाम पर तमाम तरह के उत्पीड़न-दमन और शोषण का शिकार वेश्याएँ ज़रूर होती रही हैं।
यह उपन्यास वेश्याओं और वेश्यावृत्ति के पूरे परिदृश्य को देखते हुए हमारे भीतर उन असहाय स्त्रियों के प्रति करुणा का उद्रेक करता है, जो किसी भी कारण इस बदनाम और नारकीय व्यवसाय में आ फँसी हैं।
कलकत्ता के सोनागाछी रेड लाइट एरिया की अँधेरी गलियों का सीधा साक्षात्कार कराते हुए लेखिका सभ्य समाज की संवेदनहीनता और कठोरता को भी साथ-साथ झिंझोड़ती चलती है; यही चीज़ इस उपन्यास को सिर्फ़ एक कथा-पुस्तक की हद से निकालकर एक दस्तावेज़ में बदल देती है।
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