The Carved Cabinet
Author:
Sudha Om Dhingra, Arvind AnilPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
Sometimes life takes everything we give and still feels like it’s giving nothing back. But somewhere within that silence, there lies a moment—a turning point—that reminds us of the power we still hold. This novel is built around that moment.
The Carved Cabinet is the English translation of the Hindi novel Naqqashidar Cabinet, originally written by Sudha Om Dhingra. It was an honor for me to bring this powerful story to English readers. As my first work of literary translation, it is more than a linguistic journey—it is an emotional one, too.
At its heart, this is the story of a woman who dares to stand up when the world turns its back. Drawn into a life-altering situation, she faces deceit and danger—but instead of breaking, she finds the strength to fight back. Her courage becomes a quiet revolution.
Set across the vibrant land of Punjab and the layered realities of American life, the story reminds us that resilience is universal. It belongs to anyone who refuses to be silenced and chooses to rise, again and again.
This work is my humble attempt to bring her powerful story to a broader audience through English.
-Aravind Anil
ISBN: 9789348636577
Pages: 146
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: IN
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‘सितम की इन्तिहा क्या है’ पुस्तक का स्थायी-भाव यह है कि मुक्ति-संग्राम की संघर्ष-यात्रा में क्या ‘शब्द’ की कोई असरदार भूमिका रही? इसका सीधा-सपाट उत्तर यही होगा कि नहीं। परन्तु ज़ब्तशुदा साहित्य का इतिहास इस राय की पुष्टि नहीं करता। उस दौर की केवल ज़ब्तशुदा नाट्य-कृतियों की सबल उपस्थिति ही चुनौती बनकर सामने मौजूद है। भारत के पहले ज़ब्तशुदा नाटक ‘नीलदर्पण’ (बांग्ला) अर्थात् शब्द की लिखित शक्ति ने ब्रिटिश शासन को सकते में डाल दिया; शब्द की वाचन-सम्भावनाओं—अर्थात् अभिनय द्वारा भावोत्तेजना उत्पन्न करना—का तो अनुमान लगाना कभी मुमकिन नहीं रहा। अभिनेता-निर्देशक गिरीश घोष जैसे कलाकारों की इस विलक्षण क्षमता से घबराई ब्रिटिश सरकार को ‘ड्रामैटिक परफ़ारमेंस एक्ट’ लागू करना पड़ा। इस पृष्ठभूमि में यह कहना अत्युक्ति न होगी कि ‘सितम की इन्तिहा क्या है’ दुर्लभ अभिलेखों की एक ऐसी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें एक अछूते विषय का पहली बार वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन हुआ है।
इस पुस्तक की कुछ विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं। इस पुस्तक में जिन सात ज़ब्तशुदा हिन्दी नाटकों को प्रकाशित किया जा रहा है, हिन्दी नाट्य-जगत उनका पहली बार साक्षात्कार करेगा; दूसरे, देश-विदेश से दुर्लभ अभिलेखों की खोज से मिली इन नाट्य-कृतियों, उनके लेखकों का यथेष्ट विश्लेषण एवं उन्हें हर पहलू से देखा-परखा गया है।
इस पुस्तक के पहले दो खंड इस मूल सवाल का सामना करते हैं कि इन मामूली लेखकों में इतनी विद्रोही-वृत्ति कैसे पैदा हुई कि उनकी कृतियों पर प्रतिबन्ध लगाने पड़े? व्यापक फलक पर इसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक था। 19वीं सदी और 20वीं सदी के 30 के दशक तक की 24 विप्लवधर्मी विभूतियों के उन विचारों या अवधारणाओं का आकलन भी इसमें किया गया है जिनमें अपने-अपने प्रकार से जीवन या समाज या राजनीति में आमूल बदलाव के आवेग या प्रतिकार या राजद्रोह की चिनगारियाँ थीं।
पुस्तक में समाहित तत्कालीन पत्रिकाओं-पुस्तकों में प्रयुक्त, मुखपृष्ठों, चित्रों, रेखांकनों की प्रस्तुति इसे और अधिक उपयोगी बनाती है।
Adab Mein Baaeen Pasli : Afro-Asiayi NataK Vol. 4
- Author Name:
Nasera Sharma
- Book Type:

