Hindi Ki Manak Vartani
Author:
Rachna Bhatia, Dr. K.C. BhatiaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 272
₹
340
Unavailable
"हिंदी की मानक वर्तनी—कैलाशचंद्र भाटिया
प्रस्तुत पुस्तक में हिंदी के तीन अत्यधिक व्यावहारिक पक्षों को रखा गया है—वर्तनी, विरामचिह्न तथा प्रूफ-संशोधन।
उक्त तीनों पक्ष एक-दूसरे से इतने अधिक संबद्ध हैं कि पृथक् करने में कठिनाई है। प्रूफ-संशोधन में जहाँ वर्तनी का शुद्ध रूप रखना पड़ता है, वहीं विरामचिह्नों के ठीक प्रयोग का। ‘मानक हिंदी वर्तनी’ का कार्यक्षेत्र केंद्रीय हिंदी निदेशालय का है, जिनकी सिफारिशों को इसमें समुचित स्थान दिया गया है। वर्तनी का क्षेत्र मात्र शब्दों तक नहीं है, उसमें संक्षिप्त रूप, प्रतीक, व्यक्ति-स्थान नामों का अपार भंडार है।
वर्तनी से ही विरामचिह्न जुड़े हुए हैं। यह सर्वविदित है कि पूर्ण विराम ‘।’ के अतिरिक्त सभी चिह्न अंग्रेजी के संसर्ग से प्राप्त हुए हैं। व्याकरण की विभिन्न पुस्तकों में यत्किंचित् सामग्री विरामचिह्नों पर भी है। इस पुस्तक में पहली बार इन्हें विस्तार से समझाया गया है; जिससे विद्यार्थी व सुधी पाठक लाभान्वित होंगे।
प्रूफ-संशोधन कार्य उक्त दोनों से जुड़ा हुआ है। हिंदी पत्रकारिता में भी अब इसकी आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा है।
साधारणत: हिंदी लेखक इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे ही, साथ ही विद्वानों को इस दिशा में अंतिम रूप से निर्णय लेने में चिंतन का अवसर मिलेगा।
"
ISBN: 9789351862291
Pages: 176
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Book Type:

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Description:
‘रेहन पर रग्घू’ प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया में जो निर्मम ध्वंस हुआ है — तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है — उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है ‘रेहन पर रग्घू’। यह उपन्यास वस्तुतः गाँव, शहर, अमेरिका तक के भूगोल में फैला हुआ अकेले और निहत्थे पड़ते जा रहे समकालीन मनुष्य का बेजोड़ आख्यान है।
उपन्यास में केन्द्रीय पात्र रघुनाथ की व्यवस्थित और सफल ज़िन्दगी चल रही है। सब कुछ उनकी योजना और इच्छा के मुताबिक़। अचानक कुछ ऐसा घटित होता है कि उनके जीवन का अर्जित यथार्थ इतना महत्त्वाकांक्षी, आक्रामक, हिंस्र हो जाता है कि मनुष्यता की तमाम सारी आत्मीय, कोमल अच्छी चीजे़ं टूटने, बिखरने, बरबाद होने लगती हैं। इस महाबली आक्रान्ता के प्रतिरोध का जो रास्ता उपन्यास के अन्त में अख़्तियार किया गया, वह न केवल विलक्षण और अचूक है, बल्कि ‘रेहन पर रग्घू’ को यादगार व्यंजनाओं से भर देता है।
‘रेहन पर रग्घू‘ नए युग की वास्तविकता की बहुस्तरीय गाथा है। इसमें उपभोक्तावाद की क्रूरताओं का विखंडन है ही, साथ में शोषित-प्रताड़ित जातियों के सकारात्मक उभार और नई स्त्री की शक्ति एवं व्यथा का दक्ष चित्रांकन भी है। दरअसल ‘रेहन पर रग्घू’ में वास्तविकताओं, चरित्रों, लोकेल, उपकथाओं आदि का ऐसा सधा हुआ अकाट्य अन्तर्गुम्फन है कि उसे एक प्रौढ़ रचनात्मकता के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए। देशज सच्चाइयों, कल्पना, काव्यात्मकता, झीनी दार्शनिकता का सहमेल उपन्यास को मूल्यवान आभा से समृद्ध बनाता है।
