Nadan Premam
Author:
S. K. PottekatPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 140
₹
175
Available
‘नादान प्रेमम्’ एक प्रतिष्ठित कथाकार का प्रथम उपन्यास है। रासायनिक स्वादों से साहित्य को दूर रखने का ख़याल एस.के. पोट्टेक्काट्ट ने हमेशा रखा। आम आदमी के जीवन की परिस्थितियों को विषय-वस्तु बनाकर विशिष्ट कृतियाँ लिखने में वे सव्यसाची-सरीखे थे।</p>
<p>‘नादान प्रेमम्’ गाँव-देहात की मुहब्बत की दास्तान है। लेखक के लिए चिर-परिचित गाँव मुक्कम तथा उधर की इरुवषमि नदी का परिवेश उपन्यास की सहजता को बढ़ाता है। इक्कोरन और मालू इसके मुख्य पात्र हैं। छल-कपट से मुक्त प्रेमिका के दिल की धड़कन का वर्णन मार्मिक है। क्या नादान होना ख़तरनाक है? यह सन्देश भी उपन्यास पढ़ते समय पाठकों के मन में सहज ही उभर आएगा। रोचक कथानक, सहज परिवेश, ग्रामीण पात्र, पात्रानुकूल भाषा, लोकजीवन के बिम्ब आदि इस उपन्यास की ख़ूबियाँ हैं।</p>
<p>आलोचक प्रवर प्रो. के.एम. तरकन ने इस उपन्यास का मूल्यांकन ग्रामांचल में घटित होनेवाले ‘शाकुन्तल’ के रूप में किया है।</p>
<p>उपन्यासकार ने ‘नादान प्रेमम्’ को अपनी पहली सन्तान का दर्जा दिया है। गौण प्रसंगों में भी गम्भीरता के बीजों को तलाशने की प्रवृत्ति यहाँ द्रष्टव्य है। यह उपन्यास प्रेम की निष्ठा को उजागर करता है, लेकिन कभी निष्ठा का परिणाम धोखा भी होता है। मानवता के उत्कर्ष की वकालत करनेवाले लेखक की एक अनुपम कृति है ‘नादान प्रेमम्’।
ISBN: 9789389742886
Pages: ---
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
इस शानदार पुस्तक में, ‘द मैरिज ऑफ़ कैडमस एंड हारमनी’ के ख्यात लेखक, रॉबर्तो कलासो उस कोड का रहस्य खोल देते हैं जिसे बॉदिलेयर आधुनिक कहता है—फ्रेंच रिवॉल्यूशन से चलकर निरन्तर घातक होती द्वितीय विश्वयुद्ध तक की कालावधि। टैलीरॉ के फ़्रांस से लेकर विख्यात अफ़्रीकन शहर कश तक, लेनिन के रूस और कम्बोडिया के नरसंहारी खेतों तक, कलासो हमें मिथकों, साहित्य, कला और विज्ञान की लुभावनी भूल-भुलैयों से होकर सभ्यता के केन्द्र में लाते हैं जहाँ वे इतिहास के गुह्यतम रहस्यों का उद्घाटन करते हैं। आवाज़ों और वार्तालापों से भरी-पूरी, आश्चर्यजनक, पहेली बुझाती, यह गहन पुस्तक पढ़कर भूल जानेवाली चीज़ नहीं है। यह किसी प्राचीन पुस्तकालय की गन्ध की भाँति स्मृति में बसी रह जाती है।
—सुनील खिलनानी, ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’, बुक रिव्यू
ऐसा लगता है कि कलासो ने इस माँग करती और कुरेदनेवाली पुस्तक को बनाने में कम से कम एक राष्ट्रीय पुस्तकालय को खँगाला होगा। इसकी विषय-वस्तु आधुनिक मस्तिष्क का छिछलापन है और आधुनिक संस्कृति की कार्य-विधि के कारण ही जिसका कलासो ऐसी बारीकी और योग्यता से विश्लेषण करते हैं...मैं उस विशेषण का प्रयोग करने में हिचक रहा हूँ जिसके योग्य यह पुस्तक सर्वथा है : मास्टरपीस (श्रेष्ठ रचना)...सभी महान पुस्तकों की भाँति यह पुस्तक हमें अधिक पढ़ती है और हम इसे कम पढ़ते हैं और कला या चिन्तन की महान रचनाओं के समान ही, यह आपको अपना जीवन बदलने के लिए विवश कर सकती है।
—जे टॉल्सन, ‘सिविलिजे़शन’
‘द रुइन ऑफ़ कश’ दो विषय लेती है : प्रथम है टैलीरॉ और दूसरा है बाक़ी सब चीज़ें, और बाक़ी सब चीज़ों में वे सब चीज़ें शामिल हैं जो मानव इतिहास में घटित हुई हैं, सभ्यता की शुरुआत से लेकर आज तक...। यह एक ऐसी पुस्तक है जो अपने आपको एक भटकन और आवारापन में उजागर करती है, अपनी कल्पना, मनमर्ज़ी और कभी न तृप्त होनेवाली जिज्ञासा से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, और बनी हुई है टुकड़ों से, उद्धरणों और इधर-उधर भटकने से, कहानियों, लघुकथाओं और कहावतों से—यह सब इसलिए कि इसे एक अविरल आनन्द के साथ पढ़ा जा सके।
—इटालो काल्विनो, ‘पैनेरामा मेस’
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