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इस संग्रह में तीन महत्त्वपूर्ण नाटकों के अनुवाद दिए जा रहे हैं। जिनमें नाटककारों के अपने व्यक्तित्व एवं जीवन की गहरी छाप है। उस भाषा देश और समाज की परम्पराएँ तो झलकती हैं, साथ ही उनकी समस्याएँ, कठिनाइयाँ, दु:ख और सुख की भी सूचनाएँ मिलती हैं।
रचनाकारों और पाठकों की अपनी निजी जीवन-दृष्टि, अनुभव, पसन्द-नापसन्द होती हैं मगर इन सब के बावजूद कुछ रचनाएँ इन सारी बातों के दबाव से निकल अपनी उपस्थिति विश्व स्तर के साहित्यकारों और पाठकों व आलोचकों में बना लेती हैं, जहाँ नापसन्दगी के बावजूद उसकी अहमियत से इंकार नहीं किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर इन तीनों नाटकों के विषय जिनके तारों से हर काल में नई आवाज़ें निकालने की कोशिशें की गई हैं जो आज भी जारी हैं। इसका कारण वे बुनियादी सवाल हैं, जिनसे लगातार आज का आधुनिक इंसान जूझ रहा है।
अली ओकला ओरसान का नाटक पुराने ऐतिहासिक पर्दे पर नई समस्याओं की ओर इंगित करता है। दूसरा नाटक 'पशु-बाड़ा’, गौहर मुराद का बेहद लोकप्रिय नाटक रहा है। रिफ़अत सरोश का पूरा वजूद शायरी और अदब से प्रभावित रहा है। उनके विषय किसी विशेष वर्ग या वाद तक सीमित नहीं रहे हैं, उनके व्यापक दृष्टिकोण का नमूना उनका नाटक 'प्रवीण राय’ है।
Raat Chor Aur Chand
- Author Name:
Balwant Singh
- Book Type:

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पालीसिंह बहुत सालों बाद अपने गाँव लौटा है। लारी से उतरकर पाँच कोस चलकर गाँव पहुँचता है। जहाँ बचपन की उसकी सारी यादें—रास्ते, पेड़ों, पगडंडियों, हर कोने-कोने में छाई हुई है। बचपन की यादें एक छोटे बच्चे की उत्सुकता-भरी निगाहों की तरह उसके अन्दर उन लोगों के बारे में जानने की इच्छा पैदा कर देती हैं जिन्हें वो सालों पहले छोड़कर महानगर कलकत्ता भाग गया था। जैसे-जैसे वह गाँव की तरफ़ बढ़ता, वैसे ही हवाओं की मस्ती उसे पुरानी यादों से मदमस्त करती जाती और फिर उसे याद आती है अपनी सरनो की जिसे बचपन में वह बहुत तंग किया करता था।
बलवन्त सिंह का यह उपन्यास अतीत की ललक को बख़ूबी उभारता हुआ आहिस्ते से इस बात का भी अहसास कराता चलता है कि वर्तमान अक्सर वैसा नहीं होता, जैसा हम सोचते हैं। समय अक्सर अपने दाँवपेच बदलता रहता है और इसी दाँवपेच के बीच कैसा है पालीसिंह, जो अपने अतीत को पूरी तरह छोड़ नहीं पाता। पालीसिंह सरनो से प्यार करता है और उसे पाने के लिए वह अपने आप को हर पल बदलने की कोशिश भी करता है। पालीसिंह ने पहली बार अपने जीवन में प्रेम को महसूस किया है पर इनसानी फ़ितरत और नियत को कभी-कभी ख़ुद इनसान भी समझ नहीं पाता है। लेकिन बलवन्त सिंह ने अपने सरल और सीधे अन्दाज़ में इस जटिलता को पाठकों के सामने पेश किया है।
Apavitra Aakhyan
- Author Name:
Abdul Bismillah
- Book Type:

- Description: अब्दुल बिस्मिल्लाह उन चन्द भारतीय लेखकों में से हैं, जिन्होंने देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को काफ़ी क़रीब से देखा है और उसे अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया है। समय की सबसे बड़ी विडम्बना है, मनुष्य का इनसान नहीं हो पाना। हम हिन्दू, मुसलमान तो हैं, लेकिन इनसान बनने की जद्दोजहद हमें बेचैन कर देती है। यह उपन्यास हिन्दू-मुस्लिम रिश्ते की मिठास और खटास के साथ समय की तिक्ताओं और विरोधाभासों का भी सूक्ष्म चित्रण करता है। उपन्यास के नायक का सम्बन्ध ऐसी संस्कृति से है, जहाँ संस्कार और भाषा के बीच धर्म कोई दीवार खड़ा नहीं करता। लेकिन शहर का सभ्य समाज उसे बार-बार यह अहसास दिलाता है कि वह मुसलमान है। और इसलिए उसे हिन्दी और संस्कृत की जगह उर्दू या फ़ारसी की पढ़ाई करनी चाहिए थी। वहीं ऐसे पात्रों से भी उसका सामना होता है, जो अन्दर से कुछ तो बाहर से कुछ और होते हैं। उपन्यास की नायिका यूँ तो व्यवहार में नमाज़-रोज़े वाली है, लेकिन नौकरी के लिए किसी मुस्लिम नेता से हमबिस्तरी करने में उसे कोई हिचक भी नहीं होती। ‘अपवित्र आख्यान’ मौजूदा अर्थ केन्द्रित समाज और उसके सामने खड़े मुस्लिम समाज के अन्तर्वाह्य अवरोधों की कथा के बहाने देश-समाज की मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का भी गहन चित्रण करता है।
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