—अखिलेश
Prem Gali Ati Sankri
- Author Name:
Shazi Zaman
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Description:
नाम के बावजूद, परम्परागत मायने में ये कोई प्रेमकथा नहीं, क्योंकि ये किसी तर्कसंगत (दुनियावी मायने में तर्कसंगत) मुक़ाम तक नहीं पहुँचती, लेकिन ये ज़रूर ज़ाहिर करती है कि कोई भी दृष्टिकोण—आधुनिक या परम्परागत—इंसानी ताल्लुक़ात की बारीकी, पेचीदगी और उसके ‘डाइनेमिक्स’ को पूरे तौर पर समझा पाने में सक्षम नहीं है।
‘प्रेम गली अति साँकरी’ की शुरुआत लन्दन के इंडियन वाई.एम.सी.ए. से होती है एक रूहानी बहस के साथ—एक बहस जो कबीर और कल्पना को एक-दूसरे से क़रीब लेकिन इतिहास में बहुत दूर और समाज में बहुत गहरे तक ले जाती है। कहानी का हर पात्र—कबीर, कल्पना, मौलाना, शायर, प्रोफ़ेसर— अपने आप में एक प्रतीक है। इन पात्रों के लन्दन की एक छत के नीचे जमा हो जाने से सामाजिक और व्यक्तिगत परिवेश की परतें खुलती जाती हैं, और कबीर और कल्पना के बीच धूप-छाँव के ताल्लुक़ात से ‘जेंडर रिलेशंज़’ की हज़ारों बरस की आकृति—और विकृति—दिखती जाती है। वो ‘बातों के सवार’ होकर न जाने कहाँ-कहाँ तक चले जाते हैं।
इंडियन वाई.एम.सी.ए. की नाश्ते की मेज़ से शुरू होनेवाली कहानी का आख़िरी (फ़िलहाल आख़िरी) पड़ाव है लन्दन की हाइगेट सीमेट्री—कार्ल मार्क्स की आख़िरी आरामगाह—जहाँ बहस है मार्क्स, क्लास और जज़्बात की। कल्पना का यह आरोप कि मार्क्स ने जगह ही नहीं छोड़ी इंसानी रूह के लिए, ‘बातों के सवार’ को मजबूर करता है यह सोचने पर कि क्या हालात और जज़्बात होते हैं जो हमेशा लोगों को क़रीब और दूर करते रहे हैं।
“ऐसा सबद कबीर का, काल से लेत छुड़ाय,” तुमने कहा।
“कार्ल से लेत छुड़ाय,” मैंने एक ठहाका लगाकर कहा।
ख़ामोश क़ब्रिस्तान में ठहाका काफ़ी देर तक और दूर-दूर तक गूँजता रहा। ‘बातों के सवार’ आसमान के बदलते हुए रंग को देखते रहे।
Love Me Like You Do
- Author Name:
Akarsh Raker
- Book Type:

- Description: We have been taught that opposites attract but do it apply everywhere? Love is one such feeling in the world which cannot be defined with a set of words. It can neither be created nor be destroyed. Vikram, an engineering student, aspiring to be a writer, has a rough patch with his parents. His only reason to enjoy life was Kriti, hoping things would get better. He meets Dhruv, a filmmaker based in Bangalore who was looking for a writer to make his first feature film. Vikram and Dhruv got along quickly, and with this, Vikram's dream to pursue writing was coming true. He also gave up college for this. But later, life had different plans for him. Two incidents changed his life forever. Incidents he could never forget. One gave him love, while the other took away his life. Can love heal everything? Or everything in the world is love? Love me as you do is a tale of love, friendship, passion and setting yourself free to cross the boundaries of life.
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