Punarnava
Author:
Hazariprasad DwivediPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
जिसे प्रायः सत्य कहा जाता है, वह वस्तुस्थिति का प्रत्यक्षीकरण मात्र है। लोग सत्य को जानते हैं, समझते नहीं। और इसीलिए सत्य कई बार बहुत कड़ुवा तो लगता ही है, वह भ्रामक भी होता है। फलतः जनसाधारण ही नहीं, समाज के शीर्ष व्यक्ति भी कई बार लोकापवाद और लोकस्तुति के झूठे प्रपंचों में फँसकर पथभ्रष्ट हो जाते हैं।</p>
<p>‘पुनर्नवा’ ऐसे ही लोकापवादों से दिग्भ्रान्त चरित्रों की कहानी है। वस्तुस्थिति की कारण-परम्परा को न समझकर वे समाज से ही नहीं, अपने-आपसे भी पलायन करते हैं और कर्तव्याकर्तव्य का बोध उन्हें नहीं रहता। सत्य की तह में जाकर जब वे उन अपवादों और स्तुतियों के भ्रमजाल से मुक्त होते हैं, तभी अपने वास्तविक स्वरूप का परिचय उन्हें मिलता है और नवीन शक्ति प्राप्त कर वे नए सिरे से जीवन-संग्राम में प्रवृत्त होते हैं।</p>
<p>‘पुनर्नवा’ ऐसे हीन चरित्र व्यक्तियों की कहानी भी है जो युग-युग से समाज की लांछना सहते आए हैं, किन्तु शोभा और शालीनता की कोई किरण जिनके अन्तर में छिपी रहती है और एक दिन यही किरण ज्योतिपुंज बनकर न केवल उनके अपने, बल्कि दूसरों के जीवन को भी आलोकित कर देती है।</p>
<p>‘पुनर्नवा’ चौथी शताब्दी की घटनाओं पर आधारित ऐतिहासिक उपन्यास है, लेकिन जिन प्रश्नों को यहाँ उठाया गया है, वे चिरन्तन हैं और उनके प्रस्तुतीकरण तथा निर्वाह में आचार्य द्विवेदी ने अत्यन्त वैज्ञानिक एवं प्रगतिशील दृष्टिकोण का परिचय दिया है।
ISBN: 9788126718788
Pages: 310
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारत में अभी भी किसी रूप में क़ायम संयुक्त परिवार का चौमंज़िला यथार्थ, यथार्थ में सबसे गहरे कीलित ग्राउंड फ़्लोर की कच्छप-पीठ पर नई, अकेली स्त्री का बहिर्मुखी अन्तर्जगत (उसका परिवेश और पड़ोस-सजग बन्धु परिवार, परिवार जो रक्त-सम्बन्धों और यौन-सम्बन्धों तक सीमित नहीं और जो विपदा के मारे सब जीव-जन्तुओं को अपना ही समझता है!) ऊपर की तीन मंज़िलों पर फैले रक्त-सम्बन्धों के भी तीन अलग-अलग वितान, किसी तरह आपसी संवाद सँभाले तीन पीढ़ियाँ, समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति उनका रवैया और कोरोनाकाल की विभीषिकाओं से जूझता उनका त्रिकाल—पीड़ित वर्तमान—यह है भारतीय अंग्रेज़ी की मशहूर क़िस्सागो नमिता गोखले के नवीनतम उपन्यास आंधारी की बाहरी और भीतरी संरचनाओं का समतोल!
उपन्यास की धुरी एक ऐसी ख़ुदमुख़्तार, प्रकृति-सजग वृद्धा है जिसे बिहार में पुरधायन कहते हैं! जीवन की कड़वी विसंगतियों की गहरी समझ पुरधायनों में होती है और वे जानती हैं कि आस-पास के लोगों की कई चरित्रगत और स्थितिगत विडम्बनाएँ नज़रअन्दाज़ किए बिना जीवन नहीं चल पाएगा तो ‘सर्वाइवल टैक्टिक्स’ (बचाव-वृत्ति) के तहत वे सहज भाव से बाइबल की यह उक्ति जाने-अनजाने आज़माने लगती हैं—“सीइंग दे डोंट सी हीयरिंग दे डोंट हियर”! उपन्यास एक गहरे नैतिक संधान के साथ इंटरनेट-शासित सूचना-समाज की गुत्थियों की ‘अपोरिया’ में प्रवेश करता है, व्हिटमैन और दिनकर की लोकप्रिय कविताओं के आशय पाठक के साथ मिलकर समझना चाहता है कि वाममार्गी और दक्षिणपंथी राजनीति के बीच का कोई रास्ता है भी तो कहाँ—“गीत-अगीत कौन सुन्दर है?” परम्परा का अन्ध गायन या उसका समूल नाश—इनके बीच कोई आंबेडकर-सजग गांधीवादी/बहुलतावादी प्रमेय ही सुझाती हैं ‘साँग ऑफ़ मायसेल्फ़’ की अन्तिम पंक्तियाँ जो उपन्यास में बहुत क़रीने से जहाँ-तहाँ गूँथी गई हैं!
—अनामिका
Zaharbaad
- Author Name:
Abdul Bismillah
- Book Type:

- Description: ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ के प्रख्यात रचनाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का यह उपन्यास प्रकाशन-क्रम की दृष्टि से तीसरा किन्तु लेखन-क्रम से पहला है। इसकी कथाभूमि मध्य प्रदेश के एक पूर्वी छोर पर स्थित मंडला अंचल है। वहाँ के ग्रामीण परिवेश में रचे गए इस उपन्यास में ऐसे चरित्रों का निरूपण हुआ है जो आज़ाद हिन्दुस्तान की बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं से एकदम अछूते और अपरिचित हैं और ग़रीबी की रेखा के बहुत नीचे का जीवन जी रहे हैं। उनके माध्यम से लेखक ने समाज की विसंगतियों, वर्जनाओं और दारुण विषमताओं को मार्मिक ढंग से उकेरा है। संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास रोज़-रोज़ मरकर जीनेवाले अनगिनत पति-पत्नियों, पुत्रों और प्रेमी-प्रेमिकाओं की, उनके दुःख-दर्द की ऐतिहासिक महागाथा है। साथ ही लेखक ने ग्रामीण परिवेश का चित्रण इतनी सशक्त भाषा में किया है कि वह सब आँखों के सामने से गुज़रता हुआ प्रतीत होता है। संवादों में मंडला की बोली के प्रयोग ने पात्रों को सम्भव और विश्वसनीय बनाया है।
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